लगभग सात दशकों तक नेहरू-गांधी परिवार के राजनैतिक कौशल व आकर्षण के बल पर चलने वाली तथा अपने इसी पारिवारिक चमत्कार के दम पर देश में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा पार्टी ने ऐसी पराजय का मुंह इससे पहले कभी नहीं देखा था। श्रीमती इंदिरा गांधी के कथित तानाशाही रवैये,देश में आपातकाल लगाने तथा प्रेस पर सेंसरशिप लगाए जाने जैसे फैसलों के चलते व उसी समय विपक्ष के एकजुट होने के कारण सत्ता से 1977 में हटाई गई कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के ही नेतृत्व में 1979 में मात्र ढाई वर्षों के बाद जिस प्रकार सत्ता में वापसी की थी वह भी देश की राजनीति का खासतौर पर कांग्रेस व नेहरू-गांधी परिवार के राजनैतिक कौशल का एक अमिट अध्याय था। परंतु ठीक इसके विपरीत 2014 में कांग्रेस जिस अंदाज़ से सत्ता से दूर हुई, साथ-साथ कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी के रूप में एक ‘कमज़ोर’ नेतृत्व की सरपरस्ती दिखाई दे रही थी उसे देखकर तो ऐसा लगने लगा था कि गोया देश की यह सबसे पुरानी व स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी अब इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगी। रही-सही कसर उस समय पूरी हो गई जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 57 दिनों तक के लिए अज्ञातवास में चले गए। इतनी बड़ी पार्टी के नेता का बिना किसी सूचना व कार्यक्रम के अज्ञातवास में जाना कांग्रेस विरोधियों के लिए मज़ाक उड़ाने का कारण भी बना। संसद से लेकर बाहर तक कई नेताओं द्वारा इस पर चुटकियां भी ली गईं। परंतु राहुल गांधी की 57 दिनों बाद नए अवतार के रूप में हुई वापसी ने न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि देश की राजनीति में भी एक नया अध्याय जोडऩे की कोशिश की है।
इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी उस राजनैतिक परिवार के सदस्य व उत्तराधिकारी हैं जिसने देश के लिए स्वतंत्रता से लेकर अब तक बड़ी कुर्बानियां दी हैं। इंदिरा गांधी व राजीव गांधी को देश की एकता व अखंडता को बनाए रखने के लिए अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी। परंतु वास्तव में राहुल गांधी के लिए इस महान विरासत का उत्तराधिकारी होना मात्र ही पर्याप्त नहीं है। उनके अंदर बोलने,सोचने,निर्णय लेने तथा राजनैतिक ज्ञान की सलाहियत भी ज़रूरी है। खासतौर पर भारतीय राजनीति तो इस समय एक ऐसे दौर में पहुंच चुकी है जहां सच कम और झूठ अधिक चलने लगा है। सच्चाई,वास्तविकता तथा दिल की गहराईयों से निकली हुई बातों की जगह आडंबर,पाखंड तथा छल-कपट ने ले ली है। सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी स्वयं को भी राजनीति के इस वर्तमान ‘हुनर’ में ढाल सकेंगे? ज़ाहिर है लोकसभा चुनाव से पूर्व वे ऐसा नहीं कर सके जिसका नतीजा उन्हें पार्टी की बड़ी हार के रूप में भुगतना पड़ा। उधर दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें नीचा दिखाने के लिए कभी यह कहा कि राहुल गांधी को कोई अपना ड्राईवर तक रखना पसंद नहीं करेगा तो साथ ही साथ वह उन्हें ‘शहज़ादा’ कहकर भी चुटकियां लेते रहे। मुशर्रफ को ‘मियां’ मुशर्रफ कहकर संबोधित करना तथा तत्कालीन चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को ‘जेम्स माईकल लिंगदोह’ कहकर संबोधित करना नरेंद्र मोदी के राजनैतिक चातुर्य का एक अहम हिस्सा था। ज़ाहिर है यदि राहुल गांधी को राजनीति में ऐसे राजनैतिक ‘कलाबाज़ों’ का मुकाबला करना है तो उन्हें ऐसे कुछ न कुछ हुनर भी ज़रूर सीखने चाहिए। देश की राजनीति अब दो और दो चार की नहीं बल्कि दो और दो आठ साबित करने वाली राजनीति हो चुकी है। हालांकि इसे अच्छे राजनैतिक संस्कार के लक्षण नहीं कहा जा सकता। परंतु हकीकत तो यही है कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के लिए अपनी ही पार्टी के दर्जनों वरिष्ठ नेताओं की छाती पर पांव रखकर प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया है। आज कई वरिष्ठ भाजपा नेता स्वयं को नरेंद्र मोदी की चतुर राजनीति का शिकार होकर बग़लें झांकते देखे जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी को अपने वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करते तथा उन्हें पूरा आदर देते हुए देखा जा रहा है। दुर्भाग्यवश आज की राजनीति की कथित सफलता का पैमाना भी अब यही बन चुका है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब से यह इशारा किया है कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने का निर्णय स्वयं राहुल गांधी को लेना है तबसे इस बात की अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि राहुल कभी भी कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर संभाल सकते हैं। लोकसभा में उनकी अज्ञातवास से वापसी के बाद उनके जो अभूतपूर्व तेवर व क्षमता दिखाई दे रही है वह भी इस बात की ओर इशारा कर रही है कि उन्होंने पार्टी में नई जान फूंकने का पूरा मन बना लिया है। वे इस समय एक सधे हुए आक्रामक विपक्षी नेता के रूप में लोकसभा में बोलते दिखाई दे रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार पर भूमि अधिग्रहण तथा किसानों की दुर्दशा के मुद्दे पर कई हमले किए। उन्होंने साधारण श्रेणी में रेल यात्रा कर एशिया की सबसे बड़ी कहे जाने वाली पंजाब के खन्ना की अनाज मंडी में किसानों से चर्चा की तथा उनकी परेशानियों को सुना व समझा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर संसद में यह कहकर चुटकी ली कि वे विदेश यात्राओं के बजाए देश के किसानों की हालत जानने की कोशिश करें। उनके इस आक्रमण ने न केवल कांग्रेसजनों में उत्साह का संचार किया बल्कि मीडिया का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित करने में वे सफल रहे। यहां तक कि देश के राजनैतिक विश£ेष्कों ने भी उनके नए अवतार की प्रशंसा की। गोया राहुल गांधी अज्ञातवास से अपनी वापसी के बाद लोकसभा में दिखाए गए अपने अभूतपूर्व तेवरों व किसानों से किए गए संपर्क की बदौलत देश में अपनी एक सकारात्मक छवि बना पाने में सफल रहे।
जहां तक कांग्रेस के पतन का प्रश्र है तो देश यह भी भलीभांति जानता है कि कांग्रेस के पतन व भाजपा के सत्तारूढ़ होने के सीधे तौर पर जि़म्मेदार सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी नहीं हैं। बल्कि कांग्रेस पार्टी के व यूपीए सरकार के सहयोगी घटक दलों से संबंध रखने वाले अनेक भ्रष्ट नेताओं के आचरण के चलते कांगे्रस को 2014 में ऐतिहासिक पराजय का समाना करना पड़ा। बल्कि इसे तो सोनिया गांधी का राजनैतिक कौशल ही कहा जाएगा कि उन्होंने स्वयं को संसदीय दल का नेता चुने जानूे के बावजूद मनमोहन सिंह को देश के प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया। रहा सवाल मनमोहन सिंह जैसे महान अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री होते हुए मंहगाई के अनियंत्रित होने का, तो क्या प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने मंहगाई पर नियंत्रण हासिल किया है? जी नहीं। यह केवल नारा भर था कि ‘बहुत हुई मंहगाई की मार- अब की बार मोदी सरकार’। यह तो झूठे प्रचार का एक नारा मात्र था जिसे भाजपा द्वारा अपने शस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया गया। जबकि मनमोहन सिंह वैश्विक स्थिति को देखते हुए यह पहले ही साफ शब्दों में कह चुके थे कि देश के लोगों को इन्हीं हालात में रहने की आदत डाल लेनी चाहिए। हां शरद पवार जैसे कांग्रेस के सहयोगी नेता बार-बार देश को यह कहकर गुमराह ज़रूर कर रहे थे कि एक माह में मंहगाई कम हो जाएगी तो कभी सौ दिन में मंहगाई घट जाएगी। परंतु हकीकत का रूप धारण कर चुकी मंहगाई का जि़म्मा मनमोहन सिंह व कांग्रेस सरकार पर बड़े ही सधे तरीके से भाजपाईयों द्वारा मढ़ दिया गया और खुद सत्ता संभालने के बाद मंहगाई कम करने के बजाए समाज को विभाजित करने वाले दूसरे मुद्दों की ओर पार्टी के अनेक नेताओं को सक्रिय होते देखा गया।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे देश के दो सबसे बड़े राज्यों में निकट भविष्य में चुनाव होने वाले हैं। इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी हालांकि पहले से ही बहुत कमज़ोर स्थिति में हैं। दूसरी ओर इन राज्यों के स्थानीय समाजवादी नेताओं द्वारा भाजपा से मुकाबला करने हेतु एक नया संगठन भी खड़ा किया गया है जो निश्चित रूप से विधानसभा चुनावों में अपनी प्रभावी भूमिका निभाएगा। इन राजनैतिक परिस्थितियों में राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को संगठित रखते हुए अपनी पार्टी के हित में क्या निर्णय लेते हैं यह राहुल गांधी की पहली बड़ी परीक्षा के रूप में देखा जाएगा। इस बात की उम्मीद तो कतई नहीं की जानी चाहिए कि राहुल गांधी के नेतृतव में कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश व बिहार राज्य में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। परंतु इन राज्यों में भाजपा की बढ़त को रोकने के लिए राहुल गांधी द्वारा लिया जाने वाला निर्णय उनके राजनैतिक कौशल का संकेत ज़रूर देगा। समय बताएगा कि नए अवतार में राहुल गांधी कांग्रेस के लिए कितने लाभप्रद साबित हो सकते हैं।
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Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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