– निर्मल रानी –
देश में बढ़ते जा रहे सांप्रदायिक व जातिवादी वैमनस्य व इसके चलते दिनों-दिन बढ़ती जा रही असहिष्णुता के समाचार इन दिनों देश के किसी न किसी क्षेत्र से आते ही रहते हैं। और इनसे संबंंधित हिंसक घटनाओं में शामिल लोगों को धर्म व संप्रदाय के नाम पर संरक्षण दिए जाने के समाचार भी समय-समय पर सुनाई देते हैं। मसलन दादरी में गौमांस रखने के नाम पर हुई भारतीय वायुसेना के एक कर्मचारी के पिता अखलाक अहमद की हत्या का ही मामला देख लीजिए। देश का कोई भी कानून यह नहीं कहता कि यदि किसी के घर में कोई गैरकानूनी या आपत्तिजनक वस्तु मिले तो उसे उसके घर में भीड़ द्वारा ज़बरदस्ती घुसकर उसे घर के बाहर खींचकर दर्जनों लोगों द्वारा पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी जाए। परंतु दादरी में ऐसी शर्मनाक घटना घटी और इससे भी खतरनाक मोड़ इस घटना ने उस समय ले लिया जबकि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े अनेक प्रमुख नेताओं ने न केवल इस हिंसक घटना को जायज़ ठहराना शुरु कर दिया बल्कि ऐसे पक्षपाती लोगों द्वारा हत्यारों की पैरवी भी की जाने लगी। यह घटनाक्रम यह साबित करता है कि अपने राजनैतिक फायदे के लिए भाजपाई नेताओं द्वारा अखलाक के हत्यारों को समर्थन दिया गया।
परंतु उपरोक्त घटना से जुड़ा एक दूसरा पहलू भी है। और वह है राष्ट्रीय स्तर पर देश के अधिकांश बहुसंख्य हिंदू समाज के लोगों, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं तथा धर्मगुरुओं द्वारा दादरी कांड की भत्र्सना किया जाना। हिंदूवादी विचारधारा के लोगों द्वारा अखलाक के हत्यारों को समर्थन दिए जाने के बावजूद ऐसा प्रतीत हो रहा था गोया पूरा देश अखलाक के परिवार के साथ खड़ा हो। निश्चित रूप से यही हमारे देश का मूल सिद्धांत भी है और यही हमारे देश का संविधान भी हमें सिखाता व निर्देशित करता है। अपराध आखिरकार अपराध ही होता है चाहे वह किसी भी धर्म, संप्रदाय अथवा जाति से संबंध रखने वाले लोगों द्वारा क्यों न किया जाए और यदि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को संरक्षण देता है तो गोया वह उसके द्वारा किए गए अपराध को ही संरक्षण दे रहा है। और यदि किसी अपराध या अपराधी को सिर्फ इसलिए संरक्षण अथवा समर्थन दिया जा रहा हो कि वह अपराधी समुदाय विशेष से संबंध रखता है तो ऐसी सोच तो देश की सांप्रदायिक एकता के लिए और भी अधिक खतरनाक है। वैसे भी हमारे देश में कानून का राज है। जिस प्रकार की आक्रामकता का प्रदर्शन दादरी में किया गया वह निश्चित रूप से एक कट्टरपंथी तालिबानी सोच का प्रदर्शन है। इस घटना ने केवल भारत में रहने वाले धर्मनिरपेक्ष व उदारवादी अथवा मानवतावादी वर्ग के लोगों को ही नहीं झिंझोड़ा बल्कि पूरे विश्व के मीडिया का ध्यान भी इस शर्मनाक घटना ने अपनी ओर आकर्षित किया।
