सियासत-ए-इफ्तार: बात दरअसल यह है….

–  तनवीर जाफरी –

unnamedप्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी पिछले दिनों भारत सहित पूरे विश्व में रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़दारों द्वारा रोज़े रखे गए तथा खुदा की बारगाह में रमज़ान के महीने से संबंधित विशेष इबादतें की गईं। भारतवर्ष चूंकि एक सर्वधर्म संभाव रखने वाला देश है इसलिए यहां देश के कई भागों से प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी ऐसे समाचार सुनाई दिए कि रमज़ान के दिनों में केवल मुस्लिम रोज़दारों ने ही नहीं बल्कि कई हिंदूृ धर्मावलंबियों ने भी रोज़े रखे। परंतु रमज़ान के महीने में देश में एक बार फिर यहां राजनैतिक स्तर पर होने वाली रोज़ा अफ्तार पार्टियां चर्चा का विषय बनी रहीं। वैसे तो आज़ादी के बाद से लेकर अब तक देश में राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्रियों,केंद्रीय मंत्रियों व राज्यपालों के स्तर पर प्राय: अफ्तार पार्टियां आयोजित की जाती रही हैं। परंतु नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मीडिया खासतौर पर इस विषय पर गहन दिलचस्पी लेता दिखाई दिया कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी किसी अफ्तार पार्टी में शिरकत कर रहे हैं अथवा नहीं और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र्र के प्रधानमंत्री के नाते वे स्वयं अफ्तार पार्टी आयोजित कर रहे हैं अथवा नहीं। और यदि वे ऐसा नहीं कर रहे तो इसके तरह-तरह के कारण बताने की कोशिश की गई। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि क्या सिर्फ नरेंद्र मोदी ही देश के अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनकी अफतार पार्टियां दिए जाने में कोई दिलचस्पी नहीं रही या इसके पूर्व भी कुछ प्रधानमंत्री ऐसे हुए जिन्होंने अफतार पार्टियां देना ज़रूरी नहीं समझा? और यदि मोदी से पहले भी कई प्रधानमंत्रियों ने अफतार पार्टियां नहीं दीं तो आिखर उनके द्वारा अफ्तार पार्टी देने न देने को लेेकर इतनी चर्चा क्यों नहीं हुई?

ज़ाहिर है पंडित जवाहरलाल नेहरू को धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष का पहला धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री माना जाता है। वे न केवल उर्दू,फारसी और अरबी भाषा का ज्ञान हासिल करने में गहरी दिलचस्पी रखते थे बल्कि उनकी भारतवर्ष के सभी धर्मों व संप्रदायों के सभी त्यौहारों व रीति-रिवाजों में भी पूरी दिलचस्पी थी। उन्होंने स्वयं को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ प्रधानमंत्री प्रमाणित करने के बजाए एक हिंदुस्तानी व सांप्रदायिक सौहाद्र्र का पक्षधर प्रधानमंत्री कहलवाने में अधिक गर्व महसूस किया। और शायद यही वजह थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद सर्वप्रथम उन्होंने भी प्रधानमंत्री की ओर से रमज़ान के महीने में एक ऐसी अफ्तार पार्टी की शुरुआत की जिसमें वे देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों,राजनयिकों तथा प्रतिष्ठित लोगों को आमंत्रित करते रहते थे। पंडित नेहरू की यह पार्टी तत्कालीन कांग्रेस मुख्यालय 7 जंतर-मंतर पर आयोजित होती थी न कि उनके निवास अथवा प्रधानमंत्री कार्यालय पर। नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री भी कांग्रेस की धर्मनिपेक्ष परंपरा के ही प्रधानमंत्री रहे। परंतु उन्होंने अपने दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान किसी अफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया। उस समय भी किसी ने न तो शास्त्री जी की धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्रचिह्न लगाया न ही मीडिया ने उनके द्वारा अफ्तार पार्टी आयोजित न करने पर शोर-शराबा किया। उसके पश्चात इंदिरा गांधी ने भी प्रधानमंत्री बनने के बाद इफ्तार पार्टियों का सिलसिला जारी रखा। और वे 1977 में चुनाव हारने के बाद जब पुन:प्रधानमंत्री बनी तो भी वे अफ्तार पार्टियां आयोजित करती रहीं। इसमें भी वे केवल राजनयिकों तथा विशिष्ट लोगों को ही आमंत्रित करती थीं। प्रधानमंत्री रहते हुए चंद्रशेखर ने भी जनता पार्टी मुख्यालय में अफ्तार पार्टी आयोजित की थी। परंतु मोरार जी देसाई एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपने कार्यकाल में न तो कोई अफ्तार पार्टी आयोजित की न ही वे किसी पार्टी में शरीक हुए। मोरारजी देसाई ऐसी अफतार पार्टियों को केवल महत्वहीन तथा सांकेतिक अफ्तार पार्टियां मानते थे। जबकि भाजपा के ही अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रधानमंत्री रहते हुए अफ्तार पार्टियों का आयोजन किया गया। गोया यह कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी देश के अकेले ऐसे प्रधानमंत्री नहीं हैं जो न तो अफ्तार पार्टी आयोजित करते हैं न ही किसी अफ्तार पार्टी में शरीक होना ज़रूरी समझते हैं।

