संजय राय,
आई एन वी सी,
हरयाणा,
राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि भाषाए एवं साहित्य हमारी सांझी धरोहर है। संस्कृत तथा तमिल जैसी क्लासिकल भाषाएं, मूल साहित्य तथा व्याकरणीय परंपराओं के साथ विश्व में जीवित सबसे पूरानी भाषाओं में है। ये भाषाएं आधुनिक हिंदू धर्म को विकसित कर इसे आगे बढ़ाने में आगे रही हैं तथा इनका विश्व की अन्य प्रमुख साहित्यिक की ग्रीक, लैटीन, चीनी तथा फारसी जैसी भाषाओं के समान महत्व है। मुखर्जी आज कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र के प्राच्य विज्ञान भाषा विभाग द्वारा विश्वविद्यालय के श्रीमद भगवद गीता सदन में वैश्विक-समस्यानां प्राच्यविद्यया समाधानम् विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्यातिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति लैफ.जरनल डीएस संधु व अन्य संकाय सदस्यों को इस प्रकार के सेमिनार आयोजित करने के लिए बधाई भी दी। मुखर्जी ने कहा कि सेमिनार का शीर्षक निश्चय ही सराहनीय है। विश्वविद्यालयों में इस प्रकार के शिर्षक का चयन करना आमतौर पर प्रचलन में नही है। प्राच्य विद्या भारतीय भाषाओं, कला, रीति रिवाजों, धर्म, विश्वास तथा इससे संबंधित अन्य पहलुओं से संबंधित भारतीय संस्कृति अध्ययन की जड़ है। परंतु इस पर 19वीं सदी के बाद ध्यान दिया गया है। प्राच्य विद्या का मूल अध्ययन सर विलियम जॉनस द्वारा 1784 कलकता में स्थापित एसैटिक सोसायटी में किया गया। तत्कालीन महाराजा बड़ौदा द्वारा 1893 इसका दूसरा केंद्र स्थापित किया गया है। इस संस्थान में हिंदू, बौध धर्म तथा अन्य प्राच्य विद्या से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर कार्य किया गया है। प्राच्य विद्या के मूल अनुसंधान के लिए 1882 में मद्रास में भी थियोसोपिकल सोसायटी की स्थापना की गई तथा इस आंदोलन को आगे चलाने में एओ ह्यूम तथा गोपाल कृष्ण गोखले जैसी महान विभूतियों ने भी सहयोग दिया था। 1893 में एनी बेसेंट के आने के बाद इसे और बढ़ावा दिया गया। उन्होंने भारतीय समाज तथा इसकी संस्कृति पर अनेक किताबे लिखी और फ्रांस तथा जर्मनी के बाद युरोप में प्राच्य विद्या की लहर फैल गई। हारवर्ड तथा यले जैसे अमेरिका के विश्वविद्यालयों में प्राच्य विद्या के केंद्र हैं। भारत व विश्व में प्राच्य विद्या में लोगों की इच्छा के बावजूद भी इसे ज्यादा सफलता नही मिली। इसमें बेरोजगार की कम संभावनाएं तथा पश्चिम विचारधारा का प्रभाव रहा है। भारतीय संस्कृति को पश्चिम विचारधारा से देखा गया तथा एक लेखक ने तो इसे युरोपनाईजेशन आफ अर्थ तक कहा। मुखर्जी ने भगवत गीता के पवित्र उपदेशों का वर्णन करते हुए कहा कि हमें गीता के सिंद्धातों पर चलना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को कर्म के सिद्धांत का उपदेश दिया था। उनका यह संदेश सच्चा था तथा इस पर चलते हुए आज भी लड़ाई से बच सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं तथा दर्शन शास्त्र में अच्छी शिक्षाओं का सार है। उन्होंने कहा कि सही अर्थों में जीने के लिए धर्म तथा अर्थ महत्वपूर्ण पहलू हैं। धर्म एक कानून है और हमारा कर्तव्य भी है। अर्थ जीवन की मूल आवश्यकता है। हमें हमेशा अपने दिमाग में इस बात को याद रखना चाहिए कि भारतीय परंपरा, अर्थ या धन का कोई अंत नही, बल्कि एक मतलब है। धन मूल आवश्यकताओं को पूरा करने का एक माध्यम होना चाहिए, न कि एक लक्ष्य प्राप्त करने का साधन। उन्होंने अर्थ पर प्रसिद्ध दार्शनिक डा. एस राधाकृष्णन द्वारा दिए गए तर्क का हवाला भी दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि वासुदेव कुटुम्बकम ने हमें कहा था कि पूरे विश्व को एक परिवार जैसा समझना चाहिए। आधुनिक युग में कई प्रकार के संघर्ष हमारा जीवन, आंकाक्षाएं, प्रतिस्पर्धा तथा संघर्ष से प्रभावित है। भौतिकवाद के युग में आज सबसे फिट रहकर जीने का एक नया युद्ध छेड़ दिया। नैतिक मूल्यों का हस हो रहा है। हर किसी पर चिंताएं एवं बैचनियां बढ़ रही हैं। प्राचीन साहित्य में दिए गए जीवन, खुशहाली, शांति, समृद्धि व कर्तव्य के अर्थों का वर्णन है। हमें जीवन मेें इन्हें अपनाना चाहिए। 