– जावेद अनीस –
मध्य प्रदेश को अमूमन शांति प्रदेश माना जाता है, लेकिन यह सूबा वंचित समुदायों के उत्पीड़न के मामलों में कई वर्षों से लगातार देश के कुछ सबसे खराब राज्यों के सूची में दर्ज होता आया है। एक दशक से ज्यादा बीजेपी के हुकमत के दौर में संघ परिवार ने भी इस राज्य में अपने भगवा मंसूबों को लागू करने के लिए सबसे मुफीद माना है। अगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दूसरे राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्रीयो के मुकाबले संघ का सबसे ज्यादा फरमाबरदा वजीरे आला माना जाये को कुछ गलत नहीं होगा। पीछे करीब एक दशकों से देश के सेंटर में स्थित इस सूबे में संघ और उसके अनुवांशिक संगठनों को अपने कारनामों को अंजाम देने की खुली छूट मिली हुई है। अब यह सूबा महज प्रयोगशाला नहीं है, यह प्रयोग काफी हद सफल हो चूका है और इसकी जड़ें गहरी हो चुकी हैं। यह मध्यप्रदेश ही है जो सुनील जोशी,प्रज्ञा सिंह ठाकुर,कालसांगरा,देवेन्द्र शर्मा,संदीप डांगे जैसे हिंदुत्ववादी आतंकी संघी आतंकवादियों की शरणस्थली रहा है।
यहाँ तथाकथित लवजिहाद, जबरन धर्मांतरण के नाम पर लोगों के अपने मजहब और प्यार को चुनने के आजादी पर खुलेआम हमले हो रहे हैं, मध्ययुगीन मानसिकता से ग्रस्त प्राइवेट पंचायतें और जाति संगठन आये दिन लड़कियों और स्त्रियों के सामने जीने और रहने का सलीका सिखाने के लिए डू ऑर नॉट टू डू के लिस्ट पेश कर रही हैं, राज्य में हुकूमत कर रही भाजपा,लगातार ऐसे कदम उठा रही है जिनसे अल्पसंख्यकों में भय व्याप्त हो रहा है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने सरकारी कर्मचारियों से आव्हान कर दिया है कि वे आर.एस.एस. की सदस्यता लें। मध्यप्रदेश में हिन्दू संस्कृति को पिछले दरवाजे से जनता पर लादने का तरीका अपनाया जा रहा है। हर मौके का इस्तेमाल हिन्दू धार्मिक शब्दावली को शासकीय शब्दावली का भाग बनाने के लिए किया जा रहा है। स्कूल शिक्षकों के लिए ऋषि संबोधन चुना गया।इसी तरह, राज्य की बालिका कल्याण योजना का नाम है लाडली लक्ष्मी, बाल पोषण योजना का अन्नप्राशन, व जल संरक्षण कार्यक्रम का जलाभिषेक। स्कूलों में “सूर्य नमस्कार“ करवाया जाता है। राज्य के स्कूलों में योग अनिवार्य भी कर दिया गया था, बाद में उसे ऐच्छिक विषय बना दिया गया। चूंकि अधिकांश हिन्दू विद्यार्थी योग सीखते हैं अतः अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं का स्वयं को अलग-थलग महसूस करना स्वाभाविक है। मध्यप्रदेश में छुटपुट सांप्रदायिक घटनाएं लगातार जारी हैं ही । मध्यप्रदेश में 2009 से 2013 के बीच कुल 432 साम्प्रदायिक घटनायें हुई थीं और इस दौरान मध्यप्रदेश, साम्प्रदायिक घटनायें के मामले में देश में तीसरे स्थान पर रहा है।
मध्यप्रदेश उन चुनिन्दा राज्यों में से हैं जिसने साफ तौर पर सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने से इनकार कर दिया था। सच्चर समिति की जो सिफारिशें गरीब मुसलमानों की बेहतरी की दिशा में एक अपरिहार्य कदम माना जा रहा था उन्हें राज्य सरकार सांप्रदायिक अलगाव का सबब साबित करने पर तुली हुई थी। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी थानों को आदेश दिया था कि वो अपने क्षेत्र में ”ईसाई गतिविधियों” से जुड़ी जानकारी जुटा कर भेजें जिसमें कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाईयों की अलग-अलग संख्या, उनकी आर्थिक स्थिती की समीक्षा, विदेशों से उन्हें मिलने वाले धन का ब्योरा, कौन-कौन से ईसाई संगठन आपराधिक मामलों में लिप्त हैं, कौन व्यक्ति उनसे जुड़े हैं और कौन से राजनीतिक संगठन उन्हें संरक्षण देते हैं आदि के जानकारी शामिल थीं। हालांकि बाद में भारी विरोध होने पर इस आदेश को वापस ले लिया गया था।
साल 2013 में मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया था जिस पर ज्यादा ध्यान उस समय नहीं दिया गया था, राज्य सरकार ने धर्मांतरण के खिलाफ क़ानून में संशोधन कर उसे और ज्यादा सख़्त बना दिया गया, इस संशोधन के बाद “जबरन धर्म परिवर्तन” पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई और कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई है। यही नहीं अब कोई नागरिक अपना मजहब बदलना चाहता है तो इसके लिए उसे सबसे पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। यदि धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो वह दंड का भागीदार होगा। इससे पहले साल 2006 में भी एक ऐसा प्रयास हो चूका था जिसमें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विधान सभा में बिना बहस के ‘‘मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्रता विधेयक 2006‘‘ पास करा लिया गया था। बाद में मध्यप्रदेश के राज्यपाल ने इस विधयेक को एटर्नी जनरल की राय के साथ राष्ट्रपति को भेजा था। भारत के सालिसीटर जनरल ने विधेयक के कुछ प्रावधानों को धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताते हुऐ इसे असंवैधानिक करार दिया था क्योंकि इस विधेयक के तमाम प्रावधान मजहबी आजादी के खिलाफ थे। चूँकि राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी नहीं दी थी इसलिए पहला प्रयास विफल रहा था दूसरा प्रयास लगभग सात साल बाद 2013 में हुआ जो सफल रहा।
गौरतलब है कि पुराने धर्म स्वतंत्रता विधेयक 1968 में धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रेट से लिखित में अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं होती थी, लेकिन कानून में यह प्रावधान था कि धर्म परिर्वतन के एक माह के भीतर प्रशासन को इसकी सूचना देनी होगी।
इस पूरी कवायद के पीछे संघ परिवार द्वारा प्रचारित “आदिवासियों के ईसाई करण” का झूठा तर्क है, दूसरी तरफ संघ परिवार खुद आदिवासी के हिन्दुकरण की कवायद में बहुत जोर शोर से लगा है। लेकिन विधेयक के संशोधन द्वारा संघ परिवार के संगठनों द्वारा आदिवासियों के घर वापसी जैंसे कर्मकांड करके धर्मान्तरण करने पर कोई रोक नहीं लगायी गयी है।
संघ परिवार और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मजहब चुनने के आजादी पर रोक कितनी सफलता पूर्वक लागू है यह पिछले दिनों हुई एक घटना से समझा जा सकता है, ग्वालियर संभाग के शिवपुरी जिले में स्थित बुकर्रा गांव में कुछ दलितों ने इस्लाम धर्म अपना लिया था, धर्मांतरण को लेकर दक्षिणपंथी हिन्दू संगठनों ने बहुत शोर मचाना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने इस धर्म परिवर्तन को हिन्दू समाज के ऊपर एक नियोजित हमला बताया। कुछ अस्थानीय समाचारपत्रों ने भी ऐसी खबरें छापी की यह धर्म परिवर्तन जोर-जबरदस्ती से कराया गया है। हालांकि बाद में धर्म परिवर्तन करने वालों ने इससे इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने किसी के भी दबाव में आकर धर्म परिवर्तन नहीं किया है।
