सोशल मीडिया के जरिये खबरे दिल्‍ली पहुंचने से भयभीत हुए विजय बहुगुणा

imagesचन्‍द्रशेखर जोशी,

INVC,

देहरादून,

उत्‍तराखण्‍ड में विजय बहुगुणा के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद सूबे में ऐसा वातावरण ही नही बन पाया है, जिसमें विकास और आम आदमी के कल्याण की चिंता की जा रही हो, सूचना एवं लोक सम्‍पर्क विभाग के महानिदेशक व एमडीडीए देदून के वीसी श्री मीनाक्षी सुन्‍दरम का कहना है कि वह कार्पोरेट की तरह विभाग को चलायेगे। इसका साफ मतलब है कि कल्याणकारी राज्य की भावना ही समाप्त कर दी गयी है, जिससे आम जनता कांग्रेस से दूर होती जा रही है, और विजय बहुगुणा का साख तेजी से गिरती जा रही है और वह आम जनता का विश्वास खो चुके हैं।मुख्यमंत्री के मीडिया मैनेजमेन्ट की असफलता की चर्चा पूरे देश में तब गूजी ,जब नैशनल मीडिया में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की उबासी लेती हुए तस्वींर तथा बडी बडी हैडिंग में कहा गया कि मुख्य मंत्री ने मुजफफरनगर दंगे का असर राज्य में न पडने पर अपनी थपथपाई पीठ, नैशनल मीडिया पर यह मुख्‍यमंत्री के सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग की नाकामी थी कि करोडो रूपये के विज्ञापन बांटने वाले अधिकारी सीएम की मखौल बनवा रहे हैं, वही अल्पमसंख्यरक हितों की बात करके अपनी पीठ तो जरूर थपथपाई गयी परन्तु राज्य सरकार को यह नही पता कि राज्य में 25 फीसद आबादी वाले अल्पसंख्यक गांव कौन-कौन से हैं और उनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतों की क्या स्थिति है और उनकी सुरक्षा के क्या क्या् उपाय किये गये, क्या अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में बुनियादी सुविधाओं के बाबत किया गया, सत्ता के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जिससे समाज में जो भी मुस्‍लिम समाज के अलावा निर्धन, वंचित और पिछड़े वर्ग हैं वे लाभान्वित हो सकें।उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री न तो ब्राहमण वर्ग पर ही पकड बना पाये तथा न ही सिख व मुस्‍लिम समाज पर, जिससे जातीय समीकरण कांगेस के खिलाफ जाता दिख रहा है,राज्य सरकार को यह नही पता कि राज्य में 25 फीसद आबादी वाले अल्पसंख्यक गांव कौन-कौन से हैं और उनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतों की क्या स्थिति है और उनकी सुरक्षा के क्या क्या उपाय किये गये, क्या अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में बुनियादी सुविधाओं के बाबत किया गया, दलित एवं बाल्‍मीकि समाज भी है नाराज।उत्‍तराखण्‍ड में 60 प्रतिशत राजपूत बिरादरी लगातार अपनी उपेक्षा से खिन्‍न होकर कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होती जा रही है, मजे की बात यह है कि कांग्रेस की राजपूत बिरादरी को मुस्‍लिम व बाहमण वर्ग का भी पूर्ण समर्थन है, ऐसे में इस बार उत्‍तराखण्‍ड में कांग्रेस जातीय समीकरण में मात खा सकती है, क्‍योंकि कांग्रेस के ब्राहमण मुख्‍यमंत्री से जहां ब्राहमण मतदाता नहीं जुट पाये है वही राजपूत नेताओं के साथ एक मजबूत समीकरण बनकर तैयार हुआ है, इसमें देरी से कांग्रेस का उत्‍तराखण्‍ड में सूपडा साफ होना तय माना जा रहा है, इसका प्रभाव उत्‍तराखण्‍ड समेत उत्‍तर प्रदेश में भी पडना तय माना जा रहा है।वही शिक्षा के क्षेत्र में उत्तरराखण्ड की तस्वीर निस्संदेह दिनोंदिन चिंताजनक होती जा रही है। एक तरफ जहां देश भर में शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू हुआ हो गया है वही सूबे के स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं ही नही हैं।