लेखिका- : जयति जैन (नूतन)
_______ लाचार __________
संस्कार नाम की चीज होती तो पता होता कि तमीज़ क्या होती है ! खुद के पिता के नाम के बारि मे शायद संतुष्ट नहीं हैं, तभी हर औरत को गलत नजरिये से देखते हैं ! क्युकी ललित के पिता को हमेशा अपनी बीवी पर शक था, इसीलिये ललित का खुद पर शक है तो अच्छा ही है ! ये औरतो पर शक करना, पुरानी 3 थी ! जिन्द्गी नरक से भी बत्तर थी, सच बोलो तो आये दिन नये खसम बन जाते हैं, घर के काम का कुछ बोलो तो चिल्लाना शुरू… मां बहिन की जो हर बात मे गाली दे, समझ जाओ वो जिसे अपना बाप कहता है, वो उसका बाप है ही नहीं ! बल्कि वो खुद एक गलती है और जिससे उसकी शादी होगी वो उस गलती को जिन्द्गी भर भुकतेगी !
एक गलती पदमा के मां बाप ने करी थी 28 साल पहले, जिसकी सज़ा आज तक पदमा भुगत रही थी ! पदमा को डर रहता है हमेशा कि कहीं उसका बेटा भी ऐसा ही ना निकले, जो औरतों की इज़ज़त ना करे, यदि उसके बेटे ने ऐसा किया तो वो भूल जायेंगी कि वो उसका बेटा है और उसे गोली मार देगी ! अभी तक वो बस इसीलिये चुप है कि इतने सालो मे जो इज़ज़त बनाई है, वो मिट्टी मे मिल जायेगी ! खुद को मिटाने मे 2 लगेगे लेकिन इज़ज़त की चिंता है बस ! तबियत कभी ठीक नहीं रहती और बच्चे अपनी पढाई की वज्ह से घर से दूर ! लेकिन जब पदमा का दर्द असहनीय हो गया तब उसने अपने बच्चो के सामने अपने पिता की घटिया सोच रखी, क्युकी उसकी सहनशक्ति अब जबाब दे गयि थी ! मरने का खयाल सर्वोपरी था कि सारी झंझटो से छुटकारा मिल जाये ! पर अपनी बेटी की वज्ह से चुप रहती थी, कोई भी ऐसा कदम अब नही उठाया था, क्युकी वो जानती थी कि अगर उसे कुछ हुआ तो उसकी बेटी की जिन्द्गी बर्बाद हो जायेगी, बेटे को तो सम्भाल लेगा ललित ! आज भी बेटा कुछ बोल दे, तो कुछ नहीं बोलेगे उससे ! लेकिन यदि कभी बेटे पर गुस्सा आया तो वो भी पदमा को ही सुन्ने मिलता ! दूसरे लोगो के सामने देवता बना बैठा वो पाखन्डी जो औरत को पैर की जूती समझता है, रात मे बीवी चाहिये बिस्तर पर और दिन में भेडिये से कम नहीं ! पदमा अकेले मे, सामने रो लेती लेकिन ललित को कोई फर्क नहीं पडा कभी! ना ही वो अच्छा पति है ना ही पिता , हो ही नहीं सकता था जब अच्छा इंसान ही नहीं है !
आज रितिका को डाक्टर पेशे से शख्त नफ़रत है, वज्ह आप जान ही चुके होगे क्युकि पुरा परिवार डाक्टरी मे… दादा, पापा, चाचा और सब एक जेसे घटिया ! डाक्टर सबसे जायदा पढा लिखा इंसान होता है, पेसे वाला और जिनमे सबसे जायदा ठसक भरी होती है ! रितिका हमेशा कहती है कि डाक्टर दूसरों के लिये मिशाल बन सकते हैं लेकिन अपने परिवार के लिये शायद कभी नहीं ! डाक्टर मे तमीज़ नहीं होती बोलने की, घमंड होता है, शोषण करते हैं महिलाओ का ! परिवार नही दिखता सिर्फ पेसे दिखते हैं, सिर्फ पेसे ! ललित के लिये उसकी बीवी हर जगह गलत होती है, इसिलिये उसकी बेटी के लिये वो किसी राक्षस/दानव से कम नहीं था ! लेकिन समाज के सामने उसने अपनी छवि बहुत सम्मानिय बना रखी थी, जेसे महापुरुष हो ! हो भी क्युं नहीं दूसरो के सामने क्युकी दूसरे के सामने अपनी पत्नी से अच्छे से बर्ताव, घर की काम की फिकर जो रहती थी ! लेकिन घर के अंदर क्या होता है ये बस घरवाले ही
जानते हैं !रितिका अपने भविश्य का पूरा सोचकर बेठि थी कि यदि उसके पति ने कुछ भी उसके साथ ऐसा किया, जेसे उसके पिता करते हैं तो वो अपनी मां की तरह कभी सहन नहीं करेगी !
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परिचय -:
जयति जैन (नूतन)
लेखिका ,कवयित्री व् शोधार्थी
शिक्षा – : D.Pharma, B.pharma, M.pharma (Pharmacology, researcher)
लोगों की भीड़ से निकली साधारण लड़की जिसकी पहचान बेबाक और स्वतंत्र लेखन है ! जैसे तरह-तरह के हज़ारों पंछी होते हैं, उनकी अलग चहकाहट “बोली-आवाज़”, रंग-ढंग होते हैं ! वेसे ही मेरा लेखन है जो तरह -तरह की भिन्नता से – विषयों से परिपूर्ण है ! मेरा लेखन स्वतंत्र है, बे-झिझक लेखन ही मेरी पहचान है !! लेखन ही सब कुछ है मेरे लिए ये मुझे हौसला देता है गिर कर उठने का , इसके अलावा मुझे घूमना , पेंटिंग , डांस , सिंगिंग पसंद है ! पेशे से तो में एक रिसर्चर , लेक्चरर हूँ (ऍम फार्मा, फार्माकोलॉजी ) लेकिन आज लोग मुझे स्वतंत्र लेखिका के रूप में जानते हैं ! मैं हमेशा सीधा , सपाट और कड़वा बोलती हूँ जो अक्सर लोगो को पसंद नहीं आता और मुझे झूठ चापलूसी नहीं आती , इसीलिए दोस्त कम हैं लेकिन अच्छे हैं जो जानते हैं की जैसी हूँ वो सामने हूँ !
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