इस वर्ष  चूंकि बिहार विधानसभा चुनाव निकट हैं तथा विभिन्न राजनेताओं द्वारा स्वयं को धर्मनिरपेक्षता वादी जताए जाने की कोशिशें भी ज़ोर-शोर से की जा रही हैं इसलिए नरेंद्र मोदी जिनकी छवि एक ‘हिंदू हृदय सम्राट’ राजनेता के रूप में स्थापित हो चुकी है, के बारे में जहां अफ्तार पार्टी में दिलचस्पी न लेने की चर्चा ज़ोरों पर रही वहीं उन्हीं के कई पार्टी सहयोगियों व मंत्रियों द्वारा इन्हीं अफ्तार पार्टी में शिरकत कर तथा ऐसी पार्टियों का आयोजन कर यह जताने की भी कोशिश की गई कि दरअसल भारतीय जनता पार्टी अथवा उसका संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ धर्मनिरपेक्ष मूल्यों्र पर ही विश्वास रखता है। यही वजह है कि देश में पहली बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा पिछले दिनों बड़े पैमाने पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया। यदि यह अफ्तार पार्टी देश के मुसलमानों में सांप्रदायिक सौहाद्र्र का भाव जगाने के लिए की गई थी तो निश्चित रूप से इसका स्वागत किया जाना चाहिए। और यदि यह आयोजन केवल दुनिया को दिखाने के लिए किया गया था तो इसे भी महज़ एक राजनैतिक आयोजन ही समझा जाएगा। पिछले दिनों जहां आरएसएस के अतिरिक्त भाजपा के सहयोगी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान इफ्तार पार्टी का आयोजन करते दिखाई दिए वहीं भाजपाई नेता सुशील मोदी केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूढ़ी,शाहनवाज़ हुसैन ऐसी इफ्तार पािर्टयों में शिरकत करते नज़र आए। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने भी राजभवन लखनऊ में अफ्तार पार्टी दी। परंतु संघ,भाजपा के मंत्रियों व संघ की पृष्ठभूमि रखने वाले राज्यपालों द्वारा अफ्तार पार्टियांं आयोजित किए जाने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऐसी पार्टियों से खुद को अलग रखना यह सवाल ज़रूर खड़ा करता है कि क्या नरेंद्र मोदी संघ व पार्टी से अलग हटकर अपनी कोई अलग प्रकार की छवि बनाए रखना चाहते हैं? यहां गत् वर्ष हुए लोकसभा चुनाव से पूर्व गुजरात की उस घटना का जि़क्र करना प्रासंगिक है जबकि उन्होंने एक मुस्लिम मौलवी द्वारा नरेंद्र मोदी को दी जाने वाली इस्लामी प्रतीक एक टोपी को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने से मना कर दिया था। जबकि उस इस्लामी प्रतीक टोपी के अतिरिक्त शेष सभी प्रतीक स्वरूप टोपियों व पगडिय़ों को ग्रहण करने से तथा उन्हें धारण करने से उन्होंने कभी परहेज़ नहीं किया। ज़ाहिर है यदि मोदी किसी अफ्तार पार्टी का आयोजन करते या उसमें शरीक होते तो इस बात की प्रबल संभावना थी कि उन्हें इफ्तार पार्टी के सम्मान स्वरूप उसी प्रकार इस्लामी प्रतीक समझी जाने वाली टोपी धारण करनी पड़ती। और यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती तो वे पसोपेश में पड़ सकते थे।  यानी वे टोपी अपने सिर पर रखते या न रखते और यदि रखते तो सवाल यह उठता कि पहले क्यों नहीं रखा और अब क्यों रख रहे हैं आदि।

वैसे भी जहां देश के अधिकांश राज्यों के अधिकंश मुख्यमंत्रियों ने प्राय: अफ्तार पार्टियों का आयोजन किया वहीं नरेंद्र मोदी ने 13 वर्षों तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए न तो कभी अफ्तार पार्टी आयोजित की और न ही वे किसी इफ्तार पार्टी में शिरकत करते सुने गए। और अपने इसी निर्णय का अनुसरण करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी न तो अब तक कोई इफ्तार पार्टी आयोजित की न ही किसी अफ्तार पार्टी में शिरकत की। यहां तक कि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा दो बार आयोजित की जा चुकी अफ्तार पार्टियों में भी शिरकत नहीं की।  कहना गलत नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी भलीभांति यह समझ चुके हैं कि चाहे गुजरात में 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करना रहा हो या प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय करना। उन्होंने अपनी राजनैतिक कमाई एक ‘हिंदू हृदय सम्राट’ के रूप में अर्जित की है। वे जिस प्रकार गुजरात में धर्म आधारित वोट प्रतिशत पर विश्वास करते हुए सत्ता पर अपना नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहे उसी  वोट प्रतिशत की राजनीति वे राष्ट्रीय स्तर पर भी कर रहे हैं। और भविष्य में भी करना चाह रहे हैं। रहा सवाल सबका साथ सबका विकास जैसे नारों का तो यह दुनिया को सुनाने के लिए गढ़े गए नारे मात्र हैं। लिहाज़ा मोदी द्वारा केवल रोज़ा-अफ्तार आयोजित करने या उनके द्वारा किसी रोज़ा अफतार में शिरकत करने न करने पर नज़रें जमाए रखने के बजाए उनके ‘राजनैतिक कौशल’ को समझने की तो ज़रूरत है ही साथ-साथ इस बात को भी नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए कि मोदी से पहले भी कई प्रधानमंत्री ऐसे रह चुके हें जिन्होंने ‘अफ्तार राजनीति’ करना ज़रूरी नहीं समझा।
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tanveerjafri,tanvirjafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628
1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana

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