ये देखना है कि पत्थर कहां से आया है ?

– तनवीर जाफऱी –

yogi-adityanath-with-narendवैसे तो मई 2014 में प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी के सुशोभित होने के बाद ही देश में इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि क्या भारतवर्ष हिंदुत्ववादी राजनीति की गिरफ्त में आने जा रहा है? परंतु गत् वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भारत की आत्मा धर्मनिरपेक्ष थी और धर्मनिरपेक्ष ही रहेगी। इसके बाद पिछले दिनों पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों ने एक बार फिर देश में 2014 जैसा ही राजनैतिक वातावरण पैदा कर दिया। हालांकि पंजाब में कांग्रेस पार्टी अपनी वापसी कर पाने में सफल तो ज़रूर रही परंतु जिस तरीके से उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड राज्यों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा हुआ तथा जिस तत्परता व जुगाड़बाज़ी के साथ गोवा व मणिपुर में भी भाजपा ने अपने परचम लहराए उसे देखने के बाद एक बार फिर राजनैतिक समीक्षक देश को हिंदूवादी विचारधारा की ओर बढ़ता हुआ देखने लगे। खासतौर पर उनका संदेह उस समय विश्वास में बदलने लगा जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए सप्ताह भर चली जद्दोजहद के बाद फायरबा्रंड हिंदुत्ववादी नेता योगी आदित्यनाथ को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंप दी गई। उत्तर प्रदेश में किन परिस्थितियों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी क्या संदेश देना चाह रही है इन बातों का पूरी ईमानदारी के साथ विश£ेषण करना बहुत ज़रूरी है।

सर्वप्रथम हमें पीछे मुडक़र यह देखना होगा कि गत् वर्ष के बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपने मुंह की क्यों खानी पड़ी? ज़ाहिर है बिहार में उस समय नितीश कुमार के नेतृत्व में बनाया गया महागठबंधन भारतीय जनता पार्टी को हर प्रकार के सांप्रदायिक एवं ध्रुवीकरण को हवा देने वाले सभी हथकंडे अपनाने के बावजूद सत्ता से दूर रखने में कामयाब रहा था। फिर आिखर यही प्रयोग उत्तरप्रदेश में क्यों नहीं किया गया? इसका सीधा सा जवाब यही है कि चूंकि उत्तरप्रदेश में सत्ता के दो प्रमुख दावेदारों के रूप में अखिलेश यादव व मायवती दोनों ही इस गलतफहमी का शिकार थे कि पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता उन्हीं को मिलेगी। बेशक सत्ता हासिल करने के लिए इन नेताओं ने धर्म व जाति आधारित कोई भी किसी भी तरह का कार्ड खेलने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। दलितों व अल्पसंख्यकों को लुभाने से लेकर अपनी विकास योजनाओं को गिनाने तथा भावी योजनाओं का जि़क्र भी बखूबी किया गया। परंतु जो नतीजा निकला वह चौंकाने वाला रहा। भाजपा 312 सीटों के साथ उत्तर प्रदेश विधानसभा में बहुमत हासिल करने का कीर्तिमान स्थापित कर बैठी। और भारतीय जनता पार्टी के संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सलाह-मशविरे के बाद योगी आदित्यनाथ जैसे फायरब्रांड हिंदुत्ववादी नेता को प्रदेश की कमान सौंप दी गई। आज स्वयं आदित्यनाथ योगी व उनके उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर दर्जनों आपराधिक मुकद्दमें चल रहे हैं इसके बावजूद यही नेतागण प्रदेश में कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने का दावा कर रहे हैं।

इसके पहले कि उत्तरप्रदेश या देश के मतदाताओं को इस बात के लिए दोषी ठहराया जाए कि देशवासियों का भगवाकरण हो रहा है या उनकी सोच कट्टर हिंदुत्ववादी सोच होती जा रही है इस बात पर नज़र डालना ज़रूरी है कि देश की लोकसभा से लेकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा तक यहां तक कि गुजरात,आसाम,उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल चेहरे आिखर हैं कौन? क्या यह संघ विचारधारा से प्रभावित व संस्कारित हिंदूवादी नेता हैं या फिर कल के स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष नेता जो आज अपनी सत्ता की भूख शांत करने के लिए किसी भी विचारधारा में स्वयं को ढालने में परहेज़ नहीं करते? मोदी से लेकर योगी मंत्रिमंडल तक आपको अनेक ऐसे चेहरे देखने को मिल सकते हैं जो कल तक देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का एक हिस्सा बने फिरते थे परंतु राजनैतिक स्वार्थ साधने के कारण वही कथित धर्मनिरपेक्षतावादी लोग आज हिंदूवादी भाजपा की पंक्ति में खड़े दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में इस नतीजे पर आिखर कैसे पहुंचा जा सकता है कि देश का स्वभाव धर्मनिरपेक्षता के बजाए कट्टर हिंदूवादी स्वभाव की ओर बढ़ रहा है?

