– अर्चना दत्ता –
महान स्वतंत्रता सेनानी बिपिन चन्द्र पाल ने कहा था, ‘मुझे संदेह है कि किसी और भारतीय ने उस प्रकार भारत से प्रेम किया होगा, जैसे निवेदिता ने किया था।’ टैगोर ने भारत को उनकी स्व-आहूतिपूर्ण सेवाओं के लिए उन्हें ‘लोक माता’ की उपाधि दी थी। सुश्री मार्ग्रेट एलिजाबेथ नोबल को स्वामी विवेकानंद द्वारा ‘समर्पित’ निवेदिता का नया नाम दिया गया था।
भारतीय महिलाओं के उत्थान के लिए स्वामीजी के उत्कट आह्वान से प्रेरित होकर निवेदिता 28 जनवरी, 1898 को अपनी ‘कर्म भूमि’ भारत के तटों पर पहुंची और वास्तविक भारत को जानने का कार्य आरंभ कर दिया।
निवेदिता ने एक राष्ट्र के रूप में भारत के आंतरिक मूल्यों एवं भारतीयता के महान गुणों की खोज की। उनकी पुस्तक ‘द वेब ऑफ इंडियन लाइफ’ अनगिनत निबंधों, लेखों, पत्रों एवं 1899-1901 के बीच एवं 1908 में विदेशों में दिए गए उनके व्याख्यानों का एक संकलन है। ये सभी भारत के बारे में उनके ज्ञान की गहराई के प्रमाण हैं।
भारतीय मूल्यों एवं परम्पराओं की महान समर्थक निवेदिता ने ‘वास्तविक शिक्षा— राष्ट्रीय शिक्षा’ के ध्येय को आगे बढ़ाया और उनकी आकांक्षा थी कि भारतीयों को ‘भारत वर्ष के पुत्रों एवं पुत्रियों’ के रूप में न कि ‘यूरोप के भद्दे रूपों’ में रूपांतरित किया जाए। वे चाहती थीं कि भारतीय महिलाएं कभी भी पश्चिमी ज्ञान और सामाजिक आक्रामकता के मोह में न फंसे और ‘अपने वर्षों पुराने लालित्य एवं मधुरता, विनम्रता और धर्म निष्ठा’ का परित्याग न करें। उनका विश्वास था कि भारत के लोगों को ‘भारतीय समस्या के समाधान के लिए’ एक ‘भारतीय मस्तिष्क’ के रूप में शिक्षा प्रदान की जाए।
निवेदिता ने 1898 में कोलकाता के उत्तरी हिस्से में एक पारम्परिक स्थान पर अपना प्रायोगिक विद्यालय खोला न कि नगर के मध्य हिस्से में जहां अधिकतर यूरोप वासी रहते थे। उन्हें वास्तव में अपने पड़ोस के हर दरवाजे पर जाकर छात्रों के लिए भीख मांगनी पड़ती थी। उनकी इच्छा थी कि उनका विद्यालय आधुनिक युग की ‘मैत्रेयी’ और ‘गार्गी’ का निर्माण करें और इसे एक ‘महान शैक्षणिक आंदोलन’का केन्द्र बिन्दु बनाए।
विद्यालय की गतिविधियां सच्चे राष्ट्रवादी उत्साह में डूबी हुई थीं। जब देश में ‘वन्दे मातरम’ पर प्रतिबद्ध लगा हुआ था, उस वक्त यह प्रार्थना उनके विद्यालय में गाई जाती थी। जेलों से स्वतंत्रता सैनानियों की रिहाई उनके लिए जश्न का एक अवसर हुआ करता था। निवेदिता अपने वरिष्ठ छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन के महान भाषणों को सुनने के लिए ले जाया करती थीं जिससे उनमें स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को पिरोया जा सके।
1904 में निवेदिता ने महान संत ‘दधीचि’ स्व आहुति के आदर्शों पर केन्द्र में ‘व्रज’ के साथ पहले भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की एक प्रतिकृति की डिजाइन बनाई थी। उनके छात्रों ने बंगला भाषा में ‘वंदे मातरम’ शब्दों की कशीदाकारी की थी। इस ध्वज को 1906 में भारतीय कांग्रेस द्वारा आयोजित एक प्रदर्शनी में भी किया गया था।
उनके लिए शिक्षा सशक्तिकरण का एक माध्यम थी। निवेदिता ने अपने छात्रों को उनके घरों से आजीविका अर्जित करने में सक्षम बनाने के लिए उन्हें पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ हस्तकलाओं एवं स्व-रोजगार प्रशिक्षण भी दिया। वह वयस्क एवं युवा विधवाओं को शिक्षा एवं कौशल विकास के क्षेत्र में लेकर आईं। निवेदिता ने अपने दिमाग में पुराने भारतीय उद्योगों के पुरुत्थान एवं उद्योग तथा शिक्षा के बीच संपर्क स्थापित करने की एक छवि बना रखी थी।
निवेदिता ने भारतीय मस्तिष्कों में राष्ट्रवाद प्रज्ज्वलित करने में महान भूमिका निभाई। उन्होंने भारत के पुरुषों एवं महिलाओं से अपील की कि वे अपनी मातृभूमि से प्रेम करने को अपना नैतिक कर्तव्य बनाए, देश के हितों की रक्षा करना अपनी ‘जिम्मेदारी’ समझें और मातृभूमि की पुकार पर किसी भी आहूति के लिए तैयार रहें।
