स्वयं इस्तीफा देने का शिवराज को उपयुक्त अवसर!

शिवराज सिंह चौहान{ आदित्य नारायण उपाध्याय } व्यापमं घोटाले की आग अंदर ही अंदर धधकती चली आ रही थी। ये आग उन बच्चों के मन में धधक रही थी जिनका भविष्य इसलिए चौपट हो गया क्योंकि उनकी जगह पैसे और पहुंच वालों का चयन हुआ। यह आग उन अभिभावकों और बच्चों के मन में भी धधक रही थी जिन्होंने सरकार की नाक के नीचे पनपे सिस्टम को मानकर अपने सर्वस्व को दांव पर लगा (जमीन/मकान/ जेवरात तक बेचे एडमिशन और नौकरी पाने) दिया। यह आग उन माताओं के सीने में भी धधक रही थी जिन्होंने योग्य होने के बावजूद अपने बच्चे के चयनित न होने पर भला-बुरा कहा। जिनमें से कुछ बच्चों ने आत्महत्या भी की हो या मानसिक तनाव में गैर कानूनी कार्य करना शुरू कर दिया हो।

लेकिन आग में घी का काम किया उस खबर ने जिससे पता चला कि संघ के कुछ लोगों ने भी कहीं न कहीं इस महापाप में हिस्सा लिया है। वैसे सुधीर शर्मा और लक्ष्मीकांत शर्मा भी संघ से ही आते हैं जिनमें से एक जेल में है और दूसरे पर पुलिस ने इनाम घोषित कर रखा है।

सवाल तो यह है कि संस्कार और नैतिकता की बात करने वाली भाजपा और उसकी नीति-निर्धारणकर्ता संस्था ‘संघ’ जिसने देश में सर्वाधिक लोकप्रियता भगवान राम का नाम लेकर बटोरी, क्या वे नहीं जानते कि भगवान ने केवल एक अति साधारण व्यक्ति के आरोप मात्र पर माता सीता को त्याग दिया था। क्या उसी नैतिकता के आधार पर अब शिवराज को पद से नहीं हट जाना चाहिए? जबकि भाजपा और संघ यह जानता है कि शिवराज के इस्तीफे से प्रदेश में उसका शासन जाने वाला नहीं और देश भर में जिस तरह से भाजपा का विस्तार हो रहा है, मोदी और पार्टी के कड़े रुख से पार्टी और जनता में यह संदेश दे सकते हैं कि चाहे कोई भी क्यों न हो नैतिकता के दायरे से बाहर दिखाई देने पर उस पर सख्त कार्यवाही की जाएगी।

शिवराज चाहे दूध ही क्यों न हों, उनके शासन-प्रशासन का सफेद दिखाई देने वाला पदार्थ पानी मिला हुआ है। यह आए दिन पकड़े जाने वाले भ्रष्ट अफसर, बलात्कारों का ग्राफ और प्रदेश में ठेकेदारों और खनिज माफियाओं की करतूतों से साफ जाहिर है। अब तक की इस दूध पर पड़ी मलाई की परत अब क्षीण हो चुकी है और दूध और पानी का अनुपात भी इस तरह गड़बड़ा गया है कि अब दूध में पानी नहीं, पानी में दूध मिला दिखाई दे रहा है।

अब जब संघ के बड़े पदाधिकारियों तक आरोपों की आंच आ ही पहुंची है और शायद सीएम हाउस के बाहर खड़ी विषम परिस्थिति शिवराज को दिखाई न पड़ती हो, गाहे-बगाहे शिवराज को जाना ही होगा। इसकी इबारत तो तब ही लिखी जा चुकी थी जब शिवराज के मूर्ख सलाहकारों ने उन्हें नरेंद्र मोदी के काम्पिटिशन में खड़ा करने की कोशिश की थी। देश भर के राष्ट्रीय चैनलों और बड़े अखबारों में करोड़ों के विज्ञापन देकर उन्हें अनुकूल बनाने की चाल भी चली गई। शिवराज को मुगालते में रखा गया।

लेकिन स्वयं इस्तीफा देकर शिवराज एक नैतिकता का उदाहरण दे सकते हैं और शायद उन्हें सत्ता से बाहर संगठन में दुबारा आकर और आगे बढऩे का होमवर्क करना चाहिए।

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आदित्य नारायण उपाध्याय {  लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं }

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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