यहां यह बात भी काबिलेगौर है कि केवल हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले नेता ही सत्ता की लालच में अपना वैचारिक ‘धर्म परिवर्तन’ नहीं कर रहे हैं बल्कि गैर हिंदू लोग भी सत्ता की भूख मिटाने के लिए भाजपा का दामन थाम रहे हैं। कोई केंद्रीय मंत्री बना बैठा है, कोई राज्यपाल पद से संतुष्ट हो गया है तो किसी को प्रदेश के मंत्री पद पर बिठा दिया गया है। भले ही ऐसे लोग अपने समाज में कोई जनाधार न रखते हों परंतु भाजपा इन चेहरों का इस्तेमाल दुनिया को यह दिखाने में सफलतापूर्वक कर रही है कि भाजपा वैसी धर्म आधारति अथवा सांप्रदायिक पार्टी नहीं जैसी कि विरोधियों द्वारा प्रचारित की जाती है। आज नारायण दत्त तिवारी तथा एसएम कृष्णा जैसे वरिष्ठतम कांग्रेसी नेता भाजपा में शरण पाते देखे जा रहे हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे नेता जिन्हें कभी मुस्लिम समाज के लोग अपने नेता के रूप में देखा करते थे उनके परिवार के सदस्य भाजपा में शामिल हो चुके हैं और उनकी बेटी रीता बहुगुणा उत्तरप्रदेश में मंत्री बनाई जा चुकी हैं। और भी कई दलबदलुओं को दिल्ली से लेकर उत्तरप्रदेश व गुजरात के मंत्रिमंडल में शामिल किया जा चुका है। ऐसे दलबदल वाले राजनैतिक वातावरण में हम आिखर देश के नागरिकों व मतदाताओं पर यह दोष क्यों मढ़ें कि देश सांप्रदायिक अथवा हिंदुत्ववादी हो रहा है?

यदि हम उत्तरप्रदेश में ही कांग्रेस-समाजवादी पार्टी व गठबंधन व बहुजन समाजवादी पार्टी को डाले गए मतों को इक_ा करके देखें तो भारतीय जनता पार्टी सौ साटों का आंकड़ा भी पार करती नहीं दिखाई दे रही है। लगभग 35 सीटों पर स्वयंभू मुस्लिम रहनुमा असद्दुदीन ओवैसी ने भी धर्मनिरपेक्ष मतों का कचूमर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज भाजपाई अपनी जीत को बड़ी शान से यह कहकर परिभाषित कर रहे हैं कि उन्हें मिला भारी बहुमत अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के विरुद्ध बहुसंख्य समाज के भाजपा के पक्ष में हुए ध्रुवीकरण के रूप में सामने आया है। भाजपाई तो अब इसे नोटबंदी की सफलता के रूप में भी बताने लगे हैं। परंतु हकीकत केवल यही है कि स्वयं को गांधीवादी,अंबेडकरवादी,समाजवादी,लोहियावादी,अल्पसंख्यकवादी और न जाने क्या-क्या बताने वाले लोग अपने सत्ता स्वार्थ की वजह से एकजुट नहीं हो सके। और तो और परिवारवादी राजनीति के घोर संकट से जूझने वाला समाजवादी कुनबा इस बात के लिए आिखरी वक्त तक लड़ता रहा कि सपा का प्रमुख कौन बने और चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाए? ज़ाहिर है इन्हीं नकारात्मक परिस्थितियों ने उत्तरप्रदेश में न केवल भाजपा की शानदार वापसी की है बल्कि अप्रत्याशित रूप से योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बना दिया है। आज योगी का मुख्यमंत्री बनना और भविष्य में उन्हीं का देश का प्रधानमंत्री बन जाना भी कोई आश्चर्य का विषय नहीं होगा। क्योंकि संघ व भाजपा अपना वैचारिक संदेश स्पष्ट रूप से देते हुए आगे की ओर बढ़ रहे हैं तथा स्वार्थी विपक्ष धर्मनिरपेक्षता का ध्वजावाहक बनने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट हो पाने में नाकाम है।

                लिहाज़ा सवाल यह नहीं कि शीशा बचा कि टूट गया।

                    यह देखना है कि पत्थर कहां से आया है।।

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tanveer-jafri-writer-tanveer-jafri-story-by-tanveer-jafri-article-by-tanveer-jafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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