दक्षिण एशियाई क्षेत्र के दो प्रमुख देश भारत व पाकिस्तान के मध्य समय-समय पर सामने आने वाले आपसी रिश्तों के उतार-चढ़ाव प्राय: पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं। 1947 में भारत के विभाजन के बाद अस्तित्व में आने वाले नवराष्ट्र पाकिस्तान ने अपने वजूद में आते ही कश्मीर को भारत से अलग करने की मंशा के साथ भारत से दुश्मनी मोल लेनी शुरु कर दी थी। पाकिस्तान शुरु से ही कश्मीर को भाारत से अलग करना चाह रहा है। परंतु इसे पाकिस्तान का दुर्भाग्य कहा जाए या भारत की कुशल व सक्षम राजनीति का परिणाम कि पाकिस्तान के लाख दुष्प्रयासों के बावजूद कश्मीर भारत से अभी तक अलग नहीं हो सका। जबकि पाकिस्तान अपने ही एक बड़े भूभाग को बंगला देश के रूप में गंवा बैठा। निश्चित रूप से 1971 में बंगला देश के अस्तित्व में आने के पीछे भारत का बहुत बड़ा योगदान है। परंतु इसे 1971 से पूर्व के पाकिस्तान हुकुमरानों की नाकामी ही कहा जाएगा कि वे बंगला देश की अवाम को पाकिस्तान के साथ एकजुट होकर रहने के लिए राज़ी नहीं कर सके। पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों के बंगला देशी नागरिकों अथवा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ बरते गए सौतेले व्यवहार ने उन्हें बंगला देश मुक्ति आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया। उस समय भी पाकिस्तानी सेना ने बंगला देश की धरती पर ज़ुल्म व आतंक का एक ऐतिहासिक अध्याय लिखा था जिसका मुंह तोड़ जवाब भारतीय सेना अथवा बंगला देश मुक्ति वाहिनी ने माकूल तरीके से दिया। नतीजतन पाकिस्तानी सेना को भारतीय सेना के समक्ष ऐतिहासिक आत्मसमर्पण करना पड़ा। निश्चित रूप से यह वह दौर भी था जबकि पाकिस्तान में बंगला देश के मोर्चे पर लडऩे के अतिरिक्त पूरे देश में लगभग शांति व स्थिरता का वातावरण था।
आज परिस्थितियां 1971 से बिल्कुल विभिन्न हैं। पाकिस्तान में चारों ओर असुरक्षा,दहशत,आतंकवाद व सांप्रदायिकता का वातावरण है। वज़ीरिस्तान के अधिकांश क्षेत्रों पर तालिबानों का नियंत्रण है तो लश्करे तैयबा जैसे आतंकी संगठन पंजाब सूबे में अपना मुख्यालय बनाकर अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। जमाअत-उद-दावा प्रमुख हािफज़ सईद कश्मीर की आज़ादी के नाम पर पूरे पाकिस्तान में घूम-घूम कर भारत विरोधी माहौल तैयार करने में लगा हुआ है। सूत्रों के अनुसार कई आतंकी संगठन आपस में एकजुट हो चुके हैं। और उनकी नज़र पाकिस्तान स्थित परमाणु हथियारों पर लगी हुई है। पाकिस्तान में अब छोटी-मोटी आतंकी घटनाएं तो घटित होते सुनी ही नहीं जाती। बजाए इसके या तो मस्जिदों,जुलूसों व भीड़-भाड़ वाले इलाकों में आत्मघाती हमले अंजाम दिएजाते हैं या फिर सीधे तौर पर सैन्य ठिकानों को ही निशाना बनाया जाता है। पेशावर में गत् वर्ष 16 दिसंबर को एक सैन्य स्कूल पर हुए आतंकी हमले ने तो पाकिस्तानी सेना को खुले तौर पर चुनौती दे डाली है। इतने संगीन व संवेदनशील दौर से गुज़र रहे पाकिस्तान को इन हालात में सिर्फ यह कोशिश करनी चाहिए कि वह अपनी पूरी शक्ति,सामथर््य व सलाहियत के साथ पाकिस्तान के भीतरी हालात को सामान्य करने कीे कोशिश करे। यही नहीं बल्कि उसे ऐसा करने के लिए अपने भारत जैसे पड़ोसी देश से यदि सहायता दरकार हो तो वह भी तलब करना चाहिए। परंतु पाकिस्तान के हुक्मरान खासतौर पर वहां की सेना व आईएसआई ऐसा करने के लिए बिल्कुल राज़ी नहीं। बजाए इसके वे अपनी नाकामियों व अक्षमता का ठीकरा समय-समय पर भारत के सिर फोड़ते रहते हैं।
उदाहरण के तौर पर ब्लूचिस्तान के लोग गतॅ कई दशकों से अथवा यह कहा जाए कि 1947 के फौरन बाद से ही स्वयं को पाकिस्तान से अलग किए जाने की मांग करते रहे हैं। धर्म के नाम पर 1947 में पाकिस्तान के चतुर राजनीतिज्ञों ने बंगला देश की ही तरह ब्लूचिस्तान को भी अपने साथ शामिल रहने के लिए राज़ी कर लिया था। भौगोलिक दृष्टि से अलग भूभाग होने के कारण पाकिस्तान, बंगला देश को तो लंबे समय तक अपने नियंत्रण में नहीं रख सका। परंतु ब्लूचिस्तान पर पाकिस्तान अभी भी ब्लूच नागरिकों की इच्छाओं के विपरीत नियंत्रण बनाए हुए है। और ब्लूचिस्तान में चल रही राजनैतिक उथल-पुथल तथा अलगाववादी आंदोलनों के लिए वह भारत को जि़म्मेदार ठहराता रहता है। यही नहीं बल्कि पाकिस्तान की अनेक आतंकवादी घटनाएं जिनमें पाकिस्तानी आतंकवादी ही शरीक पाए जाते रहे हैं उनके लिए भी पाकिस्तान