एक समय राजस्थान के मरूस्थल में भले ही सनसनाती तेज हवाएं रेल एवं सड़क मार्ग पर बालू रेत के पहाड़ बना कर यातायात को बाधित कर देती थीं और चिलचिलाती गर्मी से लोगों का जीवन दूभर हो जाया करता था । लेकिन आज ये हवाएं और सूर्य का प्रचण्ड ताप अक्षय ऊर्जा का सबसे अच्छा स्रोत हैं तथा इन वैकल्पिक स्रोतों से राज्य ने विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में लय पकड़ना शुरू कर दिया है।
देश में राजस्थान ऐसा राज्य है, जहां परमाणु, ताप, गैस और पन बिजली पहले से ही बन रही है तथा अब सौर व पवन ऊर्जा के अपार भण्डार से भी विद्युत निर्माण की दिशा में गति पकड़ना शुरू हो गया है। राज्य सरकार गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत से बिजली बनाने के लिये एक दशक पूर्व मैदान में उतरी थी, लेकिन हाल के वर्षों में सक्रिय हुई है । राज्य में पवन ऊर्जा से 5400 मेगावाट तक सकल उत्पादन की क्षमता अनुमानित है ।
नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार द्वारा स्वीकृत तीन पवन प्रदर्शन संयंत्र जैसलमेर, फलौदी एवं देवगढ़ में स्थापित हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 6.35 मेगावाट है । आर आर ई सी द्वारा वर्ष 2004 में 25 मेघावाट का प्रथम वृहद पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया था । दूसरा 10.2मेगावाट का पवन ऊर्जा का एक और संयंत्र वर्ष 2006 में स्थापित किया गया । इसके अतिरिक्त वर्ष2010 में भी 10.2 मेगावाट का पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया । राज्य में अब तक 1900मेगावाट क्षमता की पवन ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की जा चुकी हैं, जिस पर 9129 करोड़ से अधिक का विनियोजन हुआ है ।
गत वर्ष चैन्नई में आयोजित विण्ड इण्डिया 2011 अवार्ड समारोह में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन के लिये राजस्थान को अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक वृद्धि दर के लिये प्रथम पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। अगले दो तीन साल में 1200 मेगावाट की परियोजनाएं और स्थापित करने का लक्ष्य है । प्रदेश में पवन ऊर्जा की जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, सीकर एवं चित्तौड़गढ़ में साइटें हैं । नये विण्ड फार्मों के लिये राजस्थान एक महत्वपूर्ण राज्य माना जा रहा है । हवा से बिजली पैदा करने वाले राज्यों में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मघ्यप्रदेश, आंघ्रप्रदेश, केरल, उडीसा और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं । हमारा देश पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने के क्षेत्र में दुनिया में अमरीका, चीन, जर्मनी, स्पेन के बाद पांचवे स्थान पर है तथा देश में पवन ऊर्जा का विद्युत निर्माण में छह प्रतिशत का योगदान है ।
राजस्थान में 2011 तक अलग-अलग स्थानों पर सौर ऊर्जा की कुल 54.5 मेगावाट क्षमता की स्थापित परियोजनाएं बिजली पैदा कर रही थीं । खुश खबर यह है कि वर्ष 2012 का सूर्य नई ऊर्जा और उष्मा लेकर आया है । इस वर्ष सौर ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान ने देश में 40 मेगावाट क्षमता के पहले वृहद सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना का गौरव हासिल कर लिया है। प्रदेश के जैसलमेर जिले के पोकरण के समीप धूड़सर गांव में 31 मार्च 2012 से इतनी बड़ी क्षमता में सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाले संयंत्र ने काम करना शुरू कर दिया है, जिससे सालाना लगभग 720 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन होगा ।
रिलायन्स पावर लिमिटेड द्वारा धूड़सर गांव में 40 मेगावाट के फोटोवोल्टिक पावर प्लांट की स्थापना इस दृष्टि से ऐतिहासिक है कि यहां एक दिन में 40 मेगावाट सौर ऊर्जा मिलेगी । लगभग 400 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना का निर्माण 140 हैक्टर पर किया गया है । रिलायंस ग्रुप आने वाले दो साल में 300 मेगावाट क्षमता के और सौर ऊर्जा संयंत्र लगायेगा, जिस पर छह हजार करोड़ रुपए की धनराशि खर्च होगी ।
सन् 2022 तक देश में 20 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश, प्रोत्साहन और संयंत्रों के व्यापक विस्तार के लिए राजस्थान सरकार की सौर ऊर्जा नीति की उद्यमियों ने सरहाना की है । इस क्षेत्र में 10 हजार करोड़ का निवेश हो रहा है तथा छह हजार करोड़ का निवेश और होने की उम्मीद है। बिजली निर्माण से जुडे इंजीनियरों एवं विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान देश का एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां पवन और सौर ताप के विपुल भण्डार एवं पर्याप्त बायोमास है । इसके अलावा जमीन की भी कोई कमी नहीं है । अब जरूरत है कि ज्यादा से ज्यादा निवेश हो और निवेशकों के लिए रियायतों का प्रावधान हो, ताकि एक दिन धोरों की धरती सौर ऊर्जा पार्क बन कर उभरे तथा सौर और पवन ऊर्जा से अनेक गांव रोशन हों।