सामाजिक सद्भाव अथवा वैमनस्य के लिए पारिवारिक संस्कार जि़म्मेदार

dalit dulha wearing helmemt due to upper cast people threat-तनवीर जाफरी-

हमारा देश 21वीं सदी का भारत बनने की राह पर अग्रसर है। सूचना एवं प्रोद्यौगिकी के वर्तमान युग में भारतवर्ष विश्व के विकसित देशों की आंखों से आंखें मिलाने जा रहा है। गत् सात दशकों के स्वतंत्र काल में देश ने विकास के अनेक नए पैमाने निर्धारित किए हैं। इस दौरान देश ने अनेक नए परिवर्तन देखे हैं। हमारा खान-पान,रहन-सहन,पहनावा,जीवन स्तर सब कुछ काफी बदल चुका है। यहां तक कि इस क्रांतिकारी बदलाव का प्रभाव देश के युवाओं के मस्तिष्क तथा उनके सोच-विचार पर भी पड़ा है। हमने अनेक रूढ़ीवादी बेडिय़ों से भी स्वयं को मुक्त किया है। परंतु इन सब बातों के बावजूद अभी भी हम जातिवाद के चंगुल से स्वयं को पूरी तरह से मुक्त नहीं कर पाए हैं। और इसी जातिगत् दुर्भावना का शिकार होकर हम कभी-कभी कुछ ऐसी हरकतें कर बैठते हैं जो हमारी व हमारे देश की उपरोक्त सभी विशेषताओं पर काले धब्बे के समान प्रतीत होती हंै। सवाल यह है कि क्या आधुनिकता की राह पर आगे बढ़ते हुए तथा विकास की नित नई ऊंचाईयां छूते हुए हमारे देश में जातिवाद की यह बेडिय़ां कभी पूरी तरह से टूट भी पाएंगी अथवा नहीं? और इसी से जुड़ा दूसरा प्रश्र यह भी कि आिखर हमें सामाजिक वैमनस्य की यह सीख मिलती कहां से है? कहीं इसके लिए हमारे पारिवारिक संस्कार व शिक्षा-दीक्षा ही तो जि़म्मेदार नहीं?
पिछले दिनों उत्तरांचल राज्य से एक बेहद अफसोसनाक समाचार प्राप्त हुआ कि भाजपा सांसद तरुण विजय दलितों के मंदिर में प्रवेश न किए जाने के विरोध में एक मुहिम चला रहे थे कि इसी दौरान उनपर कुछ शरारती लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया। उत्तरांचल में हालांकि इस प्रकार की मुहिम छेडऩा कोई नई बात नहीं है। प्रसिद्ध पर्यावरण विद् एवं पद्म विभूषण श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी ने दशकों पूर्व इसी मुहिम को लेकर एक लंबा आंदोलन छेड़ा था। परंतु आज तक जातिगत भेदभाव बढ़ते जाने का यह कलंक मिटाया नहीं जा सका। यह बात केवल उत्तरांचल राज्य तक ही सीमित नहीं है। पूरे देश में सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं जहां दलितों को प्रवेश करने की इजाज़त नहीं है। मज़े की बात तो यह है कि इन्हीं मंदिरों में जहां कोई दलित व्यक्ति भगवान की मूर्ति तक जाकर उनकी पूजा-अर्चना व दर्शन नहीं कर सकता उसी दलित के जि़म्मे उसी मंदिर के शौचालय तथा मंदिर के प्रांगण में झाड़ू-सफाई करने की जि़म्मेदारी सौंपी जाती है। जातिगत नफरत के यह बीज केवल मंदिरों में प्रवेश करने से रोकने तक ही सीमित नहीं हैं। मध्यप्रदेश,हरियाणा  तथा राजस्थान जैसे कई दूसरे राज्य ऐसे हैं जहां अभी भी कई जगहों पर तथाकथित उच्च जाति के लोगों की सामंती सोच बरकरार है। इन इलाकों से अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि अमुक नगर, कस्बे अथवा गांव में दलित दूल्हे को कथित उच्च जाति के दबंगों ने घोड़ी पर चढऩे से रोक दिया। और यदि