इसके अलावा उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में शहरी क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे की याद ही मुख्ययमंत्री को क्यों नही आई? यह सोच कर आम जन दुखी व निराश है, ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में नियोजित ढंग से बुनियादी क्षेत्र के निर्माण की ठोस योजना बनाने में असफल हुए विजय बहुगुणा।उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री का रिपोर्ट कार्ड बताता है कि सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को विशेष तरजीह नही दे पायी बहुगुणा सरकार, इनको तो खत्‍म ही कर दिया गया, कभी यह विभाग रोजगार जुटाने में प्रमुख भूमिका निभाते थे, परन्‍तु सिडकुल में जमीन बेचने तथा खनन के कारोबार में सिमटी राज्य सरकार।उत्तराखण्ड की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था गंभीर चिंता का विषय, मातृ-शिशु कल्याण केंद्रों की बदहाली चिंताजनक, डेंगू का कहर बढ़ता ही जा रहा है और इस पर अंकुश लगा पाना दूर रोकथाम के लिए प्रभावी कोशिश तक नहीं कर पा रहा।उत्तराखंड कांग्रेस में अंदखाने कई विधायक बहुगुणा के खिलाफ ऐसे खड़े हो गए है। जो जल्द से जल्द बहुगुणा को राज्य से बेदखल करने की रणनीति बना रहे है। ख़बरें तो ये भी हैं कांग्रेस के कई विधायक सीधे तौर पर बीजेपी के कई दिग्गजों के संपर्क में हैं और इन ख़बरों को अमलीज़ामा पहना दिया जाया तो,आने वाले दिनों में उत्तराखंड की राजनीति में एक नया अध्याय रचा जा सकता है। ये बातें ऐसे ही नहीं कही जा रही है। बल्कि इनके पीछे का सच भी सबके सामने हैं,पहला सच तो ये कि बहुगुणा जिस तरह से इस आपदा में अपना सब कुछ खो चुके दूसरे राज्यों के परिवारों को मुआवजा राशि देने के लिए मुकरें और जिस तरह से आपदा में अपना सब कुछ खो चुके परिवारों को मिलने वाले राहत सामग्री को कांग्रेस के नेताओं द्वारा खुद के लोगों में बांटा गया। इससे कांग्रेस की छवि को उत्तराखंड में जो धाग लगा हैं,उसे कांग्रेस के कई नेता छुपाना नहीं चाहते। यही वजह भी हैं कि धीरे-धीरे उत्तराखंड में बदलाव की बयार बहने लगी है। जिसके लिए डॉ.निशंक अपने राजनैतिक पटल पर चलने लगे हैं और इसमें कोई दो राय नहीं की बहुत जल्द उत्तराखंड की राजनीति में एक नया परिवेश राज्य के जनमानस के रूप में खड़ा देखा जाए।बहुत जल्द बहुगुणा सरकार का चक्रव्यू उनके ही महारथी भेदने वाले हैं, जिसकी शुरूआत बहुत जल्द उत्तराखंड राजनीति के पटल पर देखने को मिलेगी। शायद यही वजह भी हैं कि पिछले दिनों उत्तराखंड कांग्रेस के कई नेताओं को बहुगुणा ने खुद की कुर्सी बचाने की खातिर दिल्ली दरबार में भेजा था। भले ये नेता देहरादून पहुंच कर ये कह रहे हों कि ‘हम तो संसद की कार्रवाई देखने गये थे’। लेकिन ममला दरअसल अब ये हैं की अब कांग्रेस का क्रेदिय नेतृत्व भी उत्तराखंड की बहुगुणा सरकार से खुश नहीं है। जिसकी भूमिका दिल्ली में पिछले दिनों दिल्ली में बहुगुणा की कांग्रेस के युवराज से मुलाकात में लिख दी गयी हैं और इसका पटापेक्ष कभी भी किसी भी समय हो सकता है।पहाड़ के जनमानस ने देखा,18 जून 2013 को उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ही पहले वह व्यक्ति थे। जो पैदल मार्ग से भयंकर चट्टानों से होते हुए सबसे पहले अपने प्रतिनिधि मण्डल के साथ आपदाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचे थे। डॉ.निशंक आपदग्रस्थ क्षेत्र केदारनाथ,गौरीकुण्ड,जंगलचट्टी,गरूढ़चट्टी,गौरीगांव और गौरीकुण्ड पहुंचे और वह यहां जीवन और मृत्यु के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के साथ रहे। कड़कड़ाती ठंड में डॉ.