– तनवीर जाफरी –
गत् 21 जून को राजधानी नई दिल्ली का राजपथ उस समय योगपथ के रूप में परिवर्तित हो गया जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित हज़ारों लोगों ने एक साथ योगाभ्यास कर पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। ज़ाहिर है योग जैसी शारीरिक क्रियाओं का सीधा संबंध इंसान के शारीरिक व मानसिक विकास से है। इसलिए इसे नि:संदेह एक सराहनीय कदम ही माना जाएगा। परंतु क्या विश्व को योग की राह दिखाकर मनुष्य के स्वस्थ शरीर की कल्पना करने वाले भारतवर्ष के लोग वास्तव में स्वास्थय के प्रति जागरूक हैं? और इससे भी बड़ी बात यह है कि क्या भारत सरकार अथवा देश की दूसरी सभी राज्य सरकारें अपने नागरिकों के स्वास्थय के प्रति पहले कभी चिंतित रही भी हैं? या फिर योग दिवस का आयोजन महज़ एक ऐसा लोकलुभावन आयोजन माना जाए जो भारत को उसकी प्राचीन संस्कृति से जोडऩे की एक सोची-समझी योजना मात्र है?
जहां तक भारतवासियों को स्वस्थ व निरोगी रखने का प्रश्र है तो दुनिया जानती है तथा स्वयं योग क्रिया के पैरोकार भी भलीभांति इस बात से भलीभांति वािकफ हैं कि भारतवर्ष इस समय एक ऐसा देश बन चुका है जो मिलावटखोरी तथा रासायनिक प्रक्रिया से तैयार की जाने वाली खाद्य सामग्रियों का विश्व का सबसे बड़ा व खतरनाक बाज़ार बन चुका है। फलों व सब्जि़यों को टोक्सिन जैसे ज़हरीले इंजेक्शन देकर महज़ शीघ्र धन अर्जित करने हेतु उसे बाज़ार में बेचने हेतु समय पूर्व तैयार किया जाता है। अप्राकृतिक उपाय अपनाकर इनके वज़न बढ़ाए जा रहे हैं। दूध,खोया,पनीर,देसी घी जैसे खाद्य पदार्थों को यूरिया व अन्य दूसरी कई रासायनिक प्रक्रियाओं से तैयार किया जाता है। कई फलों पर स्प्रे कर तथा उनपर ज़हरीली पॉलिश कर उनकी सुंदरता बढ़ाकर उन्हें बेचा जा रहा है। गंदे व बदबूदार नालों व नालियों के किनारे तमाम खाद्य सामग्रियां व पकवान बनाए व बेचे जा रहे हैं। तमाम खाने-पीने की वस्तुओं को बिना ढके बेचने का तो हमारे देश में आम प्रचलन हो चुका है। मजबूरीवश इस देश में करोड़ों लोग प्रदूषित जल पीने को मजबूर हैं। हद तो यह है कि हमारे देश में जीवन रक्षक दवाईयां तक नकली बेची जा रही हें। ऐसे और भी कई क्षेत्र हैं जो हमारे स्वास्थय को सीधे तौर पर दुष्प्रभावित कर रहे हैं। परंतु योग जैसी क्रिया को आम लोगों के जीवन में उतारने जैसी हास्यास्पद कल्पना करने वाले हमारे राजनेता इन सभी बातों की ओर से आंखें मूंदे बैठे हैं।
हमारे देश के लोग दीवाली,दशहरा व होली जैसे त्यौहार पूरी श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। परंतु हरामखोर व्यवसायिक मानसिकता रखने वाला एक बड़ा तबका हमारे इन त्यौहारों में भी अपने ज़हरीले उत्पाद बेचकर हमारे त्यौहारों के रंग में भंग डालने से बाज़ नहीं आता। कई-कई महीने पहले बनी सड़ी-गली व बदबूदार मिठाईयां जनता को बेची जाती हैं। प्राय: इन्हीं मिठाईयों में नकली व रासायनिक खोए व पनीर का इस्तेमाल किया जाता है। संबद्ध विभागों द्वारा अपनी फजऱ् अदायगी करते हुए इन त्यौहारों से पहले देश में कई स्थानों पर छापामारी किए जाने के समाचार भी सुनाई देते हैं। परंतु अपराधी पकड़े जाने के बावजूद कुछ ही दिनों में वे ज़मानत पर अथवा पूरी तरह से बरी हो जाते हैं और बरी होते ही पुन: मिलावटखोरी व बाज़ार में ज़हर बेचने जैसे अपने अमानवीय कार्य में लग जाते हैं। इन सब बातों के बावजूद हमारी सरकारें अपने इस प्रलाप से बाज़ नहीं आती कि वे जनता के स्वास्थय के प्रति कितनी जागरूक हैं। चीन योग जैसी स्वास्थय संबंधी जागरूकता का हालांकि ढोल नहीं पीटता और इस प्रकार के कोई दूसरे ढोंग करने में अपना समय नष्ट नहीं करता। परंतु दूध जैसी वस्तु में मिलावटखोरी करने वालों को मात्र 6 महीने की कार्रवाई के बाद फांसी के फंदे पर ज़रूर लटका देता है। और ऐसा कर चीन यह संदेश दे देता है कि वह भाषण,राजनीति अथवा लोकलुभावन नाटकबाज़ी करने के बजाए अपनी जनता के स्वास्थय के प्रति वास्तव में कितना गंभीर है।
