‘मन की बात’ या ‘जनगण’ से एक तरफा संवाद?

nrendramodi – निर्मल रानी –

नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री बनने के फौरन बाद से ही देश की जनता को संबोधित करने के माध्यम के रूप में आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रत्येक महीने के एक रविवार को प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम के नाम अर्थात् शीर्षक के अनुरूप प्रधानमंत्री जनता से अपने ‘मन की बात’ किया करते हैं। हालांकि उनके सत्ता संभालने के शुरुआती दौर में उनके ‘मन की बात’ का यह प्रसारण कुछ लोकप्रिय भी हुआ था। परंतु मोदी के एक वर्ष के शासनकाल के बाद देश की जनता को जिन हालात का सामना करना पड़ रहा है तथा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार विभिन्न विवादों में उलझती जा रही है उससे न केवल मन की बात कार्यक्रम अब अलोकप्रिय साबित होने लगा है बल्कि इस कार्यक्रम के जवाब में जनता की ओर से अब तरह-तरह के सवाल भी पूछे जा रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि प्रधानमंत्री रेडियो जैसे सरकारी माध्यम का प्रयोग कर जनता तक अपने मन की बात तो पहुंचा देते हैं। परंतु देश की जनता आिखर किन माध्यमों से प्रधानमंत्री तक अपने मन की बात पहुंचाए?

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को रेडियो के माध्यम से संबोधित करने की प्रेरणा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से हासिल की है। परंतु दरअसल इसे आधी-अधूरी प्रेरणा ही कहा जाएगा? क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जहां रेडियो व अन्य संचार माध्यमों के द्वारा नियमित रूप से अमेरिकी जनता को अपने शासन की उपलब्धियों से अवगत कराते रहते हैं वहीं वे व्हाईट हाऊस में नियमित रूप से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया जगत के प्रतिनिधियों को भी न केवल संबोधित करते हैं बल्कि उनके सवालों का जवाब भी देते हैं। परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो गोया जनता से अपने एकतरफा संवाद को ही अपनी राजनीति का प्रमुख शस्त्र बना लिया है। जब से करण थापर व ऐसे कई पत्रकारों के सवालों के आगे उन्हें निरूत्तर होना पड़ा तथा मीडिया के सवालों के जवाब देने के बजाए उन्हें पानी का गिलास मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा यहां तक कि वे साक्षात्कार छोडक़र स्टूडियो से पलायन करते दिखाई दिए। संभवत: तब से ही उन्होंने यह रणनीति अिख्तयार कर ली है। गोया उनके पास कहने को तो बहुत कुछ है परंतु सुनने अथवा लोगों की बातों का जवाब देने के लिए शायद कुछ भी नहीं? हद तो यह है कि गत् मई माह में उनकी सत्ता के एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर भी उनके मंत्रियों व सहयोगियों द्वारा तो मोदी सरकार के एक वर्ष के शासनकाल की उपलब्धियों का बढ़ा-चढ़ा कर बखान किया गया परंतु प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भी मीडिया से रूबरू होना मुनासिब नहीं समझा।

प्रधानमंत्री उधर ‘मन की बात’ के माध्यम से कभी किसानों को संबोधित करते नज़र आते हैं तो दूसरी ओर देश के किसान अपनी आर्थिक परेशानियों के चलते इसी वर्ष रिकॉर्ड संख्या में आत्महत्या करते भी दिखाई दिए। भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर भी किसानों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अपना ज़बरदस्त विरोध दर्ज कराया गया। प्रधानमंत्री द्वारा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा करते हुए आधी रात को उनकी मदद के लिए खड़े होने का दावा किया गया। जबकि अमेरिकी रिपोर्टस के अनुसार तथा भारतीय मीडिया में प्रकाशित व प्रसारित समाचारों के अनुसार गत् एक वर्ष में भारत में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बेइंतहा घटनाएं सामने आईं। अल्पसंख्यकों पर हमलों में बेतहाशा इज़ाफा हुआ। अल्पसंख्यकों के धर्मसथलों पर हमलों की वारदातों में तेज़ी आई। और देश का अल्पसंख्यक समुदाय गत् एक वर्ष के दौरान स्वयं को पहले से अधिक डरा,सहमा व असुरक्षित महसूस करने लगा है। केवल अल्पसंख्यक समुदाय ही नहीं बल्कि देश के दलित समुदाय के प्रति अत्याचार व उत्पीडऩ के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। पिछले दिनों भाजपा शासित राज्य मध्यप्रदेश के दमोह जि़ले के अचलपुरा गांव में 12 दलित परिवारों को अपना घर व गांव छोडक़र आला पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में अन्यत्र जाना पड़ा। कथित उच्च जाति के लोगों ने इन दलित परिवारों के लोगों को जबरन पीटा,इनके घरों में तोडफ़ोड़ की तथा दहशत फैलाकर इन्हें गांव छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया। परंतु इन सब के ‘मन की बात’ सुनने वाला कोई नहीं। प्रधानमंत्री योग जैसे गैरज़रूरी विषय को जनता पर थोपने की रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। उन्हें मंहगाई,व भ्रष्टाचार जैसे आवश्यक विषयों के प्रति संज्ञान लेने के बजाए योग की अनिवार्यता ज़्यादा ज़रूरी दिखाई दे रही है। जबकि रूस ने योग का विरोध करते हुए कहा है क रूस में ‘जादू-टोना’ नहीं होना चाहिए।

