सरिता झा की तीन कविताएँ

सरिता झा की तीन कविताएँ

1)  मेरी कलम रुक गई

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दिल में है दर्द बहुत ,
क्यों न इसे,
पन्नें पे उतार दूँ ?
दिल में मेरे यह  शोर ,
करता है बहुत ,
क्यों न इसे ,
शब्दों  में ढाल दूँ ?
अभी तो दर्द -ए -मोहब्बत ,
का ज़िक्र ही किया था शुरू  !
की आँखों से हो गयी ,
आसुंओं की बरसात शुरू  !
आसुंओं की जद में ,
आया वो पन्ना ,
अब वो रो रहा ,
अपने दर्द का रोना ,
अब कैसे उसपे मैं कुछ
अपने शब्दों से निखार दूँ ?

2) मेरी डायरी

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आज मेरी डायरी,
ने किया मुझसे ही सवाल !
हर दिन क्यों करती हो तुम ,
अपने दर्द भरे शब्दों  से वार !
मेरे हर पन्ने पे दिया है तुमने ,
अपना सारा दर्द उतार !
तेरे शब्दों  के वार  से ,
हो गया है ,मेरा बुरा हाल !
रोक ले कलम अपने करती हूँ ,
मैं तुमसे ये फ़रियाद !
कुछ पन्ने हीशेष  रह गये ,
बांकी सब हो गए तार -तार !
कहते हैं पन्ने मेरे ,
तुम क्यों करती हो ,
हर दिन अपने ,
कलम से मुझपे प्रहार !
तेरे लफ्ज़ो के वार  से ,
हो गया है मेरा बुरा हाल !!

३ )  बेटी
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मैं हूँ वो कोमल कली  ,
जो अभी तक नहीं है खिली !
चाह है हमें भी खिलने की,
एक नए रूप में ढलने  की !
आया मौसम बहारों का,
मैं कली से एक फूल बनी !
जब तक थी  मैं बंद कली ,
किसी की नजर ना मुझपर  पड़ी !
आज हूँ मैं एक नए रूप में,
सबकी नजरें मुझे घूर रही !
बेखौफ थी जब कली थी,
आज खौफ से काँप रही !
जाने कब कोन आएगा ,
डाली से जुदा कर जायेगा !

बेहतर थी वो मेरी दुनिया ,
जब थी मैं एक कोमल कली !

Sarita Jha's poems ,poems of Sarita Jha परिचय – :
सरिता झा  (आशु )
कवयित्री  

 शिक्षा- स्नातक प्रतिष्ठा ( हिन्दी साहित्य ) सूचना प्राद्यौगिकी में डिप्लोमा

विशेष : मैं सरल भाषा में सामान्य बातों को , जीवन के विविध पहलू में शामिल सत्य परंन्तु अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी में ढालना बेहद पसंद करती हूँ . मैं कोई नैसर्गिक कवयित्री नहीं अपितु भावुक सरल नारी हूँ ! मुझे नारी विमर्श और सिनेह से लगाव है ..इसलिए मेरी कविताओं में यह यथार्थपरक रूप पढ़ने को मिलेंगें .निर्णय तो पाठक  के ऊपर  है   ( सरिता झा )

सम्पर्क-: हेसाग ,हटिया  रांची  , ईमेल- : saritajha11@gmail.com

2 COMMENTS

  1. पोर्टल के संपादक ज़ाकिर साहेब , सोनाली मेम और शिव कुमार झ टिल्लू जी को साभार..जिनक प्रयास से मुझे यहाँ जगह मिली

  2. बहुत सुन्दर कवितायें ….गोया कवयित्री के उदगार से भी काफी , सहज और सरल ….परन्तु इन्हें एक बात का ध्यान रखना होगा साहित्य हमेशा उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए , शब्द संयोजन तो महज एक श्रृंगार है मौलिक तत्व है इसकी सार्थकता …लेकिन तीनो पद्य बहुत सुन्दर हैं

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