सोनाली बोस की कहानी : अपराजिता
”अपराजिता”
आज सुबह सुबह ऑफिस जाते हुए जैसे ही राघव की नज़र कैलंडर पर पड़ी तो आज की तारीख देख कर एक बार उसके मन में जैसे कुछ छन्न से टूट गया | आज 09 जनवरी थी और आज ही उसकी दुनिया पूरे एक साल के अकेलेपन की बरसी मना रही थी| जूही को उसके जीवन से गुज़रे हुए आज पूरा एक साल हो गया था| जूही…. उसकी पत्नी…. हाँ, आज भी तो ये सामाजिक रिश्ता कायम था| पति पत्नी का उनका वो प्यारा और मन से जुड़ा रिश्ता आज सिर्फ एक नाम ही तो रह गया था| कानून और समाज की नज़र में जूही और राघव आज भी शादी के बंधन में बंधे थे | लेकिन सिर्फ नाम के लिए ही अब ये संबंध रह गया था |
जूही को उसके ज़िंदगी से गए हुए एक लंबा अरसा हो गया था| खुद को इस विवाह रूपी बंधन से आज़ाद करने की कोशिश ना तो जूही ने की थी और ना ही राघव ही इस matter को persue कर पाया था | दिमाग में उमड़ते इन पुराने दिनों के cyclone ने अनायास ही राघव के जिस्म को अपने शिकंजे में जकड़ लिया | राघव ने अपना लैपटॉप बैग और mobile उठा कर कमरे की मेज़ पर रखा और अपनी नौकरानी शांती को एक कप कॉफ़ी बनाने की हिदायत देता हुआ अपनी अलमारी की ओर बढ़ चला | वो जानता था कि अब उसका मन अपनी उस MNC के posh और सुविधायुक्त कमरे में नहीं लगेगा |
तभी उसका mobile बजा, ऑफिस से उसकी सेक्रेटरी का फ़ोन था | ‘’हेल्लो, राघव सर ?’’ नीता, उसकी सेक्रेटरी ने परेशान आवाज़ में पूछा| ‘’हाँ बोलो नीता ‘’ राघव जवाब देते हुए बोला| ‘’सर, आज आपकी फ्रेंच डेलीगेशन से साथ अभी ग्यारह बजे की मीटिंग lined up है आप कब पहुंच रहे हैं?’’ अब बेचारा राघव नीता को क्या जवाब देता कि इतनी बड़ी कंपनी का VP Marketing जो दुनिया भर में अपनी कंपनी की इंडियन ब्रांच को बखूबी संभाल रहा है आज अपने टूटे घर और संबंध की बरसी मना रहा है| वो नीता को क्या बताता कि बाहरी दुनिया को संभालने में वो इतना उलझा रहा की ना जाने कब उसका अपना निजी जीवन उजड़ गया |
राघव ने नीता को आज की सभी मीटिंग्स cancle करने को कहते हुए फ़ोन काट दिया | आज वो सिर्फ अपनी गलतियों और तन्हाईयों के साथ कुछ समय बिताना चाहता था| उसने अलमारी खोलते हुए उस नीले cover वाले लिफ़ाफ़े को बाहर निकाला | cover पर आज भी ख़ूबसूरत लफ़्ज़ों में ‘’राघव’’ लिखा हुआ था | वही curving letters वाली लिखावट जो जूही की ख़ास पहचान है | कितनी सुन्दर लिखावट है ना उसकी!! इतना सोचते हुए ही राघव को खुद पर गुस्सा आ गया | अब उसे जूही की एक लिखावट भी कितनी अच्छी लग रही है और तब जब जूही उसके साथ थी तब… उसी वक़्त उसकी नौकरानी शांती उसके लिए कॉफ़ी का कप ले कर आ गई |
राघव ने उसे उस दिन की छूट्टी देते हुए वापस चले जाने को कहा और घर का दरवाज़ा बंद करता हुआ अपने कमरे की नि:स्तब्धता में लौट आया |