निशंक इन लोगों के साथ रहे और इन लोगों के बीच से उन्होंने उत्तराखंड सरकार और केंद्र की कांग्रेस सरकार को जल्द-जल्द से आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत समाग्री भेजने की अपील की,ताकि जो कुछ लोग इस आपद के प्रकोप से बज गए हैं,उन्हें जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया जाया। लेकिन डॉ.निशंक के तमाम प्रयासों के बाद भी सरकार ने क्या किया यह पूरी दुनिया के सामने है। फिर भी डॉ.निशंक लगातार अपनी यात्रा पर चलते रहे। उन्होंने अपने और अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम जी जो हो सकता था। यहां फंसे लोगों की मदद की,यहां सवाल ये उठता हैं कि जिन क्षेत्रों में डॉ.निशंक अपने कार्यकर्ताओं के साथ एक दिन बाद ही पहुंच गये थे,और वहां की पल-पल की जानकारी जब उत्तराखंड सरकार और केंद्रीय सरकार को उनके माध्यम से दी जा चुकी थी तो फिर क्यों राहत कार्यों में तेजी नहीं लायी गयी। क्या बहुगुणा सरकार को बार-बार डॉ.निशंक द्वारा आभास कराये जाने के बाद भी होश नहीं आया था कि इन आपादग्रस्त क्षेत्रों हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये तीर्थ यात्री फंसें है? लेकिन बार-बार जगाने के बाद भी बहुगुणा सरकार दावतों में व्यस्त रही।बहुगुणा सरकार का विकास दिख रहा है बड़े-बड़े विज्ञापनों के करोड़ों रूपये के पटल पर। उसकी बात हम आगे करेगें। सवाल ये हैं कि इस त्रासदी में जब लोगों को सबसे ज्यादा आवश्यतका अपनी हैतिषियों की थी तो उस समय कौन उनके साथ खड़ा था। आज इस बात पर भले ही लोगों को विचार बंट सकेत है।जिस जनता के लिए विकास करने की बात बहुगुणा कर रहे थे। दरअसल उस विकास के पिछे तो सब कुछ विखरा-विखरा था। जिन्हें विकास की आवश्यकता थी। वह तो लाशों के रूप में खुद के भविष्य पर चीख रहे थे। इससे भी बड़ी बात तो ये थी कि इनकी लाशों के गंगा के तेज बाहव में घसीटते हुए फेंका जा रहा था। ताकि लाशें कम हो,और बहुगुणा सरकार का विकास का चेहरा दुनिया के सामने साफ सुथरा देखा जाया। भीषण त्रासदी में जिस राज्य का व्यापार और व्यापारी चौपट हो चुका हो,उस राज्य का मुखिया दिल्ली के आलिशान होटनों में पार्टी के भोज में व्यस्त हो,तो समझा जा सकता हैं कि त्रासदी की रात कैसे रही होगी।लेकिन इन सब से हट कर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा दिल्ली दरबार में एक भव्य पार्टी में देखे गए। तो लोगों ने पूछा ये क्या हो रहा था? लेकिन बहुगुणा जी टीवी अख़बारों में मुस्काराते हुए देखे गए की वो तो उत्तराखंड की विकास यात्रा के लिए दिल्ली में। समझ नहीं आता कौन सा विकास?कैसा विकास,और किसके लिए विकास?16-17 जून 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण दैवीय आपदा की रात को भला कौन भूल सकता है। जिसने दुनिया के सामने उत्तराखंड को एक पीड़ा के रूप में देखा गया। दुनिया ने देखा की पहाड़,जिनकी ऊंचाई हर कोई नहीं नाप सकता है। उन्हें किस तरह प्रकृति ने अपनी आगोश में लेकर,उत्तरकाशी,रूद्रप्रयाग,चमोली,पिथौरागढ़ और पौड़ी जैसी खुबसूरत जिलों को तहस-नहस कर दिया। बाबा केदार के दरबार में सिर्फ और सिर्फ लाशें ही लाशें नज़र आयी और उत्तराखंड के चारों धाम इस त्रासदी की आगोश में ख़ामोश हो गए। दुनिया ने देखा पहाड़ खुद के अस्तित्व के लिए लड़ते हुए। खुद के जीवन को तलाशते हुए। पहाड़ ने आंसू बहाये तो दुनिया भी पहाड़ के साथ रोती देखी गयी।

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