पिछले दिनों हरियाणा के ताबड़ू क्षेत्र के अंतर्गत पडऩे वाले एक गांव टीकरहेड़ी में मुस्लिम समुदाय से संबंध रखने वाली दो लड़कियों के साथ जिस प्रकार कई लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया और बलात्कार के समय एक दंपत्ति की हत्या भी कर दी गई इस घटना ने एक बार फिर हमारे देश के माथे पर कलंक लगाने का काम किया है। समाचारों के अनुसार इन बलात्कारियों व हत्यारों में से कुछ लोगों का संबंध कथित तौर पर गौरक्षा समिति से भी है। $खबरों के अनुसार इस शर्मनाक घटना का भी सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यही है कि बलात्कारियों व हत्यारों के बचाव में भारतीय जनता पार्टी के नेता यहां तक कि भाजपा के ही सथानीय सांसद तथा इनके दबाव में पुलिस व प्रशासन के लोग भी उतर आए हैं। दादरी की घटना की ही तरह जहां धर्म व संप्रदाय के आधार पर हिंदुवादी राजनीति करने वाले लोग इस घटना को भी बहुसंख्य मतों का समर्थन प्राप्त करने के दृष्टिगत् देख रहे हैं वहीं दूसरी ओर यही घटना एक बार फिर दादरी कांड की ही तरह देश के उस वास्तविक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ही प्रदर्शित कर रही है जो हमारे देश की आत्मा में बसता है। उदाहरण के तौर पर हत्या व बलात्कार के आरोपी चार युवकों का संबंध एक ही जाति के लोगों से है।
गत् दिनों ताबड़ू में जब सभी बिरादरियों के लोगों की महापंचायत बुलाई गई उस पंचायत मेंं अपराधी युवकों की अपनी जाति व बिरादरी के लोगों ने भी भाग लिया और इसी बिरादरी के लोगों ने न केवल पीडि़त मुस्लिम परिवारों को तीन से पांच लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दिए जाने की घोषणा की बल्कि पंचायत में मौजूद हिंदू समुदाय के लोगों ने भी पीडि़त मुस्लिम परिवार को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की। इतना ही नहीं बल्कि जहां एक ओर हिंदूवादी राजनीति के खिलाड़ी हत्यारों व बलात्कारियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं पंचायत में अपराधियों की जाति व समुदाय से संबंध रखने वाले सैकड़ों लोगों ने आरोपियों को यथाशीघ्र कड़ी से कड़ी सज़ा देने की मांग भी की। इस वर्ग ने यह भी महसूस किया कि हत्या व बलात्कार की घटना से उनका सिर शर्म से नीचे हुआ है। तथा अपराधियों ने अपनी काली करतूतों से उनकी जाति व संप्रदाय को कलंकित किया है।
उपरोक्त घटना का एक और हैरतअंगेज़ पहलू यह भी है कि कहां तो कुछ दिनों पूर्व बुलंदशहर में बलात्कार की ऐसी ही एक हृदयविदारक घटना के बाद यही भाजपाई यह कहते सुनाई दिए थे कि उत्तर प्रदेश में सरेआम होने वाली ऐसी घटनाएं प्रदेश में गुंडाराज होने की परिचायक हैं। बुलंदशहर की घटना के बाद भाजपाईयों द्वारा उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा करने की पूरी कोशिश की गई। इस घटना के विरोध में जगह-जगह धरने व प्रदर्शन किए गए थे और मांगपत्र प्रस्तुत किए गए थे। और यहां तक कि भाजपाई नेता अखिलेश यादव की सरकार को बर्खास्त करने की मांग करते भी सुनाई दिए थे। यदि अपराध की कोई दूसरी घटना या किसी प्रकार की हत्या या बलात्कार की कोई खबर बिहार से सुनाई दे जाए तो भाजपाईयों द्वारा बिहार में जंगलराज की वापसी होने का $फतवा जारी कर दिया जाता है। परंतु कितने आश्चर्य का विषय है कि जब भाजपा शासित राज्य में यही घटना घटित होती है तो गुंडाराज व जंगलराज की उत्तर प्रदेश व बिहार में तख्ती उठाने वालों द्वारा हरियाणा में बलात्कारियों व हत्यारों की ही कथित रूप से मदद किए जाने का मामला सामने आता है। ताबड़ू घटना के कई आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने अपना दायित्व निभाने की कोशिश की है। और सरकार द्वारा इस कांड की जांच सीबाआई से कराए जाने की घोषणा भी कर दी गई।