19वीं सदी में महान विभूतियों एवं विचारकों ने समाज के उत्थान के लिए कार्य किए। आर्य समाज, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज तथा थ्योसोपिकल सोसायटी के माध्यम से मानव जीवन को ऊपर उठाने के लिए आंदोलन चलाए गए। मुखर्जी ने कहा है कि अब एक पुनः समय आ गया है कि हमारे प्राचीन परंपराओं एवं नैतिक मूल्यों से विश्व को शिक्षा लेनी चाहिए। नैतिक मूल्यों का ज्ञान हमारे बच्चों को होना चाहिए। वर्ष 1948-49 डा. एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने हमारे विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में नैतिक शिक्षा को पाठयक्रम में शामिल करने की सिफारिश भी की। राष्ट्रपति ने कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र की शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ खेल कूद जैसी अन्य गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन की सराहना भी की। उन्होंने कहा कि मुझे जानकारी दी गई है कि इस विश्वविद्यालय में 9 अर्जुन अवार्डी, 2 द्रोणाचार्य तथा एक मेजर ध्यानचंद अवार्डी पैदा किया है। राज्यपाल श्री जगन्नाथ पहाडि़या ने कहा कि आज मानवता के सामने अनेक चुनौतियां हैं। प्राकृतिक संसाधनों के साथ खिलवाड़ सबसे बड़ी चुनौती है। इस कार्य में मानवता को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दिया जाना जरूरी है, तभी हम विश्व में सभी समस्याओं का समाधान कर पाने में सक्षम होंगे। समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि प्राच्य विद्या को केवल हमारी पुरानी धरोहर के अध्ययन तक सीमित नही रखा जाना चाहिए। हमारा प्राचीन इतिहास निःसंदेह स्वर्णीमय रहा है। परंतू केवल इस की प्रशंसा करना हमारी गलती होगी। हमें भारतीय वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं तथा अन्य विशेषज्ञों के योगदान की भी चर्चा करनी होगी। जिन्होंने ज्ञान के रूप में एकत्रित किया है। भारत के सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के योगदान का आज विश्व में नाम है। हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज हम इस ग्र्रह पर भारत के पास तकनीकी कार्यबल का सबसे बड़ा बल उपलब्ध है। परंतू जब हम वैश्विक चुनौतियों का समाधान प्राच्य विद्या के माध्यम से करने की बात करते हैं तो हमें आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारत के योगदान के बीच चर्चा करनी होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी ज्ञान की शताब्दी होगी और इसके दूसरे दशक में हम पहुंच गए हैं। आने वाले समय में केवल वही समाज, राज्य व देश आगे बढ़ेगा, जो शिक्षा को बढ़ावा देगा। उन्होंने शोधकर्ताओं तथा अन्य बौद्धिक विभूतियों को मानव सेवा में सहयोग करना चाहिए। मानव सेवा भगवान की पूजा के बराबर है। बाद में राज्यपाल श्री जगन्नाथ पहाडि़या ने धरोहर का अवलोकन किया तथा हरियाणा की संस्कृति व परंपराओं को प्रदर्शित करती अनेक कृतियों में गहरी रूचि ली। राज्यपाल ने कहा कि धरोहर इतिहास और विकास का अनुठा संगम है, जहां युवा पीढ़ी को हमारी प्राचीन संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिलता है। इस धरोहर में हरियाणा के प्राचीन इतिहास तथा ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी अनेकों अनुठी प्राचीन वस्तुएं संकलित की गई हैं, जिनसे हमें हरियाणा के प्राचीन ग्रामीण परिवेश का अहसास होता है। धरोहर के क्यूरेटर डा. महासिंह पूनिया ने राज्यपाल को धरोहर के भाग-1 और 2 के हिस्सों में संकलित संस्कृति से जुड़ी कृतियों के बारे में विस्तार से बताया। इस अवसर पर शिक्षा मंत्री श्रीमती गीता भुक्कल, सांसद रामप्रकाश, नवीन जिंदल, ईश्वर सिंह, मुख्य संसदीय सचिव सुल्तान सिंह जडौला, विश्वविद्यालय कुलपति डीडी एस संधु, केडी संस्कृति विश्वविद्यालय दरभंगा बिहार के पूर्व कुलपति प्रो. बीएस कुमार के अलावा बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य व विद्यार्थी उपस्थित थे।