सन् 2002 के गुलबर्ग सोसायटी मामले मे सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 3 न्यायधीशों वाली SIT ने अपनी क्लोजर रिर्पोट के फैसलें मे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कोई सबूत ना होने के कारण उन समेत 62 लोगों को इस मामले मे संलिप्त नही पाया है। जाहिर है नरेन्द्र मोदी के लिए यह एक खुशखबरी होगी और कानूनी लडाई से लेकर राजनीति के गलियारों मे ये आने वाले समय मे एक अह्म मुद्दा भी बनेगा। अब सवाल यह है कि क्या SIT की रिर्पोट के द्वारा मिली राहत मोदी की छवि और उनके ऊपर लगे दागों से बचाने मे सहायक है या अभी कुछ और आना भी बाकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगो के मामले मे मरहूम कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी की बीवी जाकिया जाफरी की याचिका जिसमे उन्होने शिकायत की थी कि सन् 2002 मे गुलबर्ट सोसायटी मे उनके पति सहित जो 68 लोगों के मारे जाने की द्यटना है उसमे राज्य सरकार का हाथ था और उन्होने उसमे नरेन्द्र मोदी समेत 62 लोगों को नामजद किया था। उनका कहना था कि सरकार ओर प्रशासनिक अफसर इस मामले मे तमाशबीन बने रहे जिससे इतने लोगों की जानें चली गयी । क्योंकि राज्य सरकार ने दंगे पर आमादा हिन्दुओं पर कोई कारवाई ही नही की। इन्ही पहलुओं को ध्यान मे रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जाँच के लिए SIT को गठित किया था जिसने पिछले साल फरवरी मे अपनी रिर्पोट न्यायालय को सौंप दी थी। न्यायालय द्वारा इसका फैंसला सुनाने को जिम्मा निचली अदालत को सौंपा गया और 10 साल से मरहूम जाफरी की लडाई लड रही जाकिया जाफरी ने जब निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया तब 14 महीने से बंद राज से पर्दा उठ गया और फैंसला सामने आ गया। अदालत ने फैंसला सुनाते हुए यह भी कहा कि 30 दिन के अंदर जाकिया जाफरी को इस केस से जुडे दस्तावेज और फैंसले की कापी सौंप दी जाये। जाफरी का कहना है कि वह अपनी लडाई जारी रखेगी । वहीं इस मामले से जुडी समाजसेवी तीस्ता सीतलवाड का कहना है कि अभी SIT का फैंसला ही आया है अदालती फैंसला आना बाकी है। साथ ही न्यायमूर्ति राजू रामचन्द्रम की अह्म रिर्पाेट पर भी ध्यान देना होगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 3 न्यायधीशों की नियुक्ति वाली SIT की रिर्पोट ही इस मामलें मे सम्पूर्ण फैंसला नही माना जा सकता है। अभी अदालती कार्यवाही प्रकियारत है और उसका फैंसला आना भी बाकी है। साथ ही यह सवाल भी है कि आखिर दंगा पीडितों को आखिर कब तक न्याय मिलेगा। वहीं राजू रामचन्द्रन ने भी कहा है कि यह एक कानूनी लडाई है और इसमे किसी को निराश होने की जरूरत नही है। इस फैंसले के आने से जहाँ भारतीय जनता पार्टी के लिए खुशी की खबर है वहीं कांग्रेस द्वारा इसका विरोध किया जाना भी सम्भव हो सकता है। कांग्रेस ने SIT के मामले मे तो अभी कुछ नही कहा है पर हाँ भारतीय जनता पार्टी को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की मोदी को दी गई राजधर्म पालन की नसीहत जरूर याद दिलाई है। साथ ही कांग्रेस का यह भी कहना है कि जो भी घटना घटी है वह गलत है। वहीं भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि ये सच की जीत है और अब विरोधियों को उनके खिलाफ दुष्प्रचार बंद कर देना चाहिए। हाँलाकि खुद नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार कि तरफ से इस मामले मे अभी तक कोई भी बयान नही आया है और उन्होने इस मामले मे चुप्पी साधी है।
गुजरात मे इस साल के अंत मे चुनाव है और ये फैंसला नरेन्द्र मोदी के लिए उनके चुनावी साल मे एक अच्छी खबर माना जा सकता है। हाँलाकि अभी राजू रामचन्द्रन की रिर्पोट जैसे कानूनी फैंसले आने अभी बाकी है। दूसरा पहलू यह है कि क्या इस फैंसले का प्रभाव उनकी कट्टर हिन्दूवादी छवि के रूप मे या गुजरात मामले मे जो विरोधी दलों द्वारा उनकी भूमिका पर सवाल उठाये जाते रहे हैं उन सब पर इसका क्या असर पडेगा। साथ ही राज्य तक सीमित उनकी राजनीतिक दायरे को उनके प्रंशसक जो उन्हे राष्ट्रीय राजनीति मे लाने कि ख्वाहिश रखे हुए है और समय समय पर इसकी माँग करते रहे है, उन्हें क्या और मजबूती देगा। गुजरात दंगे मोदी की राष्ट्रीय राजनीति मे रूकावट की वजह बताकर उनको राज्य तक सिर्फ सीमित रखने का, उनके प्रंशसकों द्वारा विरोध होता रहा है। जबाब कुछ भी हो पर दिलचस्प पहलू यह रहेगा कि आखिर गुजरात दंगो के बारे मे SIT की रिर्पोट मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को कानूनी रास्तों से लेकर भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति मे कहाँ तक असर दिखा पायेगी। मोदी को लेकर राष्ट्रीय राजनीति मे हमेशा चर्चा का दौर बना रहा है तथा साथ ही दूसरे राज्यों मे चुनाव के दौरान भी उनकी माँग को लेकर बात चलती रही हैं। परन्तु भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति मे गुजरात दंगो के कारण मोदी की छवि के चलते शायद रूकावट बनी रही है। ऐसे मे SIT की रिर्पोट कहाँ तक उनकी छवि बदलने मे मददगार होगी ये रोचकता का विषय बना रहेगा।
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विशाल शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार एवं अध्धयनरत्
जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय
लखनऊ