लो रोक लो बलात्कार….

protest1{ निर्मल रानी ** }  महिलाओं का यौन शोषण अथवा बलात्कार हालांकि हमारे देश में घटित होने वाला एक ऐसा अपराध है जो दशकों से देश के किसी न किसी भाग में होता आ रहा है। परंतु मीडिया की सक्रियता,सूचना के क्षेत्र में आई क्रांति तथा इंटरनेट ने इस बुराई को न केवल मुस्तैदी से उजागर किया बल्कि यही माध्यम कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में ऐसे दुराचारों की बढ़ोत्तरी के भी जि़म्मेदार बने हुए हैं। दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए दामिनी गैंगरेप कांड के पश्चात भारत में इस घिनौने कृत्य के विरुद्ध भारतीय समाज एकजुट व जागरूक होते हुए भी दिखाई दिया। इस घटना के बाद अदालत व सरकार पर जनता का इतना दबाव बढ़ा कि सरकार ने बलात्कारियों को स$ख्त सज़ा देने का $कानून बनाया और अदालतों ने भी ऐसे मामलों पर यथाशीघ्र $फैसला सुनाए जाने की शुरुआत भी की। परंतु इन सब कोशिशों के बावजूद फिर वही सवाल बर$करार है कि क्या सरकार द्वारा $कानून बनाए जाने या अदालतों द्वारा यथाशीघ्र बलात्कारयिों को दंडित किए जाने संबंधी निर्णय लिए जाने मात्र से देश में बलात्कार की घटनाएं कम हो जाएंगी? और इन सब से बड़ा सवाल यह भी है कि जब देश व समाज का वह वर्ग अथवा तंत्र जिससे कि महिला समाज को संरक्षण,सुरक्षा व न्याय की उम्मीद होती है, उसी वर्ग के लोग बलात्कार,महिला उत्पीडऩ या यौन शोषण जैसे मामलों में संलिप्त पाये जाने लगें ऐसे में इस बुराई पर आ$िखर कैसे नियंत्रण पाया जा सकेगा?
पिछले दिनों पश्चिम बंगाल राज्य की वीरभूम जि़ले के लाभपुर क्षेत्र में एक ऐसी सनसनी$खेज़ घटना घटी जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। 20 वर्ष की एक आदिवासी लडक़ी का $कुसूर केवल इतना था कि वह दूसरे समुदाय के एक लडक़े से प्यार करती थी। इससे नाराज़ लडक़ी के समुदाय के लोगों ने अपनी एक पंचायत बुलाई। उस कंगारू अदालत ने दंडस्वरूप उस लडक़ी के विरुद्ध यह निर्णय दिया कि उसके साथ उसी के समुदाय के 13 व्यक्ति बलात्कार करें। और पंचायती $फरमान के बाद उसी समुदाय के 13 युवकों ने पंचायत स्थल के पास ही एक-एक कर उस लडक़ी से बलात्कार किया। वह लडक़ी मूर्छित हो गई पंरतु पंचायत के जि़म्मेदारों को अपने ही समुदाय की उस लडक़ी पर कोई तरस नहीं आया। यह और बात है कि अब यह मामला पुलिस के संज्ञान में है और बलात्कारी 13 लोग गिर$फ्तार भी हो चुके हैं। पंरतु यहां सवाल बलात्कारियों के विरुद्ध $कानूनी कार्रवाई होने अथवा न होने का नहीं बल्कि सबसे गंभीर विषय यही है कि अपनी ही बिरादरी की पंचायत जब अपने ही समुदाय की लडक़ी के विरुद्ध ऐसे घिनौने,$गैर$कानूनी तथा  अमानवीय $फरमान जारी करने लगे ऐसी मानसिकता रखने वाले समाज में आ$िखर बलात्कार को नियंत्रित करने की बात कैसे सोची जा सकती है?
दामिनी बलात्कार कांड या देश में अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले इस प्रकार के अन्य समाचारों में हालांकि आमतौर पर तो यही देखा जाता है कि इस अपराध में शामिल लोग प्राय: इस अपराध के अंजाम से नावा$िक$फ होते हैं या उन्हें अपने मान-सम्मान अथवा प्रतिष्ठा की उतनी $िफक्र नहीं होती। परंतु पिछले कुछ समय से हमारे देश में इस घिनौने कृत्य में जिस प्रकार के लोगों के नाम सुनाई दे रहे हैं उन्हें सुन व देखकर तो निश्चित रूप से कभी-कभी ऐसा प्रतीत होने लगता है कि संभवत:हमारे देश से यह बुराई व अपराध समाप्त होने का कभी नाम ही नहीं लेगा। क्या धर्मगुरु,मौलवी,क्या मंदिर के पुजारी,क्या पुलिसकर्मी,नेता, अधिकारी यहां तक कि न्यायपापलिका से जुड़े जि़म्मेदार लोगों के नाम भी अब ऐसे कृत्यों में उजागर होने लगे हैं। अपने करोड़ों अनुयायी होने का दावा करने वाला तथा लोगों की धार्मिक भावनाओं की धज्जियां उड़ाने वाला संत आसाराम व उसका पुत्र नारायण साईं अपने ऐसे कुकर्मों के लिए अभी भी जेल की सला$खों के पीछे है। धर्म व अध्यात्म के नाम पर चलाया जाने वाला उसका पाखंडपूर्ण साम्राज्य लगभग समाप्त हो चुका है। अपनी पौत्री व बेटी की उम्र की किशोरियों के साथ दुराचार करने में यह कलयुगी महापुरुष $कतई नहीं हिचकिचाते थे। जब समाज को दिशा दिखाने व जीवन में अध्यात्मवाद की शिक्षा देने वाले कलयुगी संत ऐसी नीच हरकतोंं पर उतर आएं तो इस बुराई पर कौन और कैसे नियंत्रण पा सकता है?