यहां अभी हमने देश के उन नौनिहालों का जि़क्र तो किया ही नहीं जो ज़हरीले फल और सब्ज़ी तो क्या दो वक्त की पेट भर रोटी खा पाने तक का सामर्थय नहीं रख पाते। गरीबी और कुपोषण का शिकार करोड़ों देशवासी आज भी मुश्किल से एक समय का आधा पेट भोजन ग्रहण कर भूखे पेट सो जाते हैं। यहां यह सवाल बेहद ज़रूरी है कि देश के खाते-पीते समृद्ध व संपन्न लोगों की बढ़ती तोंद को कम करने व उन्हें निरोगी रखने की गरज़ से देशवासियों को योग करने हेतु प्रोत्साहित करना ज़रूरी है या बाज़ार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों के माध्यम से 24 घंटे बेची जा रही बीमारियों पर नियंत्रण रखना व देश के लोगों को कुपोषण व भुखमरी से बचाना अधिक ज़रूरी है? हमारा देश तो ऐसे दोहरे मापदंड से ग्रसित है कि यहां स्वास्थय विभाग के लोग निजी नर्सिंग होम में जाकर उनके निर्धारित मानदंड का तो निरीक्षण करते हैं और उन्हें नर्सिंग होम के लिए सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड अपनाए जाने के निर्देश देते हैं। परंतु देश के तमाम सरकारी अस्पताल स्वयं उन्हीं निर्धारित मापदंडों की अवहेलना करते हैं। यह सभी बातें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि हमारे देश में इंसान की जान की कोई कीमत नहीं न ही किसी को देश के लोगों के स्वास्थय की कोई परवाह है। देश में विभिन्न उपमार्गों पर बने सडक़ों के गड्ढे,तमाम खुले मेनहोल,बिजली की लटकती तारें भी हमारे देश में इंसान की जान की कीमत का बोध कराती हैं। सडक़ों पर सरेआम घूमने व बैठे रहने वाले आवारा पशु जो आए दिन वाहनों के जानलेवा हादसे का कारण बनते हैं यह भी इस बात के गवाह हैं कि इस देश में आम लोगों की जान की कीमत क्या है?
और संभवत: विदेशी व्यापारियों ने भी इन बातों का भलीभांति अध्ययन करने के बाद ही भारतवर्ष में ऐसे ही सामानों की बिक्री भी शुरु कर दी है जो देश के स्वास्थय की परवाह तो कम कर रहे हैं और अपने भारी-भरकम मुनाफे की िफक्र ज़्यादा। पिछले दिनों देश में खाद्य सामग्री बनाने वाली विश्व की अग्रणी कंपनी नेस्ले द्वारा तैयार किए जा रहे मैगी उत्पाद को लेकर एक बड़ा खुलासा सामने आया। मैगी को लेकर हुए इस रहस्योद्घाटन के पहले क्या देश का कोई व्यक्ति सोच भी सकता था कि चटपटी मैगी के साथ हम सीसा जैसा ज़हरीला पदार्थ भी खा रहे हैं? परंतु मैगी का उत्पाद बाज़ार में लाकर नेस्ले ने लाखों करोड़ रुपये हम भारतवासियों की जेबों से ऐंठ लिए और हमारे शरीर को ज़हरीला बना डाला। जिस समय मैगी की हकीकत का भंडाफोड़ हुआ उस समय भी कंपनी द्वारा अपने बचाव की पूरी कोशिश की गई। अखबारों में अपनी बेगुनाही के विज्ञापन कंपनी द्वारा प्रकाशित कराए गए तथा उनके लिए विज्ञापन करने वाले कई कलाकारों से उनका स्पष्टीकरण प्रसारित करवाया गया। परंतु इन सबके बावजूद मैगी ने बाज़ार से लगभग साढ़े तीन हज़ार करोड़ रुपये की मैगी वापस उठवा कर यह प्रमाणित कर दिया कि उसके उत्पाद में ज़हर था और यह उत्पाद बाज़ार में बिकने योग्य नहीं था।
लगभग यही हाल शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों का भी है। वह भी अपने ग्राहक को ज़बरदस्ती डकार लेने हेतु कई शीतल पेय उत्पाद में ऐसे रसायन व गैस की मिलावट करती हैं जिनसे मुनष्य के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। योग गुरु बाबा रामदेव तो कई ऐसे शीतल पेय को टॉयलेट की सफाई हेतु इस्तेमाल किए जाने की सलाह भी कई बार दे चुके हैं। परंतु ऐसे उत्पाद पूरे देश में धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं। इन विषयों पर कोई चाहे जितना टिप्पणी करे,आलेख लिखे अथवा इनके विरुद्ध विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित कराए परंतु इन कंपनियों के स्वास्थय पर कोई असर नहीं पडऩे वाला। आिखर क्यों? क्या इनका संरक्षण व इनके हितों की रक्षा हमारे देशवासियों के स्वास्थय से ज़्यादा ज़रूरी है़ और यदि वास्तव में ऐसा ही है फिर योग के नाम पर लोगों को स्वस्थ रखे जाने के ढोंग की ज़रूरत ही क्या है? इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि योग के बहाने लोगों को स्वस्थ रहने हेतु प्रेरित करना झूठी लोकप्रियता अर्जित करने का महज़ एक तरीका है। अन्यथा वास्तव में देश के लोगों के स्वास्थय व उनकी जान की कीमत को लेकर देश की सरकारें कितना गंभीर हैं व रचनात्मक रूप से इसके लिए क्या कर रही हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है।
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About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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