उस लिफ़ाफ़े के भीतर चार पन्नों का एक ख़त था… जूही का ख़त | अब तक राघव ना जाने इस ख़त में दर्ज की हुई उन सभी बातों को कितनी मरतबे पढ़ चुका था | लेकिन आज ना जाने क्यूं उसे उस ख़त में दाख़िल लफ़्ज़ सिसकते से लग रहे थे | उसने उस नाम को पढ़ा जो जूही की ख़ूबसूरत handwriting में पन्ने के सबसे ऊपर लिखा हुआ था…लेकिन आज उसे लगा जैसे वो ख़त नहीं पढ़ रहा था, आज जूही ही उसके सामने बैठी उससे बात कर रही थी |
‘’राघव, इन खाली पन्नों पर आज अपने उन जज़्बातों को उकेर के जा रही हूँ जिनको शब्द देने से ना जाने क्यूं मेरे हाथ कांपते रहते थे | मेरी कलम में तमाम तरह की बन्दीशें थीं | लेकिन आज जब यह चिट्ठी तुम्हें मिलेगी, मैं तुम्हारी इस नकली शानो शौकत और दुनियावी आडंबरों से भरे जीवन से बहुत दूर जा चुकी हूँगी । मेरे पैरों में इतने वर्षों से बँधी ज़ंजीर खुल चुकी होगी । और मेरे पैर हवा से हलके हो चुके होंगे जो कहीं भी चलने को आज़ाद होंगे | लेकिन चलने से पहले तुम से चंद बातें कर लेना ज़रूरी है । जानते हो कल रात मुझे फिर वही सपना आया । तुम मुझे अपने दफ़्तर की किसी पार्टी में ले गए हो । सपने में जाने-पहचाने लोग हैं । परस्पर अभिवादन और बातचीत हो रही है कि अचानक सबके चेहरों पर देखते-ही-देखते एक कुत्सित हंसी आ जाती है । उन सभी की वो भयानक हंसी किसी राक्षसी अट्टाहास में बदल जाती है |
धीरे धीरे वो सभी भयानक अंदाज़ में हंसने और चिल्लाने लग जाते हैं और तब एक और भयानक बात होती है । उन खतरनाक आवाज़ों और हंसी के भीतर घृणा में लिपटा तुम्हारा डरावना चेहरा नज़र आने लगता है । तुम्हारे सिर पर दो सींग उग जाते हैं । जैसे तुम तुम न हो कर कोई भयावह यमदूत हो । मानो बड़े-बड़े दाँतों वाले असंख्य यमदूत… डर के मारे मेरी आँख खुल गई ।जनवरी की उस सर्द रात में भी मैं पसीने से तरबतर थी । ” तुमने ऐसा सपना क्यों देखा ?”जब भी मैं इस सपने का ज़िक्र तुमसे करती तो तुम मुझे ही कटघरे में खड़ा कर देते । ” क्यों क्या? क्या सपनों पर मेरा वश है ? “मैं कहती । तुम्हारा बस चलता तो तुम मेरे सपने भी नियंत्रित कर लेते ! तुम कहते हो कि यह सपना मेरे अवचेतन मन में दबी हुई कोई कुंठा है, अतीत की कोई स्मृति है । दुर्भाग्य यह है कि मेरी तमाम कुंठाओं के जनक तुम ही तो हो ।
मेरे भूत और वर्तमान में तुम्हारे ही भारी क़दमों की चहलक़दमी की आवाज़ गूँज रही है । मुड़कर देखने पर लगता है कि मामूली-सी ही तो बात थी । मेरे शरीर पर काबिज़ वो कुछ एक्स्ट्रा वज़न ही तो थे | लेकिन तुम्हारे उस यमदूत रूप के जड़ में मेरा ये बड़ा हुआ वज़न ही तो था। लेकिन क्या यह बात वाक़ई इतनी मामूली-सी थी ? तुमने ‘ आइसबर्ग ‘ देखा है ? उसका केवल थोड़ा-सा हिस्सा पानी की सतह के ऊपर दिखता है । यदि कोई अनाड़ी देखे तो लगेगा जैसे छोटा-सा बर्फ का टुकड़ा पानी की सतह पर तैर रहा है । पर ‘ आइसबर्ग ‘ का असली आकार तो पानी की सतह के नीचे तैर रहा होता है जिससे टकरा कर बड़े-बड़े जहाज़ डूब जाते हैं । जो बात ऊपर से मामूली दिखती है उसकी जड़ में कुछ और ही छिपा होता है। बड़ा और भयावह । मुझे अपने वज़न से लगातार लड़ते देखने से तुम्हे सख्त चिढ़ थी । मेरा उन्हें दूर करने के लिए डायटिंग करना भी तुम्हें पसंद नहीं था ।
