प्रख्यात साहित्यकार कामतानाथ नहीं रहे ….

आई.एन.वी.सी,,

लखनऊ,,

प्रख्यात साहित्यकार कामतानाथ (78 वर्ष) का कल रात 9 बजे लखनऊ स्थित राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया । वह काफी समय से लीवर कैंसर से पीड़ित थे । उनके निधन से नि:संदेह हिन्दी साहित्यजगत को आपूरणीय क्षति हुयी है । उनका अंतिम संस्कार आज सुबह वैकुंठ धाम में हुआ । 22 सितम्बर 1934 को लखनऊ में जन्मे कामतानाथ साहित्य – जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं. उनके अब तक छह उपन्यास और ग्यारह कहानी – संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. उन्हें ‘ पहल सम्मान ‘, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद की ओर से ‘ मुक्तिबोध पुरस्कार ‘, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से ‘ यशपाल पुरस्कार ‘, ‘ साहित्य भूषण ‘ तथा ‘ महात्मा गांधी सम्मान ‘ प्राप्त हो चुका है | वे रिजर्व बैंक से सेवा निवृत हुये थे । पूरा जीवन उन्होने साहित्य के नाम समर्पित कर दिया । वह प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रहे । लीवर कैंसर की जानकारी होने पर करीब तीन माह पूर्व उन्हें पी जी आई में भर्ती करवाया गया था । बाद में उनको लोहिया अस्पताल और फिर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती करवाया गया था । वह अपने पीछे पत्नी,एक बेटा और तीन बेटियों को छोड़ गए । कामतानाथ ने अपने साहित्य से हमेशा मजलूमों की आवाज़ को बुलंद किया । एक कदम आगे बढ़ते हुये उन्होने बैंक और मजदूर आंदोलनों का नेतृत्व किया । दूसरी ओर उन्होने केवल नाटक ही नहीं लिखे बल्कि उनमें अभिनय भी किया । अंतिम दिनों में वह ‘बल कथा’ उपन्यास के शेष खंड लिख रहे थे । उनके निधन से साहित्य ही नहीं रंगकर्म और आंदोलन कर्मियों में भी शोक है । प्रखर आलोचक वीरेंद्र यादव के अनुसार साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख कहानीकार कामतानाथ प्रगतिशील आंदोलन के अगुवा थे , उनके जाने से हिन्दी साहित्य में एक रिक्तता आ गयी है । वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश का मानना है कि रंगकर्म से जुड़ा एक प्रखर स्तंभ ढह गया । यह हमारे लिए एक गहरा सदमा है । वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि कामता नाथ ने ब्रेख्त के नाटकों और फ्रांस के मोनोलोग का भी वहतरीन अनुवाद किया था । वैश्विक साहित्य पर उनकी गहरी पकड़ थी । ऐसे व्यक्तित्व का अचानक चला जाना हमें गहरी पीड़ा दे रहा है । वरिष्ठ साहित्यकार शकील सिद्दीकी इस गहरी संवेदना के क्षणों में कुछ ज्यादा दुखी दिखे । उन्होने कहा कि बड़ी सादगी से अपना बना लेते थे कामता नाथ । परिकल्पना ब्लोगोत्सव के प्रधान संपादक रवीद्र प्रभात ने कहा कि मैं कमतानाथ जी से दो-तीन बार ही मिला हूँ किन्तु जो मैंने महसूस किया उसके आधार पर यही कह सकता हूँ कि बेहद सादगी भरा मगर असाधारण व्यक्तित्व थे कामतनाथ । उनके विचारों के साथ-साथ साहित्य में सामाजिक प्रतिबद्धता स्पस्ट दिखती थी । उन्होने हमेशा युवाओं को प्रोत्साहित किया और सोद्देश्य लेखन पर ज़ोर दिया । निश्चित रूप से उनके निधन से प्रगतिशील साहित्य को गहरी क्षति हुयी है ।

1 COMMENT

  1. Kamtanath ka jana hindi sahitya jagat ki apurniya kshati hai.prantu unki rachnawon se mili bate aajiwan hamara margdarsan karengi.

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