भारत का एकीकरण उनके दिमाग में सबसे ऊपर था और उन्होंने भारत के लोगों से अपने दिल एवं दिमाग में इस ‘मंत्र’ का उच्चारण करने का आग्रह किया कि ‘भारत एक है, देश एक है और हमेशा एक बना रहेगा।’
निवेदिता ने 1905 में पूरे मनोयोग से स्वदेशी आंदोलन का स्वागत किया और कहा कि विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना केवल राजनीति या अर्थव्यवस्था का मसला ही नहीं है बल्कि यह भारतीयों के लिए एक ‘तपस्या’ भी है।
निवेदिता विभिन्न विषयों पर एक सफल लेखिका थीं। ज्वलंत मुद्दों पर भारत के दैनिक समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में छपे उनके लेख लोगों में देशभक्ति की भावना जगाते थे और उन्हें कदम उठाने के लिए प्रेरित करते थे, चाहे यह स्वतंत्रता आंदोलन हो, कला एवं संस्कृति का उत्थान हो या आधुनिक विज्ञान या शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें आगे बढ़ाना हो।
निर्धनों एवं जरूरतमदों के प्रति निवेदिता की सेवाएं, चाहे कोलकाता में प्लेग महामारी के दौरान हो या बंगाल में बाढ़ के दौरान, उनके बारे में बहुत कुछ कहती हैं। निवेदिता भारत में किसी भी प्रगतिशील आंदोलन में एक उल्लेखनीय ताकत बन गई।
वास्तव में उनकी 150वीं जयंती मनाने के इस अवसर पर राष्ट्र को उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के योगदान का पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है। निवेदिता ने भारत में महिलाओं के लिए ‘प्रभावी शिक्षा’ एवं ‘वास्तविक मुक्ति’ को ‘कार्य करना, तकलीफें झेलना और उच्चतर स्थितियों में प्रेम करना, सीमाओं से आगे निकल जाना; महान प्रयोजनों के प्रति संवेदनशील रहना; राष्ट्रीय न्यायपरायणता द्वारा रूपांतरित होना, के रूप में परिभाषित किया है। यह आज के भारत में महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा है जो जीवन के कठिन कार्यक्षेत्र में सामाजिक पूर्वाग्रहों, वर्जनाओं एवं सांस्कृतिक रूढि़यों के खिलाफ लड़ते हुए अपने कौशलों को प्रखर बना रही हैं।
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Archana Datta
Author and former DG, DD News and DG,NSD( AIR)
She had her schooling in Sister Nivedita School, a school founded in 1898 by Sister Nivedita or Miss Margaret Elizabeth Noble, an Irish lady, instrumental in spreading girls’ education in India. It is run by a trust named Ramkrishna Sarada Mission. She passed out class XI from RKSM Sister Nivedita School in the 1970. She had graduated from Serampore College, under University of Calcutta.The college was founded in 1818 by the Missionaries, William Carey, Joshua Marshman and William Ward. She had learnt French from l’institute de Chandernagore, an erstwhile French colony
She joined the West Bengal Civil Services (executive) in the year 1977 and worked as executive magistrate in WBCS ( executive) in the districts of Burdwan and Hoogly. In 1983, she joined the Indian Information Service through Civil Services Exam. Having undergone fundation and professional trainings at LBSNAA, Mussourie and IIMC, New Delhi, joined Press Information Bureau, Calcutta, in 1985. Thereafter, worked in different media units under the Ministry of I&B, in places like Patna, Lucknow, Dehradun, Bangalore and finally back to Delhi in September, 2006, and posted at PIB, Hqrs. She acted as spokesperson for the Ministries of Rural Development and Minorities Affairs and and was assigned to look after Press facilities for accredited journalists at PIB hqrs in Delhi
In 2007, joined Rashtrapati Bhavan , as Press Secretary to Ms Pratibha Devi Singh Patil, from 2007 to 2012. She also worked as OSD to the then Governor of Karnataka, Mr T N Chaturvedi. Archana Datta, also worked as the Director General, news, in both AIR and Doordarshan.
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