आँखों में पनप रही उस नमकीन झील को काबू में करते हुए राघव सोचने लगा | सच, वो कितना गुस्सैल हो गया था ना… बात बात पे चिढ़ना और जूही पर अपना सारा गुस्सा उतारना उसका daily routine सा बन गया था | शुरूआत में ऐसा नहीं था… जूही और उसका वैवाहिक जीवन ख़ुशहाल था| लेकिन धीरे धीरे काम के pressure और सहकर्मियों के साथ professional rivalry के चलते वो इतना परेशान हो गया था कि अपना सारा फ्रस्टेशन वो अब जूही पे उतारने लगा था| वो तो उसके लिए जैसे अब एक punching bag ही बनके रह गई थी| राघव खत का बचा हुआ हिस्सा पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था | लेकिन वो जानता था कि जूही के उन सिसकते हुए लफ़्ज़ों की मार सहना ही उसकी सज़ा है इसीलिये उसने आगे पढ़ना शुरू किया |
जूही ने लिखा था ‘’बचपन से ही मैं भरे बदन की थी.. हाँ उसे मोटी तो कतई नहीं कहते हैं । मेरे चेहरे पर एक बच्चों सी मासूमियत थी | गोल गोल गाल वाली जूही अपने माँ बाबा की लाडली थी |मैं खूब खुश रहती थी और हमेशा हंसती रहती थी| माँ अक्सर टोक देती थी, ‘’जूही लड़कियां ऐसे बेमतलब नहीं हंसती हैं… खुद पर काबू रख तितली’’.. ‘’तितली’ मैं माँ की तितली ही तो थी जो हमेशा इस कमरे से उस कमरे खुशी बिखेरती उड़ती रहती थी | माँ के इस तरह टोकने पर बाबा उन्हें रोकते हुए कहते, ‘’ अरे उसे डांट क्यों रही हो? खिलखिलाने दो मेरी पाखी को… वो मेरा गुरूर है और मैं अपनी इस चिरय्या को कभी भी उदास नहीं देख सकता |’’ बाबा की पाखी, चिरय्या और माँ की तितली आज कितनी गुमसुम हो गई है ना? लेकिन इसी भरे भरे चहरे वाली और हमेशा हंसते रहने वाली जूही को ही तो तुमने भी पसंद किया था| फिर अब ऐसा क्या हो गया है? अब मुझमें ऐसी क्या तब्दीली आ गई है कि तुम मुझसे इस तरह चिढ़ने लगे हो? अभी दो महीने पहले करवाए ब्लड टेस्ट में ही तो पता चला है कि मुझे हाइपोथायराइडिज्म है|
इसमें ना चाहते हुए भी वज़न का बढ़ना तो लाज़मी है ना? क्या इसमें मेरा अपना कोई कसूर है? “ऐसे बेवकूफों जैसे मत हंसों। मुझे अच्छा नहीं लगता।” तुम ग़ुस्से से कह उठते । ” क्यों ? ” आख़िर यह छोटी-सी आदत ही तो थी । ” क्यों क्या ? मैंने कहा, इसलिए ! ” ” पर तुम्हें अच्छा क्यों नहीं लगता ?” तुम कोई जवाब नहीं देते पर तुम्हारा ग़ुस्सा बढ़ता जाता । फिर तुम मुझ पर चिल्लाने लगते । तुम्हारा चेहरा मेरे सपने में आये यमदूत-सा हो जाता । तुम चिल्ला कर कुछ बोल रहे होते पर मुझे कुछ भी सुनाई नहीं देता । मैं केवल तुम्हें देख रही होती । तुम्हारे हाथ-पैरों में किसी जंगली जानवर के पंजों जैसे बड़े-बड़े नाख़ून उग जाते । तुम्हारे विकृत चेहरे पर भयावह दाँत उग जाते । तुम्हारे सिर पर दो सींग उग जाते । तुम मेरे चेहरे की ओर इशारा कर के कुछ बोल रहे होते और तब अचानक मुझे फिर से सब सुनाई देने लगता |
