मानव तन की सार्थकता और स्वामी अड़गडानन्द यथार्थ : गीता के प्रणेता स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज से खास मुलाकात

– घनश्याम भारतीय –

Swami  Adgdhanand ,Maharaj Adgdhanand,Adgdhanand jiआदि ग्रंथ गीता विशुद्ध संस्कृत में होने के नाते उसे जन जन तक पहुंचने में आ रही समस्याओं का समाधान गीता की टीका के रूप में यथार्थ गीता लिखकर योगेश्वर स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज ने पूरी दुनिया के पढ़े लिखे तबके को अपने विशुद्ध ज्ञान का लोहा मानने पर विवश कर दिया है। यथार्थ गीता के सृजन के साथ अन्तर्मन की महानता और अथाह ज्ञान ने उन्हें पूर्ण महात्मा बना दिया है।

वास्तव में स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज जाति धर्म व देशकाल की सीमाओं से परे होकर काम, क्रोध   पर पूरी तरह विजय प्राप्त कर चुके है। उन्हें कण कण में परमात्मा के ही दर्शन होते हैं। इसीलिए वे सामाजिक व पारम्परिक आडंबरों से मुक्त होकर परमबह्म में सदैव लीन रहते हुए अपने भक्तों को सदा सदमार्ग दिखाते आ रहें है। साथ ही अपने ज्ञान गंगा के वेग से उन्होंने जाति धर्म व अन्य भेदभाव भरी संकीर्णता भरी दीवारों को धराशायी करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है। स्वामी जी  ने यथार्थ गीता के अलावा शंका समाधान, जीवनादर्श एवं आत्मानुभूति, अंग क्यों फड़कतें है और क्या कहते हैं, अनछुए प्रश्न, एकलब्य का अंगूठा, षोदशोपचार पूजन पद्धति,योग प्राणायाम, भजन किसका करें आदि अनेक महत्व पूर्ण पुस्तके हमें दी है।

इस महान संत और  सिद्ध योगी स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज को अनुसुइया आश्रम चित्रकूट मध्यप्रदेश के निर्जन अरण्य में निवास करने वाले अनन्त श्री विभूषित योगीराज स्वामी परमानन्द जी महाराज का शिष्यत्व प्राप्त हुआ। उन्हीं की प्रेरणा से सद्मार्ग पर चलते हुए स्वामी जी आज महानता की पराकाष्ठा पर है। पूरे देश में उनके असंख्य अनुयायी इस बात की जमानत है। गत दिवस मध्य प्रदेश की यात्रा के दौरान मिर्जापुर जनपद के चुनार से 18 किलोमीटर राजगढ मार्ग पर शक्तेशगढ स्थित उनके परमहंस आश्रम में पहंुचने का सौभाग्य साथियों सहित मुझे भी मिला। जहां की रमणीयता मन को बरबस ही आकर्षित कर रही थी। साथ ही भक्ति और अध्यात्म की बह रही गंगा यमुना की लहरें वहां मौजूद भक्तों को भक्ति रस में सराबोर कर रही थी। आश्रम के अन्दर बने परिसर में स्वामीजी एक उच्च स्थान पर बैठ कर मौजूद भक्तों को गीता के उपदेशों से अवगत करा रहे थे। घण्टों उनके विचार सुनने के बाद मन में अध्यात्म की लहरें उत्पन्न हुई। जब स्वामी जी प्रवचन के बाद अपने कुछ खास भक्तों के साथ एकान्त में बैठे तो मैंने उनसे मुलाकात की। इस क्षणिक गुफ्तगू में लगभग 83 वर्षीय स्वामी जी ने तमाम जिज्ञासाओं का समाधान किया।

