अंतिम विकल्प के तौर पर कार्रवाई
डीजीपी दिलबाग सिंह ने बताया ज्यादातर मामलों में मुठभेड़ वाली जगह से आतंकी वापस नहीं आए क्योंकि उनके साथ मौजूद पुराने आतंकी उन्हें ऐसा नहीं करने देते। या फिर उन्हें डर होता है कि बाद में आतंकी उसको और उसके परिवार वालों को मारेंगे। सुरक्षा बल से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि हम परिवार वालों का भरोसा जीतने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। हम उन्हें बताते हैं कि हमें इनकाउंटर का शौक नहीं है। हम घर वालों को सुरक्षित बंकर में मुठभेड़ वाली जगह पर लेकर जाते हैं। उन्हें पूरा मौका देते हैं। जब आतंकी नही मानता, तो अंतिम विकल्प के तौर पर कार्रवाई होती है।
रिश्तेदारों को करते हैं आतंकी फोन
पूछे जाने पर कि कैसे पता चलता है कि अंदर कोई स्थानीय युवा आतंकी है, अधिकारियों ने बताया कि मुठभेड़ से पहले आतंकी अपने घर या रिश्तेदारी या किसी खास को फोन जरूर करता है। अलग अलग स्रोत से पुलिस जानकारी जुटाती है और जानकारी पुख्ता होने पर परिजनों को लाया जाता है।
भर्ती होने गए 16 आतंकी लौटे
मुठभेड़ वाली जगह से आतंकी मौका दिए जाने पर भी भले ही वापस न आये हों लेकिन भर्ती होने गए 16 युवा पुलिस व सुरक्षाबल के नरम रुख की वजह से अपने घरों को लौटने में सफल रहे। ये अपने घरों से चले गए थे। पैगाम भी हो गया था कि वे आतंकी बनने जा रहे हैं। पुलिस ने घर वालों को कहा जाइये खोजिए, अगर वापस ला सकते हैं तो ले आइये हम कुछ नही कहेंगे। 16 ऐसे युवा वापस आये। पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नही की।
22 को जिंदा पकड़कर घर वालों से मिलवाया
इसके अलावा इस साल आतंकी संगठन में भर्ती हुए युवाओं में से 22 को जिंदा पकड़ा गया। इनकी मुलाकात घर वालो से करवाई गई । कुछ आतंकी संलिप्तता की वजह से उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी पड़ी। लेकिन पुलिस ने परिजनों को साफ किया कि इनके पास भी अभी सुधरने का मौका है। हम जिंदा इसीलिये लाये हैं जिससे अगर ये नई जिंदगी जीना चाहते हैं तो जी सकें। PLC.