‘कांग्रेस मुक्त-आरएसएस युक्त’ भारत के निहितार्थ ?

– तनवीर जाफरी –

NARENDRAMODISONIYAGANDHI copyविगत् लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ किए जाने का आह्वान ऐसे समय में किया गया था जबकि देश मंहगाई तथा भ्रष्टाचार से पूरी तरह जूझ रहा था। साथ-साथ मोदी के नेतृत्व में भाजपा नेताओं ने देश को मंहगाई व भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन देने का वादा भी किया था। इसके अतिरिक्त भी भाजपा नेताओं द्वारा देश की जनता से तरह-तरह के लोकलुभावन वादे भी किए गए थे। भाजपा की सरकार अपने उन वादों को तो अभी तक पूरा नहीं कर सकी परंतु सत्ता में आने के डेढ़ वर्ष गुज़र जाने के बाद भी अभी तक भारतीय जनता पार्टी का देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ किए जाने का विलाप तथा इससे संबंधित साजि़शें लगातार जारी हैं। भाजपा जहां अभी तक देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ किए जाने की रट लगाए हुए है वहीं दूसरी ओर देश को संघ युक्त किए जाने का उसका प्रयत्न भी जारी है। आिखर किस मकसद के तहत भारतीय जनता पार्टी देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ व संघ युक्त किए जाने की बात कह रही है? अभी पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार विधानसभा चुनाव के संबंध में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में एक बार फिर अपने नेता नरेंद्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत के आह्वान की डुगडुगी बजाई। जबकि बिहार में कांग्रेस पार्टी गत् दो दशकों से भी अधिक समय से तीसरे और चौथे स्थान पर है। गोया बिहार तो पहले ही ‘कांग्रेस मुक्त’ हो चुका है। उधर लोकसभा में विगत् चुनाव में मात्र 44सीटें जीतकर कांग्रेस पार्टी अब तक की अपनी सबसे कमज़ोर स्थिति में है। फिर आिखर भाजपा नेताओं व भाजपा सरकार के मंत्रियों के सिर पर कांग्रेस विरोध का भूत अभी तक पूर्ववत् क्यों सवार है?

दरअसल कांग्रेस पार्टी भाजपा नेताओं के दुष्प्रचार के अनुसार केवल एक परिवार की  ही पार्टी मात्र रही है। जबकि कांग्रेस उस संगठन का नाम है जो गांधीवादी विचारधारा को परवान चढ़ाने वाला संगठन है। अपने गठन के समय से ही कांग्रेस पार्टी की नीतियां सर्वधर्म संभाव तथा धर्मनिरपेक्षता पर आधारित थीं। कांग्रेस के गठन के समय से ही इसमें सभी धर्मों व जातियों के नेताओं का प्रतिनिधित्व था। और इतिहास गवाह है कि कांग्रेस नेताओं की सर्वधर्म संभाव व धर्मनिरपेक्षता की कार्यशैली तथा यह विचारधारा जब देश के उस समय के कई कट्टर हिंदुत्ववादी नेताओं को रास नहीं आई तभी राष्ट्रीय स्वयं संघ जैसा संगठन अस्तित्व में आया जिसने सभी भारतवासियों के समान हितों की बात करने के बजाए कट्टर हिंदुत्ववाद के रास्ते पर चलना उचित समझा। निश्चित रूप से आज संघ अपने अधीन चलने वाले लगभग 40 सहयोगी संगठनों के साथ काम करते हुए पूरे देश में अपनी वैचारिक जड़ें इतनी गहरी कर चुका है कि देश के मतदाताओं ने उसके राजनैतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत में लाकर खड़ा करने में सफलता हासिल की है। और सत्ता में आने के बाद संघ व भाजपा का कांग्रेस पार्टी पर प्रहार तथा इतिहास से उसका नाम मिटाए जाने की साजि़शें लगातार जारी हैं। कभी पुरस्कारों से जुड़े गांधी परिवार के नेताओं के नाम हटाए जा रहे हैं तो कभी तीन मूर्ति भवन के संग्रहालय में दखल अंदाज़ी करने की बात कही जा रही है। कभी इंदिरा गांधी व राजीव गांधी के नाम पर चलने वाले डाक टिकट यह कहकर समाप्त किए जाने की कोशिश की जा रही है कि एक ही परिवार के नाम पर सभी सम्मान नहीं मिल सकते। इस प्रकार के और भी कई प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे देश के इतिहास से कांग्रेस पार्टी व इससे जुड़े नेहरू-गांधी परिवार के नेताओं के नाम-ो-निशान मिट जाएं।

