– डॉ डी.पी. शर्मा –
यह उम्मीद आज भारतीय लोकतंत्र की विजय के साथ देश के जनमानस के मस्तिष्क पटल पर एक चमक पैदा करती है/ यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इस चुनाव में कौन हारा, कौन जीता / यह भी महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन कितने से जीता और कौन कितने से हारा / महत्वपूर्ण तो यह है कि देश की उम्मीदों का अजर-अमर लोकतंत्र अखंड एवं प्रचंड उम्मीदों के साथ विजयी रहा / यह भारतीय इतिहास में "महाभारत" का एक ऐसा लोकतांत्रिक समर था जो किसी भी धर्म की संस्थापना के लिए नहीं लड़ा गया जैसा कि लोग समझ रहे हैं वल्कि लोकतंत्र में धर्म की संस्थापना के लिए, संवैधानिक न्याय की संस्थापना के लिए, सार्वभौमिक शुचिता की संस्थापना के लिए, मानव हित की संस्थापना के लिए, सबके साथ सबके विकास की प्रतिवद्धता के लिए लड़ा गया / मतभेद रहे होंगे पार्टियों के,मतभेद रहे होंगे उनकी सोच एवं विचारधाराओं के, परंतु जब देश के पराजित लोकतांत्रिक योद्धाओं ने देश के विजेता को विजयी होने की बधाइयां दी तो भारत का लोकतंत्र एक बार फिर कह उठा " दुनिया वालों आप हमारे किसी भी राजनैतिक आधिरथी या महारथी के लिए कुछ भी लिखें कुछ भी टिप्पणी करें कुछ भी कहानियां गढ़ें " दुनियां का सबसे बड़ा भारतीय लोकतंत्र अब परिपक़्वता के शिखर की ओर अग्रसर है जो मनभेद से परे सिर्फ मतभेद में विश्वास करता है / यह सत्यता की कसौटी पर साबित हो चुका कि भारतीय लोकतन्त्र का विपक्ष भी अंतरराष्ट्रीय कहानियों व सोच से संक्रमित हुए बिना राष्ट्रीय विचारधारा एवं राष्ट्र की उन्नति के मार्ग पर कंधे से कंधा मिलाकर चलता है / आखिर लोकतंत्र जीत गया, भारत जीत गया / ये भी उम्मीद की जाती है कि इस लोकतान्त्रिक महाभारत के समस्त पराजित एवं अपराजित योद्धा एक बार पुनः एक राष्ट्र के एक प्रधान सेवक को शपथ ग्रहण समारोह में एक बार पुनः उपस्थित होकर बधाई एवं सहयोग का संदेश देंगे कि हम कल भी आपके साथ थे, आज भी आपके साथ हैं और कल भी आपके साथ ही रहेंगे मतभेदों के साथ भी और मतभेदों के बाद भी परंतु अखण्ड भारत देश के लिए एकाकार रूप में/ सनद रहे कि यह लोकतान्त्रिक महाभारत का युद्ध सिर्फ राष्ट्र की भूमि पर ही नहीं वल्कि साइबरस्पेस मैं भी लड़ा गया था / यह पहला मौका था जब चुनाव प्रचार के बादल जमीन से आसमान तक मँडराते रहे / खट्टेमीठे अनुभवों की वारिश करते रहे / पद और सरकार गठन की अनन्त संभावनाओं पर समीकरण बिठाते रहे/ कहते हैं कि " भारतीय लोकतन्त्र में राजनीति कोई जिद्दियों का खेल नहीं वल्कि अनंत संभावनाओं का एक ऐसा धरातल है जहाँ कभी भी कुछ भी संभव है, कोई भी कुछ भी बन सकता है " भारतीय लोकतंत्र की इस ख़ूबसूरती को दुनियाँ तो जानती भी है और मानती भी परन्तु सिर्फ हम हीं हैं शायद जो या तो जानते नहीं और या फिर जानबूझकर मानते नहीं l