ख़त में जूही ने आगे जो कुछ भी लिखा था उसे पढ़ने के बाद यकीनन आप मुझसे नफ़रत करने लग जायेंगे ,वैसी ही नफ़रत जो अब मेरी जूही मुझसे करने लगी है | जूही ने लिखा था , ” भद्दी, बदसूरत कहीं की ।” तुम ग़ुस्से से पागल हो कर चीख़ रहे होते । शायद मैं तुम्हें शुरू से ही भद्दी लगती थी , बदसूरत लगती थी । मेरा मोटापा तो एक बहाना था । शायद यही वजह रही होगी कि तुम्हें मेरा हमेशा हंसने और खिलखिलाने की मामूली-सी आदत भी असहनीय लगती थी । जब हम किसी से चिढ़ने लगते हैं, नफ़रत करने लगते हैं तब उसकी हर आदत हमें बुरी लगती है । यदि तुम्हें मुझ से प्यार होता तो शायद तुम मेरे मोटापे को नज़रंदाज़ कर देते । पता नहीं तुमने मुझसे शादी क्यों की ? शायद इसलिए कि मैं अपने अमीर पिता की इकलौती बेटी थी ।
मेरे पापा को तुमने चालाकी से पहले ही प्रभावित कर लिया था । उनकी मौत के बाद उनकी सारी जायदाद तुम्हारे पास आ गई और तुम अपना असली रूप दिखाने लगे । ” तुम भी पक्की ढीठ हो । तुम नहीं बदलोगी । ” तुम अक्सर किसी-न-किसी बात पर अपने विष-बुझे बाणों से मुझे बींधते रहते । सच्चाई तो यह है कि शादी के बाद से अब तक तुमने अपनी एक भी आदत नहीं बदली — सिगरेट पीना , शराब पीना , इंटरनेट पर पार्न-साइट्स देखना , दरवाज़ा ज़ोर से बंद करना , बाथरूम में घंटा-घंटा भर नहाते रहना , बीस-बीस मिनट तक ब्रश करते रहना , आधा-आधा घंटा टॉयलेट में बैठ कर अख़बार पढ़ना , रात में देर तक कमरे की बत्ती जला कर काम करते रहना , सारा दिन नाक में उँगली डाल कर गंदगी निकालते रहना , अजीब-अजीब से मुँह बनाना , बिना किसी बात पर हँस देना … । तुमने अपनी एक भी आदत नहीं बदली । केवल मैं ही बदलती रही । तुम्हारी हर पसंद-नापसंदके लिए । तुम्हारी हर ख़ुशी के लिए । जो तुम खाना चाहते थे, घर में केवल वही चीज़ें बनती थीं । टी.वी. के ‘ रिमोट ‘ पर तुम्हारा क़ब्ज़ा होता । जो टी.वी. कार्यक्रम तुम्हें अच्छे लगते थे , मैं केवल वे ही प्रोग्राम देख सकती थी । जो कपड़े तुम्हें पसंद थे , मैं केवल वे ही कपड़े पहन सकती थी । मेरा जो हेयर-स्टाइल तुम्हें पसंद था , मैं केवल उसी ढंग से अपने बाल सँवार सकती थी । घर में केवल तुम्हारी मर्ज़ी का साबुन, तुम्हारी पसंद के ब्रांड का टूथपेस्ट और तुम्हें अच्छे लगने वाले शैम्पू ही आते थे । खिड़की-दरवाज़ों के पर्दों का रंग तुम्हारी इच्छा का होता । ड्राइंगरूम और बेडरूम का फ़र्नीचर और उनकी साज-सजावट सब तुम्हारी मर्ज़ी का था । बिस्तर पर बिछी चादर का रंग , चाय की पत्ती का ब्रांड — हर जगह तुम्हारी इच्छा ही सर्वोपरि थी । जो तुम्हें अच्छा लगे, मुझे वही करना था । जो तुम्हें पसंद हो , मुझे वही कहना-सुनना था । जैसे मैं मैं नहीं रह गई थी , केवल तुम्हारा विस्तार भर थी ।
डाइनिंग-टेबल पर तुम्हारी एक निश्चित कुर्सी थी । बेडरूम में तुम्हारे बैठने की एक निश्चित जगह थी जहाँ कोई और नहीं बैठ सकता था । घर में यदि कोई चीज़ अनिश्चित थी तो वह मैं थी — अनिश्चित और अधर में लटकी हुई ।