कहने को तो कांग्रेस विरोधी विचारधारा के लोग खासतौर पर दक्षिणपंथी भाजपाई नेता जोकि देश में अपनी विचारधारा थोपने में लगे हुए हैं यह कह कर कांग्रेस पार्टी को बदनाम करने की कोशिश में लगे रहते हैं कि यह एक ही परिवार की पार्टी है। परंतु वे यह भूल जाते हैं कि देश का यह इकलौता ऐसा परिवार भी है जिसे देश की खातिर इंदिरा गांधी व राजीव गांधी जैसे दो बड़े नेताओं की कुर्बानी तक देनी पड़ी। भाजपाई यह भूल जाते हैं कि जिस इंदिरा गांधी को इमरजेंसी की ज़्यादतियों की बार-बार याद दिलाकर उन्हें तानाशाह साबित करने की कोशिश की जाती है उसी इंदिरा गंाधी को वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता की हैसियत से दुर्गाा की उपाधि से नवाज़ा था। गोया वाजपेयी जी को जिस इंदिरा गंाधी में दुर्गा नज़र आती थी वही इंदिरा गांधी आज के भाजपाईयों के लिए तानाशाह और परिवारवाद का प्रतीक बनी हुई हैं। यह कितनी विरोधाभासी स्थिति है। भाजपा सरकार का कथन है कि कांग्रेस ने डा०राजेंद्र प्रसाद,स्वामी विवेकानंद,सरदार पटेल मौलाना आज़ाद जैसे कई नेताओं के नाम का  टिकट जारी नहीं किया। यह महज़ देश की जनता को गुमराह करने की कोशिश है। दरअसल कांग्रेस के ही शासनकाल में डा० राजेंद्र प्रसाद,सरदार पटेल,मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,डा०बी आर अंबेडकर,सुभाषचंद्र बोस,भगत सिंह,जय प्रकाश,राम मनोहर लोहिया पर डाक टिकट जारी किए जा चुके हैं। महाराणा प्रताप,शिवाजी तथा स्वामी विवेकानंद के चित्रों पर आधारित डाक टिकट भी जारी हो चुके हैं। इतना ही नहीं बलिक दीन दयाल उपाध्याय व श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे भाजपा के आदर्श नेताओं के चित्रों वाले टिकट भी भारतीय डाक विभाग निकाल चुका है। फिर आिखर महज़ गांधी परिवार को ही निशाना बनाकर इंदिरा गांधी व राजीव गांधी जैसे उन नेताओं के टिकट को लेकर राजनीति करने का क्या मकसद है जिन्होंने देश की एकता व अखंडता की खातिर अपनी जान की कुर्बानी दी? हां भाजपा सरकार द्वारा रार्बट वाड्रा का नाम वीवीआईपी की सूची से हटाया जाना भले ही एक लक्षित प्रयास क्यों न हो परंतु इसे सराहनीय ज़रूर कहा जा सकता है।

भाजपा नेताओं द्वारा कांग्रेस के विरोध  की अभी तक डुगडुगी पीटते रहने का एक अर्थ यह भी है कि भाजपा सरकार जनता से पिछले लोकसभा चुनाव में किए गए अपने किसी भी वादे को पूरा करने में असमर्थ रही है। यूपीए शासनकाल में 2012-14 के मध्य बढ़ी हुई जिस मंहगाई का हौव्वा खड़ा कर देश के मतदाताओं को भाजपा ने कांग्रेस के विरुद्ध व अपने पक्ष में एकजुट किया था आज उसी भाजपा के शासनकाल में मंहगाई गत् वर्ष की तुलना में कहीं अधिक आगे बढ़ गई है। सांप्रदायिकता,अराजकता तथा भ्रष्टाचार सभी क्षेत्रों में भाजपा सरकार अपने मुंह की खा रही है। सत्ता में आने के मात्र आठ महीने के भीतर दिल्ली विधानसभा के चुनाव ने पार्टी को बखूबी आईना दिखा दिया था। ज़ाहिर है ऐसे में जब अपने वादे पूरे करने के पक्ष में भाजपाईयों के पास कहने को कुछ नहीं है ऐसे में पारंपरिक कांग्रेस विरोध जो उन्हें गत् पचास वर्षों से उर्जा प्रदान करता आ रहा है उसी को अब भी यह लोग अपने मुख्य उर्जा स्त्रोत के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। कितने अफसोस की बात है कि देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाषण देते हैं उस में भी कांग्रेस के शासनकाल को तथा कांग्रेस पार्टी व नेहरू-गांधी परिवार को कोसने से नहीं चूकते। जबकि देश के किसी भी कांग्रेस के विरोधी नेता ने आज तक विदेशों में जाकर अपने देश के आंतरिक राजनैतिक मतभेद को उजागर करने का प्रयास कभी नहीं किया।

‘कांग्रेस मुक्त’ भारत  के नारे का एक निहितार्थ यह भी है कि देश को धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से मुक्त किया जाए। पिछले डेढ़ वर्ष के भाजपा शासनकाल में देश में अब तक दर्जनों ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जो इस बात का सुबूत हैं कि देश को कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी मॉडल की ओर ले जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास ‘कांग्रेस मुक्त’ व संघ युक्त भारत के ही उदाहरण हैं। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में ज़रूर है परंतु उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मतदाताओं ने केवल 30 प्रतिशत मतदान भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में किया था। गोया उनकी विचारधारा का समर्थन तीस प्रतिशत लोगों द्वारा ही किया गया। जबकि इस तीस प्रतिशत में भी दस प्रतिशत से अधिक मतदाता वह थे जिन्होंने कांग्रेस के शासन में फैले भ्रष्टाचार व मंहगाई से दु:खी होकर इनके पक्ष में मतदान किया। गोया देश की सत्तर प्रतिशत आबादी अभी भी धर्मनिरपेक्ष है तथा संघ युक्त भारत की पक्षधर नहीं है। ऐसे में घर वापसी,गौहत्या,मांस प्रतिबंध,लव जेहाद,हिंदुओं को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने हेतु प्रोत्साहित करना, मुस्लिमों की जनसंख्या बेतहाशा बढऩे का भय पैदा करना जैसी अनेक बातें हैं जिनपर चलकर या जिनका सहारा लेकर भाजपा स्वयं को सत्ता में बनाए रखना चाहती है तथा लोगों का ध्यान अपने किए गए वादों तथा जनसमस्याओं की ओर से हटाकर रखना चाहती है। ‘कांग्रेस मुक्त’  व संघ युक्त भारत का निहितार्थ भी ऐसा ही है इसके सिवा कुछ और नहीं।

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Tanveer-Jafri11About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

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