– तनवीर जाफ़री –
देश के दर्जनों राष्ट्रीय व क्षेत्रीय किसान संगठनों द्वारा गठित ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ द्वारा संचालित किया जा रहा किसानों का धरना व आंदोलन शीघ्र ही अपने एक वर्ष पूरे करने जा रहा है। पिछले दिनों इस आंदोलन को एक बड़ी सफलता तब हाथ लगी जबकि दिल्ली के अनेक सीमाओं पर चलने वाला किसानों का यह धरना-आंदोलन दिल्ली की सीमाओं से आगे बढ़कर संसद भवन के द्वार पर स्थित राजधानी के सबसे प्रमुख धरना स्थल ‘जन्तर मंतर ‘ तक पहुँचने में कामयाब रहा। गत 22 जुलाई से किसान मोर्चा के प्रमुख नेता जन्तर मंतर पर ‘किसान संसद ‘ के नाम पर लगभग 200 किसान नेताओं के समूह साथ प्रतिदिन इकठ्ठा हो रहे हैं और भारतीय संसद के समानांतर ‘किसानों की संसद’ चलाकर नए कृषि क़ानूनों की कमियों इसकी ख़ामियों तथा किसानों को इस क़ानून से होने वाले नुक़सान पर चर्चा कर रहे हैं। उधर सभी विपक्षी दल भी संसद में किसान आंदोलन,मंहगाई व पेगासस जासूसी सहित अनेक ज्वलंत जन समस्याओं को लेकर सरकार को घेर रहे हैं। किसान आंदोलन को लेकर सबसे बड़ा गतिरोध इसी बात को लेकर चल रहा है कि सरकार बार बार किसानों से इन कृषि क़ानूनों में संशोधन संबंधी सुझाव मांग रही है और उन सुझाए गए संशोधनों पर विचार करने के लिए तैयार है जबकि किसान मोर्चा के सभी नेता इस नये कृषि क़ानूनों को रद्द किये जाने सिवा सरकार की किसी भी दूसरी शर्त या प्रस्ताव को मानने के लिये फ़िलहाल तैयार नहीं हैं।
परन्तु इन गतिरोधों से इतर सत्ता पक्ष की ओर से कुछ ऐसी बातें या बयान अथवा सरकारी प्रयास सामने आते रहते हैं जिनसे यह पता चलता है कि सत्ता के अनेक ज़िम्मेदार लोग या तो किसान आंदोलन को मान्यता ही नहीं देना चाहते या जानबूझकर किसी रणनीति के तहत इसे बदनाम करना चाहते हैं। सत्ता के अनेक ‘पियादों ‘ व ‘वज़ीरों’ द्वारा इन्हीं आंदोलन कारी किसानों को कभी ख़ालिस्तानी बताया गया ,कभी इन्हें ए के 47 धारी किसान बताया,कभी इनके आर्थिक स्रोतों पर सवाल खड़ा किया गया,यहां तक कि इसे विदेशी फ़ंडिंग से चलने वाला आंदोलन बताकर इस पूरे आंदोलन को ही एक अंर्तराष्ट्रीय साज़िश बताने की कोशिश की गयी। कभी इस आंदोलन के पीछे चीन व पाकिस्तान समर्थित तो कभी इसे आतंकियों का आंदोलन बता दिया गया। कभी किसानों पर विपक्षी दलों के हाथों खेलने का आरोप लगा तो कभी कहा गया कि आंदोलन के नाम पर किसान राजनीति कर रहे हैं। कभी इसे शाहीन बाग़ वालों का आंदोलन तो कभी सी ए ए व एन आर सी का विरोध करने वालों का आंदोलन बताया गया। इस तरह की बातें साधारण पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा नहीं बल्कि सांसद व मंत्री स्तर के नेताओं द्वारा बार बार कही गयीं। 26 जनवरी की लाल क़िले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद तो इस आंदोलन को आराजक तत्वों का आंदोलन तक बताया जाने लगा था। किसान आंदोलनकारियों को ‘आन्दोलन जीवी’ तक कहा गया। आन्दोलन जीवी शब्द तो स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा संसद में इस्तेमाल किया गया। और अब पिछले दिनों जब 22 जुलाई को जंतर मंतर पर किसानों द्वारा किसान संसद की शुरुआत की जा रही थी ठीक उसी समय नव नियुक्त विदेश राज्यमंत्री तथा भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने प्रेस वार्ता के दौरान कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों को किसान मानने से ही इनकार कर दिया। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि -‘आप उनको किसान कहना बंद कीजिए क्योंकि वो किसान नहीं हैं। किसानों के पास इतना समय नहीं है कि वो जंतर-मंतर पर धरना देकर बैठे। वो अपने खेतों में काम कर रहा है। ये सिर्फ़ साज़िशकर्ताओं द्वारा भड़काए हुए लोग हैं, जो किसानों के नाम पर ऐसी हरकतें कर रहे हैं। ये सिर्फ़ आढ़तियों द्वारा बैठाए हुए लोग हैं ताकि किसानों को कृषि क़ानून का फ़ायदा न मिल सके.” आप उन लोगों को किसान बोल रहे हैं वह किसान नहीं ‘मवाली’ हैं । हालांकि लेखी के इस बयान के बाद जब हंगामा छिड़ गया तो उन्होने एक और बयान जारी कर कहा कि “मेरे शब्दों को तोड़ा मरोड़ा गया है. लेकिन बावजूद इसके अगर इससे किसी को तकलीफ़ पहुंची है या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची है तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं.”।
इस तरह की तमाम बातें हैं जिससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि बावजूद इसके कि सरकार इन्हीं आंदोलनकारी से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर व अन्य प्रमुख मंत्रियों की मौजूदगी में 12 दौर की वार्ता कर चुकी है। और आज भी सरकार के मंत्रियों की ओर से कृषि क़ानून में संशोधन संबंधी सुझाव इन्हीं किसान नेताओं से मांगे जाते हैं। जंतर मन्तर पर 22 जुलाई से सीमित संख्या में अपना विरोध दर्ज करने की इजाज़त सरकार ने इन्हीं आंदोलनकारियों को दी है। किसानों से किसी संभावित टकराव को टालने के लिये उन्हें सीमित संख्या में सशर्त आने देना सरकार का एक समझदारी भरा क़दम है। परन्तु सत्ता के ज़िम्मेदारों द्वारा वक़्त वक़्त पर किसानों को अपमानित करने की जो कोशिशें की जाती हैं, और ऐसा करने वालों के विरुद्ध सरकार या पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई भी नहीं की जाती इसके आख़िर क्या मायने हैं ? जिस किसान मोर्चा से सरकार बार बार बातें करती रही और आज भी बातचीत की इच्छुक है उन्हीं किसानों के धरने पर भाजपा विधायक अपने समर्थकों की भीड़ के साथ हमला कर देता है। इसके क्या मायने हैं ? इस आंदोलन को विपक्ष के इशारे पर चलने वाला किसान आंदोलन बताने वाले सत्ताधारी, विपक्ष से आख़िर क्या उम्मीद रखते हैं। निःसंदेह विपक्ष किसानों के साथ खड़ा होकर अपने कर्तव्यों का ही निर्वाहन कर रहा है। आज के सत्ताधीशों को ख़ुद सोचना चाहिये कि जब वे विपक्ष में थे तो क्या किया करते थे ? उन्हें ‘अन्ना हज़ारे के कन्धों पर अपनी सवारी’ ज़रूर याद रखनी चाहिये।
लिहाज़ा चूंकि सरकार किसान संयुक्त मोर्चा से बार बार अधिकृत तौर पर वार्ता करती रही है और आगे भी बातचीत के दरवाज़े खोल रखे हैं तो उसे अपने सभी ‘वज़ीरों ‘ व ‘पियादों ‘ को साफ़ तौर पर यह सन्देश देना चाहिये कि ‘अन्नदाताओं ‘ व व उनके संगठनों का सम्मान करना सीखें। उनके साथ दोहरेपन का व्यवहार करना देश के अन्नदाताओं का अपमान है। और यदि यह आतंकी,ख़ालिस्तानी,मवाली,पाक-चीन प्रायोजित, विपक्ष के मोहरे,देश विरोधी आदि हैं तो इनसे बात करना भी सरकार का अपमान है। किसान आंदोलन का समाधान निकलने से पहले सरकार व किसान मोर्चे का एक दूसरे के प्रति सम्मान व विश्वास का होना बहुत ज़रूरी है। यदि एक दूसरे का एक दूसरे के प्रति सम्मान नहीं होगा तो आख़िर समाधान कैसे निकलेगा ?
About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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