राघव के दिलो दिमाग में जैसे किसी ने ढेरों कांटे चुभा दिए थे| लेकिन वो उस पीड़ा को भोगना चाहता था, वो आज जूही को उसके वजूद को फिर से महसूस करना चाहता था | वो अब ख़त का आगे का हिस्सा पढ़ने लगा ,’’खाना मैं बनाती थी , कपड़े-लत्ते मैं धोती थी , बर्तन मैं साफ़ करती थी , झाड़ू-पोंछा मैं लगाती थी । तुम रोज़ ऑफिस से आकर ‘ आज बहुत थक गया हूँ ‘ कहते और टाँग फैला कर बिस्तर पर लेट जाते और अपना पसंदीदा टी.वी. प्रोग्राम चला लेते । एक गिलास पानी भी तुम ख़ुद उठकर नहीं ले सकते थे । फिर भी थकते सिर्फ तुम थे । शिकायत सिर्फ तुम कर सकते थे । उलाहने सिर्फ तुम दे सकते थे । बुरी सिर्फ मैं थी । कमियाँ सिर्फ मुझमें थीं । दूध के धुले, अच्छाई के पुतले सिर्फ तुम थे । ‘ हेड आॅफ़ द फ़ैमिली ‘ के नाम पर तुम जो चाहो, करने के लिए स्वतंत्र थे । इन सब के बावजूद मैं यह रिश्ता निभाती रही । मैंने तुमसे कुछ ज़्यादा तो नहीं चाहा था । एक पत्नी अपने पति से जो चाहती है , मैं भी केवल उतना भर चाहती थी । काश, तुम भी मुझे थोड़ा प्यार दे पाते , घर के कामों में मेरा कुछ हाथ बँटाते , अपनी किसी प्यारी अदा से मेरा मन मोह ले जाते । काश , मेरा आकाश भी कभी सतरंगी हो पाता । मेरे मन की नदी में भी लहरें कभी गीत गातीं । मेरे अंतस् की बगिया को भी कोई पुरवैया सहलाती । पर मेरे अंतस् की बगिया में चक्रवात आते रहे । मेरे मन की नदी में भयावह सूखा पड़ा रहा । मेरा आकाश बंजर बना रहा । असल में तुमने मुझसे कभी प्यार किया ही नहीं । मैं केवल घर का काम करने वाली मशीन थी , घर की नौकरानी थी जिसे रात में भी तुम्हारी ख़ुशी के लिए बिस्तर पर रौंदा जाता था । तुम्हारे लिए प्यार बिस्तर का महाभारत भर था । किसी दिन मेरी इच्छा होती तो तुम बुरा-सा मुँह बनाकर कह देते — ” आज नहीं । कल सुबह मेरी एक
ज़रूरी मीटिंग है । ” पर दिन भर की थकी होने पर भी मुझे तुम्हारी इच्छा के लिए , तुम्हारी वासना की पूर्ति के लिए समर्पण करना ही पड़ता था ।
बिस्तर और रसोई के गणित से परे भी स्त्री होती है , यह बात तुम्हारी समझ से बाहर थी । लेकिन इन सबके बावजूद मेरे हाल ही में बढ़ गए वज़न से , इतनी परेशानियों के बाद भी मेरे चेहरे पर हमेशा खेलती मुस्कान से तुम्हें चिढ़ थी । पर उन बेवजह के तनावों का क्या.. उन यातना भरे भारी दिनों का क्या.. उन परेशान रातों का क्या जो मैंने तुम्हारे साथ किसी सज़ायाफ्ता मुजरिम की तरह गुज़ारे हैं ? तुम चाहते थे कि मैं अपने बिगड़ रहे फिगर पर शर्मिंदा रहूँ । क्यों? क्या शरीर के भूगोल में ज़रा सा भी फेरबदल हो जाना कोई अपराध है जो तुम मुझे सज़ा देने पर तुले रहे ? तुम्हारी इच्छा के लिए मैंने ‘हार्मोन थेरेपी’ कराई । सुबह-शाम वज़न कम करने के लिए brisk walk से लेकर crash डाइटिंग भी की। जबकि तुम अपने पर्स में अपने आॅफ़िस की युवा महिला कलीग्स की फ़ोटो रख कर घूमते रहे । इंटरनेट पर अजनबी लड़कियों से चैटिंग करते रहे, फ़्लर्ट करते रहे । और मैं तुम्हारी ज़िंदगी में अपने वजूद को तलाशती रही |
