जयश्री रॉय की लघु कथा : राष्ट्रीय स्वाभिमान
– राष्ट्रीय स्वाभिमान –
सुबह-सुबह चाय की चुस्कियां लेते हुये मैं अख़बार पढ़ रहा था. आज मैं बहुत खुश था. इस बार कॉमन वेल्थ गेम में भारत ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था. अखबार में यही समाचार सुर्खियों में था. एक भारतीय होने के नाते मुझे इसबात पर गर्व का अनुभव करना स्वाभाविक था. अभी मैं अख़बार पढ़ ही रहा था कि अचानक वह भिखारी गेट पर आ खड़ा हुआ था. आठ-दस वर्ष का वह एक खूबसूरत बच्चा था. अपने छोटे भाई के साथ गीत गाते हुये भीख मांगा करता था. मगर आज वह
अकेला ही आया था.बहुत दिनों बाद दिखा था इसलिये मैंने उसे पास बुला कर पूछा था वह इतनेदिनों तक कहां था और उसका छोटा भाई आज क्यों नहीं आया उसके साथ. जवाब में उसने बताया था कि कॉमन वेल्थ गेम्स के लिये शहर की सड़कों से आवारा कुत्तों के साथ उन जैसे भिखारियों को भी उठवा कर बंद कर दिया गया था. वहीं उसका छोटा भाई बीमार हो कर मर गया था. उससे सांस नहीं ली जाती थी. उसे भी आज ही वहां से रिहाई मिली थी. मैंने गौर किया था वह पहले से भी ज़्यादा कमज़ोर और बदहाल हो गया था. खड़े रहने में भी जैसे उसे तकलीफ होरही थी.
सुन कर अनायास मेरे हाथों से छूट कर अख़बार गिर गया था. थोड़ी देर पहले मेरा मन राष्ट्रीय अभिमान से भरा हुआ था और अब उस छोटे-से बच्चे के सामने मैं शर्म से सर झुकाये बैठा था
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परिचय :-
जयश्री रॉय
शिक्षा : एम. ए. हिन्दी (गोल्ड मेडलिस्ट), गोवाविश्वविद्यालय
प्रकाशन : अनकही, …तुम्हें छू लूं जरा, खारा पानी (कहानी संग्रह), औरत जो नदी है, साथ चलते हुये,इक़बाल (उपन्यास) तुम्हारे लिये (कविता संग्रह)
प्रसारण : आकाशवाणी से रचनाओं का नियमित प्रसारण
सम्मान : युवा कथा सम्मान (सोनभद्र), 2012
संप्रति : कुछ वर्षों तक अध्यापन के बाद स्वतंत्र लेखन
संपर्क : तीन माड, मायना, शिवोली, गोवा – 403 517 – मोबाइल : 09822581137, ई-मेल : jaishreeroy@ymail.com