दलित समुदाय के बारातियों की ओर से घोड़ी पर सवार होने की जि़द की गई तो वातावरण हिंसक हो गया। कई सचित्र समाचार तो ऐसे भी देखे गए कि बेचारा दलित दूल्हा तथा उसकी बारात में शामिल सभी बाराती अपने सिरों पर हैल्मेट रख कर बारात में शामिल हुए। क्योंकि उन्हें भय था कि दबंग जाति के लोग उनपर पथराव अथवा सशस्त्र हमला कर सकते हैं। यहां तक कि कई जगह पुलिस की सुरक्षा में दलित दूल्हे को घोड़ी पर बिठाया गया।
rahul singh DC taking lunch coocked by Dalitनफरत के इस वातावरण की आिखर वजह क्या है? क्या किसी गरीब दलित व्यक्ति को इस बात का अधिकार नहीं कि वह अपने पैसे खर्च कर अपनी जि़ंदगी में केवल एक बार निभाई जाने वाली शादी जैसी रस्म में दूल्हा बनकर घोड़ी पर सवार होकर अपने व अपने माता-पिता के अरमानों को पूरा कर सके? क्या किसी शास्त्र,धर्मग्रंथ अथवा सामाजिक शास्त्र में यह लिखा गया है कि दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जाना चाहिए या उसे दूल्हे के रूप में घोड़ी पर नहीं सवार होने दिया जाना चाहिए अथवा किसी दलित को कुर्सी अथवा चारपाई पर किसी उच्च जाति के व्यक्ति के बराबर नहीं बैठना चाहिए? और यदि कोई धार्मिक अथवा सामाजिक नियमावली हमें कोई ऐसी गैर बराबरी वाली शिक्षा देती भी है तो क्या वर्तमान युग में ऐसी वैमनस्य पूर्ण शिक्षा का अनुसरण किया जाना संभव है? हमारे देश के राजनेता,राजनैतिक दल तथा अनेक सामाजिक संगठन अक्सर समानता की दुहाई देते रहते हैं। दिखावे के लिए ही सही परंतु इस प्रकार के अनेक आयोजन भी किए जाते रहे हैं जिनसे समाज में यह संदेश जा सके कि जातिगत् स्तर पर नफरत व भेदभाव करना उचित नहीं है। परंतु इन सब प्रयासों पर उस समय बार-बार पानी फिरता दिखाई देता है जब दलितों के प्रति भेदभाव बरते जाने संबंधी नित नए समाचार देश के किसी न किसी भाग से सुनने को मिलते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात के मेहसाणा क्षेत्र से इसी वर्ष 26 जनवरी अर्थात् गणतंत्र दिवस पर यह समाचार मिला कि मेहसाणा के नोरतल गांव के दलित सरपंच चंदु मकवाना को गांव के ठाकुर समुदाय के दबंगों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोक दिया। दबंगों ने दलित सरपंच को चेतावनी दी कि यदि उसने तिरंगा फहराया तो उसे बुरे परिणाम भुगतने पड़ेंगे। आिखरकार अपनी सुरक्षा हेतु उस निर्वाचित सरपंच ने अतिरिक्त पुलिस कर्मियों की मांग की और उसे 9 पुलिस कर्मियों की सुरक्षा दी गई। इसी प्रकार गत् वर्ष दलित समुदाय से संबंध रखने वाले पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अरूण कुमार चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह शिकायत भेजी कि-‘चमार जाति का होने की वजह से मुझे स्टाफ रूम में कुर्सी और टेबल नहीं दी गई है। 21वीं सदी में भी मैं यह भेदभाव झेल रहा हूं। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि ‘अध्यापकों के काम के बंटवारे हेतु होने वाली बैठक में मुझे नहीं बुलाया जाता। मुझे अध्यापन कार्य से अलग काम दिया जाता था। कहा जाता था कि आप दोपहर दो बजे क्लास खत्म होने के बाद शाम पांच बजे तक कॉलेज में रुको जबकि सारे अध्यापक घर चले जाते थेÓ। एक शिक्षित व्यक्ति के साथ भेदभाव का कारण क्या केवल यही कि वह दलित परिवार में क्यों पैदा हुआ? जब एक शिक्षित दलित व्यक्ति स्वयं ऐसे भेदभाव का सामना कर रहा हो तो अशिक्षित,गरीब व असहाय दलितों पर क्या बीतती होगी इस बात का अंदाज़ा तो आसानी से लगाया जा सकता है।
