– निर्मल रानी –
स्वच्छ भारत अभियान का इन दिनों पूरे देश में डंका पीटा जा रहा है। पार्कों,सडक़ों,फुटपाथ, स्कूल तथा सरकारी कार्यलय आदि सभी स्थानों पर प्रतीकातमक रूप से स्वच्छता अभियान के नाम पर झाड़ू चलाकर मीडिया में सचित्र खबरें प्रकाशित करवाई जा रही हैं। स्वच्छ भारत अभियान के परिणामस्वरूप देश के लोग स्वच्छ वातावरण में रहना सीख पाएंगे या नहीं,इसे अपने जीवन का ज़रूरी अंग समझ पाएंगे अथवा नहीं? परंतु इस अभियान से इतना लाभ होने की तो अवश्य उम्मीद है कि मीडिया के माध्यम से ही सही परंतु कम से कम लोगों को यह बात तो पता चल ही सकेगी कि सफाई उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो इंसान को तमाम रोगों से मुक्त रखती है और स्वस्थ जीवन प्रदान करती है। परंतु झाड़ू के माध्यम से होने वाली प्रतीकात्मक सफाई को तो हम महज़ सतही सफाई ही कहेंगे। असली कचरा तो नालियों व नालों के बीच फंसा व जमा हुआ होता है। नाली व नालों का कचरा केवल इन्हें जाम ही नहीं करता बल्कि विभिन्न प्रकार की भयंकर बीमारियों व दुर्गंध का भी कारण बनता है। और कहना गलत नहीं होगा कि इन नालियों व नालों को जाम करने में सबसे बड़ी भागीदारी उन लोगों की है जो अपने घरों व दुकानों के आगे पडऩे वाली नालियों व नालों पर कब्ज़ा जमाकर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर बैठते हैं।
इस अतिक्रमण के परिणामस्वरूप सफाई कर्मचारी अतिक्रमण के कारण इन ढके हुए नालों व नालियों की समुचित तरीके से सफाई नहीं कर पाते। और इसी कारण इन नालियों में हमेशा गंदा पानी रुका रहता है। नतीजतन मक्खी व मच्छर जैसे कीड़े-मकौड़े इनमें पनपते रहते हें और सुअर जैसे जानवर इनमें घुसते रहते हैं और गंदगी फैलाते हैं। यही जाम बरसात आने पर खासतौर पर शहरी इलाकों के डूबने का कारण भी बनता है। ज़ाहिर है नाले पर अतिक्रमण के चलते फंसा कचरा साफ न हो पाने पर नाले का पानी ओवरफ्लो हो जाता है तथा सडक़ों पर फैलता है व लोगों के घरों में घुसता है। हम देखते हैं कि लोगों ने अपने घरों के मुख्य द्वार तो भले ही अपनी व्यक्तिगत ज़मीन पर क्यों न बनाए हों परंतु अपनी कार व मोटरसाईकल आदि चढ़ाने हेतु जो स्लोप(टेपर) वे बनाते हैं उसमें 4 से लेकर 6 फीट तक और कहीं-कहीं तो 8 फीट तक की सरकारी ज़मीन को अपने मुख्य द्वार के निजी टेपर में शामिल कर लेते हैं। और सरकारी नाली इसके नीचे से होकर गुज़रने लगती है। इसकी समुचित सफाई कर पाना संभव नहीं हो पाता। और यदि विभागीय स्तर पर उस नाली को तोडऩे अथवा उसकी मुरम्मत करने का निर्देश दिया जाता है तो उस समय भी उस मकान का मालिक अपने घर के आगे बनी स्लोप को तोडक़र नाली की मुरम्मत करवाने में आनाकानी करता है। क्या अतिक्रमण की इन ज़मीनी सच्चाईयों से निजात पाए बिना स्वच्छ भारत अभियान की सफलता की कामना की जा सकती है?
