राहुल गांधी और उनके सलाहकार – आखिर कमी कहाँ है *

rahul gandhi{ निर्मल रानी ** } नेहरू-गांधी परिवार के राजनैतिक वारिस राहुल गांधी की ओर इस समय पूरा देश $खासतौर पर देश का युवा वर्ग बहुत आशान्वित होकर देख रहा है। $खासतौर पर देश में जब कभी वे किसी महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय में जाकर छात्रों से रूबरू होते हैं उस समय वहां के छात्रों का उत्साह देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसेकि देश के यह छात्र राहुल गांधी में ही देश का भविष्य देख रहे हों। उधर उनकी पारिवारिक परिस्थितियों ने भी कांग्रेस पार्टी के साथ उनका संबंध जोडक़र पूरी पार्टी की उम्मीदें उन्हीं से जोड़ दी हैं। परंतु सवाल यह है कि क्या देश के युवाओं,छात्रों,तथा कांग्रेसजनों को राहुल गांधी से जो आस बंधी है स्वयं राहुल गांधी उन उम्मीदों व आशाओं पर खरे उतर पा रहे हैं अथवा नहीं? उनमें अपने पिता राजीव गांधी तथा दादी इंदिरा गांधी जैसी राजनैतिक सूझ-बूझ है अथवा नहीं? निकट भवष्यि में भी उस प्रकार की सलाहियत पैदा होगी या नहीं? राहुल गांधी वास्तव में अपनी अंर्तात्मा के लिहाज़ से किस प्रकार के व्यक्ति हैं, वे देखने और सुनने में कैसे लगते हैं, उनकी कथनी और करनी एक जैसी है या नहीं? जब कभी वे कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिससे विवाद उठ खड़ा होता है उनकी उस विवादित वाणी के पीछे का रहस्य दरअसल क्या होता है? क्या वह जो कुछ बोल रहे होते हैं उन शब्दों को समझने व जनता को अपनी बात समझाने में नाकाम रहते है? या उनके मुंह से निकलने वाले शब्द,वाक्य अथवा भाषा उनके वह वास्तविक उद्गार नहीं परिभाषित कर पाते जो वे वास्तव में करना या कहना चाहते हैं? और यदि ऐसा है तो इसके लिए जि़म्मेवार है कौन? स्वयं राहुल गांधी या उनके वह $गैर तजुर्बेकार सलाहकार अथवा उनके स्क्रिप्ट राईटर।
यदि हम राहुल गांधी के भाषणों के विवादित अंशों पर नज़र डालते हुए पीछे की ओर मुडक़र देखें तो कभी हमें यह नज़र आता है कि वे अपना भाषण देने के दौरान अपनी जेब में रखी एक सूची अपनी जेब से बाहर निकालते हैं और उसे सभा में फाडक़र फेंक देते हैं। कुछ समय बाद यही राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में ही अपनी दूसरी जनसभा में उत्तरप्रदेश के लोगों से यह कहते सुने जाते हैं कि -आपको दूसरे राज्यों में भीख मांगने के लिए क्यों जाना पड़ता है। उसके पश्चात पिछले दिनों दा$गी सांसदों से संबंधित एक अध्यादेश पर आप प्रेस कां$फ्रेंस में $फरमाते हैं कि इस अध्यादेश को फाड़ कर कूड़ेदान में फेंक देना चाहिए। और रही-सही कसर उन्होंने पिछले दिनों तब पूरी कर दी जब कि उनके मुंह से यह निकला कि पाकिस्तान की आईएसआई मुज़$फ्$फरनगर के दंगा प्रभावित युवकों से संपर्क बनाने की कोशिश में है। इस प्रकार के विवादास्पद से दिखाई देने वाले बयानों के अतिरिक्त उनका अंदाज़-ए-बयां, अपनी बात को जनता के बीच रखने का उनका तरी$का, भाषण के दौरान अपने कुरते की आस्तीन चढ़ाने की उनकी अदा आदि उनकी प्रत्येक बात पर न केवल आम जनता बल्कि पूरे विपक्षी दलों की उनपर पैनी नज़र रहती है। देश में और भी तमाम राजनेता हैं पंरतु जितनी गंंभीरता से इन दिनों राहुल गांधी अथवा उनके मु$काबले में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को सुना जा रहा है उतना अधिक किसी भी नेता की ओर देश की जनता का ध्यान नहीं है।
राहुल गांधी की धर्मनिरपेक्ष सोच, $गरीबों का उनके हृदय में स्थान, जात-पात से ऊपर उठकर समाज के विकास के प्रति उनकी $िफक्र, गांव के विकास के संबंध में उनकी चिंताएं, दलितों व अल्पसंख्यकों को सम्मान व समाज में ऊंचा स्थान दिलाए जाने हेतु उनके विचार आदि को लेकर उनपर कोई संदेह नहीं किया जा सकता। राहुल का विरोध करने वाले विपक्षी दल भले ही उन्हें कांग्रेस का युवराज या शहज़ादा कहकर उन्हें देश के आम लोगों से अलग दिखाने की कोशिश क्यों न कर रहे हों परंतु वास्तव में विपक्ष के उसी ‘राजकुमार’ ने दलितों के घर की चारपाई पर मच्छरों के बीच रात गुज़ार कर उन $गरीबों के दु:ख-दर्द समझने का ज़मीनी प्रयास किया है। राहुल गांधी ने अपने सिर पर ईट-पत्थर से भरा हुआ तसला उठाकर मज़दूरों के साथ काम कर यह जानने की कोशिश की है कि मज़दूरी करने में कितनी मश$क्$कत करनी पड़ती है। अपने मित्र ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड मिलिबैंड को अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में $गरीब लोगों की झोंपड़ी में बिठाकर उन्हें यह दिखाने का प्रयास किया कि भारत $गरीब देश होकर भी कितना सुदृढ़ व आत्मनिर्भर देश है। किसानों पर उत्तर प्रदेश में हुए पुलिस अत्याचार के विरुद्ध पदयात्रा कर आम किसानों से जनसंपर्क करने का काम भी राहुल गांधी कर चुके हैें। उनकी राजनैतिक गतिविधियों को देखकर तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता कि उनका व्यवहार युवराज अथवा शहज़ादे जैसा है। परंतु राहुल विरोधी संभवत: युवाओं के मध्य उनकी लोकप्रियता से भयभीत होकर उन्हें इस प्रकार के $िखताब देकर राहुल व जनता के बीच $फासला बढ़ाना चाहते हैं।