कुछ समय पूर्व बिहार के गोपालगंज से एक समाचार आया था कि एक स्कूल में एक दलित विधवा रसोईए द्वारा बनाए गए मिड डे मील को कथित उच्च जाति के बच्चों ने खाने से सिर्फ इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उसे दलित व्यक्ति ने बनाया है। ज़ाहिर है इन बच्चों को उनके माता-पिता ने ही इस बात के लिए संस्कारित किया होगा कि वे दलितों के हाथ का बना या उनके हाथों छुआ गया खाना हरगिज़ न खाएं। गोया बच्चों को बचपन में दिए जा रहे संस्कार ही नफरत अथवा सद्भाव की असली वजह हैं। बिहार के गोपालगंज की उपरोक्त घटना का एक सुखद अंत भी है। इसी स्कूल में जहां दलित के हाथ का बना खाना खाने से तथाकथित स्वर्ण जाति के बच्चों ने इंकार किया था, यही समाचार जब गोपालगंज के स्वर्ण जाति से संबंध रखने वाले जि़ला क्लेक्टर 26 वर्षीय राहुल सिंह ने सुना तो वे इस घटना के विरुद्ध अपना रोष जताने के मकसद से इसी स्कूल में जा पहुंचे। उन्होंने उसी दलित के हाथ का बना खाना एक साधारण सी जगह पर बैठकर खाया और समाज को यह संदेश देने की कोशिश की कि समाज में जातिवादी वैमनस्य की तथा जातिगत् दुर्भावना की कोई गुंजाईश नहीं है।
सुंदरलाल बहुगुणा हो या तरुण विजय अथवा क्लेक्टर राहुल सिंह यह सभी कथित उच्च जाति से संबंध रखने वाले लोग हैं। परंतु इस प्रकार के जातिवादी भेदभाव के प्रबल विरोधी हैं। इसका अर्थ यह है कि किसी जाति विशेष में नफरत के संस्कार नहीं दिए जाते। परंतु यह भी सच है कि इसी कथित उच्च जाति के सामंती संस्कारों में परवरिश पाने वाले तमाम परिवार ऐसे भी हैं जो दलित समाज के लोगों को तुच्छ अथवा नीच समझते हैं। जबकि वास्तव में यदि हमारे बीच में यह समाज मौजूद न हो तथा यह अपनी जि़म्मेदारियों को बखूबी न निभाएं तो यह धरती किसी नरक से कम नज़र नहीं आएगी। कितनी बड़ी विडंबना है कि स्वयं को तथाकथित उच्च जाति का समझने वाले लोग तो धरती पर कूड़ा-करकट,गंदगी और मलमूत्र का ढेर लगाने में व्यस्त रहते हैं तो यही दलित समाज उनकी फैलाई हुई गंदगी को साफ कर वातावरण को स्वच्छ तथा रहने के लायक बनाता है और इसके बावजूद यही समाज अवहेलना,उपेक्षा तथा असमानता का शिकार भी बना रहता है? लिहाज़ा हमें अपने बच्चों को ऐसे संस्कार देने चाहिए जो समाज में सभी को बराबरी की नज़रों से देखें तथा धर्म व जाति के आधार पर किसी से नफरत करने की प्रवृति को बंद करें।

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Tanveer JafriAbaut the Auther
Tanveer Jafri
Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628 1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana.

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