-अशोक मिश्र-
हद हो गई यार! हमारे रेलमंत्री को लोगों ने क्या पैंट्री कार का इंचार्ज, गब्बर सिंह या सखी हातिमताई समझ रखा है? जिसे देखो, वही ट्वीट कर रहा है, ‘प्रभु जी! मैं फलां गाड़ी से सफर कर रही हूं। गाड़ी में मेरे बच्चे ने गंदगी फैला दी है। जरा अपने किसी सफाई कर्मचारी को भेज दीजिए न, बहुत दिक्कत हो रही है।’ कोई एसएमएस भेजकर गुहार लगा रहा है, ‘मंत्री जी, मैं एक विकट समस्या में फंस गई हूं। बात दरअसल यह है कि मेरा बच्चा दूध नहीं पी रहा है, आकर एक कंटाप जड़ दीजिए तो, शायद आपके ही डर से दूध पी ले। मैं तो समझाते-समझाते थक गई हूं।’ कोई फेसबुक पर लिख रहा है, ‘प्रभु जी! जल्दी-जल्दी में टिकट नहीं ले पाई थी, जरा चार टिकट का प्रबंध करवा दीजिए, प्लीज।’ इस देश का तो भगवान ही मालिक है। एक बार प्रभु जी ने किसी की मदद क्या कर दी, लोगों ने उन्हें फोकटिया समझ लिया है। अरे देश के रेल मंत्री हैं, कोई मामूली बात है। उनके सामने सौ झंझट हैं, हजारों लफड़े हैं। कहीं रेल की पटरियां बिछवानी हैं, तो कहीं रेल इंजन कारखाना लगवाना है। उन्हें यह भी देखना है कि क्या किया जाए जिससे रेलवे को फायदा हो। प्रभु जी के सामने एक अजीब मुसीबत है। रेलवे को घाटा हो जाए, तो विरोधी दल वाले नाकों में दम कर देंगे। अक्षमता का आरोप लगाएंगे। ‘रेल मंत्री इस्तीफा दो..रेल मंत्री इस्तीफा दो’ का नारा लगाएंगे। अगर रेल विभाग फायदे में आ गया, तो झट से दूसरा आरोप विरोधी दलों के पास तैयार है। रेल मंत्री ने तो रेल यात्रियों को एकदम से दुह लिया। इतना किराया बढ़ा दिया कि बेचारे यात्रियों का दम ही निकल गया। कर लो बात..फायदा हो, तब भी विरोध, नुकसान हो, तब भी विरोध। किसी भी तरह उन्हें चैन नहीं। ऊपर से रेल विभाग में इतने सारे मुलाजिम हैं, वे भी आए दिन हाय-हाय करते रहते हैं, ‘तनख्वाह बढ़ाओ..तनख्वाह बढ़ाओ।’ इतना बड़ा देश है, रेलवे का इतना बड़ा महकमा है। सब को सुधारना है। अब अगर ऐसे ही लोग ट्विटर पर, फेसबुक पर डिमांड करने लगेंगे, तो फिर हो गया काम। सुधर गई रेलवे की दशा-दिशा।
और प्रभु जी! आपसे बस इतनी ही शिकायत है कि आप इस देश की जनता को काहे इतना भाव दे रहे हैं। आपने रेलगाड़ी में महिला से बदतमीजी कर रहे शोहदों को पकड़वा दिया, बहुत बढिय़ा किया। आप बस ऐसे ही कामों पर ध्यान दीजिए। कोई शोहदा, चोर-डाकू यात्रियों को परेशान न करने पाए। बाकी एसएमएस, ट्विटर या फेसबुक से दूध-दही मंगाने वालों को भाव मत दीजिए। आप इन लोगों की फितरत को नहीं जानते हैं। अंगुली पकड़ाएंगे, तो ये ‘पहुंचा’ पकडऩे को तैयार रहते हैं। आपने भले ही दया भावना या अपनी जिम्मेदारी समझकर किसी के ट्वीट पर उसकी मदद की हो, उसके बेटी-बेटे के लिए दूध की व्यवस्था कर दी हो, लेकिन प्लीज…आगे से ऐसा मत कीजिए। जो लोग जनरल और स्लीपर कंपार्टमेंट में गाय-बैल की तरह ठसाठस भरकर यात्रा के आदी हैं, उनको आप मुफ्तखोर मत बनाइए। ये हैं ही इसी काबिल। इनकी तो मानसिकता है कि चमड़ी चली जाए, दमड़ी न जाए। सभी गाडिय़ों में स्लीपर और एसी के इतने डिब्बे लगाए गए हैं, लेकिन यात्रा करेंगे जनरल डिब्बे में। तो मरो। अब हाथ पकड़कर कोई स्लीपर या एसी टिकट खरीदवाने से रहा। अगर इनको ट्विटर या फेसबुक पर चलती ट्रेन में कुछ मंगाने की लत लग गई, तो कल ये आपको ट्वीट करके चिकन-बिरयानी की डिमांड करेंगे। बियर, ह्विस्की, रम के लिए एसएमएस करेंगे। फिर चखना भी मांगेंगे। आप कहां-कहां तक इनकी डिमांड पूरी करेंगे। आप आजिज आ जाएंगे। यह देश और रेलवे विभाग जैसे चल रहा है, चलने दीजिए, प्लीज!
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अशोक मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार व् लेखक
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