परंतु जहां तक राहुल गांधी की वाणी या उनके द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली शब्दावली का प्रश्र है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि कई बार उनके मुंह से कुछ ऐसे शब्द निकल जाते हैं जो सुनने में ठीक नहीं लगते। और रही-सही कसर राहुल गांधी के विरोधी उस समय पूरी कर देते है जब वह उन्हीं असहज से लगने वाले शब्दों के अर्थ को निरर्थ कर डालते हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के लोगों को भीख मांगने वाली बात कहना उनका अत्यंत विवादित वाक्य था। अब यदि इस वाक्य के भाव को देखें तो इसमें वास्तव में यही नज़र आता है कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के लोगों को आत्मनिर्भर बनने तथा अपने ही गृह राज्य में रहकर अपनी रोज़ी-रोटी तलाश करने की सलाह दे रहे थे। उनके कहने का म$कसद यही था कि जब राज्य में रोज़गार होगा तो कोई व्यक्ति किसी दूसरे राज्य में जाकर वहां पेश आने वाली अपमानजनक स्थिति का सामना आ$िखर क्यों करेगा? यहां उनके भाषण लिखने वाले सलाहकारों को उनकी भाषण स्क्रिप्ट के शब्दों में मामूली सा परिवर्तन करते हुए उन्हें यह बोलने की सलाह देनी थी कि आ$िखर आप दूसरे राज्यों में अपना $खून-पसीना बहाने क्यों जाते हैं। हालंाकि इन दोनों वाक्यों का भावार्थ लगभग एक जैसा ही है। परंतु भीख मांगने वाला वाक्य अपने-आप में अपमानजनक सा महसूस होता है जबकि $खून-पसीना बहाने वाला वाक्य वीर रस का बोध कराता है।
कुछ ऐसी ही $गलती राहुल गांधी के सलाहकारों द्वारा उनके मुज़$फ्$फरनगर दंगों संबंधी उनके भाषण में भी की गई है। कश्मीर से लेकर सीमापार पाकिस्तान में तथा अ$फ$गानिस्तान के तालिबानों के पास भी 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर मुंबई के दंगों तथा 2002 में हुए गुजरात दंगों की वीडियों सीडी मौजूद हैं। और यही सीडी दिखाकर आतंकवादी मुस्लिम युवाओं के दिलों में भारत के प्रति न$फरत फैलाने की कोशिश करते हैं। तथा धर्म के नाम पर जेहाद करने व उनके हाथों में बंदूकें थमाने का काम करते हैं। पंजाब का खालिस्तान आंदोलन भी ऐसी घटनाअेां का शिकार रहा चुका है। 1984 के दंगों से लेकर स्वर्ण मंदिर में हुई फौजी घुसपैठ आदि सब की वीडियो रिकॉर्डिंग दिखाकर सिख युवकों को वर$गलाया जा चुका है। और इन सब में विदेशी ता$कतों की $खासकर आईएसआई की विशेष भूमिका रही है। लिहाज़ा मुज़$फ्$फरनगर के उन दंगा पीडि़तों ने जिन्होंने अपनी आंखों से अपने परिवार के सदस्यों का $कत्ल होते,अपने घरों में आग लगते तथा अपनी बहू-बेटियों की इज़्ज़त लुटते हुए देखा हो उन्हें वर$गलाने में आईएस आई क्यों दिलचस्पी नहीं लेगी? लिहाज़ा बहस तो इस विषय पर होनी चाहिए कि ऐसे हालात ही देश में क्योंकर पैदा हों? दोष उनपर मढऩा चाहिए जो इस प्रकार के दुर्भावनापूर्ण वातावरण बनाने के जि़म्मेदार हैं। बजाए इसके स्वयं सांप्रदायिक ता$कतें ही राहुल गांधी को घेरने में लगी है कि उन्होंने अल्पसंख्यकों को बदनाम क्यों किया? और इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण यह कि स्वयं अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से भी राहुल को घेरने की कोशिश की जा रही है।
ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि राहुल गांधी के सलाहकार व उनके भाषणों को अंतिम रूप देने वाले साहित्यकार व लेखक अत्यंत प्रभावी परंतु संयमित शब्दों का प्रयोग राहुल गांधी के भाषणों में किया करें। देश के जिन युवाओं को राहुल गांधी के भीतर देश का भविष्य दिखाई दे रहा है वे युवा निश्चित रूप से राहुल गांधी के मुंह से अत्यंत संयमित,सधा हुआ, प्रगतिशील तथा सार्थक शब्द सुनना चाहते हैं। और इसकी जि़म्मेदारी राहुल गांधी से अधिक राहुल गांधी के सलाहकारों पर है।
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Nirmal Rani**निर्मल रानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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