अधर में लटकेगी ‘नमामि गंगे’ योजना ?

– तनवीर जाफरी –

 Nmami Gange,story on Nmami Gange project,Nmami Gange story,Nmami Gangeहमारे देश में प्रवाहित हो रही सैकड़ों बड़ी-छोटी नदियों में गंगा नदी के  महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के लोग इसे गंगा मैया व मां गंगा कहकर संबोधित करते हैं। देश का बहुसंख्य हिंदू समाज देश के अनेक प्रमुख स्थानों पर गंगा जी की आरती करता है। वैसे भी गंगा जी के अवतरण का पौराणिक महत्व होने के नाते हिंदू धर्म के लोग इसे अपनी सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण नदी के रूप में मानते हैं तथा इसका आदर व सम्मान करते हैं। गंगा जी को लोगों का पाप धोने वाली,मृतकों को बैकुंठ धाम पहुंचाने वाली तथा इसके पवित्र जल को अमृत के समान लाभप्रद व उपयोगी भी माना जाता है। परंतु यह कहना भी गलत नहीं होगा कि गंगा जी के प्रति इसी गहन आस्था तथा विश्वास की परिस्थितियों ने आज इस विशाल जीवनदायनी नदी को अन्य नदियों की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषित कर दिया है। भले ही कुछ अत्याधिक धार्मिक आस्था रखने वाले लोग यह क्यों न कहते रहें कि गंगा जल अभी भी वैसा ही पवित्र,स्वच्छ तथा लाभदायक है जैसा सदियों पहले कभी हुआ करत था। परंतु पर्यारवरणविदों तथा वैज्ञानिकों द्वारा गंगा जल की समय-समय पर की जाने वाली जांच से यह स्पष्ट हो चुका है कि गंगा जल अब उपयोगी या स्वच्छ होना तो दूर यह पूरी तरह प्रदूषित व अनउपयोगी हो चुका है। टेलीवीज़न पर इस विषय पर होने वाली बहस में बाबा रामदेव जैसे कई अन्य वरिष्ठ साधू-संत सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि गंगा जल आचमन करने योग्य भी नहीं रहा। बाबा रामदेव जैसे संत गंगा जल के आचमन से भी परहेज़ करते हैं।


दूसरी ओर गंगा जी के प्रति अपनी गहन आस्था व विश्वास रखने वाले वह लोग जो गंगा जल की वर्तमान वास्तविक स्थिति से अपनी आंखें मूंदे रखना चाहते हैं वे इस बारे में सोचना,सुनना व समझना ही नहीं चाहते कि गंगा जी प्रदूषित भी हो रही हैं और लोगों को मुक्ति प्रदान करने वाली यही नदी अब अपने भक्तों के अथाह प्यार से इस कद्र प्रदूषित हो चुकी है कि वह अब स्वयं मुक्ति तलाश रही है। आंकड़ों के अनुसार गंगा जी के अवतरण के मुख्य स्त्रोत गौमुख से लेकर इसके अंतिम छोर यानी गंगा सागर तक 1649गाांव बसे हुए हैं। 11 राज्यों से होकर गुज़रने वाली इस पवित्र नदी के किनारे इन राज्यों की लगभग 43 प्रतिशत जनसंख्या इसी नदी के जल पर आश्रित है। गंगा के किनारे बसे लोग न केवल इसी जल को पीने के काम में लाते हैं बल्कि यही नदी अपने किनारे बसे खेतों की सिंचाई का भी साधन बनती है। देश के बड़े से बड़े धार्मिक मेले भी इसी गंगा तट के किनारे समय-समय पर लगते रहते हैं। यहां तक कि कुंभ और महाकुंभ जैसा देश का सबसे बड़ा  धार्मिक समागम हरिद्वार व इलाहाबाद में गंगा जी के किनारे आयोजित होता है। यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि गंगा जी के किनारे भक्तों की भाारी भीड़ द्वारा फैलाई गई गंदगी और कहीं नहीं बल्कि गंगा नदी में ही समाती है। जिन -जिन राज्यों से होकर यह नदी गुज़रती है नदी के किनारे बसे सभी शहरों की पूरी गंदगी नाले,सीवर पाईप,औद्योगिक कचरा आदि सबकुछ गंगा जी में ही प्रवाहित होता है।

