{निर्मल रानी**,,}
हमारे देश की राजनीति हो अथवा धर्म संबंधी विमर्श, दोनों ही क्षेत्रों में उत्तर भारत तथा उत्तर भारतीयों का वर्चस्व साफतौर पर देखा जा सकता है। धर्म और राजनीति पर उत्तर भारत के वर्चस्व का गत् लगभग सात दशकों में क्या परिणाम हुआ है इस पर चर्चा करने की ज़रूरत नहीं। संक्षेप में हम यही कह सकते हैं कि अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी के बाद हम स्वयं को इतना आज़ाद समझने लगे कि हम अपने व्यक्तिगत् धर्म व राजनीति संबंधी तथा समाज से जुड़े हुए किसी भी कार्यकलाप को जब,जहां और जैसे चाहें अंजाम दे सकते हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर भारत के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे रेलवे स्टेशन भिखारियों,चोर-उचक्कों तथा लुटेरों की शरणस्थली बने रहते हैं। और इन जगहों पर सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस इन्हें स्टेशन से हटाने के बजाए उल्टे उनके साथ सांठगांठ रखती है तथा इनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों में बराबर की शरीक पाई जाती है। इसी प्रकार उत्तर भारत में प्रात:काल के समय रेलवे लाईन से लेकर मुख्य मार्गों के किनारों तक आम लोग अपने नित्य कर्म से निवृत होते देखे जा सकते हैं। दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों के बारे में तो एक बार टेलीविज़न पर यहां तक दिखाया गया कि ट्रेन ड्राईवर को ट्रेन चलाने में सिर्फ इसीलिए प्रात:काल दिक्कत का सामना करना पड़ता है क्योंकि शौच करने हेतु बहुत से लोग रेलवे लाईन के बीचोबीच स्लीपर पर बैठे रहते हैं।
अब आईए ज़रा दक्षिण भारत के चेन्नई,मुदरै तथा हैदराबाद,विजयवाड़ा जैसे रेलवे स्टेशन से इनकी तुलना की जाए। इन स्टेशनों पर आपको ढंूढने पर भी भिखारी अथवा चोर-उचक्के या अड्डेबाज़ प्रवृति के लोग जल्दी नहीं मिलेंगे। प्रात:काल की जो ‘बहार’ उत्तर भारत में रेल लाईन व सडक़ों के किनारे नज़र आती है वह भी दक्षिण भारत में नाममात्र देखने को मिलेगी। स्टेशन पर सफाई का यह आलम है कि आप दक्षिण के स्टेशन की तुलना यूरोप, अमेरिका व चीन जैसे देशों के स्टेशन से भी कर सकते हैं। बीड़ी व सिगरेट के टुकड़े प्लेटफार्म अथवा रेल लाईनों पर कहीं पड़े नज़र नहीं आते। लगभग प्रत्येक रेलगाड़ी के स्टेशन छोडऩे के बाद रेल सफाईकर्मी जिनमें महिलाएं खासतौर पर शामिल हैं रेल लाईन पर उतर कर यात्रियों द्वारा फेंके गए थोड़े-बहुत कूड़े-करकट को उठा लेती हैं। यह सिलसिला दिन-रात चलता रहता है। स्टेशन पर नज़र आने वाले हॉकर तथा प्लेटफार्म के स्टॉल पर खाने-पीने अथवा अन्य सामग्री बेचने वाले लोग अत्यंत साफ़-सुथरे,मृदुभाषी तथा जागरूक नज़र आते हैं। चेन्नई रेलवे स्टेशन पर तो प्यूरीफाईड वाटर सप्लाई की पाईप से पानी सप्लाई किया जाता है जबकि उत्तर भारत के रेलवे स्टेशन पर या तो पीने के पानी का काल पड़ा रहता है या फिर टोंटी नदारद और पानी बेवजह बहता रहता है। इधर कई बार ऐसी शिकायतें भी सुनने को मिली हैं कि कोल्ड ड्रिंक की या पानी की बिक्री बढ़ाने की गरज़ से रेलवे का स्टेशन प्रशासन ट्रेन आने के समय जानबूझ कर प्लेटफार्म पर होने वाली जलापूर्ति बंद कर देता है। ताकि प्यास से परेशान यात्री पानी उपलब्ध न हो पाने के कारण कोल्ड ड्रिंक या पानी की बोतलें खरीदने को मजबूर हो जाएं।
दक्षिण भारत के प्रमुख धर्मस्थलों जैसे मुदरै के मीनाक्षी देवी मंदिर,रामेश्वरम तथा कन्या कुमारी जैसे प्रमुख पर्यटन केंद्रों पर भी आपको भिखारी व ठग िकस्म के लोग जल्दी देखने को नहीं मिलेंगे। ठीक इसके विपरीत उत्तर भारत में इस प्रकार के तत्वों की भरमार देखी जा सकती है। हां यदि उत्तर भारत में कुछ नज़र आता है तो वह है इस क्षेत्र में किया जाने वाला हद से अधिक फैशन। निश्चित रूप से दक्षिण भारत में प्राय: इसका अभाव देखने को मिलता है। ख़ासतौर पर तमिलनाडू व केरला जैसे राज्यों में शायद ही आपको कोई ऐसी स्थानीय महिला मिले जिसने अपने होंठों पर लिपस्टिक लगा रखी हो। बावजूद इसके कि उत्तर भारत के लोग स्वयं को वास्तविक भारतीय कहने का दम भरते हैं परंतु उनके खानपान,पहनावे व संस्कृति में पश्चिमी सभ्यता