व्यापार में बाधाएं और इस्पात उद्योग

– चौधरी वीरेंद्र सिंह –

steel industryलगभग डेढ़ वर्ष पहले मैंने अपने योग्य पूर्ववर्ती से इस्पात मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। मेरा मानना है कि श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के तहत हमारी सरकार एक, एकजुट सहयोगी और प्रगतिशील टीम के रूप में कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री का एकमात्र लक्ष्य 21वीं सदी को भारत की सदी बनाना है और हम सबका ध्यान भारत के स्वर्णिम युग को वापस लाने पर केंद्रित है और इस एकीकृत मिशन को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रत्येक मंत्रालय अन्य मंत्रालयों तथा विभागों पर निर्भर है, और जब सभी मंत्रालय एक टीम के रूप में कार्य करते हैं तो इसका लाभ भारत और सभी भारतीयों को मिलता है।

चलिए, मैं आपको इस्पात मंत्रालय का उदाहरण देकर इस बिंदु के बारे में बताता हूं। इस्पात बनाने की प्रक्रिया कोयला, लौह अयस्क, निकल, मैंगनीज आदि जैसे कच्चे माल के साथ शुरू होती है। कच्चा माल स्टील की उत्पादन लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हमारी सरकार ने खनन क्षेत्र में अहम सुधार किए हैं जिसमें, कच्चे माल के प्रतिभूतिकरण के लिए बड़ी अड़चनों को हटा दिया गया है। यहां कच्चे माल पर शुल्क और करों से संबंधित कुछ मुद्दे थे जिसके लिए हमने संबंधित मंत्रालयों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया और उन मुद्दों का हल निकालकर हमने इस्पात उद्योग का तेजी से विकास करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

रेलवे ने कच्चे माल के परिवहन में कम लागत और समय की बचत के लिए रेलवे ट्रैक पर स्लरी लाइन क्रॉसिंग के हमारे प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है।

इस्पात मंत्रालय ने इस्पात उत्पादों के लिए टैरिफ और गैर टैरिफ समर्थन उपायों के मुद्दों को भी उठाया है जिसके परिणास्वरूप निश्चित समय अवधि में न्यूनतम आयात मूल्य, एंटी डंपिंग शुल्क, माल ढुलाई की दरों को समायोजित किया गया। इन कदमों ने भारतीय इस्पात उद्योग को आगे बढ़ाने तथा अंतरराष्ट्रीय इस्पात कंपनियों के साथ समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक ही स्तर का मार्ग सुनिश्चित किया है। इसके अलावा, भारत की नीतिगत पहलों के परिणामस्वरूप भारत चालू वित्त वर्ष में इस्पात का शुद्ध निर्यातक बनने की राह पर अग्रसर है।

परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी से संबंधित मुद्दों पर कार्य किया गया है और परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। यहाँ कुछ ही मामले लंबित हैं और केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनका हल निकाला जा रहा है, लेकिन लंबित मामलों की संख्या में काफी कमी आई है। ये सभी निर्णय विकास के रास्ते में आ रहीं बाधाओं को दूर कर इस्पात उद्योग सक्षम बना रहे हैं और ऊंची उड़ान भरने के लिए अपने पंख फैला रहे हैं। जल्दी ही भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन जाएगा।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में राउरकेला और बर्नपुर में आधुनिक और विस्तारित सुविधाओं से सुसज्जित सेल के दो एकीकृत इस्पात संयंत्रों को राष्ट्र को समर्पित किया। इस प्रकार भारत दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक होने के अपने लक्ष्य के करीब आ रहा है। यह हमारी सरकार के तहत हो रहा है। आज भारत अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक वाला देश है।

इस्पात मंत्रालय के अधीन आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एमएसटीसी ने भारत के पहले बड़े ऑटो-श्रेडिंग संयंत्र की स्थापना के लिए एक संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर किए हैं। इस विचार को आगे करते हुए मैंने मंत्रालय से उत्तरी और पश्चिमी भारत, दोनों में एक-एक स्क्रैप आधारित इस्पात संयंत्रों की स्थापना करने की संभावनाओं का पता लगाने को कहा है।  इन सभी को “भारत निर्मित इस्पात” की रणनीति के तहत शामिल किया जा रहा है जिसमें हम इस्पात उद्योग में “मेक इन इंडिया” पहल को अपनाने पर ध्यान दे रहे हैं। रक्षा, जहाज निर्माण और अन्य विनिर्माण क्षेत्रों में, “मेक इन इंडिया” पहल में काफी निवेश होने की उम्मीद है, जो स्टील की मांग को प्रोत्साहित करेगा। भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए माननीय प्रधानमंत्री ने हमारे अभिनव तरीकों से कार्य करने और लीक से हटकर रणनीतियां बनाने के संकल्प को मजबूत किया है।

यह हमें साफ, पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात बनाने के में मदद करेगा। कुछ महीने पहले एमएसटीसी ने भी एमएसटीसी मेटल मंडी की शुरूआत की थी जो एक डिजिटल इंडिया संबंधी पहल है और इसके तहत बीआईएस स्टील के खरीदारों और विक्रेताओं को एक इलेक्ट्रॉनिक मंच प्रदान किया गया है।

