रेल यात्रा के दौरान भिन्न-भिन्न प्रकार के यात्रियों से थोड़े समय के लिए सम्पर्क होता है। कभी-कभी किसी दिव्य व्यक्तित्व वाले सहयात्री से भी रेल यात्रा के दौरान परिचय होता है और अल्प-समय का यह सम्पर्क एक अमिट छाप छोड़ जाता है। यहाँ एक ऐसी ही प्ररेक रेल यात्रा के अनुभव का वर्णन प्रस्तुत कर रहा हूँ।
30 मार्च, 2002 को हावड़ा से दानापुर की यात्रा मैं पंजाब मेल से कर रहा था। हावड़ा स्टेशन पर एक अमेरिकी दम्पति ट्रेन में सवार हुआ। उनके पास सामान अधिक था तथा मदद करने के लिए कई लोग आए थे। उनके चेहरे पर एक अद्भुत मुस्कान थी तथा सभी को वे प्रचुर धन्यवाद दे रहे थे। गाड़ी छूटने के तुरन्त बाद वे धार्मिक एवं लोकोपकारी किताबें मनोयोगपूर्वक पढ़ने लगे। बातचीत के दौरान पता चला कि वे वाराणसी जाएंगे तथा पिछले एक माह से वे भारत के विभिन्न शहरों का मिशनरी-कार्य के उद्देश्य से भ्रमण कर रहे थे।
वे भारतीय रेलवे की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने यह बताया कि रेलवे की लम्बी यात्रा के दौरान उन्हें कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई और सहयात्रियों से अपेक्षित सहयोग भी मिलता रहा। उन्हें भारतीय रेल से कोई शिकायत नहीं थी। जब इस अमेरिकी दम्पति ने वातानुकूलित प्रथम श्रेणी में आरक्षित अपनी शायिकाओं के बारे में ब्यौरा लिया तो पता चला कि एक नीचे वाली एवं एक ऊपर वाली बर्थ इनके लिए आरक्षित थी। यह जानकर बिल शेड ने धीमे स्वर में अपनी सहधर्मिणी रूबी से कहा कि वे ऊपर वाली शायिका पर चली जाएं। मैंने यह भांप लिया कि बुजुर्ग सहयात्री को ऊपर वाली शायिका पर चढ़ने-उतरने में असुविधा होगी तो मैंने स्वेच्छा से बिल शेड को यह बताया कि ऊपर वाली शायिका पर मैं विश्राम कर लूंगा तथा नीचे वाली शायिका रूबी के लिए उपलब्ध रहेगी। यह सुनकर वे काफी प्रसन्न हुए और दोनों तहेदिल से धन्यवाद देने लगे। मैंने उन्हें बताया कि भारतीय संस्कृति में बुजुर्गो के लिए आदरपूर्ण व्यवहार सन्निहित है तथा हमेशा यह ख्याल रखा जाता है कि बुजुर्गो को कोई असुविधा या तकलीफ न हो। बातचीत के क्रम में मैंने उन्हें बताया कि मैं भारतीय रेल में कार्यरत हूँ इसलिए मेरा यह परम कर्तव्य है कि सहयात्रियों को कोई कष्ट न पहुंचे। रूबी एवं बिल मुझसे काफी प्रभावित हुए एवं भारतीय रेल के सुखद अनुभव को बताने लगे। मैं ऊपर वाली शायिका पर विश्राम करने चला गया। देर रात जब मैं नीचे उतरा तो देखा कि एक पांव जिसमें जूता लगा था तथा पैंट से ढका था बीच वाले टेबुल पर टिका हुआ है, जैसे किसी बैठे हुए यात्री का पैर हो। बिल शेड गहरी निद्रा में सो रहे थे, इसे देखकर मुझे भयमिश्रित आश्चर्य हुआ तथा कुछ देर तक अचंभित रहने के बाद ही मैं यह समझ पाया कि शेड का एक पांव अलग रखा था। इसके बावजूद उन्हें खड़े होने या चलने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी और न ही हाव-भाव या चाल से ही किसी तरह का संकेत मिल रहा था। उनके धीमे स्वर जिसमें उन्होंने अपनी धर्मपत्नी को ऊपर वाली शायिका पर चढ़ने के लिए कहा था, का रहस्य तब मुझे समझ में आया।
रूबी एवं बिल ने बातचीत के क्रम में कभी भी बिल के पांव के बारे में नहीं बतलाया और न ही इस विकलांगता के लिए उन्हें तनिक भी दुःख था। गाड़ी जब पटना साहेब पहुंच रही थी तब शेड दम्पति जग चुके थे। मैंने सहमे ढंग से शेड से उनके कृत्रिम पैर जो उनके सामने रखा था, उसके बारे में जिज्ञासा की।
शेड ने मुस्कुराते हुए बताना शुरू किया……… “गर्मी का मौसम था और उनकी शादी की 14वीं वर्षगांठ थी। लाल रंग की मोटरसाइकिल पर सवार अपने 12 वर्षीय पुत्र फिल के साथ एक गली के पास जाने के लिए बाई ओर मोड़ लेने के लिए वह रूके थे ताकि टैªफिक पास हो जाए। सहसा ब्रेक की कर्कश आवाज हुई और पवन-भेदी शोर के बाद मोटरसाइकिल दुर्घटनाग्रस्त होकर चकनाचूर हो गई। वहाँ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था”……….योर्क अस्पताल में उन्हें पता चला कि वे अपना बायां पैर सदा के लिए खोने जा रहे हैं क्योंकि डाक्टर ने इसे काटकर हटा देने का निर्णय लिया था। इस भीषण आघात के बाद भी उनके चेहरे पर तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होंने बिलकुल शांत भाव से जो उनके जीवनकाल में कभी प्रदर्शित नहीं हुआ था, इस विषम एवं दुखदाई स्थिति का सामना किया।
उनके पुत्र फिल को भी फै्रक्चर हुआ था। डाक्टर ने शेड को बताया कि उसके पैर काटने की जरूरत नहीं होगी लेकिन एक पैर थोड़ा छोटा हो जाएगा। जिस समय बिल अपनी दुर्घटना के संबंध में बता रहे थे तो उनके चेहरे पर हर्ष व्याप्त था। वे अपने भाग्य या ईश्वर को दोष नहीं दे रहे थे। उन्होंने बताया कि उनके धैर्य एवं सहनशीलता को देखकर डाक्टर भी हैरान थे। इस तरह की शांति एवं सहनशीलता प्रतिकूल परिस्थिति में बरतना उनके स्वभाव में नहीं था। उन्होंने बताया कि जो ईश्वर को अपना पूरा जीवन एवं शरीर समर्पित कर देता हैं, उसे ईश्वर की कृपा और उनकी इच्छा का अनुभव हर क्षण होता है।
उस दिन उन्होंने रूबी के साथ यह तय किया कि वे ईश्वर की इच्छा को सहर्ष स्वीकार करेंगे और इस स्थिति में महत्तम आनंद उठाएंगे। इस निर्णय से पैर काटने पर होने वाली वेदना और पीड़ा के कारण अनिद्रा आदि का सहज समाधान हो गया।
बिल ने बताया कि वे इस दुर्घटना को ईश्वर को देन मानते हैं क्योंकि दुर्घटना के तुरन्त बाद एक सज्जन ने आने वाले ट्रक को रोक दिया नहीं तो वे वाहन से दबकर मर सकते थे। यह महज संयोग था कि एक नर्स अपने पति के साथ उसी जगह से जा रही थी, जिसमें खून के बहाव को तत्काल रोका और उनकी स्थिति ज्यादा खराब नहीं हुई। यह सारा ईश्वर की कृपा से ही संभव था।
बिल शेड ने जिज्ञासापूर्वक एक प्रश्न किया कि अगर आप मोटरसाइकिल पर सवाल होते और दुर्घटना के बाद आपका अन्तकाल हो जाता तो आप उस समय कहाँ रहते घ् उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर आप स्वेच्छा से ईश्वर को अपने जीवन में समाविष्ट नहीं करते हैं तो आपका एक पैर हमेशा नरक में रहेगा। बिल ने यह बतलाया कि उनका एक पैर ईश्वर की कृपा से स्वर्ग में रखा है और वे इस सौभाग्यपूर्ण स्थिति से अद्भुत आनंद उठा रहे है। वे ऐसा महसूस कर रहे हैं कि वे ईश्वर के साथ स्वर्गरूपी वाटिका में विचरण कर रहे है। बहुधा शारीरिक विकलांगता के लिए लोग अपने भाग्य को कोसते है। उसे पूर्व-जन्म का पाप या भगवान की अकृपा मानकर अपने जीवन को दूभर बनाते हैं।
बिल का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण एवं विपत्ति को हर्ष में परिवर्तित करने की कला उन तमाम व्यक्तियों के लिए जो शरीरिक रूप से लाचार हैं अथवा विकलांगता के शिकार हैं, एक प्रकाश-किरण के रूप में तिमिराच्छन्न मानसिकता को आलोकित कर सकती है।
बिल शेड ने एक छोटी-सी पुस्तिका-‘माय वन फुट इन दि हेवन‘, भी छपवाई है जिसे वे निःशुल्क बांटते है। इस पुस्तिका में उनकी दुर्घटना, जीने की कला एवं ईश्वर में असीम आस्था तथा अद्भुत आशावादिता का सरल एवं मार्मिक वर्णन है।
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प्रभात कुमार राय
( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार )
पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट, वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज, पटना 800014
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बहुत प्रेरणास्पद है|
काश,स्थितियों के प्रति इतनी स्वीकृति और सामंजस्य तथा ईश्वर के प्रति इतना विश्वास हमें भी होता!