– तनवीर जाफरी –
अनेकता में एकता तथा अहिंसा परमोधर्म: जैसी विशेषताओं के लिए विश्व में अपना सम्मानजनक स्थान रखने वाला हमारा देश भारतवर्ष इन दिनों वैचारिक संकट से जूझ रहा है। देश में पहली बार दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आ चुकी है। भाजपा के लगभग डेढ़ वर्ष के शासनकाल में देश के सांप्रदायिक सद्भाव को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अनेकता में एकता स्थापित करने के बजाए धर्म आधारित ध्रुवीकरण के प्रयास हो रहे हैं। अहिंसा परमोधर्म: के बजाए देश में जानबूझ कर सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं। अफवाहें फैलाकर भीड़ को उकसाने में महारत रखने वाले लोग पूरे देश में सक्रियता से अपने इस नापाक मिशन में जुट चुके हैं। कहीं अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों पर हमले हो रहे हैं तो कहीं अकारण अथवा छोटी सी बात का बतंगड़ बनाकर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। उनके घर उजाड़े जा रहे हैं और उनकी हत्याएं किए जाने के समाचार आ रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि इस प्रकार का वैमनस्यपूर्ण वातावरण बनाने में कई केंद्रीय मंत्री, सांसद तथा विधायक खुलकर अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। गोया हिंसा,नफरत तथा वैमनस्य को ही इन्होंने अपनी सफल राजनीति का एक हिस्सा समझ लिया है।
पिछले दिनों दिल्ली के निकट दादरी कस्बे के बिसहाड़ा गांव में अखलाक अहमद नाम के एक ऐसे व्यक्ति की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी गई जिसका पुत्र भारतीय वायुसेना में कार्यरत है। इस घटना में गिरफ्तार किए गए लोगों में अधिकांश आरोपियों का संबंध भारतीय जनता पार्टी से बताया जा रहा है। इस घटना ने देश-विदेश के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक को इतना प्रभावित किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस विषय पर चुप्पी तोडऩे की आस लगाई जाने लगी। इस घटना का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह भी था कि जहां धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू नुमाइंदे घटना के बाद मृतक अखलाक अहमद के घर जाना शुरु हुए वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने उसी गांव में जाकर हत्यारों के प्रति हमदर्दी जताने तथा इस हत्याकांड को जायज़ ठहराने का काम शुरु कर दिया। और इस प्रकार की राजनैतिक गतिविधियों से न केवल दादरी या उसके आसपास बल्कि पूरे देश में यहां तक कि बिहार में हो रहे विधानसभा चुनावों तक में इसकी गूंज सुनाई देने लगी। इसके पूर्व कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विषय पर कुछ बोलते भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस संदर्भ में देश के लोगों को आगाह करते हुए अपने उद्गार व्यक्त किए। राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय सभ्यता की विविधिता,सहिष्णुता और अनेकता में एकता के बुनियादी मूल्यों को हमें निश्चित तौर पर अपने दिमाग में बनाए रखना चाहिए। इसे कभी भी यूं ही गंवाने नहीं दिया जा सकता। राष्ट्रपति महोदय ने आगे कहा कि मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि हम अपनी सभ्यता के बुनियादी मूल्यों को इस प्रकार गंवाने की अनुमति नहीं दे सकते।
राष्ट्रपति के इस बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि दादरी कांड पर अपनी ओर से तो कुछ भी नहीं कहा। हां उन्होंने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के इस संदर्भ में दिए गए बयान का समर्थन करते हुए इतना ज़रूर कहा कि राष्ट्रपति द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने की ज़रूरत है। मोदी ने कहा कि देश को एकजुटहोना है,सद्भाव बनाए रखें। सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारा ही राष्ट्र को आगे ले जाएगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति महोदय ने हमें जो रास्ता दिखाया है उसपर चलकर ही देश की अपेक्षाओं को पूरा किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने ये भी स्वीकार किया कि राजनीति करने के कारण नेता भडक़ाऊ और ऊट-पटांग बयान देते हैं लोगों को इसपर ध्यान नहीं देना चाहिए। बिहार में दिए गए अपने भाषण के इस अंश में उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को बोलने का अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि चाहे वह कोई भी क्यों न हो यदि उनकी भी बात गलत है तो उसपर भी ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। बड़े आश्चर्य की बात है कि एक ओर तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति महोदय की देश की विविधता,सहिष्णुता, तथा अनेकता में एकता बनाए रखने की ज़रूरतों को अपना समर्थन देते हुए दिखाई दे रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हींकी पार्टी के सांसद,विधायक तथा अन्य कई नेता दादरी कांड तथा इन जैसे दूसरों मुद्दों पर देश का माहौल बिगाडऩे की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के अपने एक संगठन ने तो बिसाहड़ा गांव में हिंदू समुदाय के लोगों को बंदूकें बांटने तक की पेशकश कर दी। प्रधानमंत्री भी केवल यह कहकर अपने नेताओं की आपत्तिजनक व भडक़ाऊ बातों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रहे हैं कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को बोलने का अधिकार है। प्रधानमंत्री का यह कथन भडक़ाऊ व सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करने वाले नेताओं पर नकेल तो नहीं कसता बल्कि उनके इन दुष्प्रयासों को नज़रअंदाज़ ज़रूर करता है।