पूरे बहस में किसी ने भी यह जानने-समझने का प्रयास नहीं किया कि आखिर वे क्या वजहें थीं जिसके चलते दलितों को अपना धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार कर लिया, इसे एक पुरानी घटना से समझा जा सकता है, घटना सितम्बर 2010 की है, मुरैना जिले के मलीकपूर गॉव में एक दलित महिला ने ऊँची जाति के व्यक्ति के कुत्ते को रोटी खिला दी थी। जिस पर कुत्ते के मालिक का कहना था कि एक दलित द्वारा रोटी खिलाऐ जाने के कारण उसका कुत्ता अपवित्र हो गया है। गॉव के पंचायत ने सजा के तौर पर दलित महिला को उसके इस ‘‘जुर्म’’ के लिए 15000रु दण्ड़ का फरमान सुना दिया गया। हाल में ही नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड द्वारा किये गये एक स्टडी के अनुसार छुआछूत को मानने के मामले में मध्य प्रदेश पूरे देश में शीर्ष पर है। सर्वे के अनुसार मध्य प्रदेश में 53 फीसद लोगों ने कहा कि वे छुआछूत को मानते हैं, चौंकाने वाली बात यह रही की उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेश भी इस सूची में मध्य प्रदेश से पीछे है।
दरअसल मध्य प्रदेश हमेशा से ही दलितों पर अत्याचार के मामले में ऊँचे पायदान पर रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दलित अत्याचार के केवल 29 फीसद दर्ज मामलें में ही सजा हो पाती है, 71 फीसदी मामले तो लबिंत रहते हैं। मध्य परदेश में नाई द्वारा बाल काटने को मना कर देने, चाय दुकानदार द्वारा चाय देने से पहले जाति पुछना और खुद को दलित बताने पर चाय देने से मना कर देना या अलग गिलास में चाय देना, दलित पुरुष पंच/सरपंच को मारने पीटने और दलित महिला पंच/सरपंच के साथ बलात्कार, शादी में घोड़े पर बैठने पर रास्ता रोकना और मारपीट करना, मरे हुए मवेशियों को जबरदस्ती उठाने को मजबूर करना, मना करने पर सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देना आदि जैसी घटनाऐं बहुत आम हैं, जो दलितों के आम दिनचर्या का हिस्सा बन गये लगते हैं।
करीब 1200 लोगों की आबादी वाले बुकर्रा गांव की स्थिति भी अलग नहीं है यहाँ भी आर्थिक, सामाजिक स्थिति जिले के दूसरे गांव की तरह है। गांव में सबसे ज्यादा आबादी जाटवों की है, तो दूसरे नंबर पर ब्राह्मण समुदाय के लोग हैं। जाटवों का मोहल्ला हर गांव की तरह यहां भी अलग-थलग है। दलितों की आर्थिक स्थिति सबसे बदतर है और उनके साथ हर क्षेत्र में भेदभाव बहुत आम है, फिर वो चाहे अतिवर्षा से मिलने वाले मुआवजे या खेती के लिए मिली हुई जमीन पर खेती करने का मामला हो या रोजगार योजना के अंतर्गत काम मिलने का मामला हो, सभी मामलों में दलितों के साथ भेदभाव होता है।
दलितों द्वारा इस्लाम स्वीकार करने के बाद हिन्दूवादी संगठन सक्रिय हो गये और उन सब पर दबाव बनाया जिनने इस्लाम स्वीकार कर लिया था या करने वाले थे। चूंकि मध्य प्रदेश के कानून के अनुसार कोई भी नागरिक बिना शासन को सूचित किए धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता और इन लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन की सूचना नहीं दी गयी थी इसलिए जिले के प्रशासन ने भी धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी। प्रशासन और कानून के नज़र में वे अपराधी समझे गये। इसी दौरान हिन्दुवादी संगठनों ने इन लोगों पर दबाव बनाना शुरू किया और खुलेआम चेतावनी देने लगे कि अच्छा होगा की वे जल्द ही इस्लाम धर्म को त्याग कर फिर से हिन्दू बन जायें। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक खबर के अनुसार हिन्दू संगठनों द्वारा बुकर्रा और आसपास के गांव में अतिवादी हिन्दू संगठनों द्वारा दलित समाज के लोगों को इकट्ठा कर उनको धर्म परिवर्तन की घटना के विरूद्ध भड़काया गया। बैठक भी हुई और जिसमें इस बात को लेकर विचार किया गया कि जो दलित इस्लाम स्वीकार करना चाहते हैं उनके विरूद्ध क्या कार्यवाही की जाये। इस कार्यवाही में उनकी फसलों को जलाना, उनके ऊपर जुर्माना लगाना हो सकता है।
