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राजेंदर अवस्थी की कविता

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मैंने तो रिश्तों का कौमार्य उतरते देखा, निज अपनो का व्यवहार बदलते देखा, सीख मिली नूतन सी मुझको, फिर भी मन है भारी, व्यथित ह्रदय होता है पल...

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