रिश्तों पर भारी पड़ती राजसत्ता

– निर्मल रानी –

political-dynastes-and-indiहमारे देश में लोकतांत्रिक राजनैतिक प्रणाली होने के बावजूद देश के अनेकानेक राजनीतिज्ञों पर परिवारवाद की राजनीति को परवान चढ़ाने का आरोप लगता रहा है। हालांकि कांग्रेस विरोधी दलों द्वारा परिवारवाद की राजनीति का आरोप केवल कांग्रेस पार्टी के प्रथम संरक्षक परिवार अर्थात् गांधी-नेहरू परिवार तक ही सीमित कर दिया गया था परंतु हकीकत में ऐसा नहीं है। देश में इस समय शायद कुछ ही गिनी-चुनी राजनैतिक पार्टियां या चंद नेता ही ऐसे होंगे जो परिवारवाद या भाई-भतीजावाद से मुक्त हों। अन्यथा यह कहा जा सकता है कि इस विषय पर लगभग पूरे कुंए में ही भांग घुली हुई है। बहरहाल इसी सिक्के का एक दूसरा पहलू यह भी है कि परिवारवाद की राजनीति और इसे बढ़ावा देने की राजनीति की भी कुछ सीमाएं निर्धारित हैं। गोया सत्ता के किसी भी शीर्ष पर बैठा कोई भी राजनेता निश्चित रूप से अपने सबसे करीबी व्यक्ति अर्थात् अपनी संतान अपनी पत्नी या इनके बाद अपने भाई-भतीजे को अपना राजनैतिक वारिस या उत्तराधिकारी तो ज़रूर बनाना चाहता है। परंतु साथ-साथ वह यह भी चाहता है कि जब तक वह जीवित है तब तक वह स्वयं राजसत्ता के सिंहासन से किसी भी तरह से चिपका रहे। और उसके छोडऩे के बाद ही उसका बनाया गया राजनैतिक उत्तराधिकारी उसकी सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले। और जब-जब राजनैतिक सत्ता हस्तांतरण में समय की हेर-फेर हुई है तो उसके नतीजे खतरनाक ही साबित हुए हैं।

असमय राजनैतिक सत्ता हस्तांतरण का सबसे बड़ा उदाहरण इस समय उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी में देखा जा सकता है। 2012 में जिस समय मुलायम सिंह यादव ने काफी जद्दोजहद के बाद अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने की राह हमवार की थी उस समय यह राजनैतिक घटनाक्रम केवल दो नज़रियों से देखा गया था। एक तो यह कि मुलायम सिंह यादव परिवारवाद की राजनीति की पराकाष्ठा का प्रदर्शन करते हुए देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री पद पर स्वयं बैठने के बजाए अपने पुत्र को अपनी राजनैतिक विरासत हस्तांरित कर रहे हैं। और दूसरे यह कि मुलायम सिंह यादव ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने का पूरा अवसर मिल सके। परंतु गत् एक दो वर्षों से इसी समाजवादी पार्टी में जो उथल-पुथल,तोड़-फोड़ व खींचातानी मची दिखाई दे रही है उसे देखकर तो परिवारवाद की राजनीति सुखदायी अथवा सुविधाजनक प्रतीत होने के बजाए अत्यंत नकारात्मक व नुकसानदेह नज़र आ रही है। आज इस संदर्भ में चारों ओर यही सवाल उठाए जा रहे हैं कि 2012 में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री पद सौंप कर सही फैसला लिया था या गलत और उन्होंने यह फैसला किस राजनैतिक दूरदर्शिता के चलते लिया था?

