आई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली,
अखिल भारतीय अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी मंच द्वारा हिन्दू महासभा भवन में एक पत्रकार वार्ता आयोजित की गयी। जिसे मंच के संरक्षक श्री जय भगवान गोयल, अध्यक्ष श्री चन्द्र प्रकाश कौशिक और महामंत्री श्री मुकेश जैन ने संयुक्त रूप से सम्बोधित करते हुए पत्रकारों को बताया कि आजादी के 67 साल पूरे होने के बाद भी हमारा सर्वोच्च न्यायालय अंग्रेजी की गुलामी में जकडा हुआ है, इससे शर्मनाक कुछ हो ही नही सकता। जो सर्वोच्च न्यायालय अपनी राजभाषा हिन्दी के साथ खुले आम सरासर अन्याय कर रहा है, उससे देश न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है ?
पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए मंच के संरक्षक श्री जय भगवान गोयल ने कहा कि भारतीय संविधान धर्म, मूल वंश, जाति और भाषा के आधार पर नियुक्तियों में भेद भाव की मनाही करता है। उसके बाद भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति में हिन्दी और भारतीय भाषायी वकीलों के साथ भाषायी आधार पर भेदभाव किया जा रहा है,और केवल अंग्रेजी दां वकीलों की एक तरफा भरती करके भारतीय संविधान के मूलाधिकारों की धज्जिया उडाने में शान समझी जा रही है।
पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए मंच के महामंत्री श्री मुकेश जैन ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि वादी और प्रतिवादी की समझ से बाहर की विदेशी भाषा अंग्रेजी को सर्वोच्च न्यायालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये। हाल ही में तिहाड कारागाह के एक अधीक्षक ने भी कैदियों को सही न्याय दिलाने में अंग्रेजी को बाधा बताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की भाषा हिन्दी करने की सरकार से अपील की थी। श्री जैन कहा कि अब वक्त आ गया है कि सर्वोच्च न्यायालय को भी योजना आयोग की तरह भंग करके इसका पूरा कायाकल्प किया जाये। इसी के साथ अंग्रेजों की गुलामी में जीने में शान समझ रहे इसके न्यायधीशों को भी बाहर का रास्ता दिखाया जाये। श्री जैन ने गर्मी के दिनों में भी काला कोट पहनने के अंग्रेजी जुल्मों सितम से आजाद हिन्दुस्तान के वकीलों को राहत दिलाने का भी मोदी सरकार से अनुरोध किया।
पत्रकार सम्मेलन में खासतौर पर बुलाये सर्वोच्च न्यायालय के वकील श्री शिव सागर तिवारी को मंच के अध्यक्ष श्री चन्द्र प्रकाश कौशिक ने माल्यार्पण करके सम्मानित किया और सरकार से अनुरोध किया कि सरकार श्री तिवारी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही हिन्दी में करने सम्बन्धी याचिका का सर्वोच्च न्यायालय में समर्थन करके अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें।