हेडगेवार और अमिताभ भी हैं इस सम्मान के हकदार
भारत-रत्न सम्मान के साथ दी जानी चाहिए बड़ी धन राशि भी
अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मिलने से इस सम्मान का मान बढ़ा
– ओंकारेश्वर पांडेय –
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और महामना मदन मोहन मालवीय के बाद अगला भारत रत्न किसे मिले. सवाल अब यही है. लेकिन इसपर सोचने से पहले कुछ अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष हैं और अपने आप में अद्वितीय भी. वे किसी तारीफ के मोहताज नहीं. उनके योगदान के बारे में समूचा देश और विश्व भी जानता है. इसीलिए उनके नाम पर तो विपक्ष तक को एतराज नहीं हुआ. उन्हें भारत रत्न तो मिलना ही चाहिए था, बल्कि काफी पहले मिलना चाहिए था. कांग्रेस सरकार ने उन्हें यह सम्मान दिया होता, तो उनका ही मान बढ़ता. आज उन्हें यह सम्मान देने से भारत-रत्न का मान ही बढ़ा है. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साधुवाद के पात्र हैं. पर पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने में मोदी सरकार ने परंपरा और नियमों का उल्लंघन अवश्य किया है.
यह मैं इसलिए नहीं कह रहा कि मालवीय इस सम्मान के योग्य थे अथवा नहीं. उनकी योग्यता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि आज देश में पूर्ण बहुमत से चुनकर आयी मोदी सरकार ने उनके नाम की सिफारिश की. यह कोई अल्पमत सरकार नहीं है. इसलिए इस सरकार के इस फैसले को देश की बहुसंख्यक जनता का निर्णय ही मानना चाहिए. हालांकि मेरे जैसे कई लोग भारत-रत्न जैसे सम्मान मरणोपरांत देने के पक्ष में नहीं हैं.
“सिर जाय तो जाय प्रभु! मेरो धर्म न जाय” को अपना जीवन व्रत मानने वाले मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 – 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे. वे भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया था. पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव को भारत रत्न देने के लिए मोदी सरकार को नियम तोड़ना पड़ा. केन्द्रीय गृह मंत्रालय के घोषित नियमों के अनुसार एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है. और इस साल सरकार पहले ही दो विभूतियों प्रोफेसर सीएन आर राव तथा सचिन रमेश तेंदुलकरको भारत का यह सर्वोच्च सम्मान दे चुकी है. अटल जी को यह सम्मान देने में कोई अड़चन नहीं थी. लेकिन मालवीय जी को देने में सरकार को नियम तोड़ना पड़ा. सरकार का बनाया नियम सरकार ने स्वयं तोड़ा है, पर संतोष इस बात का है कि मालवीयजी जैसी विभूति को सम्मान देने के लिए तोड़ा.
शायद इसलिए भी कि मोदी सरकार इन दोनों महान शख्सियतों को यह सम्मान उनके जन्मदिन पर देना चाहती थी, जो एक ही तारीख 25 दिसंबर को पड़ता है. महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को और अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था. दोनों महान विभूतियों में एक और समानता ये भी है कि दोनों पत्रकार रहे हैं. देश के इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ की स्थापना 2 जनवरी 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी. भारत रत्न सम्मान के साथ कोई धन नहीं दिया जाता. क्यों, यह बात समझ से परे है. क्या सरकार यह मानती है कि जिसे भी यह सम्मान मिलेगा, वह काफी अर्जित कर चुका होगा. यह सोचना गलत है. इस पर भी विचार होना चाहिए और एक बड़ी धन राशि दी जानी चाहिए. उस्ताद विस्मिल्लाह खां के पारिवारिक हालात की याद करिये.