मेरा यह प्रयास है कि इस्पात ग्राहकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भारतीय इस्पात उद्योग में एक सख्त गुणवत्ता वाला शासन होना चाहिए, चाहे यह स्टेनलेस स्टील, निर्माण ग्रेड स्टील से संबंधी हो या अन्य इस्पात उत्पादों से संबंधित हो। गुणवत्ता नियंत्रण क्रम के तहत हमने कुछ उत्पादों को पेश किया है और धीरे-धीरे बीआईएस प्रमाणन के तहत हम अधिक से अधिक उत्पादों को लाकर इसके दायरे का विस्तार कर रहे हैं।

इस्पात मंत्रालय आत्मनिर्भरता और आयात प्रतिस्थापन के उद्देश्य के साथ बिजली और ऑटो ग्रेड जैसे विशेष ग्रेड स्टील्स बनाने की क्षमता पर कार्य कर रहा है। मेरा मानना है कि अनुसंधान और विकास इस्पात उद्योग के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस्पात कंपनियों को उनके प्रदर्शन और लाभप्रदता के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क प्राप्त करने के लिए लक्ष्य दिए गए हैं। इन निर्णयों से हमारी इस्पात कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ भारत से उच्च गुणवत्ता, मूल्य वर्धित उत्पादों का निर्यात करने में सक्षम होंगी।

जनवरी 2017 में, हमने “राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017” का मसौदा जारी कर विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया और टिप्पणियों मांगी है। इसका लक्ष्य भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात खपत को बढ़ाकर 160 किलोग्राम करना है और वर्ष 2030-31 तक इस्पात उत्पादन क्षमता को 300 मिलियन टन करना है।

हमें स्टील की मांग में वृद्धि करने के लिए एक रणनीति की भी आवश्यकता है जिसके तहत स्टील का उपयोग बढ़ाने के लिए मंत्रालय से सहयोग जरूरी है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अपेक्षाओं के अनुसार मंत्रालयों से समर्थन मिल रहा है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण घरों में इस्पात के उपयोग अनिवार्य कर दिया है, वहीं शहरी विकास मंत्रालय द्वारा निर्माण कार्य में इस्पात के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। रेल मंत्रालय स्टील का उपयोग करने पर सहमत हो गया है तथा सड़क मंत्रालय परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय हमारे प्रस्तावों के जवाब में सड़क पुलों, राजमार्गों आदि में इस्पात का प्रयोग करने पर विचार कर रहा है।

इस्पात मंत्रालय ने स्टील पुलों और सड़कों के साथ-साथ स्टील क्रैश बैरियर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भी संबंधित विभागों से बात की है। हम पहाड़ी राज्यों में अलग-अलग राज्य सरकारों के साथ क्रैश बैरियरों का प्रयोग कर सड़कों पर होनी वाली दुर्घटनाओं को कम करने के तरीकों पर बातचीत कर रहे हैं।

राज्य के विशेष कारकों के आधार पर दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए क्रैश बैरियरों का विस्तृत तकनीकी और भौगोलिक अध्ययन किया जा रहा है। कम लागत, जल्दी स्थापना और लंबी अवधि का लाभ लेने के लिए इस्पात का प्रयोग पारंपरिक आरसीसी पुलों के स्थान पर भी किया जा सकता है। हमने सुझाव दिया है कि भारतीय रेल, रेलवे स्टेशनों, फुट ओवर ब्रिज, रेल डिब्बों, इस्पात आधारित रेलवे कॉलोनी के भवन निर्माण कार्यों में इस्पात का उपयोग बढ़ाया जा सकता है।

माय गोव प्लेटफॉर्म में आ रहे नए विचार इस्पात की खपत बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं जिनमें से कुछ वास्तव में उन्नत और अपनाने योग्य हैं। हम इन विचारों पर कार्य कर रहे हैं। हम लघु अवधि की योजनाओं पर कार्य कर रहे हैं। और तेजी से निगरानी और कार्यान्वयन के लिए अर्द्धवार्षिक, वार्षिक और 3 साल के आधार पर लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं।

इन सभी प्रयासों की बदौलत भारत विश्व में प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों के बीच उत्पादन और इस्पात की खपत में वृद्धि के मामले में लगातार आगे बढ़ रहा है। पिछले साल  वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन (डब्ल्यूएसए) के महानिदेशक श्री एडविन बॉसन ने कहा था कि मौजूदा वैश्विक इस्पात बाजार में मंदी के बावजूद भी केवल एक स्थान है ऐसा है जिसके पास लंबी अवधि तक वैश्विक स्टील बाजार में अपनी छाप छोड़ने की क्षमता है और वह भारत है।

संक्षेप में, इस्पात मंत्रालय की सभी पहलों, रणनीतियों, निर्णय और प्रस्तावों की सफलता के पीछे एक प्रमुख योगदान कारक के रूप में साथी मंत्रालय हैं जिनसे लगातार समर्थन मिला है। आइए एक कदम आगें चलें, और मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में इस साझेदारी और समझ की बदौलत प्रत्येक मंत्रालय की अलग पहचान बनी है।

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Chaudhary Birender Singhपरिचय –

चौधरी वीरेंद्र सिंह

लेखक व् इस्पात मंत्री भारत सरकार

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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