अल्पसंख्यक विरोध की प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति

– तनवीर जाफरी –

muslim vote bank.com,muslim vote bankदक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी द्वारा धर्मनिरपेक्षता तथा अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम समुदाय के विरोध तथा इसे अनदेखी किए जाने की राजनीति का गुजरात में सफल परीक्षण करने के बाद इसी फार्मूले को गत् लोकसभा  चुनाव मेंं राष्ट्रीय स्तर पर भी आज़मा कर भाजपा ने केंद्रीय सत्ता पर नियंत्रण हासिल कर लिया। ऐसा लगता है कि अब भाजपा के सत्ता में आने के बाद जहां भाजपा के कई कट्टरपंथी नेता बिना   किसी रोक-टोक के अनियंत्रित होकर अल्पसंख्यकों के  विरुद्ध ज़हर उगलते फिर रहे हैं वहीं भाजपा की समान विचारधारा रखने वाले संगठनों व उसके सहयोगी राजनैतिक दलों में भी अल्पसंख्यक विरोध की राजनीति करने में प्रतिस्पर्धा स्थापित हो गई है। कहने को तो इन राजनैतिक दलों के नेता धर्मनिरपेक्ष दलों पर अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण तथा उनके वोट बैंक को लुभाने जैसे आरोप लगाते रहे हैं। परंतु वास्तव में उनके ऐसे आरोपों के पीछे का मुख्य रहस्य यही है कि यह इसी बहाने स्वयं बहुसंख्य हिंदू वोट बैंक को साधने की कोशिश करते रहते हैं। भाजपाईयों द्वारा कभी लव जेहाद जैसा शोशा छोडक़र अल्पसंख्यक समुदाय में दहशत फैलाने की कोशिश की जाती है तो कभी धर्म परिवर्तन और घर वापसी जैसे मुद्दों पर बहस छेड़ कर अल्पसंख्यकों में भय पैदा करने की कोशिश की जाती है। कहीं अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों पर हमले किए जाते हैं तो कहीं हिंसा फैलाकर समुदाय विशेष के लोगों को भयभीत व अपमानित करने की कोशिश की जाती है। कभी इनकी जबरन नसबंदी कराए जाने की बात कही जाती है तो कभी बहुसंख्य समाज में इनकी जनसंख्या वृद्धि का भय फैलाया जाता है। हद तो यह है कि सांसद व मंत्री जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोग असंसदीय व अभद्र भाषा का प्रयोग कर अल्पसंख्यकां को भयभीत व अपमानित करते देखे जा रहे हैं।

अल्पसंख्यक विरोध की प्रतिस्पधर््ाात्मक राजनीति की कड़ी में एक ऐसा ही प्रयास पिछले दिनों शिवसेना के प्रवक्ता द्वारा भारतीय मुसलमानों से मताधिकार के प्रयोग का अधिकार छीनने की बात कहकर किया गया। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर इस बयान का व्यापक विरोध होने के बाद शिवसेना ने इस बयान से मुकरने की भी कोशिश की। परंतु चूंकि शिवसेना नेता का यह बयान पार्टी के मुखपत्र में प्रकाशित संपादकीय का ही एक अंश था। लिहाज़ा अपने लेख से मुकर पाना उसके लिए संभव नहीं हो सका। मज़े की बात तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने भी शिवसेना के अल्पसंख्यक समुदाय को मताधिकार से वंचित करने वाले बयान से किनारा कर लिया। इस संदर्भ में यहां इस बात का उल्लेख करना ज़रूरी है कि भारतीय जनता पार्टी नेता सुब्रमण्यम स्वामी भाजपा में शामिल होने से पहले खुद भी इसी प्रकार का बयान दे चुके हैं। स्वामी के इस विवादित बयान के बाद ही भाजपा ने उनके लिए पार्टी के दरवाज़े खोले थे। आज तक भाजपा ने मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने वाले स्वामी के बयान से खुद को अलग नहीं किया। परंतु शिवसेना के इसी प्रकार के बयान से पल्ला झाडऩा भाजपा ने ज़रूरी समझा। आिखर ऐसा क्यों? यही नहीं बल्कि भाजपा के एक और सहयोगी संगठन हिंदू युवा वाहिनी जिसके अध्यक्ष महंत योगी आदित्यनाथ हैं, इसके नेता भी उत्तर प्रदेश में घूम-घूम कर यही प्रचार करते रहते हैं कि भविष्य में ‘देश योगी जी के हाथों में जाएगा तो अल्पसंख्यकों से उनके मताधिकार छीन लिए जाएंगे’। परंतु भाजपा के किसी नेता ने हिंदू युवा वाहिनी के नेताओं की इस प्रकार की बयानबाज़ी का कभी विरोध नहीं किया। आिखर क्यों?

