मैं उसका नाम नहीं जानती। लेकिन अकसर अपने घर से मेट्रो तक आने-जाने के दौरान उसे सड़कों से पालीथिन, कागज, प्लास्टिक और लोहे के टुकड़ों को बीनते देखती हूं। अगर हम अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो रेस्टोरेंट, ढाबों, दुकानों और अन्य जगहों पर बच्चे काम करते हुए मिल जाएंगे। चौदह साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराना या करने को मजबूर करना, अपराध है। बालश्रम कराने वाले के खिलाफ अपराध साबित होने पर सजा भी हो सकती है,यह बात सबको मालूम है, लेकिन इसके बावजूद लोग थोड़े से लाभ के लिए बालश्रम कराते हैं, करने को मजबूर करते हैं। बच्चों के संरक्षण, उनकी स्वतंत्रता तथा स मान के महत्व के बारे में सभी एकमत हैं। बच्चों के हितों और संरक्षण का मामला भारत के संविधान में निहित है। इसके बावजूद, स्वतंत्रता के बाद से ही बच्चों के अधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है। आजादी के इतने साल बाद भी बच्चों के प्रति समाज का रवैया घोर निंदनीय है।
यूनिसेफ बालश्रम को ऐसे कार्यों के रूप में परिभाषित करता है, जो एक बालक के लिए हानिकारक समझे जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन बाल श्रम को बच्चे के स्वास्थ्य की क्षमता, उसकी शिक्षा को बाधित करने और उसके शोषण के रूप में परिभाषित करता है। यूनिसेफ ने बालश्रम के सबसे विकृत स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसमें बालकों के सशस्त्र सेनाओं में प्रयोग, यौन शोषण, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी और अवैधानिक गतिविधियों जैसे मादक पदार्थों की तस्करी को शामिल किया गया है।
भारत में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, कोई भी 14 वर्ष से कम आयु का बच्चा, जो मजदूरी करता है, बाल श्रमिक की श्रेणी में आता है। भारत का प्रत्येक चौथा बालक बालश्रम के चलते स्कूल नहीं जा पाता है। बाल श्रम की समस्या देश में आज भी चुनौती बन कर खड़ी है। वैसे सरकार निरंतर इस समस्या निजात पाने के लिए कई सकारात्मक और सक्रिय कदम उठा रही है। लेकिन फिर भी समस्या अभी जटिल बनी हुई है। मूलत: यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या होने के कारण खत्म नहीं हो रही है। भारत में गरीबी और निरक्षरता ही बाल श्रम को जन्म देती है।
2001 की जनगणना के अनुसार, पूरे देश में कुल 25.2 करोड़ बच्चों में से 5-14 वर्ष के आयु समूह के 1.26 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक की हैसियत से काम कर रहे हैं। इनमें से लगभग 12 लाख बच्चे खतरनाक व्यवसायों में कार्यरत हैं, जो बालश्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, सरकार के प्रयास थोड़े कामयाब होते दिख रहे हैं। इसका प्रमाण है 2004-05 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की ओर से किया गया एक सर्वेक्षण।
इस सर्वेक्षण में काम करने वाले बच्चों की सं या 10.75 लाख होने का अनुमान जताया गया है।
सरकार ने 1979 में बाल श्रम की समस्या छुटकारा पाने के लिए उपाय सुझाने को गुरुपादस्वामी समिति का गठन किया था। समिति ने बालश्रम की समस्या पर विस्तार से अध्ययन किया और उसने निष्कर्ष निकाला कि जब तक देश में गरीबी और बेकारी रहेगी, तब तक बालश्रम से मुक्ति पाना, संभव नहीं होगा। बाल श्रम से मुक्ति के लिए बनाए जाने वाले सभी कानून उतने प्रभावी नहीं रहेंगे।
समिति ने निष्कर्ष निकाला कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रम पर स ती से प्रतिबंध लगाया जाए और अन्य क्षेत्रों में कार्यकारी परिस्थितियों को मजबूत बनाया जाए। गुरुपादस्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर 1986 में बालश्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम लागू किया गया। यह अधिनियम खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। यह अधिनियम अन्य स्थलों पर कामकाजी परिस्थितियों को भी नियंत्रित करता है।
इस अधिनियम के अनुरूप, 1987 में बाल श्रम पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार की गई। इस अधिनियम का सबसे प्रमुख कार्य और उद्देश्य खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में काम करने वाले बच्चों का पुनर्वास है। वह बालश्रम के विभिन्न कारणों पर ध्यान देने की बात तो कहती ही है, लेकिन जो बच्चे बालश्रम के लिए मजबूर हैं या किए जा रहे हैं, उनके पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए नीति में दर्शाई गई कार्य योजना-बाल श्रमिकों के हित के लिए सामान्य विकास कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित करना है क्योकि गरीबी बाल श्रम का मु य कारण है। बालश्रम उन्मूलन के लिए बनाई गई कार्य योजना इन बच्चों और उनके परिवारों को सरकार के विभिन्न गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन योजनाओं के तहत कार्य करने को प्रोत्साहित करती है।
वर्ष 1988 के दौरान देश के सबसे अधिक बालश्रम वाले 9 जिलों में राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना (एनसीएलपी) लागू की गई थी। इस योजना में काम से छुड़ाए गए बाल श्रमिकों के लिए विशेष पाठशालाएं चलाने की घोषणा की गई। इन विशेष पाठशालाओं में, इन बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण के अलावा औपचारिक-अनौपचारिक शिक्षा, 150 प्रति माह का वजीफा, संपूरक पोषण और नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, ताकि उन्हें मु य धारा वाले नियमित पाठशालाओं में भर्ती होने के लिए तैयार किया जा सके। बाल श्रम मे निजात पाने के लिए सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी प्रयारसरत रहना होगा। हालांकि, कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं इस दिशा में अच्छा काम कर रही हैं। वे जहां कहीं भी बाल श्रमिक दिखाई देते हैं, तो वे उन्हें बालश्रम से मुक्त कराने का प्रयास करते हैं। इसके बावजूद अभी तक पूरी सफलता नहीं मिल पाई है। अभी बहुत कुछ इस मामले में किया जाना है। बहरहाल, केंद्र और कुछ राज्य सरकारें इस दिशा में सराहनीय पहल कर रही हैं। चूंकि देश में बाल श्रमिकों की सं या इतनी ज्यादा है कि इन सरकारों द्वारा किया गया प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे के समान प्रतीत हो रहा है।
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स्निग्धा श्रीवास्तव
लेखिका
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##**लेख में व्यक्त विचार लेखिका के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।
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