हमने यह लोकतंत्र का युद्ध धरती पर भी लड़ा और अंतरिक्ष ( साइबरस्पेस ) में भी/ चुनाव ने दुनिया को यह बता दिया कि भारत के पास धरती पर युद्ध लड़ने की क्षमता भी है और साइबरस्पेस में भी परंतु फिर भी कोई भी विश्वव्यापी हैकिंग, क्रैकिंग,ट्रॉलिंग, कॉलिंग ( जैसा की अमेरिका में आरोप लगे ) के हथियार भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा रेखा (फायरबॉल) को कभी भी भेद नहीं सकते चाहे हमारे बीच आपसी विचारधाराओं के मतभेद हों परन्तु राष्ट्रीय एकता के मंच पर हम सारे भेद भुलाकर देश के प्रधान सेवक, देश की सरकार, और उसके राष्ट्रव्यापी प्रगति के कार्यों में सिर्फ कंधे से कंधा मिलाकर ही नहीं वल्कि एक स्वर वाणी से वाणी मिलकर साथ खड़े हो जाते हैं/ यह भारत के परिपक्व लोकतंत्र की पराकाष्ठा का ही तो ही तो एक उदाहरण है जिसमें देश का नवनिर्वाचित प्रधान सेवक/ प्रधानमंत्री विजय के प्रथम संबोधन के दौरान कहता है कि " सरकारें बहुमत से बनती हैं परन्तु देश सर्वमत एवम लोकमत से चलता है/ देश का नव निर्वाचित भावी प्रधानमंत्री कहता है कि " मैं ना किसी बदनियत से काम करूंगा ना और न ही किसी बदभावना से काम करूंगा/ मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मैं अपने लिए कुछ न करूं इसमें उसकी ईमानदारी परिलक्षित होती है/ वह कहता है कि "मेरा कण-कण और मेरा क्षण क्षण राष्ट्र के लिए समर्पित होगा, यह उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है l
इन सबके परे दुनियां में भारतीय लोकतंत्र की श्रेश्ठता तब और मजबूत प्रतीत होती है जब देश का नव निर्वाचित प्रधानसेवक कहता है कि "इस लोकतांत्रिक महाभारत में सिर्फ जनता की जीत हुयी है क्योंकि जीतने वाले ने भी वोट दिया और हारने वाले ने भी, जीतने वाले के वोट की भी कीमत वही थी जो हारने वाले की, विजेता ने भी कहीं ख़ुद को वोट डाला तो कहीं किसी और कोऔर यही पराजित योद्धा के साथ भी यही हुआ / जनता की अनेकानेक विचारधाराओं ने जंग लड़ी / कहीं कोई हारा तो कहीं कोई जीता परन्तु अंततः जीत देश के लोकतंत्र की हुयी, जीत भारतीय संविधान की हुयी, जीत भारतीयता की हुई जिसे दुनियाँ ने अनेक रंगों एवं रूपों में देखा, जाना एवं अपने अपने नजरिये से विश्लेषित किया/ कहते हैं कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था और सारे योद्धाओं ने बर्बरीक " बाबा खाटूश्याम" जो कि सम्पूर्ण युद्ध के वरदान प्रत्यक्षदर्शी थे, से पूछा कि किस व्यक्ति का युद्ध पराक्रम सर्वश्रेष्ठ था तो उनका जवाब था " इस समर भयंकर युद्ध में दोनों ओर से सिर्फ हस्तिनापुर नहीं वल्कि भारत युद्धरत था/ जीत भी भारत ही रहा था और हार भी भारत/ इन सबके बीच सिर्फ में योगेश्वर कृष्ण को ही केंद्र में देख रहा था जो महारथी योद्धा भी था और इस युद्ध का कारण भी / यही तो देश के नव निर्वाचित प्रधानसेवक ने उद्धृत किया कि लोकतंत्र का यह महाभारत देश की जनता के बीच विनाश के लिए न होकर विकाश के लिए लड़ा गया जिसमें पराजित पक्ष भी भारत है और विजेता पक्ष भी / यही महान परम्परा भारत के लोकतंत्र को दुनियाँ में महान एवम श्रेष्ठ्ता का मुकुट पहनाती है l