ने समय-समय पर भारत को ही जि़म्मेदार ठहराया है। पाकिस्तान के पास इस तरह के कोई पुख्ता सुबूत नहीं हैं कि भारत का कोई संगठन अथवा यहां की कोई एजेंसी पाकिस्तान में आतंकवाद फैलाने का काम सक्रियता से अंजाम दे रही हो। जबकि भारत के पास ऐसे दर्जनों प्रमाण हैं जिसमें कि पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने भारत की संसद से लेकर दूसरे कई प्रमुख स्थानों,शहरों व धर्मस्थलों पर हमले किए हों। ऐसे सैकड़ों आतंकवादी भारत में सुरक्षाकर्मियों द्वारा मारे भी जा चुके हैं तथा गिरफ्तार भी किए गए हैं। संसद में मारे गए पाकिस्तानी आतंकियों की तो लाशें तक पाक शासकों ने स्वीकार नहीं कीं। मुंबई हमलों का गिरफ्तार किया गया अपराधी अजमल क़साब पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा भारत में आतंक फैलाए जाने का एक प्रमुख चेहरा था उसे भी पाक द्वारा पाकिस्तानी नागरिक मानने से इंकार करने की कोशिश की गई थी। इसी प्रकार कश्मीर में भी पाकिस्तान पूरी तरह से सक्रिय है। कश्मीर में आतंकियों की सीमा पार से घुसपैठ कराए जाने से लेकर कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन को हर प्रकार का नैतिक व अनैतिक समर्थन देने तक में पाकिस्तान की अहम व प्रमाणित भूमिका है। पाक अधिकृत कश्मीर से लेकर पाकिस्तान के और कई इलाकों में भारत में आतंक व अस्थिरता फैलाने के लिए आतंकी प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं।
उपरोक्त वातावरण के बीच कभी पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होते व साड़ी व शाल का ‘सौहाद्र्रपूर्ण’ आदान-प्रदान करते नज़र आते हैं। कभी सांस्कृतिक व साहित्यिक सहयोग बनाए जाने की खबरें दोनों देशों के मध्य सुनाई देती हैं। व्यापारिक रिश्ते भी मज़बूत करने की बातें होती रहती हैं। और सही मायने में दोनों देशों के आम नागरिक जोकि अपनी निष्पक्ष सेाच रखते हैं वे तो हर हाल में दोनों देशों के मध्य मधुर रिश्ते चाहते हैं। भारत-पाक नागरिकों में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो भारत-नेपाल की तरह भारत-पाक के मध्य वीज़ा व्यवस्था को भी समाप्त करने का पक्षधर है। गीत-संगीत व िफल्मी क्षेत्र में भी दोनों देश एक-दूसरे से खुले सहयोग के इच्छुक हैं। परंतु क्या बिना परस्पर विश्वास बहाली के यह बातें संभव हैं। शायद हरगिज़ नहीं। तारीख गवाह है कि चाहे भारत-पाक के मध्य समझौता एक्सप्रेस चलाकर या प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाहौर बस सेवा शुरु कर या फिर विदेश मंत्री अथवा विदेश सचिव स्तर की शिखर वार्ताएं कर संबंध सुधारने की जितनी भी कोशिशें क्यों न की गई हों परंतु पाकिस्तानी सेना व आईएस आई ने तथा इनके दबाव में पाक सरकार ने भी भारत को अपना विश्वसनीय पड़ोसी कभी भी स्वीकार नहीं किया। यहां तक कि पिछले दिनों एक बार फिर पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय में पाक सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ की अध्यक्षता में हुई कोर कमांडरों की बैठक में अपना रटा-रटाया आरोप पुन:दोहराया गया कि भारतीय खुिफया एजेंसी रॉ पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है।
यहां इस संदर्भ में 2011 में अमेरिकी सेना के तत्कालीन संयुक्त सैन्य प्रमुख माईक मुलेन की इस रिपोर्ट का हवाला देना ज़रूरी है जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन हक्क़्ानी नेटवर्क आईएसआई का असली साथी है। यानी पूरी दुनिया यह भलीभांति जानती है कि पाकिस्तान,भारत व अफगानिस्तान में अस्थिरता फैलाने के लिए किन संगठनों को प्रोत्साहित करता है व उन्हें पनाह देता है तथा किन संगठनों को स्वयं के लिए खतरा महसूस करते हुए उनके विरुद्ध कार्रवाई का स्वांग रचता है। लिहाज़ा पाकिस्तान को अपनी स्वतंत्रता से लेकर अब तक के पूरे राजनैतिक हालात की समीक्षा कर यथाशीघ्र इस निर्णय पर पहुंच जाना चहिाए कि वहां के हुक्मरानों की बदनीयती व उनकी गलत नीतियों ने ही पाकिस्तान को कमज़ोर,रुसवा व बदनाम कर दिया है। भविष्य में भी यदि वे भारत के साथ पूरे विश्वास के साथ संबंध बहाल नहीं करते तो इसके बिना इन दोनों देशों के मध्य शांति की संभावना कतई नज़र नहीं आती।
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Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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