जंगल में जगह-जगह लगी भट्टियों में बनती शराब की गंध से ग्रीष्म ऋतु की संध्या मदिर हो उठी है। वर्ष के अन्य महीनों में साधारणतया मत्स्यगंधा बनी रहनेवाली समंदर की नमकीन हवा काजू की मादक सुगंध से मातल हुई फिर रही है। नारियल के पेड़ से उतर कर एंथनी ने साँझ की ताज़ी हवा में लंबी सांस खीची थी। कच्चे नारियल उतारने के लिए वह यहाँ आया था। गर्मी में नारियल-पानी ठंडकपहुंचाता है। उसने सर उठाकर पेड़ पर ऊंचाई पर बंधी हड़िया को देखा था। कल सुबह आकर ताड़ी उतार ले जाएगा। अंधेरा छाने से पहले उसे भट्टी पहुंचाना है। वहाँ काम बहुत है। मारिया अकेली पैरों से कुचल कर कांजू के फलों का रस निकाल रही होगी।
उसने जल्दी-जल्दी चलते हुये अपनी दाहिनी ओर देखा था– नीले समंदर के किनारे जैसे आग लग गई है – लाल, पीले, सिंदूरी फलों से काजू के जंगल दहक उठे हैं। ढलती सांझ की रक्तिम आभा से सागर पिघले सोने की तरह दिगंत तक लहरा रहा है। इसी बीचक्षैतिज पर वासंती चाँद का छोटा सा टुकड़ा उग आया है। उसी के हल्के उजास में साहिल पर नावों की लंबी, स्याह कतारें दिखने लगी हैं। रुपहली मछलियों के छोटे-बड़े टीलों के पास मछेरों की गहमागहमी है। एक अनाम खुशी से भरा हुआ वह गुनगुनाता हुआ अपने गाँव पहुँच गया। सामने के गिरजे में सांध्य प्रार्थना के लिए घंटियाँ बजनी शुरू हो गई थीं। घरों के आगे तुलसी चौरा पर दीये जल उठे थे।
सावियोसामने से आता दिखा तो उसने रोकना चाहा। मगर वह जल्दी में था। पादरी को बुलाये जा रहा था।पेदरो की हालत गंभीर थी। वह कभी भी मर सकता था। दोपहर से उसे खून की उल्टियाँ हो रही थीं। सुनकर एंथनी उदास हो गया। पेदरो उसके बचपन का साथी था। दोनों साथ-साथ मछलियाँ पकड़ते थे,समंदर में नहाते थे तथा रातों को काजू के जंगलों की रखवाली किया करते थे। वह पेदरो के छोटे बेटे का गॉड फादर भी था। दुबई से बहुत पैसा कमा कर लौटने के बाद उसे कई सालों से शराब पीने की बुरी लत लग गई थी। इधर कई महीनों से वह बीमार चल रहा था।
सोचते हुये वह न जाने कब पदेरो के घर के सामने आ खड़ा हुआ। वहाँ सभी रो रहे थे। पदेरो का जीर्ण-शीर्ण शरीर बिस्तर से मिला पड़ा हुआ था। उसके मुंह-नाक से खून बह-बह कर अब काला पड़ने लगाथा। अत्यधिक शराब से उसका कलेजा नष्ट होकर आज फट गया था। बिना किसी से मिले एंथनी चुपचाप अपनी भट्टी में लौट आया। उसकी विचित्र दशा देखकर उसकी पत्नी मारिया चौक उठीं। जैसे वह स्वप्न में चल रहा हो। उसे किसी बात का होश न हो। मारिया के किसी प्रश्न का उत्तर न देकर उसने अचानक एक लाठी उठाकर शराब की मटकियों को तोड़ना शुरू कर दिया। सड़ते फलों की दुर्गंध चारों तरफ फैल गई। ज़मीन पर शराब की नदी-सी बहने लगी। इतना बड़ा नुकसान होता देख मारिया चीख-चीख कर रो पड़ी। आखिर इस पर उन्होंने कितनी मेहनत की थी। सारे मटकों को तोड़ कर एंथनी ने लाठी फेंक दी।
“पदेरो ने अपनी आखिरी बोतल कल शाम यहीं से खरीदी थी… इस शराब से महंगी उसकी जान थी मारिया! अब और पाप नहीं कमाएंगे…” वह मुड़कर पदेरो के घर की तरफ चल पड़ा– वहाँ बहुत काम पड़ा है। अब उसका चेहरा शांत था।
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जयश्री रॉय
शिक्षा : एम. ए. हिन्दी (गोल्ड मेडलिस्ट), गोवाविश्वविद्यालय
प्रकाशन : अनकही, …तुम्हें छू लूं जरा, खारा पानी (कहानी संग्रह), औरत जो नदी है, साथ चलते हुये,इक़बाल (उपन्यास) तुम्हारे लिये (कविता संग्रह)
प्रसारण : आकाशवाणी से रचनाओं का नियमित प्रसारण
सम्मान : युवा कथा सम्मान (सोनभद्र), 2012
संप्रति : कुछ वर्षों तक अध्यापन के बाद स्वतंत्र लेखन
संपर्क : तीन माड, मायना, शिवोली, गोवा – 403 517 – ई-मेल : jaishreeroy@ymail.com