हमारे मतभेद हो सकते हैं परन्तु आज देश की संस्कृति, संस्कार एवं परम्पराएँ जीवंत हो चलीं जब भारतीय लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली प्रधान सेवक ने संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद वरिष्ठजनों यानी लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और प्रकाश सिंह बादल के पैर छुए और आशीर्वाद लेकर ये सिद्ध कर दिया कि बड़ा पद नहीं वल्कि संस्कार होने चाहिए/ कितना प्रासंगिक है देश के प्रधानसेवक का यह वक्तव्य कि "देश अब सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के मंत्र से चलेगा क्योंकि इस चुनाव ने दीवारें तोड़ने और दिल जोड़ने का काम किया है / ये चुनाव सामाजिक एकता का आंदोलन बन गया जिसमें आरोपों प्रत्यारोपों के बवण्डरों एवं खट्टे मीठे अनुभवों के बीच भी समता भी अक्षुण्ण रही और ममता भी। समभाव भी साथ रहा और ममभाव भी। समता और ममता के संगम से भारतीय लोकतंत्र के महापर्व रूपी चुनाव को नई ऊंचाई मिलीं। आज भारत के लोकतांत्रिक जीवन में देश की जनता ने एक नए युग का आरंभ किया है और हम सभी इसके प्रत्यक्ष साक्षी हैं परन्तु इसके रचयिता होने का दावा नहीं करते।"
उन्होंने उद्धृत किया कि सन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम इस देश की हर कौम, जाति, पंथ ने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था। देश की एकता और अखंडता के लिए संविधान की शपथ लेने वालों का दायित्व है कि उस आजादी की भावना को जिंदा करें। ये वह संविधान है, जिस पर देश के महापुरुषों के हस्ताक्षर हैं हम नवनिर्वाचित लोगों के नहीं । अगर भारत को आगे ले जाना है तो एकमात्र मार्ग है कि 21वीं सदी में सभी को आगे ले जाना है। किसी को पंथ, जाति, भेदभाव के आधार पर पीछे छोड़ना नहीं चाहिए। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास ही हमारा मंत्र होना चाहिए ।
जब प्रधानसेवक कहा कि भारत के लोकतंत्र के लिए सभी पार्टियों को जोड़कर चलना समय की मांग है। ये देश के लोकतंत्र की ताकत ही तो है जहाँ ''पूरे विश्व का ध्यान भारत के इस चुनाव पर था और विदेशी जिज्ञासावश पूछ रहे थे प्रचण्ड तपते सूरज के तले वोट डालने कैसे जाते हैं भारतीय ?
गंगा पुत्र भीष्म , कुंती पुत्र अर्जुन और यशोदा नंदन के आदर्शों का यह भारत इस लोकतान्त्रिक चुनावी समर में यह सन्देश दे गया कि देश की मातृशक्ति भी पुरुषों की बराबरी की ओर अग्रसर है, अगली बार आगे निकल जाने के संकल्प के साथ / आज हमारी बहुत बड़ी जिम्मेवारियां हैं, इन्हें हम सभी को मिलकर निभाना है। सनद रहे कि भारत का मतदाता सेवाभाव को स्वीकार करता है और भारत के लोकतंत्र को हमें समझना होगा। भारत का लोकतंत्र, मतदाता और उसका जो विवेक है, शायद किसी मानदंड पर उसे नापा नहीं जा सकता। दिन-ब-दिन भारत का लोकतंत्र इतना परिपक्व होता जा रहा है कि सत्ता, सत्ता का रुतबा भारत के मतदाता को कभी प्रभावित नहीं कर पाया यानी भारत एक बदलाव एवं रूपांतरण की ओर अग्रसर l
अंततः अनेकों मतभेदों के बावजूद भी नवनिर्वाचित प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी के बारे में सिर्फ यही कहा जा सकता कि " गले में उसके खुदा की एक अज़ीब कुदरत है , वो जब बोलता है तो एक रौशनी सी निकलती है " यही वह रौशनी है जो सामान्य मानव को लोकतंत्र की परम्पराओं में उसे महामानव बनाती है l
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परिचय – :
डॉ डीपी शर्मा
परामर्शक/ सलाहकार
अंतरराष्ट्रीय परामर्शक/ सलाहकार
यूनाइटेड नेशंस अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन
नेशनल ब्रांड एंबेसडर, स्वच्छ भारत अभियान
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