देश में दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे सांप्रदायिक वैमनस्य के मध्य अब यह भी दिखाई दे रहा है कि धर्म व संप्रदाय के आधार पर किसी हत्यारे को महिमामंडित किया जा रहा है तथा उसे हीरो के रूप में पेश करने की नापाक कोशिशें की जा रही हैं। कभी आस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस व उसके दो बच्चों को कार में जि़ंदा जला दिए जाने की घटना के मुख्य आरोपी दारा सिंह को यही हिंदूवादी शक्तियां महिमामंडित करती दिखाई देती हैं और उसके कारनामों से प्रभावित लोगा बाकायदा दारा सेना के नाम से अपना संगठन बना बैठते हें। तो कभी देश की एक जि़म्मेदार समझी जाने वाली हिंदूवादी सांसद छोटा राजन जैसे अपराधी को हिंदू धर्म के हीरो के रूप में पेश करने की कोशिश करती है। यदि देश का कोई भी मुसलमान दाऊद इब्राहिम या अबु सलेम जैसे अपराधियों को अपना आदर्श अथवा हीरो मानता हो या केवल धर्म की वजह से वह उसके साथ या उसके समर्थन में खड़ा हुआ दिखाई दे तो वह भी अपराध एवं अपराधियों का समर्थक ही कहा जाएगा। मुज़फ्फरनगर में भी साम्प्रदायिक दंगों के बाद यही स्थिति देखी गई थी जबकि धर्म व सम्प्रदाय के नाम पर अनेक शक्तियां सक्रिय हो उठी थीं और न्याय की बात करने के बजाए सम्प्रदाय के आधार पर अपने अपने लोगों का समर्थन करने लगी थीं, चाहे वह हत्यारा हो, बलात्कारी हो या स्वयं हत्या व बलात्कार से पीडि़त परिवार।
साम्प्रदायिक दुर्भावना का यह नया चलन जिसमें कि हत्या व बलात्कार जैसे घिनौने, अमानवीय व राक्षसी कारनामे अंजाम देने वाले दुष्कर्मियों को भी सहयोग दिया जाने लगे व उनके समर्थन में खड़े होकर अपनी हिंदुवादी राजनीति चमकाने की कोशिश की जाने लगे, इससे बढ़कर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हमारे देश के लिए आखिऱ और क्या हो सकती है? इस प्रकार के जघन्य अपराधों व अपराधियों के साथ खड़े होने वाले लोगों को यह बखूबी समझ लेना चाहिए कि ऐसे अपराधी जो शराब के नशे में बलात्कार कर रहे हों और उसके बाद हत्या की घटना को अंजाम देते हों ऐसे लोग चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय से संबंधित हों, वे अपनी राक्षसी करतूतों से उस सम्प्रदाय को रुसवा व बदनाम करने का काम ही करते हैं, और यदि अपने राजनैतिक लाभ के दृष्टिगत् इन्हें समर्थन दिया गया तो, निश्चित रूप से जुर्म करने का इनका हौसला और अधिक बढ़ेगा और भविष्य में जब कभी फिर शराब पीकर इनपर बलात्कार का भूत सवार होगा तो कोई ज़रूरी नहीं कि ये दुष्कर्मी अपनी हवस मिटाने के लिए किसी सम्प्रदाय या जाति विशेष के लोगों की ही तलाश करें, बल्कि इनका शिकार कोई भी हो सकता है। लिहाज़ा हमारे देश के न्यायप्रिय समाज को बलात्कारियों व हत्यारों के विरुद्ध एक स्वर में सख़्त कार्रवाई किए जाने की मांग करनी चाहिए, न कि धर्म के नाम पर उनको संरक्षण दिए जाने जैसे शर्मनाक व पक्षपातपूर्ण क़दम उठाने की ज़रूरत है।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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