ऐसा तो संभव ही नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री जिस विचारधारा का समर्थन कर रहे हों अथवा जिस विचारधारा पर देश को चलाना चाह रहे हों उनकी पार्टी के अपने मंत्री,सांसद व अन्य नेता खुलकर उस विचारधारा का विरोध करें। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय स्वयं संघ से प्रगाढ़ रिश्ते तथा संघ के संस्कारों में हुआ उनका राजनैतिक प्रशिक्षण भी किसी से छुपा नहीं है। अभी कुछ ही समय पूर्व राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों की एक दो दिवसीय समन्यवय बैठक भी दिल्ली में संपन्न हो चुकी है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों ने भाग लिया था। संघ के पूर्व प्रवक्ता राम माधव गत् वर्ष भाजपा के सत्ता में आने के फौरन बाद ही भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख सचिव के रूप में संघ व भाजपा में तालमेल बिठाने के उद्देश्य से पार्टी में अपनी मज़बूत स्थिति बना चुके हैं। भारतीय संविधान तथा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान आदि के प्रति संघ की कितनी आस्था है यह भी किसी से छुपा नहीं है। धर्मनिरपेक्षता,अनेकता में एकता,सहिष्णुता तथा विविधता जैसे राष्ठ्रपति महोदय द्वारा दिखाए गए सिद्धातों के प्रति संघ की सोच भिन्न है। संघ साफतौर पर देश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के बजाए हिंदू राष्ट्र के रूप में देखने का पक्षधर है। संघ संस्कारित कई भाजपाई सांसद तो यह कहते भी सुने जा रहे हैं कि भारतवर्ष हिंदू राष्ट्र बन चुका है। कई को तो यह कहते सुना जा रहा है कि भारतवर्ष हिंदू राष्ट्र था,है और रहेगा। सत्तारुढ़ दल के ही जि़म्मेदार मंत्री व नेता अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान जाने की सलाह दे रहे हैं।
उपरोक्त परिस्थितियों में निश्चित रूप से यह सोचने का विषय है कि वर्तमान राजनैतिक वातावरण में हमारा देश आिखर किस ओर जा रहा है। गांधीवादी विचारधारा यानी अहिंसा परमोधर्म: का परचम बुलंद करने वाला भारतवर्ष कहीं ‘हिंसा परमोधर्म:Ó के मार्ग पर तो नहीं चल पड़ा है? देश में जि़म्मेदार नेताओं द्वारा खुलेआम घूम-घूम कर ज़हरीले भाषण देने और समाज में अपने कटु वचनों से विघटन पैदा करने की कोशिशें आिखर किस बात की ओर इशारा करती हैं? राष्ट्रपति महोदय द्वारा बताया गया मार्ग और प्रधानमंत्री महोदय द्वारा उनके बयान का समर्थन किया जाना व उसके अनुसरण करने की सीख देना निश्चित रूप से देश की जनता को सुनने में राहत ज़रूर पहुंचाता है। परंतु साथ-साथ बोलने की आज़ादी के नाम पर समाज में सांप्रदायिक आधार पर दरार फैलाने की छूट देना वैचारिक दोहरेपन की दलील पेश करता है। चाहे वह हिंदुत्ववादी विचारधारा के प्रसार में लगी शक्तियां हों या अल्पसंख्यकों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने के प्रयास में जुटे तथाकथित स्वयंभू धर्मनिरपेक्षतावादी नेता। किसी भी पक्ष को किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाएं भडक़ाने,एक-दूसरे को नीचा दिखाने,एक-दूसरे को चुनौती या चेतावनी देने तथा अपनी भडक़ाऊ बयानबाजि़यों से हिंसा फैलाने जैसे गैरजि़म्मेदाराना बयान देने की छूट हरगिज़ नहीं दी जानी चाहिए। बोलने की आज़ादी का अर्थ कटु वचन बोलना नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री जी यदि वास्तव में राष्ट्रपति महोदय द्वारा दिखाए गए मार्ग को देश की तरक्की का सबसे बेहतर मार्ग समझते हैं तो उन्हें सर्वप्रथम अपनी सरकार के मंत्रियों,सांसदों तथा दूसरे पार्टी नेताओं को राष्ट्रपति के भाषण से सीख लेने की सलाह देनी चाहिए और उसका अनुसरण करने की हिदायत देनी चाहिए। ज़हर उगलने वाले इन नेताओं को यह बताना चाहिए कि देश की तरक्की के लिए अनेकता में एकता,सहिष्णुता तथा विविधिता व सांप्रदायिक सद्भाव कितना ज़रूरी है? भारतीय जनता पार्टी बेशक केंद्रीय सत्ता में ज़रूर है परंतु वह किसी एक धर्म अथवा विचारधारा की नहीं बल्कि पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन बन चुका है। ऐसे में भाजपा को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित सूत्र सबका साथ सबका विकास के तहत देश के समस्त नागरिकों के समग्र विकास व सबके सांझे हितों की बात सोचना अत्यंत आवश्यक है। वैचारिक दोहरापन देश की तरक्की के लिए खतरनाक और बाधक सिद्ध हो कता है।
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Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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