राघव, तुम जानते हो तुम्हारे चेहरे पर भी एक मस्सा उगा हुआ है । मैंने तो कभी इस बात पर एतराज़ नहीं जताया कि वहाँ वह मस्सा क्यों है ? मैंने तो कभी यह नहीं कहा कि उस मस्से की वजह से तुम बदसूरत लगते हो । असल में तुम्हारे लिए मेरा मोटापा मुझे नीचा दिखाने का बहाना भर था | अब, जबकि मेरा थाइरोइड काबू में है और अब मैं पहले से काफी बेहतर भी दिखने लगी हूँ तो अब तुम्हें मुझसे कोई लेना-देना नहीं है । तुमने एक बार भी नहीं कहा कि मैं अब तुम्हें कैसी लगती हूँ । पर जानते हो राघव तुम्हारी उपेक्षा ने सब कुछ कह दिया है । आज तुमने अपने नफ़रत की सारी सीमाएं लांघ दी हैं, आज तुमने सिर्फ कॉफ़ी देर से लाने वाली मामूली सी बात पर मुझ पर हाथ भी उठाया । जानते हो राघव, घृणा का बरगद जब फैलने लगता है तो उसकी जड़ें सम्बन्धों की मिट्टी में बहुत गहरे तक अपने पाँव पसार लेती हैं । पता नहीं मैं इतने साल तुम्हारे साथ कैसे रह गई । अपना मन मार कर । अपना अस्तित्व मिटा कर । पर अब बहुत हो गया । मुझे तुम्हारे हाथों पिटना मंज़ूर नहीं । मेरे वजूद को हरक़दम पर इस तरह और ज़लील होना मंज़ूर नहीं | तुम एक बीमार मानसिक अवस्था में हो और मुझे अब इस रुग्ण मानसिक अवस्था का हिस्सा और नहीं बनना । हमारे पास जीने के लिए एक ही जीवन होता है और मुझे अब यूँ घुट-घुट कर और नहीं जीना । आज मैं स्वयं को तुमसे मुक्त करती हूँ । हाँ एक बात और । मुझे अपने चेहरे पर हमेशा खेलती हुई ये मुस्कान बेहद अच्छी लगती थी । और वे सभी लोग अच्छे लगते थे जो मेरे बढ़े हुए वज़न के बावजूद मुझे चाहते थे , मुझसे प्यार करते थे । प्यार, जो तुम मुझे कभी नहीं दे सके ।
— जूही ।‘’
अपने हाथ में सिहरते हुए उस ख़त को राघव बहुत देर तक यूंही थामे रहा| पिछले साल भर से उसने बहुत बार ये सोचा था कि वो जूही को फोन करेगा उससे अपनी ज़्यादतियों के लिए माफी मांगेगा| लेकिन अब और इंतज़ार नहीं आज वो उसे बताना चाहता है कि उसे अपनी सभी गलतियों का एहसास है| और हाँ, एक बात और भी तो बतानी है कि उसे जूही की मुस्कान से प्यार है और जूही के हाइपोथायराइडिज्म से उसे कोई शिकायत नहीं है | वो जैसी भी है उसकी अपनी
है …. |
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सोनाली बोस
उप – सम्पादक
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
व्
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Sonali Bose
Sub – Editor
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संपर्क –: sonali@invc.info & sonalibose09@gmail.com
एक अच्छी कहानी …. बधाई
Stri ke dard ko ukerti shaandaar lghu katha… Sonali jee lmbi kahaniyan likhne ka prayaas karen… Aap charitron ko baandh skti hain…Badhai Dost!