इसमें कोई शक नहीं कि कालांतर में नगर बसाने वाले हमारे प्राचीन योजनाकारों द्वारा प्राय: नदियों के किनारे ही शहर इसीलिए बसाए जाते थे क्योंकि पानी प्रत्येक प्राणी की सबसे बड़ी ज़रूरत है और नदियों के किनारे नगर बसाने का अर्थ केवल यही होता था कि नगरवासियों को सुगमता से पानी उपलब्ध हो सके। यह भी सच है कि सदियों पहले तक इन नदियों में इतनी क्षमता भी थी कि वे अपने किनारे बसे लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के साथ-साथ उन्हीें का छोड़ा गया गंदा जल अपने साथ ले जाकर समुद्र में समाहित कर दें। परंतु आज के दौर की तुलना उस दौर या उस समय की वास्तविकताओं से कतई नहीं की जा सकती। आज हमारे देश की जनसंख्या इस कद्र बढ़ चुकी है कि यही नदियां अब बढ़ती जनसंख्या का दबाव सहन कर पाने की सिथति में नहीं हैेंं। दूसरी ओर प्रगति,विकास तथा आधुनिकीकरण के नाम पर जिस कद्र औद्योगिकरण बढ़ा है, नए-नए डैम व बांध बनाए गए हैं व बनाए जा रहे हैं इनके चलते भी नदियों में बेतहाशा प्रदूषण बढ़ा है। रही-सही कसर उन धार्मिक मान्यताओं ने पूरी कर दी है जिनका गंगा जैसी पवित्र नदी को ज़हरीली बनाने में अपना अहम योगदान रहता आ रहा है। मिसाल के तौर पर यह मान्यता है कि दशमेश घाट वाराणसी में गंगा जी में प्रवाहित होने वाली किसी मृतक की लाश सीधे बैकुंठ धाम जाती है। एक इसी मान्यता की वजह से वाराणसी के आसपास के सौ से लेकर डेढ़-दो सौ किलोमीटर दूरी तक के लेाग अपने मृतक परिजन का शव लेकर वाराणसी में दशमेश घाट के किनारे पहुंचते हैं। वहां जीप के ऊपर रखी दर्जनों लाशें कतार में लगी रहती हैं। इन्हें विशेष नावों में लटका कर दशमेश घाट से काफी दूरी पर आगे ले जाकर नदी में उनके परिजनों द्वारा गंगा जी में प्रवाहित कर दिया जाता है। अब यह बताने की ज़रूरत नहीं कि उन लाशों के सडऩे की वजह से गंगा जल में प्रदूषण का स्तर कितना बढ़ता होगा। परंतु इस प्रकार की धार्मिक मान्यता को चुनौती देने का साहस भी आिखर कौन कर सकता है?