इसी संदर्भ में कुछ और बातें काबिलेगौर हैं। जिस अल्पसंख्यक समुदाय को मताधिकार से वंचित किए जाने को लेकर भाजपा,शिवसेना व उसकी समान विचारधारा वाले दलों व संगठनों में प्रतिस्पर्धा मची दिखाई दे रही है इस समय उसी मुस्लिम समुदाय के वरिष्ठ अधिकारी नसीम ज़ैदी देश के मुख्य चुनाव आयुक्त हैं। मिसाईलमैन भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम जिनपर देश का मुसलमान ही नहीं बल्कि देश का हर समुदाय उन पर गर्व करता है उन्हें मताधिकार से वंचित किए जाने का हौसला दिखाया जा रहा है। देश ने अल्पसंख्यक समुदाय के कई राष्ट्रपति,वायुसेना अध्यक्ष,केंद्रीय मंत्री यहां तक कि स्वतंत्रता सेनानी दिए हैं। देश का अधिकांश अल्पसंख्यक समुदाय वह था जिसने 1947 में देश के विभाजन का विरोध कर भारत में ही रहने को प्राथमिकता दी थी। आज उन भारतीय मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किए जाने जैसे बयान दिए जा रहे हैं। और ऐसे बयान ही नहीं दिए जा रहे बल्कि ऐसे वक्तव्यों को लेकर विभिन्न संगठनों व राजनैतिक दलों में प्रतिस्पर्धा सी मची दिखाई दे रही है। सवाल यह है कि क्या इस विषय में जो कुछ दिखाई या सुनाई दे रहा है वह वास्तव में इन दलों अथवा संगठनों के एजेंडे का एक हिस्सा है या फिर यह महज़ बहुसंख्यक मतों के वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने मात्र का एक प्रयास?

यह सवाल यहां इसलिए भी ज़रूरी है कि यदि शिव सेना मुसलमानों को इस योग्य नहीं समझती कि वे मतदान का अधिकार रख सकें और बालासाहब ठाकरे भी खुद इसी मत के समर्थक थे तो बाला साहब ने अपनी पोती की शादी गुजरात के एक मुस्लिम डाक्टर से क्यों की? और वे स्वयं उस शादी में आिखर क्यों सहर्ष शरीक हुए? यही सवाल डा. सुब्रमण्यम स्वामी से भी किया जा सकता है कि यदि वे मुस्लिम समुदाय से मताधिकार छीनने के पक्षधर हैं तो उन्होंने अपनी बेटी की शादी एक भारतीय मुस्लिम राजनयिक के बेटे से क्यों कर दी? यह सवाल ऐसे हैं जिनपर देशवासियों को इसलिए गौर करना चाहिए कि आिखर इनके ऐसे बयानों के पीछे छुपा असली रहस्य क्या है? क्या इस प्रकार के वक्तव्यों का अर्थ वास्तव में बहुसंख्य हिंदू समाज के हितों का चिंतन है अथवा ऐसे दुष्प्रचार केवल राजनैतिक लाभ उठाने के लिए किये जाते हंै? यानी इस प्रकार के भडक़ाऊ बयान देकर देश के दो प्रमुख समुदायों के मध्य फासला बढ़ाना व तनाव पैदा करना तथा उसी तनाव की आग पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकना नहीं तो और क्या है? उधर प्रधानमत्री नरेंद मोदी भी ऐसी ही भाषा शैली और इसी प्रकार के सांप्रदायिक तनावपूर्ण वातावरण के बीच चुनाव करवा कर प्रधानमंत्री बन चुके हैं। उन्हें भी अब अपनी विदेश यात्राओं से फुर्सत नहीं कि वे इस प्रकार के नफरत फैलाने वाले मामलों में दखल देने की ज़रूरत महसूस करें। वे अपने ‘गवर्नेंस’ के विषय को अपने अदाज़ से देख रहे हैं तो उनके सहयोगी संगठन खासतौर पर संघ परिवार अपने सांप्रदायिक एजेंडे को लागू करता फिर रहा है। दूसरी ओर भाजपा के शिवसेना जैसे सहयोगी संगठन बहुसंख्यक हिंदू मतों को अपनी ओर लुभाने के लिए अल्पसंख्यकों को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाह रहे हैं।

देश की जनता को ऐसे राजनैतिक दलों व राजनीतिज्ञों के नापाक मंसूबों को भलीभांति समझने की ज़रूरत है। इनमें से कोई भी नेता यहां तक कि स्वयं को अल्पसंख्यक समाज का हितैषी बताने वाले राजनैतिक संगठन अथवा नेता भी किसी धर्म अथवा समुदाय के हितैषी नहीं हैं। बल्कि इन सब को महज़ सत्ता  शक्ति चाहिए। और जनता के पैसे पर ऐश करने का एकमात्र साधन राजनैतिक सत्ता को हासिल करना ही है। यदि ऐसे िफरक़ापरस्त व आम लोगों की धार्मिक भावनाओं को भडक़ाने वाले लोग राजनीति के पेशे में न हों तो समाज में इनकी दो कौड़ी की भी कीमत नहीं है। यह लोग सार्वजनिक रूप से स्वयं को विभिन्न धर्मों का हितैषी बताकर उनके मतों पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। इसके बदले में चाहे देश में तनाव फैले,चाहे सांप्रदायिक हिंसा हो, आम लोगों के घर जलें,लोगों की लाशें सडक़ों पर जलती रहें,गर्भवती मांओं की हत्याएं हों, बच्चे अनाथ हों, किसी की मांग का सिंदूर उजड़े इन्हें इनबातों से कोई लेना-देना नहीं। बल्कि ऐसे ही दुर्भाग्यपूर्ण व दहशतनाक मााहैल में ही इन्हें अपनी सत्ता की कुर्सी सुरक्षित दिखाई देती है। देश को इनसे सचेत रहने की ज़रूरत है।

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Tanveer-Jafriwriter-Tanveer-Jafriinvc-newsतनवीर-जाफ़री1Tanveer Jafri
Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628
1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana

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