प्रारम्भ में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, यह प्रावधान 1955 में बाद में जोड़ा गया. मालवीय जी समेत कुल 13 व्यक्तियों को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया जा चुका है. (इनमें से सुभाष चन्द्र बोस को घोषित सम्मान वापस ले लिया गया था.) आचार्य विनोबा भावे को भी भारत रत्न से सम्मानित करने का ध्यान केन्द्र सरकार को1982 में उनके मरने के बाद 1983 में आया था. एमजी रामचंद्रन की मृत्यु 1987 में होने के बाद उन्हें 1988 में सम्मानित किया गया. देश के संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर का ध्यान तो सरकार को 1990 में आया. जबकि उनकी मृत्यु 1956 में ही हो चुकी थी. राजीव गांधी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की बात समझ में आती है, क्योंकि उनकी असामयिक मृत्यु लिट्टे के आतंकी हमले में 1991 में हुई और उसी वर्ष कांग्रेस सरकार ने उन्हें सम्मानित करने का सामयिक फैसला कर लिया. पर वल्लभ भाई पटेल तो 1950 में गुजर चुके थे, उनकी याद 1991 में क्यों आयी? मौलाना अबुल कलाम आजाद को मरणोपरांत यह सम्मान देने का फैसला सही तो था पर इतना विलंब क्यों? दरअसल वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत रत्न लेने से यह कहकर मना कर दिया था कि जो लोग इस सम्मान के चयनकर्ताओं में शामिल रहे हों, उन्हें यह सम्मान नहीं लेना चाहिए. देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को मरणोपरांत यह पुरस्कार देने का फैसला करने में सरकार ने दशकों लगा दिये. उनकी मृत्यु 1958 में हुई और सम्मान 1992 में दिया गया. लोकनायक जयप्रकाश नारायण को तो पहले सरकार ये सम्मान शायद देना ही नहीं चाहती थी, तभी 1979 में उनके गुजर जाने के 20 साल बाद 1999में उन्हें ये सम्मान दिया गया. उसी वर्ष असम के लोकप्रिय गोपीनाथ बरदलै को भी भारत रत्न दिया गया, जिनकी मृत्यु तिथि भी सरकार को ठीक-ठीक याद नहीं.
वैसे भारत रत्न जैसा सम्मान मरणोपरांत देने की परंपरा बंद की जानी चाहिए. इस तर्क के समर्थन में मैं एक घटना बताना चाहूंगा. सालों पहले जब भूपेन हाजरिका को दादा साहब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी, तब मैं गुवाहाटी में ही था. जाने माने गायक भूपेन दा से जब मैंने बड़ा स्वाभाविक सवाल पूछा कि दादा कैसा लग रहा है, आपको यह सुनकर?भूपेन दा मुस्कुराये और कहा – अच्छा तो लगता है. पर आखिर ये पुरस्कार जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर में देने से क्या फायदा. मेरी आधी जिंदगी तो रोजी रोटी के जुगाड़ में निकल गयी. अब ये पुरस्कार मेरे किस काम का. वक्त पर किसी को पुरस्कार मिले तो आगे और बेहतर करने का हौसला अफजाई होता है. भूपेन दा नहीं रहे. पर उनका नाम अमर रहेगा. उनकी बातें तब इसलिए भी याद आयीं थी, क्योंकि भारत सरकार ने मरणोपरांत उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित करने का फैसला किया था. मरणोपरांत पुरस्कार किसी फौजी या पुलिस अफसर के लिए तो ठीक लगता है, पर अन्य क्षेत्रों के लिए सरकार पूरी जिंदगी बीत जाने का इंतजार क्यों करती है. भोजपुरी में प्रचलित कहावत है – “मुअल बैलवा के बड़-बड़ अँखियां” यानी बैल के मरने के बाद याद आता है कि इस बैल की कितनी बड़ी-बड़ी आंखें थीं.
भारत रत्न अब तक चुनिंदा कुल 45 शख्सियतों को ही दिया गया है,जिनमें से 7 तो प्रधानमंत्री रह चुके और 5 राष्ट्रपति. प्रधानमंत्रियों में से तीन नेहरू खानदान के थे. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी. अन्य सौभाग्यशाली थे – लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा और मोरारजी देसाई. अटल जी यह सम्मान पाने वाले चौथे गैर कांग्रेसी पूर्व प्रधानमंत्री हैं. भारत रत्न पाने वालों में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को देश का यह सर्वोच्च सम्मान 1962 में मिला, जबकि उनके बाद राष्ट्रपति रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ये सम्मान 1954 में ही मिल चुका था. इसके अलावा कई अन्य पूर्व मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री आदि भारत रत्न पा चुके हैं. इनमें पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल, प. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बीसी राय, तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के कामराज व एमजी रामचंद्रन, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व गृह मंत्री रहे गोविंद वल्लभ पंत, शामिल हैं. हालांकि इनमें लगभग सबका योगदान निर्विवादित रूप से असाधारण और उनकी सेवा अति विशिष्ट रही है. लेकिन नेहरू परिवार के तीन नेताओं का योगदान इस सम्मान के योग्य रहा है अथवा नहीं, इसपर सवाल जरूर खड़े किये जाते हैं. खासकर राजीव गांधी के नाम पर सवाल खड़े होते रहे हैं.
