कांग्रेस से विपक्षी दलों का भयभीत होना

 – तनवीर जाफ़री – 

 
2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर ज़ोरदार प्रहार करना शुरू कर दिया था। नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के सभी सहयोगी संगठन जनता से देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ कराने का आह्वान करने लगे थे। हालाँकि ‘विपक्षहीन लोकतंत्र’ की मनोकामना ज़ाहिर करने वाला इसतरह का आह्वान पूर्णतयः अलोकतान्त्रिक था। इसी के साथ यह  भी बताया जा रहा था कि कांग्रेस ने अपने 6-7 दशक के शासनकाल में देश को सिवाये बर्बादी के और कुछ नहीं दिया। जिस पंडित जवाहरलाल नेहरू की उदारवादी व दूरदर्शी नीतियों की पूरी दुनिया क़ायल रही है वही नेहरू इन स्वयंभू राष्ट्रवादियों को भारत के लिये सबसे घातक नज़र आते हैं। कभी राहुल गाँधी को पप्पू बताकर तो कभी सोनिया गाँधी को विदेशी मूल की महिला बताकर कांग्रेस के सबसे प्रमुख परिवार पर हमलावर होने की कोशिश की जाती रही है। हद तो यह है कि कांग्रेस की फ़ज़ीहत करने का बीड़ा उठाने वाली इसी विचारधारा से संबंधित ‘अफ़वाहबाज़ों के गिरोह ‘ ने फ़िरोज़ गांधी और पंडित नेहरू को मुसलमान साबित करने में भी अपनी तरफ़ से कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। 6 दिसंबर 1992 तथा गुजरात दंगों के यही ज़िम्मेदार कांग्रेस को घेरने के लिये हमेशा 1975 का आपातकाल और 1984 के सिख विरोधी दंगे याद दिलाते रहते हैं।
                                                                              परन्तु पिछले दिनों जिस प्रकार कांग्रेस की लोकप्रियता में उछाल आया और कांग्रेस के सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हुई उसे देखकर केवल भाजपा ही नहीं बल्कि अधिकांश क्षेत्रीय दल भी चिंतित नज़र आने लगे हैं। बात दरअसल यह है कि कांग्रेस हो या भाजपा इन दोनों ही राष्ट्रीय राजनैतिक दलों से सभी क्षेत्रीय दल सचेत रहने की कोशिश करते हैं। इन्हें इस बात का भय रहता है कि राष्ट्रीय दल से गठबंधन करने से कहीं उनके अपने दल का अस्तित्व ही संकट में न पड़ जाये। क्योंकि कांग्रेस हो या भाजपा यह दोनों ही राष्ट्रीय राजनैतिक दल यदि किसी क्षेत्रीय पार्टी से विधानसभा चुनाव पूर्व राज्य की सीटों का बंटवारा करते हैं तो वह सीटें भी अधिक मांगते हैं। और यह समझते हैं कि किसी क्षेत्रीय दल द्वारा बड़ी पार्टी को अधिक सीटें देने का मतलब अपने दल के अस्तित्व पर संकट मंडराना।
                                                                            परन्तु वर्तमान राजनैतिक सन्दर्भ में जबकि अधिकांश विपक्षी दल भाजपा की नीतियों तथा उसके गुप्त व अघोषित एजेंडे से त्रस्त व प्रभावित होकर ग़ैर भाजपा गठबंधन तो ज़रूर बनाना चाहते हैं परन्तु साथ साथ वे कांग्रेस से भी दूरी बनाए रखना चाहते हैं। इसके पीछे भी इन क्षेत्रीय दलों की वही शंका काम करती है कि कहीं उनके कार्यकर्त्ता व वोट कांग्रेस की ओर न खिसक जायें। ऐसे में सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के बिना भाजपा के विरुद्ध कोई विपक्षी मोर्चा  बना पाना और मज़बूती से राष्ट्रीय स्तर पर उसका भाजपा से मुक़ाबला कर पाना संभव है ? अब यहाँ वैचारिक प्रतिबद्धताओं का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है। जो भी विपक्षी पार्टियां आज कांग्रेस रहित विपक्षी गठबंधन की बात कर रही हैं उनमें कोई भी ऐसा दल नहीं जिसने कभी केंद्र में या कभी किसी राज्य में भाजपा के साथ मिलकर सरकार न बनाई हो। इसका दूसरा अर्थ यह है कि यह  सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष क्षेत्रीय दल भाजपा को मज़बूती देनेऔर इसे वर्तमान स्थिति तक लाने में भी सहायक रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस देश की अकेली ऐसी पार्टी है जिसने कभी भी सरकार बनाने के लिये भाजपा के साथ समझौता नहीं किया। और कांग्रेस को जो नुक़्सान उठाना पड़ा है और आज भी उठाना पड़ रहा उसका कारण पार्टी का गाँधी-नेहरू-पटेल-आज़ाद की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का अनुसरण करना ही है।
