सुप्रीम कोर्ट में जमीअत उलेमा-ए-हिंद की याचिका: ‘बुलडोजर से न्याय का कत्ल’, जानिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रमुख पहलू

जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में बुलडोजर कार्रवाइयों पर सवाल उठाया। जानिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर क्या निर्णय लिया और क्यों यह मामला समाज के न्याय और मानवाधिकारों के लिए महत्वपूर्ण है
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में बुलडोजर कार्रवाइयों पर सवाल उठाया। जानिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर क्या निर्णय लिया और क्यों यह मामला समाज के न्याय और मानवाधिकारों के लिए महत्वपूर्ण है

आई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली : देश के न्यायिक इतिहास में आज एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें बुलडोजर कार्रवाइयों पर सवाल उठाया गया। यह याचिका केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि समाज के न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा का भी मुद्दा बन गई है। आइए, इस मामले को विस्तार से समझते हैं और देखते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्णय लिया है।

जमीअत उलेमा-ए-हिंद की याचिका संख्या 295/2022 पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि त्वरित न्याय के लिए बुलडोजर प्रणाली नहीं चलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने प्रारंभिक टिप्पणियों में कहा कि आरोपी तो दूर, किसी अपराधी के घर पर बुलडोजर चलाने का किसी को अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अवैध निर्माणों का संरक्षण नहीं करेगी, लेकिन कुछ मार्गदर्शक सिद्धांतों का होना आवश्यक है।

जस्टिस बी आर गवई और के जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने विभिन्न राज्यों में ‘बुलडोजर कार्रवाइयों’ के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को 13 सितंबर तक मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है ताकि उन्हें अदालत के समक्ष पेश किया जा सके। ये प्रस्ताव वरिष्ठ वकील नचिकेता जोशी के पास एकत्र किए जाएंगे, जिन्हें उन्हें संकलित करके अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का कहा गया है। बेंच ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 17 सितंबर निर्धारित की है।

आज जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और जमीअत की ओर से याचिकाकर्ता मौलाना नयाज अहमद फारूकी सचिव जमीअत उलेमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और एम आर शमशाद अदालत में पेश हुए, इस मामले में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड फरुख रशीद हैं। यह मामला जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने जहांगीरपुरी दिल्ली में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर किया था, जिसमें जमीअत को उस समय बड़ी सफलता मिली थी और बुलडोजर पर रोक लगाई गई थी, लेकिन देश में लगातार जारी बुलडोजर कार्रवाई पर जमीअत ने नेतृत्व करते हुए तीन प्रदेशों के खिलाफ विशेष याचिका दाखिल की है।

वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने विभिन्न, विशेषकर यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में हुए हाल के घटनाक्रमों को उदाहरण के रूप में पेश किया। इसमें एक पिता-पुत्र का भी मामला शामिल था, जिस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि एक पिता का बेटा नाफरमान हो सकता है, लेकिन उसके पिता के घर को इस आधार पर ध्वस्त किया जाना सही नहीं है।

सालिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने इस बीच तर्क पेश किया कि अवैध निर्माणों से संबंधित नगरपालिका कानूनों के तहत मकानों को ध्वस्त किया गया। जमीअत के अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने राज्य सरकारों की ओर से लोगों के घरों को ध्वस्त करने के बढ़ते चलन पर चिंता व्यक्त की, और जोर देकर कहा कि घर का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है। उन्होंने यह भी मांग की कि अदालत को ध्वस्त किए गए घरों की पुनर्निर्माण का आदेश देना चाहिए। उन्होंने तर्क किया कि जयपुर में स्कूल में दो बच्चों का झगड़ा हुआ तो उस में मुस्लिम बच्चे के पिता का घर गिरा दिया गया, जबकि इस मकान का मालिक राशिद खान मामूली ऑटो-रिक्शा चालक है, जिसने बड़ी मुश्किल से पैसे बचाकर घर खरीदा था। यह कैसा न्याय है? और भी आश्चर्यजनक कहानियाँ हैं, यूपी के कन्नौज में एक गरीब नाई की दुकान गिरा दी गई, केवल इस कारण से कि एक वीडियो आया कि वह सिर पर मालिश करते हुए हाथ में थूक लगा रहा है। कहां से इसे आप न्याय कहेंगे और कौन सा नगरपालिका कानून इसे कानून के अनुसार कहा जाएगा?

FAQs

  1. क्या सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाइयों पर पूरी तरह रोक लगाई है?
    • नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केवल मार्गदर्शक सिद्धांतों की आवश्यकता पर जोर दिया है। अवैध निर्माणों का संरक्षण नहीं किया जाएगा, लेकिन बुलडोजर कार्रवाइयों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाना आवश्यक है।
  2. जमीअत उलेमा-ए-हिंद का मुख्य तर्क क्या है?
    • जमीअत उलेमा-ए-हिंद का तर्क है कि बुलडोजर से न्याय नहीं, बल्कि न्याय का कत्ल होता है। किसी के आरोपी होने के आधार पर उसके घर को ध्वस्त करना पूरे परिवार को नुकसान पहुंचाता है और न्याय का हिस्सा नहीं हो सकता।
  3. किसी आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाने के क्या कानूनी पहलू हैं?
    • कानूनी रूप से, किसी आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाना संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा मार्गदर्शक सिद्धांतों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी का बयान:
अदालत में हुई आज की कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए इस मामले के महत्वपूर्ण पक्षकार अध्यक्ष जमीअत उलेमा-ए-हिंद मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि बुलडोजर से न्याय नहीं, बल्कि न्याय का कत्ल होता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से बुलडोजर की कार्रवाई की जाती है उससे एक पूरे समुदाय को सजा दी जाती है, किसी आरोपी का घर गिरने से केवल उसे नहीं बल्कि पूरे परिवार को नुकसान उठाना पड़ता है। मौलाना मदनी ने कहा कि आप महिलाओं के संरक्षण की बात करते हैं, आपने कुछ वर्षों में डेढ़ लाख मकानों को गिरा दिया, इनका सबसे अधिक नुकसान महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों को होता है। जिन्होंने कुछ नहीं किया, उन्हें दर-दर भटकना पड़ता है, यह न्याय का कौन सा तरीका आपने स्थापित किया है? हमें उम्मीद है कि अदालत इस पर कठोर कदम उठाएगी। मौलाना मदनी ने कहा कि इससे न केवल मुसलमान बल्कि हर न्यायप्रिय तबका परेशान है। मौलाना मदनी ने कहा कि न्याय के के लिए जमीअत उलेमा-ए-हिंद हर संभव संघर्ष करेगी और बिल्कुल चुप नहीं बैठेगी।

निष्कर्ष और भविष्य की राह

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है कि कैसे देशभर में बुलडोजर कार्रवाइयों को नियंत्रित किया जाए। जमीअत उलेमा-ए-हिंद और अन्य न्यायप्रिय तबक़े की मांग है कि न्याय की प्रक्रिया में बदलाव लाया जाए ताकि किसी के घर को सिर्फ़ आरोप के आधार पर ध्वस्त न किया जाए।

यह देखना होगा कि अदालत इस मामले में क्या निर्णय लेती है और क्या इसके बाद बुलडोजर कार्रवाइयों के लिए कोई ठोस मार्गदर्शक सिद्धांत बनते हैं। जमीअत उलेमा-ए-हिंद का संघर्ष और इस मुद्दे पर न्याय की खोज जारी रहेगी, और इससे देशभर में न्यायप्रिय नागरिकों को भी उम्मीद है कि अंततः न्याय की बहाली होगी।

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