स्थानीय प्रशासन द्वारा भी इस बात को जोर-शोर से प्रचारित किया गया कि अगर एससी-एसटी धर्म परिवर्तन करते हैं, तो उन्हें सामान्य वर्ग में माना जाता है और इस स्थिति में उन्हें एससी-एससी कोटे से मिलने वाली सुविधाएं जेसे सरकारी नौकरी में छूट, इंदिरा आवास, छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति, जमीन का मुफ्त पट्टा, बीपीएल कार्ड समेत अन्य लाभ बंद हो जाती हैं।
इस पूरे दबाव का असर यह रहा कि बुकर्रा गांव में धर्म परिवर्तन करने वाले तुलाराम और मनीराम जाटव और उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों ने एक फिर से हिंदू धर्म में वापसी कर ली, हिन्दू धर्म की दीक्षा लेने से पहले पुरुष सदस्यों की दाढ़ी बनाई गई और इन्हें गंगाजल डालकर पवित्र किया गया। इसके बाद सभी सदस्यों को लेकर हिन्दू संगठन (विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल) की छत्र-छाया में एक लोकल मंदिर में विधि-विधान के अनुसार सभी सदस्यों से पूजा-पाठ कराकर यज्ञ कराया गया और उन्हें फिर से हिन्दू बना लिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक सेकुलर संविधान द्वारा संचालित भारत जैसे मुल्क में नागिरकों के धार्मिक आजादी पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, सबसे बुनियादी सवाल तो यह है कि अगर हिन्दू धर्म को त्यागकर इस्लाम स्वीकार करना अपराध की श्रेणी में आता है तो जोर-जबरदस्ती से लोगों को फिर से हिन्दू बनाना अपराध की श्रेणी में क्यों नहीं आता है ? क्या उन लोगों पर कोई कारवाही नहीं होनी चाहिये जो लोंगों को दोबारा से हिन्दू धर्म में वापस लाने के लिए खुले आम धमकियाँ देकर दबाव बना रहे थे? या फिर अघोषित रूप से हिन्दू धर्म को राजधर्म मान लिया गया है और इसी वजह से हिंदूवादी संगठनों को यह छूट दी गयी है?
आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र में धर्म चुनने और छोड़ने की आजादी एक बुनियादी उसूल है, यह नागरिकों के मूलभूत अधिकारों में शामिल है। मध्य प्रदेश में बहुत सिलसिलेवार तरीके इस बुनियादी उसूल को खुलेआम तोड़ा जा रहा है।
उसूल तो अपने जीवन साथी चुनने और किसी से प्यार करने के अधिकार को लेकर भी तोडा जा रहा है, दो वयस्क युवाओं का विवाह बहुत ही निजी किस्म का मामला है लेकिन अगर मामला अंतर्धार्मिक विवाह का हो तो हमारा राज्य और प्रशासन ही खाप पंचायत का व्यवहार करने लगते हैं, मध्य प्रदेश में इसी तरह का एक ताजा मामला जोसफ पवार और आयुषी वाणी का है, दोनों बालिग़ हैं लेकिन उनके धर्म अलग–अलग हैं, लड़की हिन्दू है और लड़का ईसाई, पिछले सितम्बर माह में इन दोनों ने भोपाल के आर्य समाज मंदिर में शादी रचाई थी, जिस पर लड़की के मां-बाप ने लड़के के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज करा दी बाद में पुलिस ने उन दोनों को गुजरात के किसी कस्बे से दूंढ़ निकला, वहां से उन्हें अलीराजपुर के छोटे से कस्बे जाबोत लाया गया, लड़की का साफ कहना था कि चूँकि वह लड़के के प्यार करती है इसलिए वह अपनी मर्जी से उसके साथ घर छोड़ कर गयी थी और वह अपने माँ- बाप के पास वापस नहीं जाना चाहती है बल्कि लड़के के साथ रहना चाहती है, लेकिन हिन्दू जागृति समिति और दूसरे हिंदूवादी संगठनों द्वारा पुलिस और प्रशासन पे लगातार दबाव बनाने और लगातार थाने का घेराव के चलते प्रशासन द्वारा इस शादी को “अमान्य” घोषित कर दिया गया, अपना फरमान सुनाते हुए जिले न घोषित किया कि चूंकि “युवक ने शादी से पहले धर्मपरिवर्तित करके स्वयं को हिन्दू नहीं बनाया है इसलिए वे उसकी शादी को मान्यता नहीं देते।” दूसरी तरफ लड़की को नारी निकेतन भेज दिया गया