देश का एक और सर्वप्रतिष्ठित धर्मस्थान बद्रीनाथ का मुख्य पुजारी गत् दिनों दिल्ली में ऐसे ही आरोपों में गिर$फ्तार किया गया। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक और तो बसंत पंचमी के पावन अवसर पर टिहड़ी के महाराजा के शाही महल में भगवान बद्रीनाथधाम के द्वार के कपाट खोलने का मुहूर्त निकाला जा रहा था तो ठीक उसी समय दिल्ली में महरौली स्थित एक होटल के कमरे में शराब के नशे में धुत्त इसी protestबद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी(रावल)केशव नंबूदरीपाद को पुलिस एक महिला के यौन उत्पीडऩ की शिकायत पर गिर$फ्तार कर रही है। $खबरों के अनुसार नशे में चूर इस पुजारी ने एक जानकार महिला को अपने कमरे में $फोन कर बुलाया। वह महिला इसका सम्मान करती थी तथा इसपर विश्वास कर इसके कमरे पर जा पहुंची। बस नशे में चूर इस पुजारी को उस महिला के साथ दुष्कर्म करने की आ सूझी। इस महिला ने उसके विरुद्ध पुलिस में केस दर्ज करा दिया और पुजारी को दिल्ली पुलिस ने गिर$फ्तार कर लिया। चंडीगढ़ में चार पुलिसकर्मियों द्वारा दसवीं की एक छात्रा के साथ का$फी दिनों तक उसे डरा-धमका कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार करने संबंधी समाचार देश के समाचार पत्रों की सु$िर्खयां बन चुके हैें। दिल्ली और कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश में कई मौलवियों द्वारा लड़कियों से बलात्कार करने,इनको बहला-फुसला कर इनका यौन शोषण करने के समाचार भी कई बार आ चुके हैं। जस्टिस गांगूली द्वारा अपने होटल के कमरे में अपनी महिला सहायक को अपनी हवस का शिकार बनाए जाने का प्रयास करना जगज़ाहिर हो चुका है। नेताओं व मंत्रियों के नाम भी इस घिनौने कृत्य में संलिप्त पाए जा चुके हैं। ताज़ातरीन विवाद दिल्ली के खिडक़ी एक्सटेंशन नामक स्थान में चलने वाले सैक्स व ड्रग्स रैकेट के अड्डे को लेकर सुना जा रहा है। इस मामले में भी स्पष्ट ज़ाहिर हो रहा है कि इस अड्डे पर विदेशी महिलाओं का सैक्स रैकेट में इस्तेमाल किया जाता था तथा इसके तार साधारण लोगों से ही नहीं बल्कि अधिकारियों व नेताओं तक से जुड़े हुए थे। यही वजह है कि पुलिस प्रशासन इस घटना के प्रति गंभीरतापूर्वक कार्रवाई करने के बजाए इस मामले को उजागर करने वालों को ही अपना निशाना बनाने का प्रयास कर रहा है।
गोया देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित जि़म्मेदार तथा धर्म व अध्यात्म क्षेत्र में सम्मानित समझे जाने वाले लोगों के नाम महिला उत्पीडऩ व यौन शोषण संबंधी मामलों को लेकर उजागर हो रहे हैं। और इंतेहा तो तब हो गई जबकि पश्चिम बंगाल की पंचायत ने $खुद 13 लोगों को बलात्कार करने का आदेश दे डाला। ऐसे में क्या यह संभव है कि केवल स$ख्त $कानून बनाने या अदालतों द्वारा ऐसे मु$कद्दमों का जल्दी निपटारा करने  मात्र से ऐसी सामाजिक बुराईयों पर नियंत्रण पा जा सके? हो न हो इस बुराई की जड़ भी उसी जगह छुपी है जहां कि लडक़ी को लडक़ों की तुलना में कमज़ोर,अबला,दूसरे दर्जे का तथा संभोग अथवा यौन क्रिया की विषय वस्तु मात्र समझा जाता है। शताब्दी पूर्व इसी भारतीय समाज में एक वर्ग में लडक़ी को पैदा होते ही मार दिया जाता था। कन्या भू्रण हत्या आज भी हमारे देश में उस अभिशाप का नाम है जिसे समाप्त करने के लिए सरकारें बड़ी से बड़ी जागरूकता मुहिम चला रही हैं। विधवा औरत को सती हो जाने के लिए बाध्य करना भी हमारे ही देश की एक कुप्रथा रही है। आज भी हमारे समाज में लडक़ों के पैदा होने पर अथवा उनके जन्म दिन पर माता-पिता जश्र मनाते हैं जबकि आमतौर पर लडक़ी के पैदा होने पर अथवा उसके जन्मदिवस पर ऐसा कोई आयोजन नहीं किया जाता। प्रत्येक माता-पिता संतान के रूप में पुत्र की सौ$गात को बेहद अनिवार्य समझते हैं। इसके अलावा भी और कई प्रकार की बंदिशें व अवहेलनाएं कन्या व नारी समाज को ही झेलनी पड़ती हैं। ज़ाहिर है जिस समाज में महिला का पालन-पोषण ही सौतेले तरी$के से व अवहेलनात्मक दृष्टिकोण से किया जा रहा हो वहां उसी समाज में उसे संभोग अथवा अपनी हवस मिटाने की विषयवस्तु मात्र समझा जा रहा हो तो इसमें आश्चर्य भी क्या है?

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Nirmal Rani **निर्मल रानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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