शिव कुमार झा टिल्लू की कविताएँ
1) सोनालिका
न कतिपय परिपक्व न ही बालिका
ना विश्रान्तिस्वरूपा ना ही कालिका
अलौकिक सौंदर्य में छिपी हुई हो तुम ,
सुशीतल सुरभित- अनुपमा सोनालिका
कोमल कांति की गाथा कैसे सुनाऊँ
साध्य सबल लेखनी के गुण कैसे गाऊँ
धवल भाव की घनहरी बादलों में
नवल छंद की तुम हो जालिका !!!
ना एक सीमित आवरण तल
विराट छाया शिल्पी सम्बल
नन्हे तर्जनी को अंगुष्ठ दबाये
सर्जक बना तेरा हस्त कोमल
उस कल्प दृश्य को स्वहृदय संयोगे
तेरे मादक रूप तुझी से कैसे सुनाऊँ
मात्र इतना कह सकता मैं काश !
तुम बन पाती इस स्नेही की पालिका …
सदा बंधी रहो अपने कर्म बंधन
सत्य धर्मिणी कर्मिणी नेह-रंजन
वही सत्य यहाँ व्यर्थ अभिव्यंजन
अब ना करूँगा यह नाद -गुंजन
दाराधर्म सृजनशक्ति कर्मित
गुणसत्य पर निजनेह कैसे दबाऊँ..
छोड़ों यथार्थ-पर स्वप्निल जीवन में
तुझे ह्रदय लगाऊँ हे ” स्वप्नमालिका “!!!!!
2) कण कण में समाऊँ मैं
एक आशुकवि अपने लेखनी को
रीतिकाव्य का नवल आयाम देने
चल पड़ा सून ईख के खेतों की ओर …
लहलहाते हरी भरी गदराती ईखें
शस्य गहन भंगिमा के साथ
कमियाँ थीं तो महज एक जन की
जो कवि के आगमन से पूरित हुईं
किसान अपने में मगन था
पकने का कर रहा था इंतज़ार …
पहुँच गया उस अनामिका के आवरण में. “सहृदयी कवि ”
एक किनारे बैठकर भावों को सहलाता रहा
प्रगीत धुन गुनगुनाता रहा
लय छंदों में गाता रहा
सर्जना पनक गईं
साध्य नवल पक गईं
सहस्त्र काव्य ..गोया अलौकिकसाधना की परिणति
आज अंतिम अभिव्यंजन है
कविमन में अनुखन रंजन है
है गंभीर ..नहीं कोई मनोरंजन है
एकाएक पात पात डोल पडी
मंद कणिकाएं बोल पडी
एक तना चख लो
अपने ओठों से मख लो
कवि हँसा ” आभार , परन्तु मैं ईख नहीं खाता
हां ! इससे बने पदार्थ मुझे बेहद पसंद है
ईख की कणिकाएं चिल्ला उठी
मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ
इसी आशा से सुनती रही आपकी कवितायें
थी अभिलाषा की “तुम्हारी काव्या बंनकर ”
कण कण में समाऊँ मैं
काव्या की सगुन बनाऊँ मैं
कितने निट्ठल्ले हो तुम !
औरों की तरह शोषक निकले
सबल सम्बल के सम्पोषक निकले
मुझे चखोगे लेकिन महकर
तृण तृण को गहकर गुड़ बनाओगे
आग में तड़पाओगे
कड़ाही में पिघलाओगे
उससे भी नहीं होगी संतुष्टि तो मीलों में भेजकर
अचल से मूक गर्जन करबाओगे
फिर चीनी बनाओगे
अंत में विविध भोज्य पदार्थों के साथ फिर उष्णता
हाय रे मानवीय स्नेह ..तड़प जो पसंद है
परदुःख में उस द्रवित का और शोधन …
जाओ लेकिन मुझे है विश्वास
अनाम शक्ति से आश
एक ना एक दिन तेरे संग रम जाऊंगीं
कण कण में समाऊँगीं
अनामिका की स्नेह साधना पूरित हुई
आज कवि पीड़ित है .. मधुमेह से
रक्त की कणिकाएं बोल उठी
सम्पूर्ण पञ्च तत्व में मिठास है
प्रेमिका की अटूट मोहपाश है ……
3) एकांत और मौन
दो शब्दों का शाश्वत सम्मिलन
साधना का तात्विक विमर्श
साधक को अलौकिक सुख की करातें है –
अनुभूति और संज्ञान
कैसा निष्प्राण – एकांत और मौन
क्षद्म बहुरंगी संसार से सुदूर
संस्कृति के संवाहक की तरह !
मूढ़ तो नहीं थे हमारे पूर्वज –
नीति के पोषितों पर किया जो था इनका प्रयोग
उपनयन के बाद माता से लेकर भिक्षा
चल देता था एकांतवास में बालक
लेने शिक्षा और दीक्षा
चंद साधक मित्र और नीतियोगी गुरु के पास …
तपस्वी पर्वत की गुफाओं में
शिलालेखों के साथ आर्य संस्कृति का शोधन करते रहे .
समय के साथ -अब संभव तो नहीं परन्तु –
हे काव्य के सृजनहारों
अपनी विविध जैविक आवश्यकताओं से
टकराते हुए भी ढूंढो नवल मौन और एकांत क़ेंद्र
इंद्रप्रस्थ में रहकर वानप्रस्थ
इन दो अवरोही सहचरों का साधक बनो
बनो परमहंस रामकृष्ण की तरह -गृहस्थ
साधना साध्य विचारमूलक साहित्य बनकर
उज्जवल करेगी आर्यधरा का भविष्य
रवींद्र की गीतांजलि के बाद ………………!!!!!
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शिक्षा : स्नातक प्रतिष्ठा,: स्नातकोत्तर , सूचना- प्राद्यौगिकी साहित्यिक परिचय : पूर्व सहायक संपादक विदेह मैथिली पत्रिका (अवैतनिक )
सम्प्रति – : कार्यकारी संपादक , अप्पन मिथिला ( मुंबई से प्रकाशित मैथिली मासिक पत्रिका ) में अवैतनिक कार्यकारी संपादक साहित्यिक
उपलब्धियाँ : प्रकाशित कृति १ अंशु : मैथिली समालोचना ( 2013 AD श्रुति प्रकाशन नई दिल्ली २ क्षणप्रभा : मैथिली काव्य संकलन (2013 AD श्रुति प्रकाशन नई दिल्ली )इसके अतिरिक्त कवितायें , क्षणिकाएँ , कथा , लघु-कथा आदि विविध पत्र -पत्रिका में प्रकाशित
सम्प्रति :जमशेदपुर में टाटा मोटर्स की अधिशासी संस्था जे एम . ए. स्टोर्स लिमिटेड में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत
संपर्क -: जे. एम . ए. स्टोर्स लिमिटेड ,मैन रोड बिस्टुपुर ,जमशेदपुर : ८३१००१ संपर्क – : ०९२०४०५८४०३, मेल : shiva.kariyan@gmail.com