रितु झा की पांच कविताएँ
१ पिंजरे का पंछी
पिंजरे मे कैद पंछी
गाते नहीं रोते है
फिर भी वो सुनकर
सभी खुश होते है…
छूते ही पिंजरे को
वो पंख फड़फड़ाते है
छोटे से पिंजरे मे भी वो
घबराये से लगते है..
उड़ते थे जो अथाह गगन में
पिंजरे में वो बैठे हैं
टुकुर टुकुर देखते हैं वो
बेचारे से लगते हैं……….
छिनकर उनसे धर उनका
वाणी उनकी, साथी उनके
बंद किया पिंजरे में
सिखाई उन्हें अपनी बोली
दिया उन्हें नाम अपना
की उनकी देखभाल
सबकुछ मिला पिंजरे में
फिर क्यो वो खुश नहीं होते है…
पंखों को फैलाकर शायद
आज भी वो उड़ना चाहते है
अपनी खुशी के लिए
किसी को बंधन में रखना
क्या इसे ही इंसानियत कहते है
देख गगन को वो असहाय
आजादी को तरसते है..
२ ख्वाब या जिंदगी
गर तू ख्वाब है तो
इस ख्वाब को जी लूंगी मैं
दिदार – ए- महबूब ख्वाबो मैं
करता है हर कोई
खुदा करे खलल न आए
मेरी नींद में कोई
तू मेरा ख्वाब – ए- महबूब है गर
ये बात कबूल है मुझे
तेरे दिदार के लिए
ता उम्र सो लूंगी मैं
3 निगाह-ए-नाज़
शबनम से ये कतरे
अपनी निगाह-ए-नाज़ से
न गिरने दो
ये मेरे वो कमाये हुए गौहर है
जिनकी किमत मैं
अदा नहीं कर सकता ॥
तेरी हँसी ही हिफाजत है इनकी
तेरी खुशियों से महफूज है
दौलत मेरी
ये यूँ ही जाया हो जाए
ये मैं बर्रदास्त नहीं कर सकता ॥
ता उम्र संभाला है इनको
मैंने तेरी पलको पर
तेरी आँखो से ये गिर जाए
ये मैं देख नहीं सकता ॥
४ परिभाषा- ए.- ग़ज़ल
दिल की बातें जब जुबा पे आ जाए
सुनकर जिसे हमारा दिल सुकून पाए
कहते हैं शायद…उसी को ग़ज़ल
पलके झुकाए
यादों के गलियारो में कहीं खो जाए
जिये फिर से उन हसीन लम्हो को
एहसास ऐसा जो दे जाए
होती है शायद एसी ही ग़ज़ल
गुलाब की पंखुडियो से नाजुक
हमारे एहसासो को जो हौले से छू जाए
शायद वो मीठा दर्द है ग़ज़ल…
5 वो इश्क था
मैं सोचती हूँ अक्सर
सुंदरता की मिसाल
जिसे ताजमहल कहते है
ज्यादा खूबसूरत है
या वो हाथ, जिसने
बनाया था ये महल
कभी लगता है
वो आँखे ज्यादा खूबसूरत होगी
जिन्होंने ये ख्वाब देखा था
उस नींद को क्या कहूँ मैं
जिसमें ये हसीन ख्वाब आया था
या फिर इन सबसे हसीन
थी वो माहजबीन जिसपर
शहजादे का दिल आया था
शायद वो खूबसूरत और पाक दिल था
जिसे खुदा ने बनाया था
उस दिल में जलाकर इश्क की लौ
जहान को मोहब्बत सिखाया था
यकीनन वो इश्क ही था
जिसने एक मकबरे को
मोहब्बत की इमारत बनाया था
आज भी आती है जिसके
ज़ररे ज़ररे से मोहब्बत की महक
धड़कता है आज भी उसे देखकर
प्यार भरा दिल क्योकि
मोहब्बत आज भी ज़िदा है वहाँ
ये वो इमारत है जिसे
इश्क ने इश्क की याद में बनवाया था
रितु झा
कवियित्री , लेखिका
उद्घोषिका , आकाशवाणी , जमशेदपुर
स्नातक प्रतिष्ठा ( सिटी कॉलेज कोलकाता )
संदर्भित भाषाएँ : हिन्दी , अंगरेजी , मैथिली , बांग्ला और उर्दू
द्वारा : श्री अश्विनी झा , कमांडेंट
आवास : त्वरित कार्य बल छावनी , सुन्दरनगर , जमशेदपुर
सम्पर्क : ritujha97@yahoo.com