सरिता झा की कविताएँ
1) मेरी कलम रुक गई
दिल में है दर्द बहुत ,
क्यों न इसे,
पन्नें पे उतार दू !दिल में मेरे ये शोर ,
करता है बहुत ,
क्यों न इसे ,
शब्दों में ढाल दू !अभी तो दर्द -ए -मोहब्बत ,
का ज़िक्र ही किया था शुरू !
की आँखों से हो गयी ,
आसुंओं की बरसात शुरू !आसुंओं की जद में ,
आया वो पन्ना ,
अब वो रो रहा ,
अपने दर्द का रोना ,
अब कैसे उसपे मैं कुछ लिख दू !
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2 कान्हा की प्रेम दीवानी
जब आया बुलाबा मथुरा से,
जाने को तैयार थे ,
कृष्ण कनाही !पता चला जब राधा को,
वो दौड़ी दौड़ी आयी !रोते -रोते फिर उसने ,
पकड़ी कृष्ण की कलाई !और कहा ना जाओ कान्हा ,
मर जाएगी तेरी प्रेम दीवानी !कान्हा -कान्हा करती रह गयी,
कान्हा की प्रेम दीवानी !
पर तरस न आया कान्हा को,
छोड़ गए वो राधा को !उसके पीछे रोते रह गयी,
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3 उसकी प्रेम दीवानी !!
ना जानू कोई बंधन मैं तो,
ना जानू इस जग की कोई रीत रे !मैं तो बस इतना जानू ,
तू मेरा कान्हा लागे ,
और मोहे हुआ तोसे प्रीत रे !कर दिया मैंने अपना सब कुछ ,
कान्हा तेरे नाम रे !सुबह शाम मैं तोहे पुकारू ,
और मोहे ना दूजा कोई काम रे !बना ले मोहे अपनी चरणों की दासी ,
या दे दे इस जीवन से मुक्ति रे !—————————————–
4 प्यार में तेरे क्या से क्या बन गए
लिखते -लिखते शायरी ,
हम शायर बन गये !
कल तक तो एक पन्ना थे ,
आज एक किताब बन गए !
लिखा है अपने अहसास को ,
और वो सारे गीत बन गए !
गाने लगे सब उसे ,
और वो गजल बन गए !
लिखते -लिखते शायरी ,
आज हम उनसे दूर हो गए !
कल तक थे वो गीत मेरे ,
आज शायरी के दर्द भरे सबद बन गए !
लिखते -लिखते शायरी ,
पूरी जिंदगी गुजर गए !!
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5 मुझे रुलाने को तेरी यादें चली आई
दरवाज़े की चौखट पे बैठ के,
तेरा इन्तिज़ार करती रह गई !
तु ना आया ए संगदिल ,
पर रात चली आई !
गुजरे सारे मौसम तेरी यादों के सहारे,
पर तु ना आया ए बेवफा सावन चली आई !
जब देखें तुम्हारे खत को तो आँखे हुई नम ,
मुझे रुलाने को तेरी यादें चली आई !
तेरे लिए हमने अपनों को छोड़ा ,
तु छोड़ गया मुझको फिर तन्हाई चली आई !
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परिचय – :
सरिता झा (आशु )
कवयित्री व् लेखिकाशिक्षा- स्नातक प्रतिष्ठा ( हिन्दी साहित्य ) सूचना प्राद्यौगिकी में डिप्लोमा
विशेष : मैं सरल भाषा में सामान्य बातों को , जीवन के विविध पहलू में शामिल सत्य परंन्तु अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी में ढालना बेहद पसंद करती हूँ . मैं कोई नैसर्गिक कवयित्री नहीं अपितु भावुक सरल नारी हूँ !
मुझे नारी विमर्श और सिनेह से लगाव है ..इसलिए मेरी कविताओं में यह यथार्थपरक रूप पढ़ने को मिलेंगें .निर्णय तो पाठक के ऊपर है ( सरिता झा )
सम्पर्क-: हेसाग ,हटिया रांची , ईमेल- : saritajha11@gmail.com
बहुत सुन्दर रचनाएं …कविताओं में पूर्णता हैं , भाव सहज और प्रवाह अनुखन है….