का ज़बरदस्त घालमेल देखा जा सकता है। फैशन हो अथवा खान-पान की शैली या शिक्षा ग्रहण करने की बात हर जगह पश्चिमी प्रभाव साफ नज़र आता है। परंतु यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि दक्षिण भारत ने वास्तविक एवं प्राचीन भारतीय संस्कृति को अब तक पूरा संरक्षण प्रदान किया है। वहां की महिलाएं भले ही स्वयं को सुंदर दिखाने के लिए लीपापोती जैसे फैशन अवश्य नहीं करतीं परंतु साड़ी ब्लाऊज़ जैसे पारंपरिक भारतीय पहनावे को दक्षिण की महिलाओं ने आज भी पूरी तरह से जीवित रखा है। फैशन के नाम पर वहां की अधिकांश महिलाएं अपने बालों में बेला व चमेली के फूलों के गजरे लगाती हैं जिससे वहां का वातावरण भी प्राकृतिक सुगंध से सराबोर रहता है। ज़्यादातर महिलाएं कामकाजी देखी जा सकती हैं। मर्दों की सादगी का भी यह आलम है कि लोग प्राय:लुंगी पहनते हैं। अपने कार्यालय में भी अधिकांश लोग लुंगी पहनकर जाते हैं तथा कार्यालय में चप्पले उतारकर नंगे पैर रहकर अपनी ड्यूटी अंजाम देते हैं।
खान-पान के विषय में भी उत्तर भारत का शहरी समाज जहां कांटे-चम्मच या छुरी जैसी पश्चिमी सामग्री, खाने के समय प्रयोग में लाता है वहीं दक्षिण भारत के साधारण से लेकर बड़े से बड़े रेस्टोरेंट तक में केले के साफ-सुथरे पत्तों पर खाना परोसे जाने की परंपरा है। यहां लोग चम्मच के बजाए हाथों से खाना पसंद करते हैं। यहां के युवा भी फैशन की तरफ अधिक तवज्जो नहीं देते। छेड़छाड़, लड़कियों के पीछे भागना, सीटियां बजाना, खाली बैठकर गप्पें लड़ाना जैसी प्रवृति वहां के लोगों में देखने को नहीं मिलती। इसी प्रकार दक्षिण भारत में अधिकांश शहरों में यातायात व्यवस्था बहुत अनुशासित व नियंत्रित दिखाई देती है। ज़्यादातर शहरों में भीड़भाड़ वाले बाज़ारों में एकतरफा यातायात आवागमन सुनिश्चित किया गया है जिसके चलते भीड़ भरे बाज़ारों में भी जाम लगने की स्थिति शीघ्र पैदा नहीं होती। सडक़ों पर अतिक्रमण भी उत्तर भारत की तुलना में वहां कम ही किया जाता है। दक्षिण भारत के लोग बेहद धार्मिक प्रवृति के अवश्य हैं परंतु उनकी सोच कट्टरपंथी अथवा किसी दूसरे धर्म व विश्वास के प्रति नफरत करने वाली कतई नहीं है। और यदि कुछ संगठन और शक्तियां ऐसा करने का प्रयास भी करती हैं तो उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिल पाता। कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि दक्षिण भारत में कानून का राज है तथा आम लोग प्राय: कायदे-कानून का पालन करते हैं, उसकी अवहेलना नहीं करते तो यह कहना गलत नहीं होगा।
दरअसल इन हालात के लिए सबसे बड़ा श्रेय वहां के आम लोगों को ही जाता है। दक्षिण के लोग न केवल शिक्षित, जागरूक, सफाईपसंद हैं बल्कि दिखावे व पाखंड के जीवन से भी वह लोग वास्ता नहीं रखते। हद तो यह है कि वहां के राजनीतिज्ञों के चित्र वाले पोस्टर भी उत्तर भारत के राजनेताओं के हाथ जोडऩे वाले पाखंडपूर्ण अंदाज़ की तरह नहीं होते। सांप्रदायिक सदभाव भी दक्षिण भारत में गहराई तक देखा जा सकता है। दुकानों,रेस्टोरेंट, कार्यालयों,निजी संस्थानों तथा राजकीय प्रतिष्ठानों में लगभग प्रत्येक जगह सादगी से भरपूर कामकाजी महिलाओं की भारी उपस्थिति देखी जा सकती है। और महिलाओं की जागरूकता, सक्रियता तथा उनकी फैशन व दिखावे से दूर रहने की प्रवृति का ही परिणाम है कि दक्षिण का केरल राज्य एक दशक से भी अधिक समय से देश के इकलौते शत-प्रतिशत साक्षर राज्य के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। और साक्षरता की यह दर आंध्र प्रदेश,तमिलनाडू व कर्नाटक जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसे सकारात्मक वातावरण के लिए किसी एक राजनैतिक दल अथवा राज्य सरकारों को श्रेय देने की कोई आवश्यकता नहीं है। दरअसल यह सब दक्षिण भारत के लोगों की जागरूकता तथा उनके उच्चकोटि के सोच-विचारों का ही नतीजा है कि आज दक्षिण भारत, उत्तर भारत को आईना देखने के लिए मजबूर कर रहा है।
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**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
Nirmal Rani (Writer )
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