अब आईए इसी संदर्भ में कुछ राज्यों के अन्य क्षेत्रीय क्षत्रपों पर भी नज़र डलते हैं। प्रकाश सिंह बादल पंजाब की राजनीति का एक महत्वपूर्ण नाम हंै। अकाली दल पर अपनी मज़बूत पकड़ रखने वाले बादल चार बार पंजाब के मुखमंत्री रह चुके हैं। 1927 में जन्मे बादल बावजूद इसके कि अपने बेटे सुखबीर सिंह बादलको मुख्यमंत्री पद पर बिठाना ज़रूर चाहते हैं परंतु पिछले दिनों हुए पंजाब विधानसभा के चुनाव तक उन्होंने सत्ता की बागडोर मुख्यमंत्री के रूप में अपने ही हाथों में रखी। हां पुत्र सुखबीर बादल को प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाकर उन्हें शासन करने की कला व सत्ता की बागडोर संभालने का प्रशिक्षण ज़रूर दिया। इसी प्रकार 80 वर्षीय फारूख अब्दुला भी कई बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए। परंतु उन्होंने अपने बेटे उमर उब्दुल्ला को राज्य की बागडोर सौंपने से पहले केंद्रीय राज्य मंत्री बनवाकर सत्ता सिंहासन संभालने का प्रशिक्षण भी दिया। उसके बाद जब फारुख अब्दुल्ला स्वयं केंद्रीय सत्ता की राजनीति में सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए उसके बाद ही उन्होंने उमर उब्दुल्ला को राज्य की सत्ता हस्तांरित की। इसी तरह हरियाणा की राजनीति में चौधरी देवीलाल ने अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को राज्य की सत्ता की बागडोर उस समय दी थी जब वे दिल्ली दरबार की राजनीति में अपना मज़बूत स्थान बना चुके थे। और उधर 82 वर्षीय ओम प्रकाश चौटाला ने भी राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाए जाने की इन्हीं बारीकियों को बखृ़बी समझते हुए आज तक अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी अपने किसी भी बेटे को घोषित नहीं किया है। जबकि उनके दो पुत्र अजय व अभय चौटाला तथा पौत्र दुष्यंत चौटाला सभी राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हैं। एम करूणानिधि,एनटीरामाराव,बीजू पटनायक जैसे देश में और भी अनेक उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि सत्ता हस्तांतरण का जब-जब सही समय चुना गया है तब-तब संगठन व सत्ता में स्थायित्व कायम रहा है। और जब भी इसके समय के चयन में ज़रा भी भूल या गड़बड़ी हुई है तो नतीजा उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के विघटन के रूप में सामने आया है।

वैसे भी इतिहास में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के ऐसे कई िकस्से दर्ज हैं जहां कभी राजशाही में तो कभी लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था में भी सत्ता के शीर्ष को हथियाने के लिए रिश्तों को तिलांजली दी गई हैं। यहां तक कि कई देशों में तो इसकी परिणिती खूनी संघर्ष के रूप में भी हुई है। सऊदी अरब व नेपाल जैसे देश इसके गवाह हैं। भारत में भी जब प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को अपने साथ विदेशों दौरों पर ले जाना शुरु किया था और भारत में आने वाले विदेशी मेहमानों से उनका परिचय कराया करते थे उस समय यह कय़ास लगाए जाने लगे थे नेहरू, इंदिरा गांधी को अपने राजनैतिक वारिस के रूप में तैयार कर रहे हैं। परंतु पंडित नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित अपने-आप में नेहरू की राजनैतिक उत्तराधिकारी बनने की चाह रखती थीं। परंतु नेहरू जी की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और उनकी मृत्यु के बाद अपने पिता से राजनीति के गुण सीख चुकी इंदिरा गांधी देश के  सर्वोच्च सत्ता सिंहासन पर काबिज़ होने में सफल रहीं। परंतु विजयलक्षमी पंडित व इंदिरा गांधी के बीच इसी सत्ता की खींचतान के चलते कभी भी संबंध सौहाद्र्रपूर्ण नहीं रहे। इंदिरा बनाम संजय,राजीव गांधी बनाम मेनका गंाधी व इंदिरा गांधी बनाम मेनका गांधी जैसे रिश्तों में भी इसी तरह की पारिवारिक राजनीति तथा उत्तराधिकार की खींचातानी के दर्शन होते हैं।

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि बावजूद इसके कि प्रत्येक राजनैतिक व्यक्ति  इस बात की आकांक्षा रखता है कि वह अपने सबसे करीबी व सबसे प्रिय एवं सबसे वफादार दिखाई देने वाले व्यक्ति को ही अपना सत्ता सिंहासन या अपनी राजनैतिक विरासत हस्तांतरित करे। परंतु यह भी सही है कि एक बार यदि गलत समय पर या समय से पूर्व सत्ता हस्तांरित करने की भूल कर दी गई तो उसके नतीजे बेहद खतरनाक भी हो सकते हैं। ऐसे गलत राजनैतिक फैसलों की परिणिति पार्टी के विभाजन,पार्टी के मुखिया को बेदखल करने,रिश्तों में तोड़-फोड़ यहां तक कि सत्ता के हाथ से निकल जाने तक की सूरत में हो सकती है। कल तक उत्तर प्रदेश में सबसे मज़बूत समझी जाने वाली समाजवादी पार्टी के विघटन जैसे जो हालात पैदा हुए हैं उसे देखकर निश्चित तौर पर इस बात का यकीन किया जा सकता है कि रिश्तों पर राजसत्ता भारी पड़ सकती है।

___________________

???????????????????????????????परिचय –

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 134003 , Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here