प्रो. राम स्वरुप ‘सिंदूर’ की ग़ज़ल – वो जो ख़ुद बच्चे जैसा है

वो जो ख़ुद बच्चे जैसा है

मुझको बच्चा कहता है !
उसने मेरे पत्थर दिल को
झरना होते देखा है !

मैं कुछ कहना चांहू तो वो
होठों पर ऊँगली रख दे ,
उसने बाहर- भीतर मुझको
अच्छे से पढ़ रक्खा है !

ढाई आखर पढ़ कर उसने
इन्द्रजीत को जीत लिया,
वो मेरे मुह पर ही मुझसे
चाहे जो कह लेता है !

उसको खो कर-के खोया है
अपना भी वजूद मैंने,
दुनिया के नक़्शे से मेरा
नामो-निशाँ मिट गया है !

कोई मुझसे ऊपर मन से
मिलता है तो मिला करे ,
मिलता है ‘सिंदूर’ किसी से
पूरे मन से मिलता है !

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sndoor 14.09.2010. 5

प्रो. राम स्वरुप ‘सिंदूर’

उपनाम           :     सिंदूर
जन्म              :    २७ सितम्बर, १९३०
देहावसान         :    २५ जनवरी, २०१३
जन्म               :    ग्राम  : दहगवां , जिला  : जालौन
पिता                :    स्व. राम प्रसाद गुप्त
माता                :    स्व. सरजू देवी
शिक्षा                :    एम.ए. ( हिन्दी साहित्य )
सम्प्रति             :    हिन्दी विभाग , डी.ए.वी (पी. जी.) कालेज कानपूर से सेवा निवृत
काव्य संग्रह         :    हँसते लोचन रोते.प्राण / तिरंगा जिंदाबाद / अभियान बेला / आत्म-रति    तेरे लिये / शव्द के संचरण मैं / मैं सफ़र में हूँ
सम्मान               :    साहित्य भूषण सम्मान ( उ.प्र. हिन्दी संस्थान) २००२ / रस वल्लरी सम्मान / सारस्वत सम्मान ( भारतीय साहित्य सम्मलेन , प्रयाग ) / सागरिका  विशिष्ट सम्मान / प्रथम मनीन्द्र सम्मान २००५ / नटराज सम्मान – १९८४ ( कानपूर )/ राष्ट्रीय काव्य – सम्मान १९६२ लखनऊ / चेतना गौरव सर्वोच्च सम्मान २००१

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