घरों से भी बुरा हाल बाज़ारों का है। यहां तो अतिक्रमण की इंतेहा देखते ही बनती है। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है गोया अतिक्रमण करना तो दुकानदारों का जन्मसिद्ध अधिकार हो। अतिक्रमण करने वाले दुकानदार नालियों पर कब्ज़ा करने के बाद उसके आगे के फुटपाथ पर भी अपना सामान रखकर बेचते नज़र आते हैं। और इनकी दुकानों पर आने वाला ग्राहक अपनी कार व मोटरसाईकल इनके द्वारा फुटपाथ पर किए गए अतिक्रमण के स्थान से आगे खड़ा करता है। गोया ग्राहक अपने वाहन को सडक़ के बीच में खड़ा करने के लिए बाध्य हो जाता है। और कमोबेश ऐसी ही स्थिति उस दुकान के सामने वाली दुकान पर भी होती है। अब ज़रा सोचिए कि फुटपाथ समेत तीस या पैंतीस फुट सडक़ का यदि तीस फुट हिस्सा दोनों ओर से अतिक्रमण की ही भेंट चढ़ जाए तो नाले व नालियों की सफाई करना तो दूर यातायात का संचालन भी संभव नहीं हो पाता। और यदि सरकार द्वारा इन समस्याओं से दु:खी हो कर आम लोगों को ट्रैिफक जाम से निजात दिलाने के लिएअतिक्रमण हटाओ अभियान छेड़ा जाता है तो अतिक्रमण करने वाले यही लोग इस अतिक्रमण विरोधी दस्ते के विरुद्ध कभी पत्थरबाज़ी करते सुनाई देते हैं तो कभी इनके विरोध का झंडा उठा लेते हैं। इतना ही नहीं बल्कि इन अतिक्रमणकारियों को राजनीतिज्ञों द्वारा भी अपने नफे-नुकसान का आंकलन करते हुए अपना संरक्षण दिया जाता है।
अतिक्रमण की यह समस्या केवल किसी एक शहर अथवा राज्य विशेष की समस्या नहीं है। बल्कि पंजाब से लेकर बिहार तक तथा दक्षिण भारत के राज्यों में भी अतिक्रमण के नासूर को पनपते देखा जा सकता है। बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो तमाम दुकानदारों की सीनाज़ोरी का यह आलम है कि उन्होंने छोटे दुकानदारों से किराया वसूलकर अपनी दुकानों के आगे के फुटपाथ पर उन्हें बैठने व दुकानदारी करने की पूरी छूट दी हुई है। गोया सरकारी फुटपाथ निजी दुकानदारों द्वारा किराए पर चढ़ाया गया है। बिहार में कई स्थानों पर घने बाज़ारों में 20-30 फुट की सडक़ होने के बावजूद आपको पैदल चलने का रास्ता भी मुश्किल से ही मिलेगा। पूरी की पूरी सडक़ पर दोनों ओर से अतिक्रमणकारियों का कब्ज़ा दिखाई देगा। और यदि किसी जागरूक व्यक्ति द्वारा उसे समझाने अथवा उसका विरोध करने की कोशिश की गई तो उसकी इज़्ज़त जाने में भी देर नहीं लगती। इसमें कोई शक नहीं कि दिन-प्रतिदिन अतिक्रमण को लेकर लोगों के बढते जा रहे हौसले सरकारी अनदेखी करने,नरमी बरतने तथा भ्रष्टाचार में संलिप्तता का परिणाम हैं। यदि सरकार में इच्छाशक्ति हो तो दिल्ली के तुर्कमान गेट पर चलाए गए ऐतिहासिक अतिक्रमण हटाओ अभियान की ही तरह पूरे देश से अतिक्रमण को समाप्त किया जा सकता है। अतिक्रमण को अपना अधिकार समझने वालों को स्वयं इस बात पर गंभीरता से गौर करना चाहिए कि ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु अथवा कम स्थान पर अधिक समाना समाहित न कर पाने के चलते सरकारी ज़मीन व नालों व नालियों पर किया जाने वाला उनका अतिक्रमण केवल विभिन्न प्रकार की बीमारियों को ही दावत नहीं देता बल्कि इसके चलते लगने वाले ट्रैिफक जाम में फंसकर कभी कोई मरीज़ अपना दम तोड़ सकता है। कभी कोई बच्चा या किसी सरकारी सेवा का परीक्षार्थी इसके कारण ऐसा नुकसान भी उठा सकता है जो उसके पूरे जीवन को दुष्प्रभावित कर दे। सोचने का विषय तो यह है कि जब देश का लगभग प्रत्येक व्यकित अतिक्रमण को अपना जन्मसिद्धअधिकार समझने लगे तो निश्चित रूप से इसके दुष्प्रभाव का शिकार होने वाला व्यक्ति स्वयं भी कहीं न कहीं अतिक्रमण का स्वयं भी दोषी हो सकता है।
लिहाज़ा जो लोग अपने घरों में या दुकानों पर प्रात:काल उठ कर ईश्वर का नाम लेते हैं,धूप-बत्ती कर अपने आराध्य की पूजा करते हैं उन्हें अपने अंतर्मन से यह ज़रूर सोचना चाहिए कि दुकान खोलते ही उनके द्वारा सबसे पहले शुरुआत ही ‘अधर्म’ से की जाती है। यानी कि सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर, अपनी दुकान का सामान फुटपाथ पर फैलाकर और यातायात में बाधा डालने का कारण बनकर। यदि अतिक्रमण करने वाले लोग धर्म की बातें करें या सफाई को लेकर सरकार अथवा नगरपालिका को कोसते नज़र आएं तो कम से कम न तो उनके मुंह से इस प्रकार की बातें अच्छी लगेगीं और मेरे विचार से न तो ऐसे लोगों को इस प्रकार की शिकायतें करने का भी कोई नैतिक अधिकार है। इसी प्रकार देश में ज़ोर-शोर से चलाया जा रहा स्वच्छ भारत अभियान भी उद्योगपतियों व िफल्मी कलाकारों के झाड़ू उठाने जैसे प्रतीकात्मक प्रदर्शन से सफल नहीं होने वाला। न ही इस अभियान के नाम पर इसके विज्ञापन पर पानी की तरह बहाया जाने वाला पैसा देश में स्वच्छता ला सकता है। इस अभियान की सफलता के लिए भी सबसे पहले पूरे देश को अतिक्रमण से मुक्त कर पाक-साफ कराए जाने की ज़रूरत है। जब तक देश के नालों व नालियों पर व फुटपाथ पर आम लोगों द्वारा नाजायज़ कब्ज़े बरकरार रखे जाएंगे तब तक स्वच्छ भारत अभियान की सफलता की कामना करना कतई बेमानी है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं
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