इसी प्रकार गणेश प्रतिमा विसर्जन और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के अवसर पर गंगा जी सहित देश की तमाम नदियां,समुद्र के किनारे व झील व तालाब आदि अपने भक्तों के अथाह ‘प्रेम’ का शिकार बनते हें। दशकों से चली आ रही इस परंपरा को समाप्त करना तो दूर इसे चुनौती देना भी आसान काम नहीं है। पिछले दिनों उच्च न्यायालय के आदेश पर वाराणसी में गणेश प्रतिमा के विसर्जन को पुलिस द्वारा रोके जाने पर वाराणसी के ही साधू-संतों ने ऐसा आक्रामक विरोध जताया कि पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पउ़ा। इसके बाद गणेश प्रतिमा के गंगा जी में विसर्जन के पक्षधर साधु-संतों द्वारा एक प्रतिकार रैली निकाली गई जिसमें बड़ी संख्या में  साधू-संत व उनके अनुयायी सडक़ों पर उतर आए और इतना हिंसक प्रदर्शन किया कि कई वाहनों में आग लगा दी। कई पुलिसकर्मी घायल हुए तथा कई थाना क्षेत्रों में कफर््यू तक लगाना पड़ा। बड़े आश्चर्य का विषय है कि साधु संतों द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाए जाने की कोशिशों के विरोध में यह सब किया गया। जबकि होना तो यह चाहिए था कि गंगा जी के सफाई अभियान में सरकार से भी अधिक सक्रियता साधू समाज के लोगों को ही दिखानी चाहिए थी। ज़रा धरातल पर आकर ठंडे दिमाग़ से यह सोच कर देखिए कि हम अपनी धार्मिक आस्था के तहत जिस किसी देवी-देवता या अपने किसी आराध्य की आरती करते हैं उसे पवित्र होना चाहिए अथवा नहीं? निश्चित रूप से जीवनदायनी,मोक्षदायनी तथा पूज्य गंगा नदी हम भारतवासियों की गहन आस्था का केंद्र है। यही वजह है कि हम इसकी आरती भी करते हैं। परंतु यह कितने दु:ख का विषय है कि जिस गंगा जी की हम आरती उतारते हैं उसे पवित्र समझते हैं उसी नदी में हम अपने घर का कूड़ा-कचरा,अपने परिवार के मृतकों के शव व उनकी अस्थियां यहां तक कि दुर्गा व गणेश की फाईबर,प्लास्टिक तथा दूसरे प्रदूषण फैलाने वाली सामग्री से तैयार की गई मूर्तियां प्रवाहित करने से बाज़ नहीं आते। न ही इस विषय पर स्वयं कुछ विचार करने की कोशिश करते हैं और न ही सरकार व अदालत द्वारा गंगा जी की सफाई के विषय में चलाई जा रही योजनाओं तथा इस संबंध में दिए जा रहे निर्देशों की पालना करते हैं।

केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे योजना के नाम से गंगा जी को स्वच्छ व प्रदूषणमुक्त करने हेतु चलाई गई योजना कोई पहली या नई योजना नहीं है। पंडित कमलापति त्रिपाठी के समय में कांग्रेस सरकार ने गंगा प्राधिकरण की स्थापना इसी उद्देश्य से की थी कि गंगा नदी को स्वच्छ व प्रदूषणमुक्त बनाया जा सके। परंतु केवल इस पावन उद्देश्य हेतु सैकड़ों करोड़ का बजट आबंटित कर देने से या इस संबंध में मंत्रियों,सरकारी अधिकारियों द्वारा दिखाई जाने वाली लोक लुभावनी भागदौड़ से या मात्र इस संबंध में दी जाने वाली अखबारी बयानबाजि़यों अथवा विज्ञापन आदि से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं। स्वयं प्रधानमंत्री तथा वाराणसी से ही सांसद नरेंद्र मोदी ने भी जिस समय प्रधानमंत्री बनने के बाद  वाराणसी में जाकर गंगा आरती में शिरकत की थी उसके बाद गंगा नदी के किनारे फैला सैकड़ों क्विंटल कचरा गंगा जी में ही फेंका गया था। पिछले दिनों गणेश प्रतिमा विसर्जन को रोके जाने के विरोध में बड़ी संख्या में वाराणसी के साधु-संतो द्वारा एकत्रित होकर गणेश प्रतिमा विसर्जन गंगा जी में ही किए जाने हेतु अपनी जि़द पर अड़े रहना निश्चित रूप से इस बात के संकेत देता है कि धार्मिक आस्था और विश्वास तथा प्राचीन मान्यताओं के चलते सरकार द्वारा शुरु की गई नमामि गंगे योजना कहीं एक बार फिर अधर में तो नहीं लटक जाएगी?

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Tanveer-Jafri,About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628
1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana

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