                                                                          इसी सन्दर्भ में एक दूसरी हक़ीक़त को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जिन जिन राज्यों में क्षत्रीय दलों का वर्चस्व है उन राज्यों में भाजपा को सत्ता में आने के लिये नाकों चने चबाने पड़ते हैं। परन्तु जहाँ जहाँ भाजपा का सीधा मुक़ाबला कांग्रेस से रहता है प्रायः उन राज्यों में भाजपा सत्तासीन हो ही जाती है। वैसे भी मध्य प्रदेश,गोवा व मणिपुर जैसे खेल खेलने में माहिर भाजपा को कांग्रेस में घुसपैठ करने में ज़्यादा परेशानी नहीं होती। क्योंकि इनके हाथों में धर्मनिरपेक्षता की ध्वजा नहीं बल्कि ‘धर्म ध्वजा ‘ होती है। साम दाम दण्ड भेद हर तरीक़े से यह कांग्रेस को कमज़ोर करते रहे हैं। परन्तु ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना जैसी अनेक पार्टियों पर इनकी चालें नहीं चल पातीं। और यदि तृणमूल कांग्रेस के कुछ लोग भाजपा में गये भी तो तृणमूल कांग्रेस में वापस आने पर उन्हें अपने सर मुंडाने पड़े,अपना शुद्धिकरण करना पड़ा और पश्चात्ताप करने के बाद उन्हें पार्टी में वापस लिया गया। वजह साफ़ है कि बंगाल फ़तेह के बाद ममता बनर्जी स्वयं को विपक्षी दलों की सबसे बड़ी नेता महसूस करने लगी हैं।
                                                                     ऐसे में सवाल यह है कि देश की, देश के लोकतंत्र व संविधान की तथा अनेकता में एकता की विश्वव्यापी पहचान रखने वाले भारतवर्ष की वर्तमान समय में सबसे बड़ी ज़रुरत क्या है ? कांग्रेस के विस्तार से भयभीत होकर धर्मनिरपेक्ष मतों का विभाजन कर भाजपा को ही मज़बूती पहुँचाना ? और वह भी अपने दल के अस्तित्व को बचाये रखने की ख़ातिर ? अरुण शौरी ने कोलकता में विपक्षी नेताओं की एक सभा में ठीक ही कहा था कि जब लोकतंत्र बचेगा तभी तो पार्टियां बचेंगी ,जब लोकतंत्र ही ख़त्म हो जायगा तो पार्टियां लेकर क्या करेंगे ? कांग्रेस के कमज़ोर होने के बावजूद शरद पवार,प्रशांत किशोर जैसे कई लोग कह चुके हैं कि विपक्ष में कांग्रेस की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। निश्चित रूप से इसकी यही वजह है कि कांग्रेस ने हमेशा कट्टरपंथी दक्षिण पंथी विचारों का न केवल विरोध किया  है बल्कि कभी भी ऐसे दलों को समझौते योग्य नहीं समझा। यहाँ तक कि इसी रास्ते पर चलते हुए कांग्रेस को अपने कई नेताओं की क़ुर्बानी भी देनी पड़ी है। इसलिये कांग्रेस से विपक्षी दलों के भयभीत होने से ज़्यादा ज़रूरी यह है कि लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के लिये कांग्रेस के नेतृत्व में एक समान वैचारिक प्लेटफोर्म बनाएं। जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है वहां कांग्रेस क़ुर्बानी दे और क्षेत्रीय दलों को समर्थन दे। और जहाँ जहाँ कांग्रेस सीधे मुक़ाबले में है वहां सभी विपक्षी दलों के नेता एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने जायें।  
 
 

About the Author 

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social  activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –

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