राजीव गांधी के असामयिक निधन के बाद उन्हें भारत रत्न देने की बात समझ में आती है. लेकिन हमेशा परमवीर चक्र की तरह भारत रत्न जैसा पुरस्कार मरणोपरांत देने से सरकारों की सही समय पर सही निर्णय नहीं कर पाने की कमजोरी या राजनीति दिखायी देती है. ये बंद होना चाहिए. मरणोपरांत पुरस्कार देकर क्या लाभ?
उम्मीद करिये कि सरकार देश की महान विभूतियों की उपलब्धियों की पहचान समय रहते कर लेगी और अब आगे किसी हस्ती को भारत रत्न देने के लिए उनके मरने का इंतजार नहीं करेगी. कुछ साल पहले जब एआर रहमान को फिल्म इंडस्ट्री ने लाइफ टाइम एचीवमेंट पुरस्कार दिया था, तो एकबारगी रहमान चौंक गये थे. उन्हें लगा कि क्या मेरा फिल्म कैरियर खत्म हो गया. पर न ऐसा हुआ था न होगा. उन्हें समय पर पुरस्कार मिला. उपलब्धि के लिए उम्र की कोई सीमा न होती है, न होनी चाहिए. इसलिए सरकार समय रहते देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के हकदारों का चयन कर लें तो इस सम्मान के प्रति जनता के मन में सम्मान बना रहेगा. वरना इसका हाल अन्य पद्म पुरस्कारों की तरह न होने लगे. सितारा देवी को जब पद्म पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो उन्होंने यह कहकर लेने से मना कर दिया था कि उनसे कई जूनियर कलाकारों को जब ये पहले दे दिया गया है तो अब वे इसे क्यों लेंगी. दत्तोपंत ठेंगड़ी ने भी यह कहकर पद्मभूषण लेने से मना कर दिया था कि जब आरएसएस के प्रमुख रहे डॉ. हेडगेवार और गोलवलकर को भारत रत्न नहीं दिया गया तो वे भी नहीं लेंगे. डॉ. हेडगेवार को तो यह सम्मान मिलना ही चाहिए था.
देश इंतजार कर रहा है और खामोशी से देख रहा है कि केन्द्र की सरकार राजनीति के अलावा अन्य क्षेत्रों की महान विभूतियों का सही मूल्यांकन आखिर कितनी देर से करती है. भारत रत्न पाने वाला व्यक्ति देश में वरीयता क्रम में सातवें पायदान पर आता है, पर सही मायने में लोकप्रियता और आम जनता के सम्मान की दृष्टि से देखें तो डॉ. हेडगेवार और अमिताभ बच्चन जैसे कई लोग हैं, जो उनके दिलों में पहले नंबर पर आते हैं और उनकी उपलब्धियां वाकई असाधारण हैं. उन जैसी विभूतियों को सम्मानित करने से इस पुरस्कार का मान बढ़ेगा ही, कम नहीं होगा.
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ओंकारेश्वर पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व् लेखक
Former Managing Editor, i9 Media
Former Managing Editor, The Sunday Indian
Former Resident Editor–RASHTRIYA SAHARA (Hindi Daliy), Delhi & Patna
Member – United Nations sub committee on volunteering recognition and IYV+10, India
Executive President,BROADCASTERS CLUB OF INDIA
प्रकाशित – : पुस्तक घाटी में आतंक और कारगिल
Master of Media, who provides Kaizen Solution for Media Sustainability
Onkareshwar Pandey is a bi-lingual (Hindi-English) Journalist and a known Indian Media personality with an experience of over 30 years in Print, Television, Radio & Digital Media. He is a four time experienced Editor and a keen Social Worker on various issues including Language, Media, Health, Women and Culture etc.
Onkareshwar Pandey provides Kaizen Solution for Media to make it a Prestigious & Profitable Brand. He has conceptualized, launched and led several Print Media products such as Magazines, Newspapers and Periodicals. He has been successful in transforming the Media into a real brand rich with innovative content, ideas and brand development initiatives and has successfully made it into a profitable venture and thus is rightly regarded as an Expert Media man.
He was in the national Core Group of Sahara TV at the time of its launching and had conceptualized and implemented Sahara News Bureau by integrating 1000 Correspondents of Print, Television and Digital Media spread across the country.
He has written six books in Hindi, English & Bhojpuri languages so far & has been a guest to the governments and institutions of Russia, Malayasia, Netherlands, UK & Belgium as an expert on media.
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