है और लड़के को “पुलिस सुरक्षा” में उसके घर वापस भेज दिया गया है, यह सब किस कानून के तहत किया गया है यह समझ से परे हैं, जोसफ पवार और आयुषी वाणी दोनों बालिग़ हैं। भारतीय का संविधान और सभ्य समाज उन्हें विवाह करने का अधिकार देता है किन्तु कुछ उश्रृंखल और अराजक साम्प्रदायिक तत्वों के दबाब में आकर आयुषी को नारी निकेतन उज्जैन में भेजा जाना जानबूझकर की गयी प्रताड़ना की कार्यवाही है, खासतौर से तब जब कि उसने स्वयं पुलिस अधीक्षक सहित सभी वरिष्ठ अधिकारियों को साफ़ तौर से कह दिया है कि उसने विवाह अपनी मर्जी से किया है तथा वह अपने परिवारजनों के साथ नहीं जाना चाहती कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है। वैसे पुलिस की भूमिका व्यक्तिगत आजादी को प्रोटेक्ट करना है, इस हिसाब से तो उसे इन दो व्यस्क लोगों की मदद करनी चाहिए थी की वे “विशेष विवाह अधिनियम 1954” के तहत शादी कर सकते हैं।
इसी तरह की एक और घटना राजधानी भोपाल की है जहाँ इस साल अक्टूबर माह में रीना उईके और सोहेब खान “विशेष विवाह अधिनियम” के तहत शादी करना चाहते थे इसी सिलसिले में वे नोटरी के काम के लिए भोपाल जिला न्यायालय गये हुए थे, संस्कृति बचाव मंच के करीब बीस कार्यकर्ता वहां पहुँच कर हंगामा करने लगे, उनका आरोप था कि यह शादी नहीं हो सकती क्योंकि लड़की “लव जिहाद” से पीड़ित है, जबकि लड़की ने इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया और खुलासा किया कि वह सोहेब से शादी करना चाहती है और इसी सिलसले में वे जिला न्यायालय आये थे ताकि कागजी तैयारियां कर सकें। कार्यवाही के नाम पर पुलिस ने लड़की और लड़के को उनके परिवार वालों को सौप दिया।
यह घटनायें बताती है कि किस तरह से मध्यप्रदेश में संघ परिवार और दूसरे हिंदूवादी संगठन खुलेआम बाकायदा यह तय कर रहे है कि कोन किस से शादी करेगा और कोन किस से प्यार, यही नहीं पुलिस और प्रशासन का पूरा अमला उन पर लगाम लगाने के बजाये उनका सहयोग कर रही है।
समाज, पुलिस और प्रशासन के मिलीभगत का ही नतीजा है कि मध्य प्रदेश प्रेमियों की हत्या के मामले में पूरे देश में यूपी के बाद दूसरे स्थान पर है, पिछले साल यहाँ 250 प्रेमियों की हत्यायें दर्ज हुई है।
संघ परिवार के संकीर्ण एजेंडे पर चलते हुए मप्र की भाजपा सरकार के दौर में संविधान और क़ानून की अवहेलना करके नागिरकों को अपना मजहब और जीवन साथी चुनने में सेंसरशिप बहुत कामयाबी के साथ लागू हो चूका है। संघ परिवार की प्रयोगशाला मध्य प्रदेश अब शरणस्थ्ली बन चूकी है, जिसने उनके मंसूबों को मॉडल के तौर पे पेश किया है।
परिचय – :
जावेद अनीस
लेखक ,रिसर्चस्कालर ,सामाजिक कार्यकर्ता
लेखक रिसर्चस्कालर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, रिसर्चस्कालर वे मदरसा आधुनिकरण पर काम कर रहे , उन्होंने अपनी पढाई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पूरी की है पिछले सात सालों से विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ कर बच्चों, अल्पसंख्यकों शहरी गरीबों और और सामाजिक सौहार्द के मुद्दों पर काम कर रहे हैं, विकास और सामाजिक मुद्दों पर कई रिसर्च कर चुके हैं, और वर्तमान में भी यह सिलसिला जारी है !जावेद नियमित रूप से सामाजिक , राजनैतिक और विकास मुद्दों पर विभन्न समाचारपत्रों , पत्रिकाओं, ब्लॉग और वेबसाइट में स्तंभकार के रूप में लेखन भी करते हैं
Contact – 9424401459 – anisjaved@gmail.com
C-16, Minal Enclave , Gulmohar clony 3,E-8, Arera Colony Bhopal Madhya Pradesh – 462039
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.