ग़ज़ल
1-जुल्फे
सलाम ए इश्क दे गयीं जुल्फे ।
महफ़िलों में सवर गयीं जुल्फे ।।
बड़ी सहमी हुई अदाओं में ।
तिश्नगी फिर बढ़ा गयीं जुल्फें ।।
खत्म थे हौसले जज्बातों के ।
कुछ उम्मीदें जगा गयीं जुल्फे ।।
उसे कमसिन न कहो तुम यारों ।
आज लहरा के वो गयी जुल्फे ।।
चाँद पर चार चाँद है लगता
गाल पे जब भी छा गयी जुल्फें ।।
जख्म इक उम्र से भरा ही नहीं ।
तीर दिल पर चला गयीं जुल्फें ।।
मेरी उल्फत की तू बनी शोला ।
घर मेरा फिर जला गयीं जुल्फें ।।
उम्र गुजरी है किन तजुर्बों से ।
आइना कुछ दिखा गयीं जुल्फें ।।
बहुत उलझी हुई बिखरी बिखरी ।
रात का सच बता गयीं जुल्फें ।।
2- चाँद यूँ ही मचलता रहा
चाँद यूँ ही मचलता रहा।
रंग ए चेहरा बदलता रहा ।।
जुर्म है इस शहर में अमन ।
ये भी मुद्दा उछलता रहा ।।
जब लगी आसना पर नज़र ।
वो जहर को उगलता रहा ।।
कह न दे कुछ जमाना उसे।
होश खोकर सम्भलता रहा ।।
दिल्लगी इश्क से क्या हुई।
हसरतों को मसलता रहा ।।
खत गिराकर गयी राह में।
जब भी घर से निकलता रहा।।
3- अब मुहब्बत का नहीं नाता
उम्र के दायरे से अब मुहब्बत का नहीं नाता।
जहाँ जेबों में गर्मी हो इश्क बिकने वहीँ जाता ।।
जमाने का यहाँ बिगड़ा हुआ दस्तूर है या रब ।
सेठ बाजार की कीमत बढ़ाने है वहीँ आता।।
कब्र में पाँव हैं जिनके वो दौलत के फरिस्ते हैं ।
मिजाजे आशिकी के फख्र का मंजर नहीं जाता ।।
सियासत दां कोई तालीम अब मत दे ज़माने को ।
जिन्हें अपने मुकद्दर में शरम लिखना नहीं आता ।।
तेरी बिकने की फितरत थी बिकी है हसरते तेरी।
मुहब्बत नाम से जारी तेरा फतबा नहीं भाता।।
यहां कानून के रंग में हूर की कीमते खासी ।
इश्क का दर्ज क्या खर्चा जरा देखो बही खाता ।।बेकरारी भी क्या चीज है ।
रातभर बस टहलता रहा ।।
गर्म लब पे तस्सवुर तेरा ।
बे वजह ही पिघलता रहा ।।
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नवीन मणि त्रिपाठी
साहित्यकार , ग़ज़ल व् गीतकार
आर्डिनेंस फैक्ट्री कानपूर में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर कानपुर
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