सरिता झा (आशु ) की कविताएँ
खामोशी
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खामोशी कभी कभी बिन बोले ,
बहुत कुछ कह जाती है !
पर तेरी खामोशी पे,
ये कैसी चादर पड़ी है ,
है ये कैसी खामोशी हर वक्त जो,
तेरे चेहरे पे छाई रहती है !
पढ़ने की लाख कोशिश करता हूँ ,
सारे शब्द धुंधले हो जाते हैं !
अब कहाँ से लाऊँ वो नजर जो,
तेरी इस खामोशी को पढ़ ले !
बेताब है मन मेरा पढ़ने को ,
तेरे चेहरे की इस खामोशी को !
तेरी खामोशी को चीर कर ,
उस पार जाना चाहता हूँ मै ,
डर है कि इसे पढ़ने की चाह में ,
खुद टूट न जाऊँ मैं !
या यूँ खामोश रहते रहते ,
तुम अन्दर से खामोश न हो जाओ !
इस बात से डरता हूँ मैं,
तुम से मेरी ये दूरी ,
कहीं और न बढ़ जाए,
और तेरी ये खामोशी,
इसका कारण न बन जाए !
खामोशी कभी कभी बिन बोले ,
बहुत कुछ कह जाती है ! –
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मेरे शब्दों मे दर्द है
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मेरे शब्दों मे दर्द है,
ये जानती हूँ मैं ,
वो आए कहाँ से ,
ये नहीं जानती हूँ मैं ,
शायद दिया हो ,
किसी अपने ने !
जिसे पहचानती हूँ मैं ,
उसके दिये दर्द को ,
महसूस करे वो भी ,
इसलिये इसे शब्दों में ,
फिरोती हूँ मैं ,
इक बार तो करे ,
वो खयाल मेरा ,
कैसे इतने दर्द ,
के संग जीती हूँ मैं ,
मै आज भी देख ,
रही राह उसका ,
बस एक बार वो कह दे,
कि आ रहा हूँ मैं !! .
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हँसता बच्चा खिलता फूल
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हँसता बच्चा खिलता फूल ,
जिसे देख गम हो जाता दूर !
देख उसे हम भी हो जाते ,
हसने में मसगूल !
सुख जाते आँखों के आंसू ,
और हम दर्द को जाते भूल !
जब भी नजर आता हमें ,
हँसता बच्चा ,खिलता फूल !
व्यपार में क्या हुआ ,
फ़ायदा क्या नुकसान !
चाहे हम हो कितने भी परेशान ,
सब कुछ हम जाते हैं भूल !
जब भी नजर आता हमें ,
हँसता बच्चा ,खिलता फूल !!
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मैं हूँ आँसू ,सुन ए दीवानी
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आँसू की वाणी ,
कहती है मुझसे एक दिन ,
सुन ए दीवानी !
क्यों तू उदास रहती है इतना ,
और लाती हो अपने ,
आँखों में पानी !
वो पानी नहीं है ,
मैं हूँ आँसू ,सुन ए दीवानी !
तेरी ये आँखे ही घर है मेरा,
क्यों तू करती है बेघर मुझे !
क्यों तू रोती है इतना ,
जो आना पड़ता है ,
अपने घर से बाहर मुझे !
रहने दे मुझे घर में मेरे ,
और बुलाले मेरी शखी हँसी ,
को सुन ए दीवानी !
जो सजाएगी तेरे ,
लब पे हँसी ,
और न आने देगी ,
तेरे आँखों में पानी ,
सुन ए दीवानी !!
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A sound given by helpless unborn to the World
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ए माॅं मुझे तुम जन्म ना दो,
बहुत सुरक्छीत हु तेरे अन्दर,
ए माॅं मुझे तुम जन्म ना दो.
नहीं आना मुझे इस जालिम दुनिया मे,
इसको मेरी जरुरत ही नहीं,
ना हमे कही मान है मिलता,
ना हमे प्यार है मिलता,
कही जलाये जाते हम,
कही मार फेके जाते हम ,
ए माॅं मुझे तुम जन्म ना दो !
ना जाने कितने हैबानों ,
के शिकार होते हैं हम,
डरी सहमी है ,
हजारो बेटियाँ ,
घर से निकले केसे हम,
घुरती है हजारो नजरे,
ए माॅं कितना दर्द सहेगगे हम !
ए माॅं मुझे तुम जन्म ना दो.
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शिक्षा- स्नातक प्रतिष्ठा ( हिन्दी साहित्य ) सूचना प्राद्यौगिकी में डिप्लोमा
विशेष : मैं सरल भाषा में सामान्य बातों को , जीवन के विविध पहलू में शामिल सत्य परंन्तु अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी में ढालना बेहद पसंद करती हूँ . मैं कोई नैसर्गिक कवयित्री नहीं अपितु भावुक सरल नारी हूँ ! मुझे नारी विमर्श और सिनेह से लगाव है ..इसलिए मेरी कविताओं में यह यथार्थपरक रूप पढ़ने को मिलेंगें .निर्णय तो पाठक के ऊपर है ( सरिता झा )
सम्पर्क-: हेसाग ,हटिया रांची , ईमेल- : saritajha11@gmail.com