प्रथम जिज्ञासा का समाधान करते हुए स्वामी जी ने कहा कि केवल एक परमात्मा में श्रद्धा और समर्पण का संदेश देने वाली गीता सबको पवित्र करने का खुला आमंत्रण देती है। गीता किसी व्यक्ति जाति वर्ग, पंथ देशकाल या किसी रूढ़िग्रस्त सम्प्रदाय का ग्रंथ नहीं है बल्कि यह तो सार्वलौकिक तथा सार्वकालिक धर्मशास्त्र है। जिस घर में प्रभु चर्चा न हो उस घर को श्मशान सरीखा बताने वाले स्वामी अड़गड़ानन्द जी का मानना है कि समयाभाव मंे भजन न कर पाने वाले मानव के कर्ण कुहरों तक गीता का संदेश पहुंच जाय तब भी परमश्रेय व रामृद्धि के संस्कारों का बीजा रोपण हो जाता है। आध्यात्म क्या है ? इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए स्वामी जी ने कहा कि आत्मा के  आधिपरम में निरंतर चलना आघात का आरम्भ है। उसके संरक्षण में चलते हुए परमतत्व परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन और मिलने वाली जानकारी ज्ञान हैं यहीं आघात की पराकाष्ठा है। इसके अतिरिक्त सृष्टि में जो कुछ है अज्ञान  हैं। नई पीढ़ी में अनास्था के बढ़ने प्रचलन सम्बन्धी जिज्ञासा का समाधान करते हुए स्वामी जी ने कहा कि ईश्वर और आध्यत्मिकता के प्रति नवयुवकों में अनास्था का मुख्य कारण सुशिक्षा का अभाव है। विश्व के अधिकांश देशों में खाओ पीओ मौज करो के प्रचलन ने उनके सम्मुख तमाम दुख भी खड़े किये है। भारत में शान्ति धर्म की ही देन है। माताओं को चाहिए कि शैशवावस्था में ही बच्चों को संस्कारवान बनाएं और पाश्चात्य सभ्यताओं के प्रकोप से बचाएं। धर्म क्या है और सद्गुरू क्या है ? इसका समाधान करते हुए योगेश्वर ने कहा कि सत्य से संयुक्त सद्गुरू के उपदेशों का पालन करना और उनके आचरण पर चलना ही धर्म है। जो स्वयं तत्व में स्थित है। ईश्वरीय संकेत को समझते हुए दूसरों को समझा सके, वहीं सद्गुरू है। प्रत्येक सम्प्रदाय में कालान्तर में जब सच्चे फकीर और साधनारत लोग अलक्ष हो जाते है तब व्यवस्था ही प्रमुख हो जाती है ऐसे में आगे चलकर लोग ट्रेड मार्क सजाने में लग जाते है और भीतरी वस्तु को छोड़ देते है। इस प्रकार धर्म के नाम पर भ्रंतियांें और संकीर्णताओं को प्रवेश मिल जाता है। जबकि सर्वत्र व्याप्त एक मात्र आराध्य को महापुरूषांें के सनिध्य से ही खोजा जा सकता है।

कुल मिलाकर स्वामी जी के अनुसार कण कण में व्याप्त ब्रम्ह ही सत्य है। उसे विदित करने के अलावा मुक्ति का कोई अन्य उपाय नहीं है। योग साधना के द्वारा वह परमात्मा दर्शन स्पर्श व प्रवेश के लिए सुलभ है। चिंतन की पूर्ति में ही सनातन ब्रम्ह की प्राप्ति संभव है। गीता को मानव मात्र का धर्मशास्त्र बताते हुए कहा कि गीता योग दर्शन हैं। गीता मजहब मुक्त है। क्योकि आज के प्रचलित मजहबों मे से कोई भी मजहब श्रीकृष्ण काल में था ही नहीं। साम्प्रदायिक मत मतांतर श्रीकृष्ण काल के डेढ़ दो हजार वर्ष पश्चात आरम्भ हुए। इसलिए गीता को स्वीकार करना ईश्वरीय वाणी के प्रथम संस्करण को स्वीकार करना है।

आतंकवाद सम्बन्धी जिज्ञासा का समाधान करते हुए स्वामी जी ने कहा कि जब तक मानव हिन्दू, मुसलमान, सिख अथवा इसाई के रूप में बंटा रहेगा तब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं हो सकता। धर्मशास्त्रों की समीक्षा करके आतंकवाद का खात्मा नहीं किया जा सकता। आतंकवाद की जड़ से पहचान करते हुए यह भी जानना जरूरी है कि इसमें कितना समाजशास्त्र है और कितना आध्यात्म। उन्होंने कहा कि धर्मशास्त्रों को यदि लोग अपनाएं तो काफी हद तक आतंकवाद समाप्त हो जायेगा। सच मायने में आध्यात्मिकता का कोर्स सिर्फ मनुष्यों के लिए बताते हुए इस बात का संदेश वे हमेशा देते हैं कि आध्यात्म ही मानव तन की सार्थकता है। आध्यात्म अधि और आत्म का योग है। जिसे हर किसी अपनाना चाहिए।

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Ghanshyam-Bharti1परिचय :-

घनश्याम भारतीय

स्वतंत्र पत्रकार/स्तम्भकार

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