वीना श्रीवास्तव की कविता -बचपन

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कचरे के ढेर पर बचपन तलाशते हुए

बचपन को देखा है

कभी पॉलीथीन के आइने में

उन्नींदें चेहरे में जगती उम्मीदें

या/मैले-कुचैले कागज़ों में लिखी

अपनी जिंदगी की इबारत

क्या ढूंढते हैं ये ?

कभी सोचती हूँ

ये कैसे नौनिहाल हैं

जो भूख से बेहाल हैं

या/कभी न हल होने वाले

अनुत्तरित सवाल हैं?

सुबह से शाम इनका कंधा

कचरा ढोकर लाता है

कचरे में ढूंढते-ढूंढते जिंदगी

इनका बचपन खो जाता है.

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Poetry Collection of Veena Shrivastava, Poetry of  Veena Shrivastava, Veena Shrivastavaवीना श्रीवास्तव ,
प्रोफेसर डी.वी. कालेज उरई

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