ज़ाहिर है भारत में भी इंसान की पहली ज़रूरत भूख,गरीबी व कुपोषण से निजात पाना है न कि योग जैसी स्वास्थयवर्धक क्रियाओं का पालन करना। देश में इस समय रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों के दाम आसमान पर हैं। मंहगाई व भ्रष्टाचार के चलते सत्ता से हाथ धोने वाली यूपीए सरकार में भी दालों की कीमत कभी इतनी अधिक नहीं हुई। आज कई दालें 120 व 140 रुपये प्रति किलो तक बिक रही हैं। चने जैसी सबसे सस्ती समझी जाने वाली दाल 80 रुपये की कीमत पर जा पहुंची है। परंतु जनता के इन दुखड़ों को सुनने वाला तथा जनगण मन की बात करने वाला कोई नहीं। प्रधानमंत्री जी कभी सेल्फी विद डॉटर पर ज़ोर दे रहे हैं तो कभी योग विद्या पर अमल करने की सलाह दे रहे हैं। सेल्फी विद डॉटर के विषय पर सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन तथा िफल्म अभिनेत्री श्रुति सेठ ने अपने आलोचना के स्वर क्या बुलंद  कर दिए कि उन्हें मोदी समर्थकों की लानत-मलामत,अपशब्द,गालियां तथा अभद्र टिप्पणीयां यहां तक कि धमकियां सुनने को मिलने लगी हैं। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि मोदी जी न केवल एकतरफा संवाद पर विश्वास रखते हैं बल्कि यदि उनके एकतरफा संवाद अथवा उनकी ‘मन की बात’ से कोई सहमत नहीं तो उसे मोदी समर्थकों के किसी भी स्तर के विरोध तथा गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। गोया प्रधानमंत्री देश में ‘बॉस इज़ आलवेज़ राईट’ का फार्मूला लागू कर रहे हैं। और यदि ऐसा है तो यह भारत जैसे विश्व के समक्ष अपना आदर्श पेश करने वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह एक बहुत बड़ा खतरा है।

इसमें कोई शक नहीं कि केंद्रीय सत्ता में आने से पूर्व भारतीय जनता पार्टी के मुख्य चुनाव प्रचारक के रूप में नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार खासतौर पर कांग्रेस पार्टी का विरोध करते हुए देश की जनता को जो सब्ज़ बाग दिखाए थे मोदी सरकार जनता को दिखाए गए सब्ज़ बाग के उन सपनों को पूरा कर पाने में असफल रही है। संभवत: मोदी सरकार अब यह समझ चुकी है कि देश की भोली-भाली जनता को एक ही बार सब्ज़ बाग दिखाकर मूर्ख बनाया जा सकता है। बार-बार नहीं। इसीलिए अब उसका ध्यान अपने किए गए चुनावी वादों को पूरा करने के बजाए ऐसे भावनात्मक मुद्दों को उछालना,हवा देना तथा उन्हें लागू करना है जो अगले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचा सकें। गंगा,गीता,गाय,धर्मपरिवर्तन,योग जैसे मुद्दे उन्हीें में से हैं जो सीधे-सादे देशवासियों की भावनाओं को तो प्रभावित ज़रूर कर सकते हैं परंतु इनसे उन्हें एक वक्त की रोटी कतई नहीं मिल सकती। आम जनता के मन की बात तो केवल यही है कि उसे देश में शांति व सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण तथा राष्ट्रीय स्तर पर परस्पर भाईचारे का माहौल मिले। मंहगाई से निजात मिले। राजनीति से भ्रष्टाचार समाप्त हो। किसानों को उसकी मेहनत की कीमत हासिल हो। राजनीति से अपराधीकरण समाप्त हो। देश में रोज़गार के अवसर बढ़ें। नारियों पर होने वाले अत्याचार बंद हों। अल्पसंख्यकों व दलितों पर होने वाले ज़ुल्म बंद हों। सांप्रदायिकता फैलाने वाले शरारती तत्वों से सख्ती से निपटा जाए तथा प्रधानमंत्री के ही कहने के अनुसार सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्म का पालन करने की पूरी आज़ादी हो। आकाशवाणी के माध्यम से प्रधानमंत्री द्वारा की जाने वाली ‘मन की बात’ उनके अपने मन की बात ज़रूर हो सकती है परंतु इसे आम जन की बात नहीं कहा जा सकता। बजाए इसके यह प्रधानमंत्री का जनगण से एकतरफा संवाद ही कहा जाएगा।

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nirmal-rani1-निर्मल-रानीपरिचय :-

निर्मल रानी

लेखिका व् राजनितिक विचारिका 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : –Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana
Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

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