वो जो ख़ुद बच्चे जैसा है
मुझको बच्चा कहता है !
उसने मेरे पत्थर दिल को
झरना होते देखा है !
मैं कुछ कहना चांहू तो वो
होठों पर ऊँगली रख दे ,
उसने बाहर- भीतर मुझको
अच्छे से पढ़ रक्खा है !
ढाई आखर पढ़ कर उसने
इन्द्रजीत को जीत लिया,
वो मेरे मुह पर ही मुझसे
चाहे जो कह लेता है !
उसको खो कर-के खोया है
अपना भी वजूद मैंने,
दुनिया के नक़्शे से मेरा
नामो-निशाँ मिट गया है !
कोई मुझसे ऊपर मन से
मिलता है तो मिला करे ,
मिलता है ‘सिंदूर’ किसी से
पूरे मन से मिलता है !
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प्रो. राम स्वरुप ‘सिंदूर’
उपनाम : सिंदूर
जन्म : २७ सितम्बर, १९३०
देहावसान : २५ जनवरी, २०१३
जन्म : ग्राम : दहगवां , जिला : जालौन
पिता : स्व. राम प्रसाद गुप्त
माता : स्व. सरजू देवी
शिक्षा : एम.ए. ( हिन्दी साहित्य )
सम्प्रति : हिन्दी विभाग , डी.ए.वी (पी. जी.) कालेज कानपूर से सेवा निवृत
काव्य संग्रह : हँसते लोचन रोते.प्राण / तिरंगा जिंदाबाद / अभियान बेला / आत्म-रति तेरे लिये / शव्द के संचरण मैं / मैं सफ़र में हूँ
सम्मान : साहित्य भूषण सम्मान ( उ.प्र. हिन्दी संस्थान) २००२ / रस वल्लरी सम्मान / सारस्वत सम्मान ( भारतीय साहित्य सम्मलेन , प्रयाग ) / सागरिका विशिष्ट सम्मान / प्रथम मनीन्द्र सम्मान २००५ / नटराज सम्मान – १९८४ ( कानपूर )/ राष्ट्रीय काव्य – सम्मान १९६२ लखनऊ / चेतना गौरव सर्वोच्च सम्मान २००१